उत्तर प्रदेश की इन्काउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस को राज्य सरकार के मुखिया तब बहुत भाए जब सत्ता संभालने के साथ ही उन्होंने अपराधियों का सफाया करने का एलान कर डाला था। योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद संभालने के एक माह बाद कहा ‘‘अगर अपराध करेंगे तो ठोक दिए जायेंगे।’’ उत्तर प्रदेश की राजनीति का अपराध संग गहरा रिश्ता रहा है। एक से बढ़कर एक अपराधी आगे चल कर राजनीति में आ सम्मानीय जननेता बनते हमने यहां देखे हैं। बाहुबली धर्मपाल यादव उर्फ डीपी यादव को नेता और मंत्री बनाने का श्रेय समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव को जाता है। मुलायम सिंह का अपराधियों संग प्रेम और विश्वास का रिश्ता रहा है। उत्तर प्रदेश के छंटे हुए अपराधियों की समाजवादी पार्टी शरणस्थली कही जा सकती है। हालांकि पार्टी की बागडोर संभालने के साथ ही मुलायम सिंह के सुपुत्र अखिलेश यादव ने पार्टी की इस छवि को सुधारा है, लेकिन अपराध और राजनीति के बीच गठजोड़ को मजबूत करने का दाग मुलायम सिंह पर हमेशा रहेगा। भाजपा की जब राज्य में पहली बार सरकार बनी, तब पहले भगवा सीएम कल्याण सिंह ने प्रयास किया कि इस गठजोड़ को तोड़ा जाए और अपराधियों के मन में कानून का खौफ पैदा किया जाए। यह 1991 की बात है। मैं तब लखनऊ में रह विश्वविद्यालय शिक्षा ले रहा था। खूब चर्चा उन दिनों होती थी कि कैसे राज्य की पुलिस अपराधियों का इन्काउंटर कर रही है और कैसे राज्य से अपराध का सफाया हो रहा है। तब समझ इतनी विकसित नहीं हुई थी कि ‘इन्काउंटर’ का मतलब समझते। अपराधी मारे जा रहे हैं सुन अच्छा सा जरूर महसूस होता था। कल्याण सिंह की सरकार मात्र एक बरस रही। 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढांचे के गिराए जाने की घटना बाद उन्हें केंद्र सरकार ने बर्खास्त कर दिया। इसके ठीक एक बरस बाद 4 दिसंबर 1993 को राज्य में सपा की सरकार बनी। मुलायम सिंह यादव इससे पहले भी 6 माह तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे। उन्होंने कुख्यात माफिया डॉन डीपी यादव को अपनी पहली सरकार में मंत्री बना राज्य की जनता और प्रशासन को संकेत दे दिया था कि वे कैसे और कितने समाजवादी हैं। जून 1995 में पहली बार सपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी मायावती जरूर अपराध की राजनीति से दूर रही। इसके बाद लेकिन सभी राजनीतिक दलों ने येनकेन प्रकारेण सत्ता पाने की चाह चलते अपराध और अपराधियों से समझौता कर लिया। ‘भय, भूख और भ्रष्टाचार’ मुक्त शासन देने का दावा करने वाली भाजपा हो या फिर ‘चढ़ गुंडन की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर’ का नारा दे सत्ता पाने वाली बसपा, सभी ने जमकर अपराध और अपराधियों को संरक्षण दिया। स्वाभाविक है जब राजनीतिक नेतृत्व अपराधियों संग गलबहियां करेगा तो उसका बड़ा असर कानून का पालन करवाने वाली पुलिस फोर्स और नौकरशाही पर पड़ना तय था। उत्तर प्रदेश में यही हुआ है। पुलिस फोर्स का एक बड़ा हिस्सा खुलकर अपराधियों का बगलगीर हो गया। अच्छे अफसरों को जिलां में पोस्टिंग के लाले पड़ गए और राजनीतिक आकाओं के आगे बिछने वाले, उनके हर गलत काम को अंजाम पहुंचाने के लिए तत्पर अफसरों की पौ बारह हो गई। कल्पना कीजिए कैसा राज्य की नौकरशाही और फोर्स को महसूस होता होगा जब उन्हें उन्हीं की हाजरी बजानी पड़ती थी जिन्हें एक समय में यही फोर्स जेल में ठूंसने के लिए