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Editorial

कहां तो तय था चिरागां हरेक…

सम्मानीय मुख्यमंत्री जी,

उत्तर प्रदेश से अलग एक पहाड़ी संवेदनाओं, सरोकारों और मूल्यों की समझ रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य का सपना वर्ष 2000 में पूरा हुआ। नए राज्य की यात्रा 19 बरस पूरी कर चुकी है। इन उन्नीस बरसों में तमाम सरोकार, तमाम संवेदनाएं और तमाम मूल्य पतित पावनि गंगा में निर्ममता से बहा दिए गए हैं। आज उत्तराखण्ड अपने पितृ राज्य उत्तर प्रदेश का बोनसाई बन चुका है। यहां हर प्रकार का अनाचार है। राज्य की नौकरशाही, राज्य के राजनेता, राज्य का आम नागरिक, गरज यह कि हरेक अपने -अपने स्तर पर, अपनी-अपनी औकात अनुसार, अपनी ही जन्मभूमि के दोहन में जुटा है। जाहिर है जब पूरा समाज ही भ्रष्ट है तो उसका कोई अंग विशेष कैसे नाना प्रकार की व्याधियों से ग्रस्त समाज से अलग हो सकता है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया की विश्वसनीयता भी इसी कारण पूरी तरह छिन्न भिन्न है। राज्य के एक महत्वपूर्ण न्यूज पोर्टल ‘पर्वतजन’ के संपादक शिव प्रसाद सेमवाल की गिरफ्तारी इसलिए ही किसी बड़े जन आक्रोश का कारण नहीं बनी। सेमवाल को 21 नवंबर के दिन राज्य पुलिस ने बेहद संगीन धाराओं के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया। उन पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420, 384, 504, 506, लगाई गई है। धारा 384 सामान्य भाषा में ‘रंगदारी’ करने या डरा-धमकाकर वसूली करने के वाले गुण्डे पर लगाई जाती है। तो आपकी मित्र पुलिस ने एक वरिष्ठ पत्रकार को रंगदारी करने वाला बदमाश बना डाला और 21 नवंबर से वे जेल में हैं। सेमवाल के तेवर सदा से ही सत्ता विरोधी रहे हैं। सरकारें चाहे किसी की भी हों, उनका सत्ता संग टकराव बना रहा है। जाहिर है उनके तेवर सत्ताशीन महानुभवों को कभी नहीं सुहाए हैं। ऐसे में शिव प्रसाद सेमवाल की गिरफ्तारी ने मुझे खासा विचलित करने का काम किया। चूंकि उन पर आरोप ब्लैकमैलिंग करने के हैं, इसलिए कुछ कहने से पहले मैंने मामले की गहराई तक जाने का प्रयास किया। चूंकि स्वयं आपके कार्यालय को इस पूरे प्रसंग से जोड़ा जा रहा है इसलिए मुझे उचित लगा कि सीधे आपसे ही इस बाबत संवाद किया जाए। आप पत्रकारों से दूरी रखते हैं, और आपके मीडिया सलाहकार समेत तमाम अफसरान, आपके ही पद्चिन्हों पर चलते हुए, आप तक पहुंचने के सभी मार्ग बंद रखते हैं, इसलिए इस खुले पत्र के माध्यम से आपको संबोधित कर रहा हूं।

