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Editorial

चूको मत मुख्यमंत्री जी

प्रिय श्री पुष्कर सिंह धामी जी,

अभी कुछ ही दिन हुए हैं मैंने आपको एक खुला पत्र लिखा था जिसमें आपको यकायक मिले मौके का जिक्र करते हुए चेताया था कि आपके युवा कंधों पर जन अपेक्षाओं के साथ-साथ आपके गुरु एवं पथ प्रदर्शक भगत सिंह कोश्यारी जी के भरोसे का भी भार है। वह भरोसा जिसकी बिना पर आपकी पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने आपसे कहीं ज्यादा अनुभवी एवं वरिष्ठ नेताओं की दावेदारी को नजरअंदाज कर आपको राज्य की कमान सौंपी। निश्चित ही आप असाधारण परिस्थितियों में मुख्यमंत्री बने हैं। प्रचंड बहुमत और विश्वास के साथ जो सत्ता उत्तराखण्ड की जनता ने 2017 के विधानसभा चुनाव में सौंपी आपकी पार्टी उस विश्वास के साथ न्याय कर पाने में सर्वथा विफल रही। कोश्यारी जी सरीखे अनुभवी और विशाल जनाधार वाले राजनेता की अनदेखी कर आपकी पार्टी के आलाकमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को क्योंकर 2017 में मुख्यमंत्री बनाया यह आज तक मुझ सरीखे कलमजीवियों के लिए रहस्य बना हुआ है। त्रिवेंद्र जी के पास लेकिन जबर्दस्त मौका था। न केवल अपनी क्षमताओं के प्रदर्शन का, अपने को एक जनसरोकारी राजनेता स्थापित करने का वरन् उत्तराखण्ड को एक आदर्श, प्रगतिशील राज्य बनाने का भी। वे मेरी दृष्टि में पूरी तरह अक्षम साबित हुए। विधानसभा में पार्टी को मिला बहुमत और केंद्रीय नेतृत्व के समर्थन ने उनको जमीनी हकीकत से कोसों दूर एक अहंकारी नेता में बदल डाला। आपको याद हो न हो, उत्तराखण्ड की जनता, यहां तक कि पूरे देश की जनता भूली नहीं है कि किस प्रकार का आचरण उन्होंने एक महिला शिक्षक के साथ जनता दरबार में सुनवाई के दौरान किया था। उत्तराखण्ड पूरे देश में जगहंसाई का कारण तो बना ही आपकी पार्टी की संवेदनहीनता भी इससे स्थापित हुई। न जाने क्यों एक के बाद एक ‘ब्लंडर’ कर रहे मुख्यमंत्री पर आपके आलाकमान का आशीर्वाद और विश्वास बना रहा। उसकी नींद टूटी जरूर लेकिन साढ़े चार बरस बाद। एक बार फिर उसने प्रदेश की जनता को सरप्राइज देते हुए तीरथ सिंह रावत की आनन-फानन में ताजपोशी करा दी। आपकी तरह ही तीरथ की ताजपोशी के समय भी प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर एक सांसद को मुख्यमंत्री बनाया गया। प्रश्न लेकिन बंद कमरों में उठे, नाराजगी के स्वर भी बंद कमरों तक ही बोले-सुने गए। तीरथ रावत लेकिन मात्र कुछ माह ही मुख्यमंत्री रह पाए। संवैधानिक बाध्यता के चलते उनको त्याग पत्र देना पड़ा और आप की शपथ करा दी गई। तीरथ जी ने अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान एक प्रतिष्ठित पत्रकार और समाजसेवी दिनेश मानसेरा को अपना सलाहकार बनाया था। मानसेरा जी की छवि एक निष्पक्ष पत्रकार के साथ-साथ जनसेवा में लगे रहने वाले संवेदनशील व्यक्ति की है। मुझ सरीखों को उनका यह निर्णय अच्छा लगा था। लेकिन उन सरीखे जनसमर्पित बुद्धिजीवी की नियुक्ति आपकी पार्टी के कुछ नेताओं को शायद रास नहीं आई। नतीजा मानसेरा जी ने स्वयं ही पद स्वीकारने से इंकार कर दिया। शायद तीरथ जी ने ही उनसे ऐसा करने को कहा हो। कारण जो भी रहा हो, यह अत्यंत खराब निर्णय था। इससे तीरथ जी की छवि धूमिल हुई। मानसेरा पहले भी निस्वार्थ भाव से जनसेवा में लगे रहते थे, आज भी पूरे समर्पण के साथ वैसा ही कर रहे हैं। नुकसान तीरथ भाई और भाजपा के खाते में गया। आपने तो लेकिन हद ही कर डाली। अपनी ही पार्टी के विधायक और वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल जी के सुपुत्र को आपने अपना सलाहकार बना डाला। धामी जी ‘सलाहकार’ एक बेहद महत्वपूर्ण पद है, वह भी किसी राज्य के मुख्यमंत्री का सलाहकार। ऐसी नियुक्ति के पीछे गहन मंथन का होना जरूरी है। अंग्रेजी की कहावत है “A man is known by the company he keeps.” प्रख्यात तमिल दार्शनिक तिरूवल्लुवर ने भी कहा है। ‘शत्रु उस राजा का नाश नहीं कर सकते जिसके पास ऐसे सलाहकार हों जो राजा की गलती ढूंढ़ सकते हैं, उससे असहमत हो सकते हैं और उसे उन गलतियों को सुधारने के लिए कहने का साहस रखते हैं।’