छापामारी करती थी। डीपी यादव, अतीक अहमद, मुन्ना बजरंगी, श्रीप्रकाश शुक्ला, हरिशंकर तिवारी, अमरमणि त्रिपाठी, आनंद सेन यादव आदि बड़ी तादात में ऐसे नाम हैं जो अपराध की दुनिया में भी बने रहे और राजनीति में भी। इन्हें हर पार्टी ने संरक्षण दिया। हालांकि अपराधियों का राजनीति में प्रवेश करना केवल उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं, पूरे देश में ऐसा हुआ है, हो रहा है। उत्तर प्रदेश पर फोकस इसलिए क्योंकि इन दिनों यहां ‘इन्काउंटर राज’ वाली सरकार है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी पुलिस फोर्स को खुली छूट दे रखी है कि वह प्रदेश को अपराध मुक्त बनाने के लिए काम करे, जरूरत पड़े तो अपराध करने वालों को ‘ठोक’ दें। राज्य सरकार के मुखिया गर्व से कहते हैं कि उनके कार्यकाल में चार हजार से ज्यादा इन्काउंटर किए जा चुके हैं। इससे जुड़े मानवाधिकार के कुछ और ऐसे कथित इन्काउंटरों का सच भयावह है। इसमें कोई शक नहीं कि अपराध को काबू में करने के लिए अपराधियों में कानून का खौफ पैदा करना सबसे बड़ी जरूरत है। लेकिन यदि इसकी आड़ में पुलिस बल निर्दोष लोगों को ‘ठोकने’ लगे, मामूली अपराध करने वालों का ‘कोल्ड बल्डेड मर्डर’ करने लगे तब अपराध कम होने के बजाए ज्यादा बढ़ने तय हैं। उत्तर प्रदेश में यही कुछ इन दिनों देखने को मिल रहा है। खुलेआम मानवाधिकारों का, संविधान प्रदत्त अधिकारों का, पुलिस मैन्युल का उल्लंघन यहां हो रहा है। कहने से गुरेज नहीं होना चाहिए कि राज्य की पुलिस का चरित्र दुर्दांत अपराधियों के चरित्र समान हो चला है। कानून कहता है कि किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने से पहले उसको बताया जाए कि क्यों, किस अपराध के लिए उसे हिरासत में लिया जा रहा है। कानून यह भी कहता है कि ऐसे हिरासत में लिए गए व्यक्ति को तत्काल कानूनी सहायता यानी उसके वकील की पहुंच उपलब्ध कराई जाए। कानून ऐसा बहुत कुछ कहता है लेकिन उसका पालन होता नहीं। अभी कुछ दिन हुए, सात अक्टूबर के दिन मेरे सामने एक ऐसा ही हादसा हुआ।
‘दि संडे पोस्ट’ के कार्यालय में लगभग शाम 6 बजे मेरे एक परिचत का आगमन हुआ। उसने मुझे बताया कि कानपुर जिले की पुलिस ने दादरी, नोएडा से उसके 78 वर्षीय पिता को उठा लिया है। मैंने कारण पूछा तो उसने कहा कि व्यावसायिक लेन देन के एक मामले में उसके खिलाफ ‘शायद’ कोई मुकदमा है। मुझे आश्चर्य हुआ कि बेटे को तलाशने आई पुलिस कैसे उसके वयोवृद्ध पिता को उठा ले जा सकती है। कानपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से मैंने तत्काल संपर्क साधा, उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया। कुछ समय पश्चात एसएसपी ने मुझे फोन कर सूचित किया कि उन्होंने उक्त व्यक्ति को छोड़ने के आदेश दे दिए हैं। तब तक लगभग सात बज चुके थे। मैं अपने परिचित संग जब घर जाने के लिए निकला तभी अचानक एक इनोवा कार जिसमें कानपुर की नंबर प्लेट थी, आकर मेरे सामने रुकी। चार-पांच सादी वर्दीधारी पुलिस वाले उसमें से धड़धड़ाते हुए उतरे और बगैर कुछ बात किए मेरे सामने से मेरे परिचित को जबरन गाड़ी में डाल कर चंपत हो गए। मैं कुछ क्षण हक्का-बक्का रहा फिर तत्काल नोएडा के एसएसपी से संपर्क साधा, लिखित संदेश भी दिया। इसका मात्र इतना लाभ हुआ कि नोएडा पुलिस के हस्तक्षेप करने के चलते मेरे परिचित के पिता को छोड़ दिया गया, लेकिन बगैर किसी वारंट मेरे परिचित को कानपुर पुलिस उठा ले गई। अगले दिन खबर