त्रिवेंद्र जी, शिव प्रसाद सेमवाल जी को निश्चित ही किसी द्वेष अथवा दुराग्रह के चलते आपकी पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया है। उन पर दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट को पढ़कर एवं सोशल मीडिया की मार्फत सामने आ रही जानकारियों की बिना पर मैं यह शर्तिया कह रहा हूं। एक संदिग्ध छवि के व्यक्ति नीरज राजपूत की तहरीर पर आपकी पुलिस द्वारा बगैर प्राथमिक जांच किए ही सीधे एफआईआर दर्ज करना खुद में बड़ा प्रमाण है कि श्री सेमवाल पर मुकदमा दर्ज कराने के पीछे कोई बड़ी साजिश है। जो पुलिस संगीन अपराधों तक की शिकायत दर्ज न करने के लिए कुख्यात हो, जो पुलिस तमाम सबूत उपलब्ध कराए जाने के बाद भी इंच भर टस से मस न होती हो, जो पुलिस अदालत द्वारा जारी गैरजमानती वारंट के बावजूद अपराधी को गिरफ्तार करने में कोई रुचि न दिखाती हो, उस पुलिस द्वारा एक वरिष्ठ पत्रकार पर मुकदमा, वह भी रंगदारी और चार सौ बीसी जैसे अपराध का, दर्ज करना, एक सामान्य प्रक्रिया भर नहीं हो सकती। मैं आपकी राजनीतिक मजबूरियां समझता हूं, मैं यह भी बखूबी जानता हूं कि कई बार चाहने के बावजूद आप कठोर कदम इन मजबूरियों के चलते उठा नहीं पाते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो शायद आप अपने मंत्रिमंडल में श्रीमती रेखा आर्या को कभी मंत्री नहीं बनाते। ऐसा संभव नहीं कि आपके संज्ञान में अथवा आपके राष्ट्रीय नेतृत्व के संज्ञान में रेखा आर्या एवं उनके ‘लब्धप्रतिष्ठ’ पति की कारगुजारियां, बेनामी संपत्ति का साम्राज्य आदि न हों। ऐसा भी संभव नहीं कि आपके एक अन्य मंत्रिमंडल सदस्य श्री हरक सिंह रावत का कच्चा-चिट्ठा आपके पास न हो। सीबीआई द्वारा एक स्टिंग ऑपरेशन में उनकी चार्जशीट के बावजूद आपका उन्हें अपने मंत्रिमंडल में बनाए रखना आपकी बेचारगी का परिचायक है। यह भी संभव नहीं कि एनएच भूमि मुआवजे के मास्टर माइंड नेताओं और नौकरशाहों की बाबत आप अनभिज्ञ हों और आप ऐसे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जानबूझकर कार्यवाही नहीं करना चाहते। यदि ऐसा होता तो आप सत्ताशीन होने के साथ ही एनएच मामले में सीबीआई जांच का ऐलान न करते, दो वरिष्ठ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों को निलंबित न करते। क्यों आपको पूरे प्रकरण में बैकफुट पर आना पड़ा, यह मैं नहीं जानता, इतना अवश्य कहना चाहूंगा, आपका बैकफुट में आना, मुझ जैसे सैकड़ों को नहीं भाया। कितना त्रासद होगा आपके लिए, अपनी ही सार्वजनिक घोषणा, सार्वजनिक स्टैंड पर वापसी करना। ठेठ पहाड़ी होने के नाते, मैं आपको भी ठेठ ही मानता-समझता हूं। मेरा मानना है कि आप कम से कम अपने स्तर पर ऐसा कोई निर्णय नहीं ले सकते जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का गला घोंटने का काम करे। लेकिन यह संभव है कि आपके मातहतों, विशेषकर मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात आपके सिपहसालारों की कोई अदावत शिव प्रसाद सेमवाल संग रही हो जिसका नतीजा पहला मौका मिलते ही सेमवाल की घेराबंदी कर दी गई हो। स्वयं आपके प्रमुख निजी सचिव द्वारा ऐसी आशंका व्यक्त की जा चुकी है कि आपके नाम का दुरुपयोग इस प्रकरण पर किया गया है। अब कुछ अर्सा पहले ही हमारे संस्थान से जुड़े एक नवयुवक मनोज बोरा पर हल्द्वानी में प्राणघातक हमला किया गया था। दर्ज एफआईआर में और पुलिस की जांच में इस गोलीकांड का खलनायक भाजपा के एक पूर्व नेता प्रमोद नैनवाल का भाई निकला। पुलिस ठीकठाक तरीके से मामले की विवेचना कर रही थी कि उस पर दबाव बढ़ने शुरू हो गए। सूत्रों का हवाला देते हुए मैं कह सकता हूं कि हल्द्वानी पुलिस पर आपके कार्यालय से अपराधी को बचाने का दबाव बनने लगा। हमें अपने सूत्रों की बात पर यकीन नहीं हुआ। लेकिन जब कोर्ट के द्वारा जारी गैर जमानती वारंट को हल्द्वानी पुलिस तामील करने से हिचकिचाती नजर आई, तब महसूस हुआ कि मामला गड़बड़ है। फिर आपके स्तर से इस प्रकरण की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी गई। दशकों की पत्रकारिता का हमारा अनुभव है कि यह पुलिस का सबसे निष्क्रिय विभाग है जहां मामले को दबाने की नीयत से भेज दिया जाता है। इस पूरे प्रकरण के दौरान श्री प्रमोद नैनवाल की भाजपा में रिइन्ट्री ने भी हमें चौंकाया। भला ऐसा व्यक्ति जो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की विगत् चुनावों में हार का कारण बना हो, उसे किसकी शह पर वापस लिया गया, यह आज भी हमारे लिए अबूझ पहेली है। हालांकि यह एक राजनीतिक दल का आंतरिक मामला है इसलिए इस पर ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं, फिर भी यह अवश्य कहना चाहूंगा कि आपके स्तर से जो मामला सीबीसीआईडी को ट्रांसफर किया गया, उससे आपकी छवि धूमिल हुई है। और अब श्री सेमवाल की गिरफ्तारी बाद तो, हम सकते में हैं। सकते में इसलिए क्योंकि हमें लगता था हमारे राज्य में राजनीति का स्तर कभी भी यूपी समान निम्नतर नहीं होगा। खासकर पत्रकारों की जन्मूभूमि कहलाए जाने वाले राज्य में कम से कम पत्रकारों की आवाज घोंटने का काम नहीं होगा। हालांकि यूपी में रहते हम उमेश डोभाल का हश्र देख चुके थे, इसके बावजूद यह कभी न सोचा था कि जब पहाड़ की सत्ता में पहाड़ी काबिज होगा, तब हालात ज्यादा खराब हो जाऐंगे। मुख्यमंत्री जी, शायद राजनीतिक और शासकीय व्यवस्तताओं के कारण आप अवगत नहीं होंगे कि भारत में स्वच्छ, स्वतंत्र और सरोकारीय पत्रकारिता करने वालों पर संकट लगातार गहरा रहा है। मैं आपके संज्ञान में ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ नामक अंतरराष्ट्रीय संस्था की वार्षिक रिपोर्ट-2018 को लाना चाहता हूं जिसमें भारत को उन देशों में शुमार किया गया है जहां पत्रकारों पर लगातार हमले बढ़े हैं। हमारे मुल्क को इसमें उन 14 देशों की सूची में स्थान दिया गया है, जहां हालात सबसे भयावह हैं।

