आम आदमी पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले मनीष सिसोदिया इन दिनों केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की हिरासत में हैं। उन्हें 2021 में बनी दिल्ली की नई आबकारी नीति में भारी अनियमितताओं का सीबीआई ने आरोपी माना है। इस आबकारी नीति के चलते आम आदमी पार्टी को शराब माफिया द्वारा सौ करोड़ से अधिक की रिश्वत दिए जाने की बात कही जा रही है। सीबीआई ने दिल्ली के उपराज्यपाल की शिकायत के बाद इस बाबत एक एफआईआर जुलाई, 2022 में दर्ज कर अपनी छानबीन शुरू की थी। अगस्त, 2022 में सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर के आधार पर प्रर्वतन निदेशालय (ईडी) ने भी धन शौधन (मनी लॉड्रिंग) का मामला दर्ज कर अपनी जांच शुरू की। सिसोदिया पर आरोप है कि उन्होंने बतौर आबकारी मंत्री ऐसी नीति बनाने का षड्यंत्र रचा जिसे शराब माफिया अथवा शराब सिंडिकेट को लाभ पहुंचे और इस लाभ का एक बड़ा हिस्सा बतौर रिश्वत आम आदमी पार्टी को मिल सके। 25 नवंबर, 2022 को सीबीआई ने इस मामले में अपना पहला आरोप पत्र अदालत में दाखिल किया। इस आरोप पत्र में दक्षिण भारत के कुछ शराब व्यापारियों और दिल्ली सरकार के आबकारी विभाग के कुछ अधिकारियों के साथ-साथ ‘आप’ पार्टी के एक पदाधिकारी विजय नैयर को पूरे घोटाले का मास्टरमाइंड बताया गया। सीबीआई आरोप पत्र दाखिल करने से पूर्व विजय नैयर समेत छह लोगों को हिरासत में ले चुकी थी। संक्षेप में सीबीआई का आरोप है कि विजय नैयर ने दिल्ली राज्य की आबकारी नीति-2021 को इस तरह से बदलने का काम किया जिससे शराब व्यवसायियों के एक समूह को भारी लाभ पहुंचाया गया और बदले में इस सिंडिकेट ने आम आदमी पार्टी को बतौर रिश्वत भारी रकम दी। ईडी ने अपनी जांच में पाया कि इस रकम को ‘मनी लॉड्रिंग’ के जरिए ‘आप’ पार्टी तक पहुंचाया गया है। ईडी की जांच में इस रकम का एक बड़ा हिस्सा गोवा विधानसभा चुनाव के दौरान ‘आप’ के प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार के लिए दिए जाने का दावा किया गया है। इस आबकारी नीति के जरिए दिल्ली में शराब बेचे जाने की पद्धति पूरी तरह बदल दी गई थी और सरकारी एजेंसियों के बजाए निजी हाथों में शराब बिक्री को सौंप दिया गया था। इस नीति के लागू होने बाद स्वयं दिल्ली सरकार ने माना था कि वर्ष 2022-23 के प्रथम तिमाही में शराब के जरिए प्राप्त होने वाले राजस्व में 37 ़51 प्रतिशत की कमी आई। इस कमी को देखते हुए केजरीवाल सरकार ने स्वयं ही नई नीति को रद्द कर पुरानी व्यवस्था लागू कर दी थी।
सुंदर सपना टूट गया-1
मेरी बात
मनीष की गिरफ्तारी ने मुझे थोड़ा विचलित किया और मुझे लगा कि इस पूरे प्रकरण को गहराई से समझा जाना मेरे लिए निजी तौर पर जरूरी है ताकि मैं अन्ना आंदोलन के अपने पुराने मित्रों की बाबत कही जा रही बातों, उन पर लग रहे, लगाए जा रहे आरोपों का सच समझ पाऊं और उन तमाम को सही उत्तर दे सकूं जो मुझसे जानना चाहते हैं कि अपने पुराने साथियों की बाबत अब मेरी राय क्या है? क्या अब भी मैं इस बात पर टिका हुआ हूं कि इन पुराने आंदोलनकारियों और वर्तमान सत्ताधीशों को केंद्र सरकार और भाजपा राजनीतिक द्वेषवश नाहक परेशान