[gtranslate]
Editorial

तिब्बत पर चीन का कब्जा दलाई, लामा का विद्रोह और बिगड़ना भारत-चीन संबंधों का

Seventeen Point Agreement के बाद भले ही Local स्तर पर दलाई लामा की सरकार तिब्बत पर बनी रही, चीन अपनी खुराफातों से बाज नहीं आया। उसने तिब्बत में Land Reforms के नाम पर अपनी दखलअंदाजी बढ़ानी शुरू कर दी जिससे नाराज हो 1956 में चीन के खिलाफ जनाक्रोश हथियार बंद हो चला। नतीजा 1959 आते-आते दलाई लामा और चीन के संबंध पूरी तरह टूट गए। चीन ने Seventeen Point Agreement को तोड़ दिया। दलाई लामा भारत भागकर आ गए। नेहरू सरकार ने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में उन्हें शरण दे दी। इतना ही नहीं दलाई लामा की Government in Exite को भी मान्यता दे दी। यह भारत-चीन के रिश्तों में बड़ा Turning Point था। इससे पहले चीन सीधे भारत से नहीं उलझ रहा था। इसका उदाहरण 1954 में नेहरूजी द्वारा भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के नक्शों का Revision करना है जिसमें पता चला था कि हमारी 1.2 लाख स्वायर किलोमीटर इलाके को चीन अपने नक्शे में दर्शा रहा है। नेहरू ने इस बाबत जब चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री से बात की तो झू इन्साई ने मान लिया कि उनके नक्शों में गड़बड़ी है। लेकिन 1959 में दलाई लामा को शरण देते ही चीन के तेवर बदल गए। माओ ने इसे अपना अपमान समझा। उसने तिब्बतियों के सशस्त्र संघर्ष को भारत की साजिश बता डाला। यहां से रिश्ते दरकने शुरू हो गए। तिब्बत को कब्जाने की चीन की मंशा ही दरअसल, दोनों देशों के बीच दुश्मनी का असल कारण है। इससे पहले जब चीन में माओ ने सत्ता संभाली तो भारत पहला देश था जिसने उसे मान्यता दी थी। नेहरू का मानना था कि दोनों प्राचीन देश मिलकर एशिया को समृद्ध बना सकते हैं। इस दोस्ती में पहली दरार 1950 में चीन के तिब्बत में सेना भेजने से शुरू हुई। हालांकि नेहरू सरकार की तरफ मदद की आस लगाए दलाई लामा को खास सफलता नहीं मिली। भारत ने खुलकर चीन की इस मामले में मुखालफत नहीं की। यहां तक कि UNO में भी इसके खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को अपना समर्थन नहीं दिया। लेकिन द्विपक्षीय स्तर पर नेहरू चीन से तिब्बत को लेकर असहमत रहे। 1954 में भले ही चीन संग पंचशील समझौता हुआ लेकिन Emperialistic चीन ने 1957 आते-आते ऑक्साई चीन पर कब्जा कर लिया। ऑक्साई चीन हमारा है। लद्दाख के भीतर आता है। लेकिन चीन तो लद्दाख को भी अपना मानता है इसलिए तमाम संधियों, तमाम ऐतिहासिक तथ्यों को झुठला वह ऑक्साई चीन पर कब्जा कर बैठा है। 16,000 फीट की ऊंचाई वाले इस इलाके का महत्व केवल सामरिक है। यह मनुष्यहीन क्षेत्र है जिसका उपयोग आदिकाल से चीन और तिब्बत के मध्य Trade Rout के तौर पर होता था। चीन के लिए Tibbet पर कब्जा जमाए रखने के लिए लेकिन यह बेहद महत्वपूर्ण है। 1917 से लेकर 1933 तक के चीनी मानचित्र ऑक्साई पास को भारत का हिस्सा दिखाते आए लेकिन कभी भी Officially ब्रिटिश हुकुमत ने कोई प्रयास सीमाओं के चिन्हीकरण का नहीं किया। 1947 में आजादी के बाद भारत ने Johnson Line के आधार पर ऑक्साई चीन को अपने नक्शे में दर्शाया। भारत के मैप अनुसार काराकोरम दर्रे से कारोकोरम पर्वत शृंखला, ऑक्साई चीन, कुनसुन पर्वत शृंखला, कराकुश नदी का कुछ हिस्सा और पैनगोंग लेक भारत का अंग है। यह वही लेक है जिसमें फिल्म “3 Ideots” का आखिरी दृश्य फिलमाया गया है।

