[gtranslate]
Editorial

सही फैसलों की कठिन घड़ी

आदरणीय हरीश रावत जी,
आपके घोर-विरोधी और कटु आलोचक भी इस बात को स्वीकारते हैं कि वर्तमान में उत्तराखण्ड की राजनीति में आपसे ज्यादा अनुभवी और जनाधार वाला नेता कोई नहीं है। आपकी अपनी पार्टी कांग्रेस में तो दूर-दूर तक कोई आपके कद का नेता नहीं ही है, सत्तारूढ़ भाजपा में भी आपकी टक्कर का कोई नेता नजर नहीं आता। आपके समान व्यापक जनाधार वाले अपने नेता भगत सिंह कोश्यारी को तो जबरन सक्रिय राजनीति से भाजपा ने ही रिटायर कर डाला बाकी बचे भाजपा नेता अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों तक सिमटे हुए बौनसाई नेता हैं जिनके पास न तो आप समान उत्तराखण्डियत को समझने और महसूसने की समझ है, न ही इच्छाशक्ति। भले ही 2017 में आपके नेतृत्व में लड़े गए चुनावी समर का नतीजा कांग्रेस के लिए बेहद निराशाजनक रहा, कोई भी सम दृष्टि रखने वाला राजनीतिक विशलेषक उसे कांग्रेस या आपकी हार नहीं कहता है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मैजिक का असर था जिसके समक्ष आपके द्वारा राज्य हित में किए गए सभी कार्य बौने साबित हो गए। सही अर्थों में वह आपके नेतृत्व की पराजय नहीं थी। वह सुनहरे भविष्य को लेकर जनता को, उत्तराखण्ड ही नहीं, पूरे देश की जनता को दिखाए जा रहे उस सपने की जीत थी जो आज पूरी तरह धूल-धूसरित हो मात्र जुमलों का खंडहर बन रह गया है। इस सपने की राख से आप ऐसा बारूद बना सकते हैं जो 2022 के चुनाव में आपकी और कांग्रेस की सत्ता वापसी का मार्ग प्रशस्त करने की ताकत रखता हो। आप इन दिनों ऐसा ही प्रयास करते नजर भी आ रहे हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि वर्तमान समय में उत्तराखण्ड कांग्रेस आपके बगैर शून्य है। पिछले साढ़े चार वर्षों के दौरान प्रदेश कांग्रेस की ताकत जब कभी भी नजर आई तो उसके पीछे आप खड़े दिखे। आपकी जन के मध्य गहरी पैठ और लोकप्रियता को आपकी पार्टी के वे नेता भी भली-भांति समझते अवश्य होंगे जो आपके घोर-विरोधी हैं। आपकी पार्टी का आला नेतृत्व भी इस तथ्य को जानता है। तभी प्रदेश के कई नेताओं के पुरजोर विरोध के बाद भी भले ही आधी-अधूरी ही सही, 2022 के रण की कमान उसने आपको ही सौंपी। प्रश्न यह उठता है कि तमाम खूबियों और राजनीतिक कौशल के बावजूद आपको अपना नेतृत्व अपनी ही पार्टी के भीतर स्थापित कर पाने के लिए इतनी जद्दोजहद क्यों करनी पड़ रही है? क्योंकर यह जानते हुए भी कि आपके बगैर इस चुनावी जंग में कांग्रेस की जीत संभव नहीं, आपके कई पुराने साथी आपकी राह रोकने का प्रयास करते स्पष्ट नजर आ रहे हैं? मैं समझता हूं आप स्वयं इस प्रकार के प्रश्नों से इन दिनों न केवल दो-चार हो रहे होंगे बल्कि आत्मचिंतन भी अवश्य कर रहे होंगे। सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म पर प्रतिदिन प्रकाशित हो रही आपकी टिप्पणियों से भी कुछ ऐसा ही समझ में आता है। आत्म अवलोकन करना बेहद कठिन कार्य