[gtranslate]
Editorial

नए देवताओं का काला सच

भारतीय जनता पार्टी की ‘असीम अनुकंपा’ और ‘दूरदर्शी सोच’ के चलते तैतीस कोटि देवी- देवताओं वाले हिन्दुस्तान को दो नए देवता मिल गए हैं। देश की संसद में बकायदा इसका एलान किया जा चुका है। हो सकता है आने वाले समय में कानून बना इन दो देवताओं की पूजा करना अनिवार्य कर दिया जाए। ये दो देवता हैं रिलायंस समूह के मुकेश धीरूभाई अंबानी और अड़ानी समूह के गौतम अड़ानी। है न कमाल की बात। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इन दोनों को प्रधानमंत्री मोदी का बगलगीर बताते हुए इन पर राष्ट्रीय संपदा लूटने का आरोप लगाते नहीं थकते हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा के एक वरिष्ठ नेता, केंद्र सरकार के पूर्व मंत्री इन्हीं दो को राष्ट्रीय धरोहर बताते हुए इनकी पूजा करने का सुझाव संसद में दे देते हैं। ऐसा ‘अद्भुत’, ‘क्रातिकारी’ सुझाव देने वाले हैं केरल से भाजपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व आईएएस अधिकारी, 2017 से 2019 तक मोदी सरकार में राज्य मंत्री रहे के.जी. अल्फोंस। 11 फरवरी को राज्यसभा में बजट सत्र के दौरान अल्फोंस ने कहा कि अड़ानी-अंबानी देश में रोजगार पैदा कर रहे हैं, इसलिए उनकी पूजा की जानी चाहिए। निश्चित ही उनके इस कथन का रिश्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संग इन दोनों कारोबारियां की कथित अति निकटता से जुड़ता है। राहुल गांधी खुलकर कहते आए है कि वर्तमान केंद्र सरकार ‘हम दो-हमारे दो’ की सरकार है। उनका इशारा मोदी-शाह और अड़ानी-अंबानी की तरफ होता है। प्रधानमंत्री स्वयं उद्योपगतियों को आगे बढ़ाने के पक्षधर हैं। उन्होंने ‘मिनिमम गर्वमेंट-मैक्सिमम गर्वनेंस’ का नारा दिया है यानी ‘न्यूनतम सरकार, अधिकत शासन’ इसका सीधा अर्थ पीएम के शब्दों में ‘मैं मानता हूं कि सरकार को बिजनेस करने के लिए बिजनेस में नहीं होना चाहिए, बल्कि न्यूनतम सरकार के साथ अधिकतम शासन की तरफ ध्यान देना चाहिए।’ 2014 के बाद से ही केंद्र सरकार अपने मुखिया के इस विजन को तेजी से लागू करने की दिशा में काम कर रही है। सरकारी कंपनियों का निजीकरण थोक के भाव किया जा रहा है। योजना आयोग को समाप्त किया जा चुका है ताकि बाजारवादी प्रक्रिया को तेजी मिल सके। तीन कृषि कानूनों के पीछे भी इसी ‘विजन’ का हाथ था। सरकार की मंशा इन कानूनों को लेकर स्पष्ट थी कि कृक्षि क्षेत्र में भी कॉरपोरेट की इंट्री कराई जा सके। इन कानूनों के आने से पहले ही इन दो नए ‘देवताओं’ ने अपना ‘आशीर्वाद रूपी’ मकड़जाल कृषि के क्षेत्र में फैला दिया था। किसान इन देवताओं की ‘भलमनसाहत’ को समझ न सके, यह दीगर बात है। के.जी. अल्फोंस ने राज्यसभा में अपनी बात के पक्ष में जबरदस्त तर्क भी दिए। उन्होंने कहा ‘You can accuse me of being a mouth piece of the capitalists. The people who have created jobs in this country, let me name those people. Be it Reliance, be it Ambani, be it Adani, be it anybody, they must be worshipped. Yes, because they provide jobs’ (आप मुझे पूंजीपतियों का मुख पत्र कह सकते हैं लेकिन जिन लोगों ने भी देश में नौकरियां पैदा की है, चाहे वह रिलायंस हो, अंबानी हों, अडानी हों, या कोई अन्य, इन सबकी पूजा की जानी चाहिए।)