चीन नेहरूकाल में हिन्दी-चीनी भाई-भाई भी करता रहा और 1200 किमी की एक रोड अपने यहां से पश्चिमी तिब्बत तक बनाता गया। इस रोड का 179 किमी हिस्सा भारत के ऑक्साई चीन से होकर बनाया गया जिसकी खबर हमें नहीं लगी। 1957-58 में चीन ने अपने नक्शे में ऑक्साई चीन को दर्शाते हुए जब यह रोड दिखाई तब हमें पता चला। नेहरू ने इसका पुरजोर विरोध किया, लेकिन चीन अड़ गया। ऑक्साई चीन पर इस तरह चीन का कब्जा हो गया और हमारे संबंध तनावपूर्ण हो गए। Emperialistic चीन ने अब लद्दाख और सिक्किम की तरफ अपनी निगाहें गड़ा ली।

यहां पर मैं भारतीय सेना की “Forward Policy” के बारे में बताना चाहूंगा। चीन के इरादे भांप हमारी सेना ने उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर छोटी-छोटी सेना की पोस्ट बनाई। इसे Army ने “Forward Policy” का नाम दिया। यह Policy 1962 के युद्ध के दौरान चीन को रोकने में बुरी तरह नाकाम रहीं। Defence Experts मानते हैं कि यदि इस दौरान सीमाओं के नजदीक अपने Infrastructure को मजबूत किया होता तो 1962 में हार नहीं होती। चीन इस दौरान लगातार भारत के साथ शांतिपूर्ण तरीके से सीमा विवाद सुलझाने का नाटक करता रहा। उसकी नजरों में शांतिपूर्वक विवाद सुलझाने का मतलब था ऑक्साई चीन पर उसके कब्जे को भारत मान ले, साथ ही लद्दाख और सिक्किम में सीमा निर्धारण उसके अनुसार हो। एक तरफ वार्ताओं का दौर जारी था तो दूसरी तरफ चीन की सेना भारत में आक्रमण की तैयारी कर रही थी। भारत ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ और ‘पंचशील समझौते’ को लेकर आश्वत था। 20 अक्टूबर 1962 के दिन चीन ने लद्दाख इलाके में भारत पर Attack कर डाला। लद्दाख के लेह जिले के सीमा से सटे गांव ‘चूशहूल’ में चीन ने धावा बोला। यहां पर भारत के अधिकार क्षेत्र वाला एक दर्रा Mountain Pass gS ‘Rejangla Pass’। 16,000 फीट की ऊंचाई वाले Rejangla Pass में भारतीय सेना की 13 Kumaon Regiment की एक कंपनी तैनात थी। इस कंपनी के कमांडर थे मेजर शैतान सिंह। 18 नवंबर 1962 के दिन घमासान युद्ध हुआ। 120 भारतीय सैनिकों में से 114 शहीद हो गए जिनमें मेजर शैतान सिंह भी शामिल थे। चीन ने पश्चिम में Rejangla पर धावा बोला तो पूर्व में अरुणाचल प्रदेश के तवांग शहर (सीमावर्ती) पर। यहा ऐसा युद्ध था तो हजारों फीट की ऊंचाई पर One to One लड़ा गया। न तो चीन, ही भारत ने Air Force का इसमें इस्तेमाल किया।