है। यदि कोई ईमानदारी से यह करने का साहस करे तो बहुत संभव है वह खुद की नजरों में ही अपराधी बन खड़ा हो जाएगा। लेकिन इसके फायदे भी बहुत हैं। सार्वजनिक जीवन जीने वाले आप सरीखे जन नेताओं के लिए तो यह आत्म अवलोकन बेहद जरूरी है। खुद का ईमानदार विश्लेषण, वह भी ‘कठिन समय’ में, आप सरीखे जननेता को भविष्य में उन गलतियों को न दोहराने का मार्ग प्रशस्त करता है जो ‘अच्छे समय’ में आप सरीखे राजनेताओं ने की होती हैं। यदि आपकी ही बात करूं तो शायद अपनी बात आप तक ज्यादा बेहतर तरीके से पहुंचा पाऊंगा। तो चलिए प्रयास करता हूं।
रावत जी आप कठिनकाल और परिस्थितियों में राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए थे। केदरारनाथ आपदा के चलते पैदा हुआ हाहाकार-चीत्कार आपको अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की नाकाबिलियत के चलते विरासत में मिला। आपने प्रशंसनीय कार्य किया। रात-दिन एक कर आपकी सरकार ने न केवल केदारनाथ क्षेत्र का पुनर्निर्माण कराया बल्कि इस आपदा से पैदा हुए जख्मों पर भी मरहम लगाने में सफलता पाई। इसमें भी कोई संदेह, कम से कम मुझे तो नहीं कि आपने प्रदेश के आर्थिक ढांचे को पटरी पर लाने के लिए कई ‘इन्नोवेटिव’ कदम उठाए। आपने जल संरक्षण के लिए कई योजनाएं लागू की जिससे जंगलों में चाल-खाल बनाने की दिशा में बड़ी प्रगति हुई और हमारे प्राकृतिक जल स्रोत्रों को पुनर्जीवित किया जा सका। ऊर्जा क्षेत्र में आपकी सरकार ने उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की। राज्य के तीनों ऊर्जा निगमों को घाटे से तो उबारा ही, 24 घंटे बिजली की आपूर्ति भी कर दिखाई। आपके शासनकाल में राज्य की प्रति व्यक्ति आय में भारी वृद्धि देखने को मिली। पहाड़ में पैदा होने वाले कृषि उत्पादों के लिए आपके द्वारा लागू की गई ‘उत्पाद बोनस’ नीति का भारी असर हुआ और हमारा मडुवा, झंगौरा, चैलाई, राजमा, गहत, भट्ट आदि एक प्रोडक्ट के रूप में स्थापित हुए। इनका बाजार मूल्य कई गुना बढ़ा जिसका लाभ आम पहाड़ी को मिला। इन सब उपलब्धियों के बावजूद आप उत्तराखण्ड के ‘यशवंत परमार’ नहीं बन सके तो इसमें कहीं न कहीं आपकी कमी, आपकी चूक एक बड़ा कारण रही। रावत जी, आपकी सबसे बड़ी कमी, सबसे बड़ी भूल सही संगी-साथियों का चयन न कर पाने और आपकी ‘एकला चलो’ नीति की रही। अमेरिका के 22वें राष्ट्रपति स्टीफन ग्रोवर क्लीवलैंड का कथन आपको स्मरण कराना चाहूंगा ‘A man is known by the company he keeps and also by the company from which he is kept out’। आपके मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान मैंने कई बार आपको आगाह किया था कि आपके कुछेक करीबियों का आचरण आपकी छवि को धूमिल कर रहा है। इस समाचार पत्र के 19 जुलाई, 2014 के अंक के अपने संपादकीय में मैंने इस बाबत लिखा था कि ‘हरिद्वार में अवैध खनन को लेकर नाना प्रकार की ‘अफवाहें’ फिजा में तैर रही हैं। सरकार के एक आला वजीर की मानें तो गंगा की सफाई इत्यादि के नाम पर अवैध खनन कर प्रदेश के एक पूर्व विधायक लाखों की अवैध कमाई कर रहे हैं…।’ 