‘भोले-भाले’ इस पूर्व नौकरशाह की बात में कुछ दम जरूर है। उद्योगपति, बड़े उद्योगपति अपनी दूरदर्शिता और कड़े श्रम के दम पर विशाल कल कारखाने लगाते हैं जिनमें लाखों को रोजगार मिलता है। आजाद भारत में ऐसे एक से बढ़कर एक उद्योगपति हुए हैं जिन्होंने न केवल रोजगार सृजन किया, बल्कि अपनी दौलत को सामाजिक सरोकारों के कार्य में लगाया। टाटा समूह, बिड़ला, बजाज आदि अनेक ऐसे उदाहरण हैं। बिड़ला समूह ने स्कूल, ­­­­­कॉलेज, खोले, धर्मशालाएं बनाई, चैरिटेबल अस्पताल बनाए। टाटा ने एक से बढ़कर एक शिक्षण संस्थाएं, रिसर्च सेंटर खोले। गत् सप्ताह ही दिवंगत हुए बजाज समूह की राहुल बजाज की अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसमूह, उनको महाराष्ट्र सरकार द्वारा राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दिया जाना, प्रमाणित करता है कि ऐसे उद्योगपतियों को हमेशा हमारे समाज, हमारे देश में पूजनीय समझा जाता रहा है। लेकिन अल्फांस ने जिन दो का नाम लिया है, वे मेरी दृष्टि में कम से कम, इस श्रेणी में कतई नहीं आते हैं। अड़ानी और अंबानी का इतिहास इसका गवाह है। इसमें कोई शक-शुबहा नहीं कि इन दोनों ही उद्योपतियों ने लाखों को रोजगार दिया है। ऐसा कर लेकिन उन्होंने ‘पूजनीय’ होने का कोई काम नहीं किया। यह उनकी समाज सेवा नहीं बल्कि धन पिपासा है। रिलायंस समूह की पूरी यात्रा देख लीजिए। आजाद भारत में सिस्टम को भ्रष्ट करने में इस समूह का सबसे बड़ा योगदान रहा है।  ऑस्ट्रेलियन पत्रकार हमीश मेकडोनाल्ड की पुस्तक ‘अंबानी एंड संस’ पढ़ लीजिए, सब कुछ शीशे की तरह पारदर्शी हो उठेगा। पत्रकार संतोष भारतीय की हालिया प्रकाशित पुस्तक ‘वीपी सिंह, चन्द्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं’ भी मेरे इस कथन को प्रमाणित करती है कि किस प्रकार अपने अकूत धन-बल के सहारे धीरूभाई अंबानी सरकारों को अपने हित में प्रभावित करने का ‘खेला’ करते थे। ‘कोटा-परमिट’ राज के दौर में उभरे रिलाइंस समूह की गिनती सबसे भ्रष्ट औद्योगिक समूहों में यूं ही नहीं होती। जिन्हें नीरा राडिया टेप कांड याद हो, वे भला कैसे भूल सकते हैं मुकेश अंबानी के कथन को कि ‘कांग्रेस तो अब अपनी दुकान हैं।’ यह मुकेश अंबानी ने तत्कालीन पीएम अटल जी के दामाद रंजन भट्टाचार्य से कही थी। अपनी अकूत संपत्ति में और इजाफा करने के लिए रिलायंस ने पूरे देश को के.जी. बेसिन मामले में बंधक बनाया। के.जी.बेसिन से गैस और तेल निकालने का ठेका रिलायंस के पास था। तय कीमत पर गैस निकालेन का काम जान- बूझकर नहीं कर रिलाइंस ने देश भर में गैस और तेल की भारी किल्लत पैदा कर डाली थी और अल्फांस कहते हैं कि वे ‘पूजनीय’ हैं। कैसा भद्दा मजाक है यह। राफेल विमान सौदे के सच से जब कभी भी पर्दा उठेगा तब इन पूजनीयों’ के और कारनामे सामने आऐंगे। अद्भुत के.जी.