20 अक्टूबर को शुरू युद्ध 21 नवंबर तक चला। इसमें Officially भारत के 1383 सैनिक शहीद हुए, 1686 गायब हो गए, 3968 चीन ने पकड़े थे जिन्हें बाद में छोड़ दिया था। चीन के 722 सैनिक मरे।

युद्ध क्यों हुआ

1. 1836 में लद्दाख पर कश्मीर के राजा गुलाब सिंह डोगरा ने अपना राज स्थापित कर लिया था। लद्दाख से सटे तिब्बत और गुलाब सिंह के मध्य तब सीमा को लेकर एक समझौता हुआ जिसमें लद्दाख जम्मू-कश्मीर का हिस्सा मान लिया गया। ब्रिटिश शासनकाल में लगातार चीन को सीमाओं के संबंध में ब्रिटेन ने संपर्क किया लेकिन चीन का कोई जवाब नहीं आया। ब्रिटेन ने इसके बाद खुद ही सीमाओं को तय कर दिया। इसमें लद्दाख से लेकर पैनगौंग तालाब तक का हिस्सा ब्रिटिशन हुकुमत वाले भारत में माना गया। चीन लेकिन इसे नहीं मानता। सीमाओं का चिन्हीकरण इस बीच कई बार बदला। प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद (1914 से 1918) से 1947 तक चीनी नक्शों में ऑक्साई चीन भार का हिस्सा माना गया, पैनगौंग का इलाका भी भारत का दर्शाया गया। लेकिन चीन तो चीन है। 1957 में उसने ऑक्साई चीन पर अपनी Road बना डाली।

2. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन ब्रिटेन के साथ किसी भी प्रकार के Border Negotiation के लिए तैयार नहीं हुआ, न ही उसने Britain के बनाए नक्शों को मान्यता दी। 1826 आते-आते ब्रिटेन ने चीन से सटे मणिपुर और असम पर अपना शासन स्थापित कर लिया था। इसके बाद तिब्बत जो एक स्वशासित देश था, ब्रिटेन ने चीन को दरकिनार कर सीमाओं को तय कर डाला। चीन ने इसे मानने से इंकार कर दिया।

3. 1947 में हम आजाद हुए, 1949 में चीन में कम्युनिस्ट काबिज हो गए। माओ की नेहरू से सबसे बड़ी नाराजगी दलाई लामा को शरण देना और तिब्बत में चीन के शासन को मान्यता नहीं देने की थी। इतिहासकारों का और अमेरिकी सरकार के उस दौर में Classified Documents जो 25 बरस बाद Declassified हुए, इस बात की पुष्टि करते हैं कि चीन ने 120,000 स्क्वायर किमी भारतीय क्षेत्र में कब्जा 1954 में कर लिया था। लेकिन नेहरू चीन के प्रधानमंत्री झू इनलाई की बातों में यकीन करते रहे कि चीन के नक्शों में जो 1.20 लाख स्क्वायर किमी भारत की जमीन दिखाई जा रही है वह नक्शा गलत है और चीन का कोई इरादा भारत की जमीन हथियान का नहीं है। 1954 पंचशील समझौते के बहुत बाद नेहरू चीन के इरादे समझ पाए। 1958 में नेहरू ने चीन में अपने राजदूत G. Parthsarthi को आदेश दिया था कि वे अपनी सारी रिपोर्ट सीधे नेहरू को भेजा करें, रक्षामंत्री वी.के. कृष्ण मेनन को नहीं। यह आदेश इसलिए क्योंकि नेहरू को लगने लगा था कि कम्युनिस्ट विचारधारा के मेनन चीन की ज्यादा तरफदारी करते हैं। 1960 में चीन और भारत के मध्य पहली Official वार्ता हुई। यह वार्ता विफल रही। माओ दलाई लामा को राजनीतिक शरण देने के बाद से ही Anti Nehru और Anti India हो चुके थे इसलिए चीन ने Border Dispute सुलझाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

You may also like

MERA DDDD DDD DD