वर्ष 1975 में आपातकाल से कुछ माह पूर्व एक फिल्म प्रदर्शित हुई थी, नाम था ‘दीवार’। यश चोपड़ा निर्देशित यह फिल्म सिने अभिनेता अमिताभ बच्चन को सुपर स्टारडम् की राह पर ले जाने वाली फिल्मों में से एक है। इस फिल्म में अमिताभ का किरदार विजय नामक एक ऐसे अपराधी का है जिसको पकड़ने का काम उसके ही छोटे भाई रवि (शशि कपूर) को सौंपा जाता है। इस फिल्म के डायलाग्स् खासे मशहूर हुए थे। आज एक लेख को पढ़ते हुए मुझे इस फिल्म का एक बेहद चर्चित डायलाग याद आ गया जिसमें पुलिस अफसर रवि अपने अपराधी भाई विजय से कहता है- ‘दूसरों के पाप गिनाने से अपने पाप कम नहीं हो जाते भाई’। मुझे यह डायलाग अंग्रेजी दैनिक ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के 17 जुलाई के अंक में प्रकाशित एक लेख ‘Look who’s talking’ (देखों कौन कह रहा है) को पढ़ते समय इसलिए याद हो आया क्योंकि इस लेख में अमेरिकी बुद्धिजीवियों को लेखक ने उनके समाज में व्याप्त विसंगतियों का स्मरण कराते हुए चेताने का प्रयास किया है कि भारतीय लोकतंत्र की, भारतीय समाज की कमियों पर टिप्पणी करने से पूर्व वे खुद के गिरहबान में झांक कर अवश्य देखें। यह लेख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीतें दिनों अमेरिका यात्रा के दौरान वहां के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा समेत कई महत्वपूर्ण लोगों और नागरिक अधिकार संगठनों द्वारा भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर प्रकट की गई चिंता को केंद्र में रख लिखा गया है। बराक ओबामा ने प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा दौरान ‘सीएनएन’ न्यूज चैनल संग एक साक्षात्कार में कहा था कि ‘हिंदू बाहुल्य भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों की सुरक्षा को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो ़बायडन को मोदी संग बातचीत करनी चाहिए अन्यथा इसकी प्रबल संभावना है कि भारत आने वाले समय में बिखरने लगेगा।’ बराक ओबामा का यह कथन भारत सरकार, भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री मोदी के प्रशंसकों को भारी नागवार गुजरा। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित लेख लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की अंधभक्ति में नहीं लिखा गया है इसलिए इस लेख पर कुछ कहना मुझे जरूरी लगा। एक अन्य कारण लेखक संग मेरा निजी तौर पर परिचित होना भी है। इस लेख के लेखक अभिनव कुमार भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं और वर्तमान में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के विशेष प्रमुख सचिव पद पर कार्यरत हैं। जहां तक मुझे याद पड़ता है अभिनव कुमार से मेरा परिचय 15-16 बरस पूर्व तब हुआ था जब वे हरिद्वार जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक थे। हम उन दिनों योग गुरु स्वामी रामदेव की दिव्य फार्मेसी में चल रहे श्रमिक आंदोलन पर लगातार खबर कर रहे थे और पूरी मजबूती से श्रमिकों का साथ दे रहे थे। इन श्रमिकों के जरिए हम कई ऐसी खबरें कर पाए जिनके चलते स्वामी रामदेव और उनके करीबी बालकृष्ण बेहद असहज हो चले थे। बालकृष्ण की नागरिकता का सच भी हमारे द्वारा ही सामने लाया गया था जिस चलते केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने मुकदमा दर्ज कर बालकृष्ण को हिरासत में तक ले लिया था। दिव्य योग फार्मेसी की पड़ताल के दौरान मेरे सहयोगी