13 फरवरी, 2016 के अपने संपादकीय में मैंने आपको चेताते हुए लिखा था’ मुझे लगता है कि यदि अपनी बारात में से कुछ बारातियों को हरीश रावत बाहर कर दें तो वह ज्यादा बेहतर सरकार दे पाएंगे।’ आपने लेकिन इन चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया। आज यही बाराती आपके हाथों को ‘कांपते हुए हाथ’ बताते सुने जाते हैं। इसी प्रकार रावत जी आप अपनी जिस ‘बेटा’, ‘भूलि’ के आचरण पर व्यथित हो सोशल मीडिया में पोस्ट लिख रहे हैं और जो ‘भूलि’ शिष्टाचार की सारी मर्यादा लांघ कर आपको ‘मार्खुली बल्द’ कहने में जरा शर्म महसूस नहीं कर रही है, आपकी इस ‘भूलि’ और उनके पति की बाबत हमने मय प्रमाण एक नहीं कई समाचार प्रकाशित किए थे। व्यक्तिगत तौर पर भी एक नहीं अनेक बार मैंने इस ‘भूलि’ के हिस्ट्रीशीटर अपराधी रहे पति की कारगुजारियों की बाबत आपको आगाह किया था। काश आप मेरी बातों को तरजीह देते। आपने लेकिन ऐसा नहीं किया। नतीजा आपकी ‘भूलि’ ने मौका मिलते ही पाला बदलने में देर नहीं लगाई और आज आपकी बाबत अमर्यादित टिप्पणी करती नजर आ रही हैं।
प्रिय, आदरणीय रावत जी मुझे विश्वास है आप मेरी बातों को अन्यथा नहीं लेंगे। मैं आपके पहाड़ प्रेम और उत्तराखण्ड को एक आत्मनिर्भर राज्य बनाने के आपके विजन, आपकी दृष्टि का कायल हूं इसलिए चाहता हूं कि आपको प्रदेश की जनता एक मौका अवश्य दे ताकि आप अपनी पुरानी गलतियों को सुधार सकें और दृढ़ता से अपना विजन लागू कर सकें। भाजपा नेता भुवन चन्द्र खण्डूड़ी जी ने भी अपने प्रथम मुख्यमंत्रित्वकाल में कई भारी गलतियां की। उनका ‘सारंगी’ प्रेम उनके अवसान का कारण बना लेकिन दोबारा मौका मिलते ही उन्होंने अपनी गलतियों को सुधारा भी। यही कारण है कि जनता आज भी उनके दूसरे टर्म को सराहती है। मुझे पूरा यकीन है कि आगामी चुनावों में जनता एक बार फिर आपको मौका देने का मन बना चुकी है। महाभारत में मां गांधारी ने अपने को स्थिर रखने के लिए आंखों में पट्टी बांध ली, नतीजा महाभारत का युद्ध रहा। आपको दूसरा मौका मिलने की पूरी संभावना है। आपको तय करना है कि यदि ऐसा हुआ तो क्या एक बार फिर से आप गांधारी समान पट्टी बांध लेंगे या फिर उत्तराखण्ड की तकदीर बदलने वाले अवसर में तब्दील करेंगे? स्मरण रहे इतिहास आपको भी बनना है, यही नियति है, यही सबसे बड़ा सच है। यदि आप यशवंत परमार सरीखे इतिहास पुरुष बनने की चाह रखते हैं तो आपको अपने ईद-गिर्द ऐसी ‘रेखा’ खींचनी होगी जिसको पार वही करे जो केवल नामधारी ‘रण’ जीतने वाला न हो बल्कि सही में उत्तराखण्ड के लिए ‘रण’ लड़ उसे ‘जीत’ सकने की ईमानदार चाह रखता हो। यदि ऐसी लक्ष्मण रेखा आप खींच पाए तो निश्चित ही आप उत्तराखण्ड को देवभूमि बना पाने में सफल हो इतिहास के पन्नों में एक युग पुरुष में दर्ज हो जाएंगे। फैसला आपके हाथों में है।
सादर आपका

You may also like

MERA DDDD DDD DD