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अमेरिकी पत्रकार, लेखक और आलोचक वान पेकार्ड (Vance Packard) की एक पुस्तक है ‘दि हिड्न परसुएडर्स, (The Hidden Persuaders)। 1957 में यह पुस्तक प्रकाशित हुई थी। इसका हिंदी में तर्जुमा होगा ‘फुसलाने वाले।’ कितना सटीक शब्द है यह आज के दौर को परिभाषित करने के लिए। ये ‘फुसलाने वाले’ हमारे आस-पास चौतरफा मौजूद हैं। हम स्वयं भी इनमें शामिल हैं। सबसे बड़ा परसुएडर्स हमारा इगो, हमारा अहंकार है। जितने भी बड़े ‘फुसलाने’ वाले हैं, सभी एक से बढ़कर एक अहंकारी हैं। ये बहुत संगठित तरीके से काम करते हैं। एक-दूसरे से चाहे कितनी भी रंजिश रखें, अपने कॉमन लक्ष्य को पाने के लिए ये एकजुट होकर काम करते हैं। उदाहरण के लिए वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को ले लीजिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ करते नहीं अघाते हैं। राज्य विधानसभा के चुनाव नजदीक आने से पहले बड़ी चर्चा रहती थी कि प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी के रिश्ते तनावपूर्ण हो चले हैं। ऐसी चर्चाओं को तब खासा बल मिला था जब यकायक ही गुजरात कैडर के एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरविंद शर्मा को उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सदस्य बना लखनऊ भेज दिया गया था। शर्मा टीम मोदी का महत्वपूर्ण हिस्सा लंबे अर्से से रहे हैं। उनको लखनऊ भेजे जाने के बाद से ही कयास लगाए जाने लगे थे कि राज्य मंत्रिमंडल में उनकी इन्ट्री करा मुख्यमंत्री योगी के पर कतरे जाऐंगे। यहां तक कहा गया कि वे राज्य के उपमुख्यमंत्री बनाए जा रहे हैं और उन्हें गृह मंत्रालय दिया जा रहा है। योगी ने लेकिन ऐसा कुछ भी करने से स्पष्ट इंकार कर दिया। बेचारे शर्मा प्रदेश संगठन में बतौर उपाध्यक्ष बन अब खामोश बैठे हैं। शर्मा प्रकरण ने मोदी-योगी के मध्य अविश्वास की खबरों को जन्मा। विधानसभा चुनाव नजदीक आते-आते यह अविश्वास हवा हो गया और राज्य में जब कभी प्रधानमंत्री किसी कार्यक्रम में पहुंचते हैं, वे ‘खुलेमन’ से योगी की प्रशंसा के पुल बांधते नजर आते हैं। योगी भी इन दिनों हर मौके पर पीएम का स्तुति गान करते नजर आ रहे हैं। यह है म्यूचुअल ग्रेटिफिकेशन यानी एक-दूसरे के अहंकार की तृप्ति कर अपने लक्ष्य को पाने की राजनीति। मोदी योगी को बड़ा बना रहे है तो योगी मोदी को महान। दोनों के शरीर की भाषा, जिसे अंग्रेजी में बॉडी लैंग्वेज कहा जाता है, दोनों को महा अहंकारी बताती है। विश्व भर में जितने भी ‘परसुएडर्स’ हुए हैं, सभी महाअहंकारी थे। केवल और केवल कृष्ण एक ऐसे अहंकार रहित परसुएडर्स मेरी दृष्टि में हैं जिन्होंने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को सही लक्ष्य के लिए, न्याय के लिए प्रेरित करने का काम किया। कृष्ण का उद्देश्य पवित्र था इसलिए बगैर अहंकार, बगैर फुसलाए, उन्होंने अर्जुन को सत्य-असत्य के मध्य का अंतर समझाया। कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध हर हालात में होने की बात कही। उन्होंने पार्थ को ललकारा था कि वह अपने कर्त्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ सकता है। इस पूरे संवाद को जिसे हम गीता के नाम से जानते हैं, अद्भुत ज्ञान का भंडार है। इसका एक श्लोक ‘फुसलाने वालो’ की बाबत मुझे सटीक प्रतीत होता है। कृष्ण कहते हैं-

मयि सर्वाणि कर्माणि सन्यास्याध्यात्मचेतसा।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः।।