अल्फोंस! अद्भुत! 140 करोड की आबादी वाले देश की 80 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा से नीचे गुजर करती है और उसके नए भगवान खरबों के घर में रहते हैं। कमाल के भगवान हैं ये। अड़ानी देवता का भी हाल जरा सुन लीजिए। धोखाधड़ी के एक मामले में 2002 में गिरफ्तार शख्स का नाम यदि देश की संसद में पूजने योग्य बताया जाए तो पूरी व्यवस्था का खोखला पन सामने आ जाता है। गौतम अड़ानी का अतीत इतना दागदार है कि लिखते- लिखते कागज काले पड़ जायेंगे। इस ‘देवता’ पर धोखाधड़ी, बाल श्रमिकों का शोषण, जांबिया में एक पूरी नदी को जहरीला करने समेत नाना प्रकार के आरोप हैं। प्रधानमंत्री मोदी के कालेधन को समाप्त करने वाले घोषित लक्ष्य को पलीता लगाने में भी ये नए देवता पीछे नहीं हैं। कुख्यात ‘केयमन आइलैंड’ में इनकी कई कंपनियों के होने का तथ्य अर्सा पहले ही सार्वजनिक हो चुका है। केयमन आइलैंड विश्व के उन देशां में अव्वल है जहां टैक्स चोरी का धन आसानी से ठिकाने लगाया जाता है। अडानी का नाम कस्टम विभाग के कुछ अफसरों की रिश्वत खोरी मामले में भी उछल चुका है। हालिया समय में इनके द्वारा संचालित ‘मुद्रा पोर्ट’ के जरिए खरबों की नशीली सामग्री के भारत में प्रवेश करना सुर्खियों में रहा है। जब झारखण्ड में अड़ानी समूह के दो पॉवर प्लांट लगाए जा रहे थे तब स्थानीय लोगों की जमीन जबरन खरीदने, कम दाम मे खरीदने, दबंगई और पुलिस-प्रशासन की मदद लेकर हथियाने का मामला राज्य विधानसभा से लेकर सड़कों तक गूंजा था। शायद के.जी. अल्फांस साहब को यह सब पता न हो, या फिर वे अमिताभ अभिनीत फिल्म ‘लावारिस’ के गाने ‘जो है नाम वाला वही तो बदनाम है’ की तर्ज पर इन दो ‘देवताओं’ को क्लीनचिट् देने में विश्वास रखते हों। जो भी हो, एक पूर्व मंत्री का, यह बयान वर्तमान भारत की, आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे मुल्क की, उसकी राजनीति की और उसके रहनुमाओं की सोच का काला सच सामने लाता है। दशकों पहले शलभ श्रीराम सिंह का एक क्रांतिकारी गीत हम गुनगुनाया करते थे। वर्तमान दौर को उसकी कुछ पंक्तियां के जरिए जरा समझने की जहमत् उठाइए, शायद जहन पर पड़ा धर्म और जाति का पर्दा कुछ खिसके-

नफस-नफस कदम-कदम/बस एक फिक दम-ब-दम/घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब-दर-सवाल है की इन्कलाब चाहिए
इन्क़लाब जिन्दाबाद/जिन्दाबाद इन्क़लाब
जहां आवाम के खिलाफ साजिशें हों शान से
जहां पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से
जहां पे लब्जे-अमन एक खौफनाक राज हो
जहां कबूतरों का सरपरस्त एक बाज हो
वहां न चुप रहेंगे हम­­­­­/कहेंगे हम कहेंगे हम  …

यकीन आंख मूंद कर किया था जिनको जानकर
वही हमारी राह में खड़े हैं सीना तान कर
उन्ही की सरहदों में कैद हैं हमारी बोलियां
वही हमारी थाल में परस रहे हैं गोलियां
जो इनका भेद खोल दे/हर एक बात बोल दे
हमारे हाथ में वही खुली किताब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब-दर-सवाल है की इन्कलाब चाहिए
इन्क़लाब जिन्दाबाद/जिन्दाबाद इन्क़लाब।

You may also like

MERA DDDD DDD DD