तब आपने पीयूष अग्रवाल में ऐसा कोई गुण देखा कि उन्हें अपना सलाहकार बना डाला। सोशल मीडिया के जरिए पता चला कि पहले इन महाशय को रुउपनल के जरिए जूनियर इंजीनियर के पद पर लगाया गया था। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के आदेश चलते जब वहां इनकी नियुक्ति नहीं हो सकी तो आपने इन्हें अपना रुसलाहकार बना डाला। हालांकि अपुष्ट खबरों के अनुसार आपने इस नियुक्ति को अब रद्द कर डाला है। मैं आश्चर्यचकित हूं, आपके विवेक पर मुझे गहरी शंका पैदा हो रही है, यहां तक कि मुझे आपकी पार्टी आलाकमान की समझ पर भी तरस आ रहा है कि क्योंकर, किन गुणों, किन योग्यताओं को आधार बना उसने आपको मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया।

धामी जी सलाहकार उसे बनाया जाता है जो स्वहित को परे रख, राज्यहित की सलाह मुख्यमंत्री को देने की समझ और साहस रखे। क्या आपको लगता है कि पीयूष अग्रवाल जो ऐन-केन-प्रकारेण अपने पिता के राजनीतिक रसूख के सहारे जूनियर इंजीनियर बनने की जुगत में थे, वे राज्यहित से जुड़े मसलों को समझने और उन पर आपको सलाह देने की योग्यता रखते हैं? या फिर मात्र इसलिए आपने उनको अपना सलाहकार बना डाला कि उनके पिता विधानसभा अध्यक्ष हैं और आपकी पार्टी के समर्पित नेता हैं?

प्रिय धामी जी ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति करते समय काश आप पूर्व सीएम हरीश रावत जी की गलतियों से कुछ सबक लेते तो यह भूल आपसे नहीं होती। रावत जी ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में ऐसे ही एक सलाहकार की नियुक्ति की थी जिन्हें उस दौर में सुपर सीएम कहा जाने लगा था। मुझे पक्का यकीन है रावत जी ने भी चाणक्य नीति को दरकिनार कर फैसला लिया था। नतीजा यह कि उनकी सरकार के हर विवादास्पद फैसले के पीछे उन सलाहकार की सलाह होने की खबरें देहरादून से लेकर दिल्ली तक सुनी जाती हैं। सत्ता हाथ से गई तो सबसे पहले उन सलाहकार ने ही रावत जी का साथ छोड़ा और अब उनके खिलाफ विष वमन् करते घूम रहे हैं।

धामी जी एक जनसरोकारी व्यक्तित्व के धनी बड़े राजपुरुष ने आपके मुख्यमंत्री बनने के बाद मुझे कहा था कि आपकी आलोचना, आपके कामकाज, आपकी कार्यशैली में मीन-मेख निकालने से पहले मैं आपको परफॉर्म करने का समय अवश्य दूं। मैंने उनसे वायदा किया जिसे आज तोड़ते हुए मुझे खेद हो रहा है। लेकिन क्या करूं यही मेरा धर्म है, मेरा कर्म है। आपकी सरकार की बाबत लगातार विचलित करने वाले समाचार मुझ तक पहुंच रहे हैं। कहा जा रहा है कि चुनावी मौसम के चलते आपकी सरकार वसूली करने वाली सरकार बन चुकी है।
पिछले दिनों पूर्व सीएम हरीश रावत जी की एक फेसबुक पोस्ट पढ़ने को मिली थी। उससे आभास हुआ कि राज्य के उद्योगपतियों से जबरन उगाही का दौर शुरू हो चुका है। ऐसी बहुत सी खबरें लगातार सुनने को मिल रही हैं। अभी कुछ दिन हुए राज्य के औद्योगिक प्रतिष्ठान सिडकुल ने रुद्रपुर में एक बड़ी कमर्शियल परियोजना का टेंडर जारी किया। इससे पहले कि उसमें निविदा डाली जाती ‘उच्च स्तर’ से फोन आने के बाद टेंडर की तारीख बढ़ा दी गई। इससे अच्छे निवेशकों में राज्य सरकार की कार्यशैली को लेकर निराशा का भाव जन्मा है।

आपके मंत्री मंडलीय सहयोगियों की बाबत भी तमाम प्रकार की नकारात्मक खबरें रोज मुझे मिलती हैं। मन खिन्न है। क्या होगा उत्तराखण्ड का? क्या एक विफल राज्य बनने के लिए ही इसका जन्म हुआ था? प्रियवर धामी जी याद रखिएगा इतिहास आपकी हर नीति, हर निर्णय को कसौटी बनाकर आप पर फैसला देगा। आने वाली पीढ़ियों के लिए आप आदर्श पुरुष बनेंगे या फिर….। फैसला आपके हाथ में है।

 

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