और इस समाचार पत्र के सहयोगी संपादक आकाश नागर की जान पर बन आई। आकाश हरिद्वार में थे और उन पर अवांछनीय तत्वों द्वारा प्राणघातक हमले की आशंका चलते मैंने अभिनव कुमार से संपर्क किया। अभिनव कुमार के प्रति मैं आज भी कृतज्ञ हूं कि उन्होंने पुलिस सुरक्षा उपलब्ध करा तत्काल आकाश नागर को सुरक्षित नोएडा पहुंचाने का प्रबंध तब किया था। हालांकि मेरा संपर्क तब से ही अभिनव कुमार संग बना रहा है और कई बार इस अखबार ने उनके अंग्रेजी दैनिकों में प्रकाशित लेखों का अनुवाद कर उन्हें प्रकाशित भी हमने किया है, मिलना-जुलना मेरा उनके संग कभी हुआ नहीं। बीते दिनों एक मर्तबा अवश्य मुख्यमंत्री संग दिल्ली में मुलाकात के दौरान मेरी अप्रत्याशित भेंट अभिनव कुमार संग कुछ मिनटों के लिए हुई थी। बहरहाल बतौर पुलिस अधिकारी उनकी कार्यशैली और उनके भीतर मौजूद लेखक का मैं हमेशा से ही प्रसंशक रहा हूं और उन्हें पढ़ता रहता हूं।
दूसरों के पाप गिनाने से …
मेरी बात
अपने इस लेख ‘लुक हू इज टाकिंग’ में उन्होंने अमेरिका पर तंज कसते हुए अमेरिकी राजनेताओं के दो मुंहेपन पर करारा प्रहार किया है। वे लिखते हैं’…While the U.S. government is laying out the red carpet for PM Modi, influencial voices in the American media, academia and politics, led by a personality no less than the former President Barack Obama, are busy criticising and lecturing India along predictable lines…The record of America as a defender of democracy in foreign countries has been patchy to say the least. Generations of right-wing dictators in Latin America, Africa and Asia will testify to the pragmatism and flexibility of American foreign policy on that count. The woke self righteousness that pervades the ivory towers of American academia and in certain sections of its foreign policy establishment is extremly comfortable telling us what to do in the so called Third world. It is certainly less confident or competent, in addressing the grim realities of American society, that suffers from widespread drug abuse, gun violence, racism and inequality. Pax Americana is sustained in equal measure by the projection of strength abroad and hypocrisy at home'( …जबकि अमेरिकी सरकार प्रधानमंत्री मोदी के लिए रेड कापेर्ट बिछा रही है, अमेरिकी मीडिया, शिक्षा जगत और राजनीति के प्रभावशाली आवाजें जिनका नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के स्तर से हो रहा है, पूर्वानुमित अंदाज में भारत की आलोचना करने और उसे भाषण देने में व्यस्त हैं … ़विदेशी मुल्कों में लोकतंत्र की रक्षा करने को लेकर अमेरिका की भूमिका संदिग्ध रही है। लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में दक्षिणपंथी तानाशाहों की पीढ़ियां इसकी गवाह रही हैं। अमेरिकी बौद्धिक जगत के शिखर पुरुष और अमेरिका के विदेश नीतिकर्ताओं का एक हिस्सा आत्मश्लाघा में इस कदर लिप्त है कि वह हमें यह बताने से गुरेंज नहीं करता कि कथित तीसरी दुनिया को क्या करना चाहिए। सच यह है कि अपने समाज की वास्तविक समस्याओं और सच्चाईयों का सामना करने और उनका समाधान करने में अमेरिका विफल रहता आया है। मादक पदार्थों का प्रचलन, समाज में व्याप्त हिंसा, नस्लवाद और असमानता के पीड़ित अमेरिका का दूसरों को नसीहत देना उसका पाखंड मात्र है।)