इसका अर्थ है- हे अर्जुन! तू चेतनामय हो अपने संपूर्ण कर्म को मुझमें समर्पित कर आशारहित और ममतारहित होकर, बगैर किसी ज्वर से पीड़ित हुए, युद्ध कर। यहां समझने की एक महत्वपूर्ण बात है। कृष्ण अर्जुन को हर प्रकार के ज्वर से बाहर निकल युद्ध करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। हमारे चारों तरफ जो ‘परसुएडर्स’ हैं, मुझे जो नजर आते हैं, वे कभी भी ज्वररहित होने की बात अपने फॉलोवर्स को नहीं कहते हैं। वे ज्वर को, बुखार को तेज करने का काम करते स्पष्ट नजर आते हैं। इसे कुछ यूं समझा जा सकता है, समझाया जा सकता है कि हम नाना प्रकार के ज्वर, बुखार से पीड़ित रहते हैं। आज नहीं सृष्टि के सृजन काल से ही। हमें लालच का बुखार है, हमें क्रोध का बुखार है, हमें धर्म का बुखार है, हमें सेक्स का बुखार है, हमें ईर्ष्या का बुखार है। इन नाना प्रकार के बुखारों से हम ग्रसित होने के चलते हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, सांस की बीमारी, मतिभ्रम आदि के शिकार हो जाते हैं। कृष्ण अर्जुन से इस प्रकार के बुखारों को त्याग अपना कर्म करने को कहते हैं। ‘फुसलाने वाले’ ऐसा नहीं करते। वे भ्रम पैदा करते हैं। भ्रम नाना प्रकार के बुखारों को बढ़ाने का काम करता है। नतीजा बेहद घातक तौर पर सामने आता है। वर्तमान में ये परसुएडर्स धर्म के बुखार को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। नतीजा समाज में भारी विघटन-विचलन के उभार का है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इन दिनों 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत की बात कहते सुने जा रहे हैं। उनका तात्पर्य 80 प्रतिशत हिंदू और 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी से है। वे बहुसंख्यकों को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि चुनाव दरअसल एक योग्य सरकार को चुनने के लिए नहीं हो रहा, बल्कि ऐसी सरकार चुनने के लिए हो रहा है जो हिंदू धर्म की रक्षा कर सके। इसे ज्वर बढ़ाना कहते हैं। बहुसंख्यक को एक तरह से वह सब कुछ भूल जाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है जो कुछ उसने विगत वर्षों में भोगा है। भूल जाइए कि सरकारी तंत्र की अक्षमता चलते कोविड काल में आपने अपनों को ऑक्सीजन की कमी के चलते हमेशा के लिए खो दिया है। भूल जाइए नोटबंदी के बाद देश की अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठ गया। बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई। भूल जाइए कृषि कानूनों के चलते साल भर तक किसान सड़कों पर बैठा रहा। नाना प्रकार के कष्ट उसने सहे। सात सौ से अधिक किसान मौत के आगोश में समा जाए। सब कुछ भूल केवल इतना याद रखिए कि धर्म खतरे में है। इतना याद रखिए कि मोदी जी, योगी जी के राज में राम मंदिर का निर्माण संभव हो पाया है। बाकी जो कुछ इन पांच बरसों में गलत हुआ, जो जनता जनार्दन ने भोगा, उसे भूल जाओ। बहुत संभव है धर्म के इस ज्वर की चपेट में, इस भ्रम जाल में एक बार फिर लोकतंत्र के लोक से जुड़े असली मुद्दे गायब हो जाए और फुसलाने वालों का खेला जम जाए। यदि ऐसा हुआ तो नुकसान जनता का ही है। उसे समझना होगा कि उसका हित किसमें है। ज्वररहित होने में, जैसा कृष्ण ने अर्जुन को समझाया था अथवा ज्वर की चपेट में बंधे रहने में। हां एक बात और ऐसे ‘परसुएडर्स’ को, ‘फुसलाने वालों’ को यदि आप पहचान पाने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं तो इन्हें इनके अहंकार से चिन्हित करने का प्रयास कीजिएगा। जो जितना बड़ा ‘फुसलाने वाला’ होगा, वह उतना ही बड़ा अहंकारी भी होगा। और जितना बड़ा अहंकारी होगा, भीतरी तल पर उतना ही हीन भी होगा। यह मैं अपनी समझ मात्र से नहीं कह रहा हूं। यह मनोवैज्ञानिक सत्य है। ऑस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड एडलर की थ्योरी से इसे बेहतर समझा जा सकता है। वे कहते हैं ‘हर व्यक्ति के भीतर एक हीन ग्रंथी होती है।’

एडलर पेशे से चिकित्सक थे। उन्होंने मुख्य रूप से मनुष्य के मनोविज्ञान पर काम किया। हीन ग्रंथि पर उनका शोध 1925 में प्रकाशित हुआ था। आज भी उनके काम की प्रासंगिकता बनी हुई है। एडलर के अनुसार मनुष्य जितना हीन होता है, उतना ही उसके भीतर अहंकार कूट-कूट के भरा होता है। अर्थात जितना इनफीरिआरिटी (Inferiority) से वह पीड़ित होता है, उससे कहीं अधिक वह अहंकारी हो जाता है। एडलर की थ्यौरी अनुसार चाहे ऐसा व्यक्ति महाबलशाली, धनी, बड़े पद पर बैठा हुआ ही क्यों न हो, आंतरिक तल पर विराजमान उसका यह इनफीरिआरिटी कॉम्पलैक्स उसे अहंकार का प्रदर्शन करने के लिए मजबूर कर देता है। इसे आप दिन-प्रतिदिन की सामान्य घटनाओं से समझ सकते हैं। अधिकांश समय किसी से विवाद होने पर एक-दूसरे को धमकाते हुए कहा-सुना जाता है ‘जानते नहीं मैं कौन हूं?’ यह हमारी हीन ग्रंथि है जो हमें उकसाती है अहंकार का प्रदर्शन करने के लिए। इस थ्यौरी पर चर्चा फिर कभी। अभी के लिए इतना भर काफी है कि हमारे चारों तरफ जो ‘फुसलाने वाले’ सक्रिय हैं, वे हमें हमारे भीतर मौजूद नाना प्रकार के बुखारों को उग्र कर अपना उल्लू साधने का काम कर रहे हैं। इनसे सतर्क रहने की जरूरत है ताकि इनके द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम जाल को तोड़ा जा सके और सत्य की परख कर अपने समाज, अपने लोकतंत्र की रक्षा की जा सके।

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