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Editorial

अर्थशास्त्री न बनें रामदेव

अर्थशास्त्री न बनें रामदेव
अपूर्व जोशी

स्वामी रामदेव ने एक सिरे से पूरे बैंकिंग सिस्टम को भ्रष्ट तो आसानी से कह डाला लेकिन वे भूल गए कि किन विषम परिस्थितियों, राजनीतिक दबाव में हमारे बैंकर्स काम करते हैं। नोटबंदी के दौरान भारी दबाव के चलते ग्यारह बैंककर्मी मर गए थे। रामदेव स्पष्ट करें कि क्या वे भ्रष्ट बैंककर्मी थे? क्या विभिन्न सरकारी योजनाओं के चलते बैंकों को जो ऋण स्वीकृत करने पड़ते हैं उनके डूब जाने के लिए सिर्फ वे ही जिम्मेदार हैं? केंद्र सरकार समय-समय पर किसानों, बुनकरों, बेराजगारों, विद्यार्थियों, महिला उद्यमियों के लिए योजनाएं लाती है। इन योजनाओं को सफल दर्शाने के लिए बैंकों पर जबर्दस्त दबाव रहता है कि वे ऋण स्वीकृत करें। टारगेट दिए जाते हैं, यदि टारगेट पूरा न हो तो संबंधित बैंक शाखा के अधिकारियों की जमकर मजामत होती है। ऐसे भारी दबाव में गलत ऋण स्वीकृत हो जाते हैं। हालांकि सच यह भी है कि कई बड़े स्कैम यानी धोखाधड़ी बैंक के अफसरों के संग मिलकर की जाती है। अपात्र को लोन स्वीकृत किए जाते हैं जो बाद में डूब जाते हैं