त्रिवेन्द्र जी, यह मानवीय प्रवृति है कि हम न तो इतिहास से कोई सबक लेते हैं, न ही प्रयास करते हैं कि अपने कार्यों का निष्पक्ष मूल्यांकन कर, यह समझ सकें कि इतिहास हमें किस दृष्टि से देखेगा। इतिहास की दृष्टि बड़ी निर्मम होती है। अपने-अपने समय के ताकतवार शासक इतिहास में क्रूर हत्यारे, भ्रष्ट तानाशाह के तौर पर दर्ज हैं। मेरी आपको बगैर मांगी सलाह है कि आप कुछ समय निकाल कर आत्मचिंतन अवश्य करें कि पिछले तीन बरस का आपका शासन, राज्य के लिए, आमजन के लिए कितना लाभकारी रहा है, यह चिंतन भी अवश्य करें कि लोकतांत्रिक मूल्यों और जनपक्षीय सरोकारों के संवर्धन में आप अपने शासनकाल में कितने सफल या किस कदर विफल रहे हैं। यदि आप निष्पक्ष मूल्यांकन कर पाने में सफल रहते हैं तो शायद बचे हुए दो बरस आप कुछ ऐसा कर पायें जो इतिहास के पन्नों में आपको एक यशस्वी मुख्यमंत्री के बतौर दर्ज करा पाये। मैं उत्तराखण्ड के हरेक मुख्यमंत्री, चाहे एनडी तिवारी हों, जनरल खण्डूड़ी हों या फिर हरीश रावत हों, से यह प्रश्न करता रहा हूं कि क्योंकर वह हिमांचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री यशवंत परमार समान खुद को स्थापित करने का प्रयत्न नहीं करते हैं। उत्तर लेकिन इनमें कोई दे नहीं पाया। यही प्रश्न अब मेरा आपसे भी है।

मुख्यमंत्री जी, आपसे अनुरोध है कि शिव प्रसाद सेमवाल प्रकरण की जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी से करवाने का निर्णय लें ताकि हमारी आप पर आस्था बनी रहे और आप जनअपेक्षाओं पर खरे उतर सकें। हालांकि ऐसा कुछ होगा इसकी संभावनाएं क्षीण हैं, फिर भी प्रयास करना, अपने मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचाने के हक का इस्तेमाल करना मैं जरूरी समझता हूं।

सादर!

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