अभिनव कुमार ने अमेरिका की दुखती रग पर अपने इस लेख में बखूबी सामने रखने का काम किया है। भारत हमेशा से ही अमेरिका की दो मुंही नीति का शिकार रहा है। पाकिस्तान को अपनी सरजमीं से आतंकी गतिविधियों को संचालित करना और ओसामा बिन लादेन जैसों को अपने यहां पनाह देने का हौसला अमेरिका की इस दोमुंही नीति का ही परिणाम था जिस चलते उसने भारत के बार-बार अगाह करने बाद भी पाकिस्तान को कभी रोकने का कोई सार्थक प्रयास नहीं किया। साठ और सत्तर के दशक में जब हम गंभीर अन्न संकट से गुजर रहे थे तब भी दुनिया के देशों को मानवतावाद की नसीहत देने वाला अमेरिका हमें सहायता पहुंचाने की एवज में वियतनाम में अपने कुकर्मों के लिए हमारे समर्थन की शर्त लगाने से पीछे नहीं हटा था। घोर पूंजीवादी व्यवस्था पोषक अमेरिका के पाप इतने कि गिनाते-गिनाते सैकड़ों कागद कारे हो जाऐंगे। प्रश्न लेकिन अमेरिका के पापों का नहीं है जिन्हें अभिनव कुमार सामने रख रहे हैं। प्रश्न हमारे अपने देश की वर्तमान दशा और दिशा का है जिसको चिन्हित करने का काम बराक ओबामा ने अपने साक्षात्कार के दौरान किया। अभिनव अपने इस लेख के अंत में लिखते हैं-‘…When commenting on the health of democracy in India, foreign commentators, well meaning or other wise, must take into account the sheer size of India and its legacy of low income and poor social indicators due to its not- too distant colonial past. In comparison with all our neighbours, India is a shining beacon of democracy and protection of minority right’s’ (…भारतीय लोकतंत्र की स्थिति पर टिप्पणी करने से पूर्व विदेशी टिप्पणीकारों, चाहे वे निष्पक्ष टिप्पणीकार हों या फिर पूर्वग्रसित, को यह याद रखना चाहिए कि भारत ऐसा विशाल देश है जो कुछ अर्सा पहले तक गुलाम था जिस चतले उसकी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आज भी निम्न आय वर्ग का है और जिसके सामाजिक पैमाने अभी विकसित हो रहे हैं। अपने सभी पड़ोसी देशों की तुलना में भारत निश्चित ही अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने वाला एक चमकता हुआ लोकतंत्र है।)
भारत को अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने वाला लोकतंत्र कह अभिनव कुमार उन तमाम आशंकाओं और बहुत से सत्य और अर्धसत्य को सिरे से खारिज कर देते हैं जिन्हें लेकर खुलकर संवाद होना चाहिए। किसी भी सच को खारिज कर देने से सच को छिपाया नहीं जा सकता। सच यह है कि अल्पसंख्यकों की इस देश के लोकतंत्र से बहुत सारी शिकायतें आजादी बाद से ही रहती आई हैं जिनका निराकरण करने के बजाए लंबे अर्से तक देश की सत्ता का केंद्र रही कांग्रेस ने उनको एक वोट बैंक मान उनका दोहन मात्र किया। वर्तमान सत्ता प्रतिष्ठान बहुसंख्यकों के वोट बैंक को साधे रखने की नीयत चलते अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की कवायद कर रहा है। अमेरिकी नेता और वहां का बौद्धिक वर्ग हमारी बाबत क्या राय रखता है, इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम वाकई में क्या हैं? सत्य को हमेशा ही कटु कह पुकारा जाता है। यदि इस राष्ट्र को बिखरने से रोकना है तो इस कटु सत्य का सामना तो लेकिन हमें एक न एक दिन करना ही पड़ेगा। इसलिए मुझे अभिनव कुमार का लेख पढ़ ‘दीवार’ फिल्म का यह डायलाग याद हो उठा कि ‘दूसरों के पाप गिनाने से अपने पाप कम नहीं हो जाते’।