योगगुरु रामदेव लगभग हर विषय पर अपना ज्ञान बद्घारने के लिए जाने जाते हैं। अभी कुछ दिन हुए मैं वित्त मंत्रालय में एक वरिष्ठ अधिकारी संग भेंट करने गया था। उनके कक्ष में लगे टीवी में बाबा रामदेव बैंक अफसरों पर तंज कसते सुनाई दिए। शायद नीरव मोदी प्रकरण में वे कुछ ज्ञान दे रहे थे। बाबा ने बैंक अफसरों को भ्रष्ट कहा जिससे मेरे मित्र दुखी हो उठे। उन्होंने बेहद गमगीन होकर मुझसे कहा कि देखिए, कैसे इन बयानों के जरिए पूरी बैंकिंग इंडस्ट्री को बदनाम किया जा रहा है। रामदेव इससे पहले भी नोटबंदी पर टिप्पणी करते हुए कह चुके हैं कि नोटबंदी के दौरान बैंक वालों ने करोड़ों रुपयों की अवैध कमाई की है। उनका यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैंकों के भ्रष्टाचार को समझ नहीं पाए। बाबा का दावा है कि नोटबंदी के दौरान साढ़े तीन लाख करोड़ का द्घोटाला बैंक अफसरों ने कर डाला है। स्वामी रामदेव ने किस आधार पर यह अनुमान लगाया और वे भ्रष्टाचार पर बोलने का कितना नैतिक आधार रखते हैं, अलग से चर्चा का विषय हो सकता है। विशेषकर हमारे लिए क्योंकि पतंजलि से जुड़े कई ऐसे प्रसंग हैं जिन पर हमारे द्वारा लगातार समाचार प्रकाशित किए जा चुके हैं। ऐसे समाचार जिनकी बिना पर मैं पूरे यकीन से कह सकता हूं कि बाबा रामदेव को भ्रष्टाचार चाहे आर्थिक हो या नैतिक, पर बोलने का अधिकार नहीं। बहरहाल, मेरे अधिकारी मित्र रामदेव के कथन से बेहद आहत हुए। फिर दो दिन पश्चात उन्होंने मुझे एक रिपोर्ट का अंश भेजा जिसमें भारत में बैंकिंग सेक्टर में सबसे कम भ्रष्टाचार के होने की बात कही गई है। मैंने इस रिपोर्ट का अध्ययन किया। १९९१ में सीएमएस ;ूूूण्बउेण्वतहण्पदद्ध नाम से गठित संस्था देश में भ्रष्टाचार की स्थिति पर लगातार अपनी रिसर्च हर वर्ष प्रकाशित करती है। इस माह में जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में सीएमएस ने भ्रष्टाचार पर जो आंकड़े दिए हैं वे बैंक अधिकारियों की बाबत स्वामी रामदेव के विचारों को पूरी तरह से खारिज कर देते हैं। अपनी इस रिपोर्ट में सीएमएस ने देश के १३ राज्यों में दस सार्वजनिक सेवाओं की बाबत गहन सर्वेक्षण किया है। ये तेरह राज्य हैं आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात। जिन ग्यारह सेवाओं की बाबत सवाल पूछे गए उनमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), बिजली, स्वास्थ्य सेवाएं, पानी, मनरेगा, बैंक, पुलिस, न्यायपालिका, राजस्व (द्घर/जमीन से जुड़े मसले) तथा परिवहन शामिल है। इस सर्वेक्षण के नतीजों अनुसार जनता का मानना है कि फरवरी २०१६ से फरवरी २०१७ के मुकाबले मार्च २०१७ से फरवरी २०१८ में भ्रष्टाचार में या तो वृद्धि हुई है या फिर वह उसी स्तर पर रहा है, कमी कतई नहीं आई है। यह निष्कर्ष चार बरस केंद्र की सत्ता में पूरे कर चुकी नरेंद्र मोदी सरकार और जिन तेरह राज्यों में यह सर्वेक्षण किया गया, उनमें छह राज्य भाजपा शासित होने के चलते भारतीय जनता पार्टी के भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा करते हैं। सत्ताइस प्रतिशत ने माना है कि जिन सार्वजनिक सेवाओं की बाबत पूछा गया है, उन्हें इन सेवाओं में भ्रष्टाचार से दो-चार होना पड़ा है। जिन तेरह राज्यों में यह सर्वेक्षण कराया गया, उनमें से तेलंगाना में सर्वाधिक तिहत्तर प्रतिशत ने भ्रष्टाचार की बात कही है, कर्नाटक में छत्तीस प्रतिशत, बिहार में पैंतीस प्रतिशत, दिल्ली में उन्तीस प्रतिशत, मध्य प्रदेश में तेइस प्रतिशत, पंजाब में बाइस प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में चौदह प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में सत्ताइस प्रतिशत और महाराष्ट्र में पंद्रह प्रतिशत ने भ्रष्टाचार की बात की है। इन राज्यों में जिन सार्वजनिक सेवाओं की बाबत सर्वेक्षण कराया गया, उनमें से सबसे अधिक भ्रष्टाचार परिवहन सेवाओं में होने की बात सामने आई है। ज्यादातर का कहना रहा कि ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने अथवा उसका रिन्यूवल कराने, वाहनों का रजिस्ट्रेशन कराने आदि कार्यों के लिए विभाग के कर्मचारियों को रिश्वत दिए बगैर काम नहीं चलता। पुलिस विभाग दूसरे नंबर पर सबसे भ्रष्ट माना गया है। सरकार अस्पतालों, जमीन-जायदाद के कार्यों, बिजली विभाग, न्यायपालिका और यहां तक कि शिक्षा विभाग में भी आजमन को भ्रष्टाचार से जूझना पड़ता है। अकेला बैंकिंग सेक्टर ऐसा क्षेत्र है जहां जनता ने न्यूनतम भ्रष्टाचार होने की बात कही है। तेरह राज्यों में कराए गए सर्वेक्षण में मात्र एक प्रतिशत ने बैंकों में भ्रष्टाचार की बाबत कही। तब स्वामी रामदेव के कथन कि पूरी बैंकिंग व्यवस्था भ्रष्टाचार से ग्रस्त है, पर सवालिया निशान लग जाते हैं। मैं अपने निजी अनुभव के आधार पर इस बात की पुष्टि बेहिचक कर सकता हूं कि हमारी बैंकिंग सेवाओं में अन्य सरकारी विभागों की तुलना में भ्रष्टाचार बेहद कम है। मुझे निजी तौर पर कभी भी बैंकों को किसी प्रकार से रिश्वत देने की जरूरत नहीं पड़ी। यह ठीक है कि सरकारी बैंकों में कामकाज का तरीका लालफीताशाही का है। ऋण के प्रस्ताव स्वीकूत होने में लंबा समय लगता है। बैंक कर्मचारी या अधिकारी का बर्ताव ग्राहक के प्रति बहुत सौहार्दपूर्ण नहीं होता। लेकिन इस सबके पीछे एक बड़ा कारण बैंकिंग सेवा का अत्यंत तनावपूर्ण होना, बैंक कर्मचारियों को उनके मुख्य कार्य बैंकिंग से इत्तर नाना प्रकार की सरकारी योजनाओं में जोता जाना, जीवन बीमा की पॉलिसी से लेकर सरकारी गोल्ड बॉन्ड आदि को बेचने के लिए दबाव में रहना जैसे कारण हैं। नोटबंदी के दौरान पूरे देश ने देखा कि किस प्रकार हमारे बैंकों ने दिन-रात की परवाह किए बगैर प्रतिबंधित की जा चुकी करंसी को जमा करने में योगदान दिया। इससे इंकार नहीं कि काली भेड़ें बैंकिंग सिस्टम में भी मौजूद हैं। जब पूरा समाज ही करप्शन नाम के वायरस से ग्रस्ति हो चुका है तो बैंक उससे भला कैसे बच सकते हैं। पंजाब नेशनल बैंक में हीरा व्यापारी नीरव मोदी द्वारा की गई कई हजार करोड़ की धोखाधड़ी इन काली भेड़ों के चलते ही संभव हो पाई। इसी प्रकार कई बड़े उद्योगपतियों को दिए गए बैंक कर्जों का डूब जाना भी कहीं न कहीं हमारे सिस्टम की विफलता का परिचायक है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सरकारी बैंकों में कई बार बड़े उद्योगपतियों को ऋण देने में राजनीतिक दबाव की बात सामने आती रहती है। हमारे राष्ट्रीयकूत बैंकों का कुल आठ लाख इक्तालीस हजार करोड़ रुपया दिसंबर २०१७ तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एनपीए हो चुका है यानी डूब चुका है। इसमें से उद्योग को दिया गया लगभग ६ लाख करोड़ है, सत्तर हजार करोड़ कूषि यानी वह रकम जो किसानों को ऋण में दी गई तथा छत्तीस हजार करोड़ के करीब छोटे-छोटे ऋणों की कुल रकम है जो डूब चुकी है। यहां यह भी समझा जाना जरूरी है, विशेषकर रामदेव जैसे स्वयंभू अर्थशास्त्रियों के लिए, कि इनमें से बहुत बड़ी रकम ऐसी भी है जो ईमानदार व्यापारियों ने ऋण के तौर पर ली थी और जो वे आर्थिक मंदी एवं व्यापारिक द्घाटे के चलते चुका नहीं पाए। यहां यह भी समझना होगा कि विश्व के कई विकसित देशों की तुलना में भारत का व्यापारिक समूहों को दिया गया ऋण उसके सकल द्घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की तुलना में कम है। अंतरराष्ट्रीय संस्था बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट के अनुसार वर्ष २०१६ में भारत का कॉरपोरेट ऋण जीडीपी के बरक्स इक्यावन प्रतिशत था। इसी वर्ष अमेरिका का इक्हत्तर प्रतिशत, जापान का एक सौ प्रतिशत, इंग्लैंड का सत्तर प्रतिशत तो रूस का अट्ठावन प्रतिशत था। फर्क केवल इतना कि इन मुल्कों में इस ऋण का काफी कम प्रतिशत एनपीए श्रेणी यानी की डूबा हुआ ऋण है। चीन के हालात हमारे यहां से कहीं खराब हैं।