आई कि उक्त व्यक्ति के खिलाफ न तो कोई एफआईआर थी, न ही अपराध उसने किया था। मामला एक वाहन का था जो मेरे परिचत के पास होने की आशंका पुलिस को थी। उस वाहन के चोरी की रपट किसी अन्य के खिलाफ कानपुर के कल्याणपुर थाने में दर्ज कराई गई थी। बड़े-बड़े अपराधों में एफआईआर दर्ज करने के लिए कभी तैयार नहीं होती पुलिस फोर्स एक गाड़ी के विवाद में इतनी सक्रिय रही कि कई सौ किलोमीटर की यात्रा कर नोएडा पहुंच एक 78 वर्षीय बुजुर्ग से तक बदतमीजी करने, बगैर वारंट एक व्यक्ति को उठाने तक जा पहुंची। कल्पना कीजिए क्या ऐसी पुलिस फोर्स राज्य में चल रहे अंधाधुंध इन्काउंटर ईमानदारी से करती होगी? पिछले दिनों झांसी जिले में एक कथित खनन माफिया का इन्काउंटर किया गया। पुष्पेन्द्र यादव नाम के इस कथित माफिया को पांच अक्टूबर को पुलिस ने मार गिराने का दावा किया है। ‘दि संडे पोस्ट’ की एक टीम जब इस इन्काउंटर के सच को जानने के लिए झांसी पहुंचती तो पुलिस के दावे में भारी झोल सामने आया। राज्य के यशस्वी मुख्यमंत्री जिसे खनन माफिया कह उसके इन्काउंटर को जायज ठहरा रहे हैं, वह दरअसल एक मामूली खनन का कारोबारी था जिसे स्थानीय पुलिस के ‘जाबांज इंस्पेक्टर’ धमेंद्र चौहान ने लेनदेन के मामले में नाराज हो निपटा दिया। ऐसा गांव वालों का, मृतक के परिजनों का और जहां कथित इन्काउंटर हुआ, वहां के चश्मदीद गवाहों का कहना है। हमारी टीम ने ‘अपराधी’ पुष्पेंद्र यादव की क्राइम हिस्ट्री खंगाली तो अवैध खनन के कुछेक मामले ही हाथ लगे। जैसा घटना स्थल का मुआइना करने से हमारी टीम को पता लगा, उससे यही प्रतीत होता है कि मामला गड़बड़ है। परिवार का कहना है कि न तो दोबारा पोस्टमार्टम कराने की उनकी बात मानी गई, न ही उन्हें पुलिस द्वारा कराए गए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट दी गई है। यहां तक कि पुलिस ने मृतक पुष्पेंद्र का शव भी उसके गांव से सत्तर किलोमीटर दूर ले जाकर फूंक डाला। जाहिर है ऐसा इसलिए किया गया ताकि पुलिस की इन्काउंटर थ्यौरी पर आंच न आ सके।
परिजनों का यह भी कहना है कि धर्मेन्द्र चौहान पुष्पेन्द्र की खनन गाड़ी को सीज करने के बाद से ही डेढ़ लाख की रिश्वत मांग रहा था। पचास हजार उसे दिए भी जा चुके थे। बाकी पैसों को लेकर शायद कुछ लोचा रहा जिसका नतीजा प्वाइंट ब्लैंक रेंज से उसे गोली मार दी गई। हो सकता है, संभावना है कि परिजनों का आरोप गलत हो। हो सकता है कि पुलिस अफसर धर्मेन्द्र चौहान पर वाकई मृतक पुष्पेंद्र यादव ने जानलेवा हमला करने का प्रयास किया हो और अपने बयान में धर्मेन्द्र चौहान ने पुष्पेंद्र को मार गिराया हो। घटनास्थल का मुआइना करने पहुंची हमारी टीम को पुलिस थ्यौरी में लेकिन दम नहीं नजर आया। पुष्पेंद्र इन्काउंटर पर इसलिए भी प्रश्न उठ रहे हैं। प्रश्न यह कि क्यों राज्य के मुखिया अपने पुलिस बल के सच को सामने लाने के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने से बच रहे हैं और एक खनन कारोबारी को बगैर तथ्य माफिया बना उसके इन्काउंटर को क्यों जायज ठहरा रहे हैं? सरकार और सरकारीतंत्र का यह रवैया खतरनाक है। लोकतंत्र की बुनियादी अवधारणा पर भारी चोट है। भले ही योगी आदित्यनाथ भयमुक्त, अपराधमुक्त उत्तर प्रदेश बनाने का दावा करें, इससे न तो उनका घोषित लक्ष्य पूरा होगा, न ही राजनीति और अपराध के बीच का गठजोड़ टूटेगा। जरूरत है, बेहद जरूरी है कि पुष्पेंद्र यादव को न्याय मिले ताकि न्याय पर हमारी, आमजन की आस्था बनी रहे।