कर रही है? मेरे लिए इन दोनों प्रश्नों का सीधा-सपाट जवाब दे पाना खासा कठिन है। मेरा हमेशा से ही दृढ़ मत रहा कि एक पत्रकार का असल दायित्व बगैर निजी संबंधों और बगैर किसी पूर्वाग्रह के दबाव में आए, केवल वही सामने रखना है जो तथ्यों की कसौटी पर खरा उतर सके। दिल्ली सरकार की जो आबकारी नीति 2021 में सामने आई उसको जितना मैं समझ पाया उसकी बिना पर बगैर हिचके कह सकता हूं कि यह नीति पारदर्शी कतई नहीं है (थी) और इसके जरिए कहीं न कहीं कुछ बड़ा ‘खेला’ खेलने का प्रयास जरूर हुआ है। विपक्षी दलों ने मनीष की गिरफ्तारी बाद केंद्र सरकार पर जांच एजेंसियों का दुप्रयोग करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस ने सीधे तौर पर सिसोदिया की गिरफ्तारी पर कुछ कहने से गुरेज किया है हालांकि उसके नेता जयराम रमेश ने अप्रत्यक्ष तौर पर ईडी और सीबीआई के जरिए विरोधियों को आतंकित करने सरीखा आरोप जरूर मोदी सरकार पर जड़ा लेकिन दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय माकन ने पार्टी लाइन से हटकर सिसोदिया की गिरफ्तारी को पूरी तरह से ठीक ठहराते हुए ‘आप’ नेतृत्व पर भारी आर्थिक घोटाले करने और ऐसे घोटाले से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल कांग्रेस को कमजोर करने में लगाने की बात कहने से गुरेज नहीं किया। माकन का कहना है कि आबकारी घोटाले से मिले सौ करोड़ रुपयों को आम आदमी पार्टी ने गोवा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ माहौल तैयार करने में खर्च कर अपरोक्ष रूप से भाजपा को मदद पहुंचाने का काम किया। माकन यह कहने से भी नहीं चूके कि सिसोदिया के नेतृत्व में तैयार आबकारी नीति पूरी तरह से भ्रष्टाचार में धंसी नीति है (थी)। राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप से परे हो मैं अन्ना आंदोलन के नायकों की बाबत एक बात बगैर किसी हिचकिचाहट कह सकता हूं कि सत्ता में आने के बाद इन्होंने अपने घोषित मूल्यों और सिद्धांतों की तिलांजलि देने की जो राह पकड़ी उसमें चल भले ही ये दिल्ली की सत्ता में मजबूती से टिक गए हों, भले ही पंजाब में भी इन्हें अप्रत्याशित सफलता मिल गई हो, अब इनमें और देश के अन्य स्थापित राजनीतिक दलों में कोई फर्क रहा नहीं है। सत्ता की चकाचौंध और निजी महत्वाकांक्षाओं के विस्तार ने अरविंद केजरीवाल एंड टीम को उसी दलदल का हिस्सा बना डाला है जिस दलदल की सफाई करने वे वर्ष 2011 में आंदोलनरत हुए थे। मेरा मन यह मानने को आज भी लेकिन कतई तैयार नहीं कि मनीष ने किसी प्रकार का व्यक्तिगत लाभ इस आबकारी नीति के माध्यम से प्राप्त किया हो। अपने संगठन की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए ‘खेला’ किए जाने की रणनीति का वह भी हिस्सा रहे हों, इस संभावना से, आशंका से अब मैं इनकार नहीं कर सकता। भाजपा-कांग्रेस के नेता लाख कहें, इस सच को भला कौन नकार सकता है कि बतौर शिक्षा मंत्री मनीष ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों का कायाकल्प कर दिखाया है। यह भी स्वीकारना होगा कि दिल्ली सरकार की ‘मोहल्ला क्लीनिक’ योजना चलते प्रदेश की स्वास्थ व्यवस्थाओं में भारी सुधार हुआ और आम आदमी को