  • वहां कुल जीडीपी का एक सौ सत्तर प्रतिशत ऋण है।
  • यानी चीन की अर्थव्यवस्था, विशेषकर वहां का बैंकिंग सेक्टर बेहद कठिन समय से गुजर रहा है।
  • वहां का एनपीए स्तर हमारे मुकाबले कहीं ज्यादा है।

स्वामी रामदेव ने एक सिरे से पूरे बैंकिंग सिस्टम को भ्रष्ट तो आसानी से कह डाला लेकिन वे भूल गए कि किन विषम परिस्थितियों, राजनीतिक दबाव में हमारे बैंकर्स काम करते हैं। नोटबंदी के दौरान भारी दबाव के चलते ग्यारह बैंककर्मी मर गए थे।
रामदेव स्पष्ट करें कि क्या वे भ्रष्ट बैंककर्मी थे? क्या विभिन्न सरकारी योजनाओं के चलते बैंकों को जो ऋण स्वीकूत करने पड़ते हैं उनके डूब जाने के लिए सिर्फ वे ही जिम्मेदार हैं? केंद्र सरकार समय-समय पर किसानों, बुनकरों, बेराजगारों, विद्यार्थियों, महिला उद्यमियों के लिए योजनाएं लाती है। इन योजनाओं को सफल दर्शाने के लिए बैंकों पर जबर्दस्त दबाव रहता है कि वे ऋण स्वीकूत करें। टारगेट दिए जाते हैं, यदि टारगेट पूरा न हो तो संबंधित बैंक शाखा के अधिकारियों की जमकर मजामत होती है। ऐसे भारी दबाव में गलत ऋण स्वीकूत हो जाते हैं। हालांकि सच यह भी है कि कई बड़े स्कैम यानी धोखाधड़ी बैंक के अफसरों के संग मिलकर की जाती है। अपात्र को लोन स्वीकूत किए जाते हैं जो बाद में डूब जाते हैं। पंजाब नेशनल बैंक में नीरव मोदी का प्रसंग इसका ज्वलंत उदाहरण है। अधिकांश को यह स्पष्ट ही नहीं कि आखिर पीएनबी का तेरह-चौदह हजार करोड़ डूबा कैसे। सीधे-सपाट शब्दों में यह उक्त बैंक के कुछेक वरिष्ठ अधिकारियों और नीरव मोदी द्वारा किया गया आपराधिक षड्यंत्र है जिसमें न तो बैंक ने कभी आधिकारिक रूप से कोई ऋण नीरव मोदी की कंपनियों को स्वीकूत किया, न ही उनके सिस्टम में इस रकम का कोई उल्लेख है। यानी वर्ष २०१७-१८ की बैंक बैलेंसशीट में इस रकम का कोई हिसाब नहीं था। एक समानांतर सिस्टम बना यह किया गया। निश्चित ही यह बड़ा फ्रॉड है। अपवादों के आधार पर पूरे बैंकिंग सिस्टम को भ्रष्ट कहना निहायत गैर जिम्मेदाराना कदम है। अच्छा हो कि बैंक संगठन इस पर बाबा रामदेव पर मानहानि का दावा ठोंके ताकि भविष्य में ऐसे बेफिजूल के बयान देने से वे बचें।

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