राहत पहुंची है। ‘आप’ सरकार की एक बड़ी उपलब्धि दिल्ली की आम जनता को पानी, बिजली सरीखी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की रही हैं, निश्चित तौर पर बीते सात सालों में केजरीवाल सरकार ने गरीब-गुरबा को राहत पहुंचाने की दिशा में कई सुधारवादी कदम उठा इस वर्ग का विश्वास जीता है। ऐसा कर लेकिन केजरीवाल ने कुछ अनुठा नहीं किया। तमिलनाडु, आंध प्रदेश, तेलंगाना आदि कई राज्यों की राजनीति का केंद्र बिंदु ऐसी जनकल्याणकारी योजनाएं रहती आई हैं जिनसे निचले तबके को तात्कालिक लाभ तो पहुंचा, व्यवस्था लेकिन पूरी तरह भ्रष्ट बनी रहती है। आम आदमी पार्टी व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव का संकल्प से राजनीति के अखाड़े में उतरी थी। वायदा इस भ्रष्ट व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव का था जिसे पूरा कर पाने में न केवल केजरीवाल और उनके क्रांतिवीर साथी पूरी तरह विफल रहे हैं बल्कि और ज्यादा सत्ता पाने की भूख चलते उसी भ्रष्ट व्यवस्था का वह इन बीते सात सालों में हिस्सा बन गए हैं। जो कोई भी अन्ना आंदोलन का हिस्सा रहा हो, या फिर जिस किसी ने भी टीम अन्ना के साथ काम किया होगा, वह मेरी बात का शायद समर्थन करे कि सत्ता पाने की चाह ने अरविंद केजरीवाल और उनके निकटवर्तियों को उस राह में धकेल दिया जो चारित्रिक और मानसिक पतन की तरफ ले जाती है। 2013 में जब ‘आप’ पहली बार चुनावी दंगल में उतरी थी तो दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों के लिए उसने एक से बढ़कर एक स्वच्छ और ईमानदार छवि वाले प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। यह आदर्शवाद लेकिन 2015 में हुए मध्यावधि चुनाव के दौरान गायब हो गया। 70 में से 23 ऐसे प्रत्याशी तब केजरीवाल ने चुने जिनका अन्ना आंदोलन से या फिर पुरानी सड़ी-गली व्यवस्था को बदलने के स्वप्न से दूर-दूर तक का कोई रिश्ता न था। ‘आप’ के संस्थापक सदस्य मयंक गांधी अपनी पुस्तक आप एंड डाउन (#Aap & Down) में लिखते हैं कि इन 23 प्रत्याशियों में बहुत सारे ऐसे थे जिन पर आपराधिक मामले, सीटों की खरीद-फरोख्त, भ्रष्टाचार और धार्मिक विद्वेष पहुंचाने सरीखे आरोप थे। बकौल मयंक गांधी उन्होंने इस बाबत जब मनीष सिसोदिया से बात की तो मनीष ने मुस्कुराते हुए कहा-‘Mayank bhai, principles sound good on paper. What we are now in the middle of, is a war. We will have to let go of certain things. Once we win the Delhi elections, we will get back on track’ (मयंक भाई, सिद्धांत कागजों में अच्छे प्रतीत होते हैं। अभी हम युद्ध के मैदान में हैं। हमें कुछ चीजों को जाने देना होगा। जब हम दिल्ली चुनाव जीत जाएंगे तब वापस अपने सिद्धांतों की राह पकड़ लेंगे।)
मनीष सिसोदिया आज जब तिहाड़ में कैद हैं और उन्हें केजरीवाल मंत्रिमंडल से त्याग पत्र देना पड़ा है, ऐसे कठिन समय में अपने पुराने मित्रों को देख निश्चित ही मैं व्यथित और विचलित हूं। अन्ना आंदोलन ने व्यवस्था परिवर्तन के जिस सपने को पैदा किया था, उस सपने को साकार करने की जिम्मेवारी जिन्हें मिली थी, उन्होंने ही उसे तोड़ने का काम कर दिखाया है।
क्रमशः