पिछले कुछ दिनों से भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य राजेश मिश्रा की बेटी साक्षी मिश्रा का मुद्दा मीडिया में छाया हुआ है। साक्षी ने घर से भागकर अपने मित्र अजितेश से विवाह कर सोशल मीडिया के जरिए अपने पिता से जान का खतरा बताते हुए सुरक्षा की गुहार लगाई। अजितेश दलित समाज से है तो साक्षी ब्राह्मण। साक्षी प्रसंग को मीडिया के ‘क्रांतिवीरों’ के चलते सभी भली-भांति परिचित हैं इसलिए उसकी डिटेल्स में न जाते हुए अपने समाज की, 21वीं सदी में घोर पुरातनपंथी, घोर निंदनीय, गैरमानवीय, अमानुषिक सोच पर कुछ कहना बेहतर होगा।
आर्यभट्ट का नाम सभी ने सुना होगा, कम से कम ऐसी अपेक्षा मेरी है। हमारे ही पूर्वज इस महान गणितज्ञ ने ‘शून्य’ की संख्या का सिद्धांत प्रतिपादित किया था। ‘पूरब और पश्चिम’ फिल्म का गाना याद करें ‘जब जीरो दिया मेरे भारत ने तो दुनिया को गिनती आए, जो न देता दशमलव तो चांद पर जाना मुश्किल था।’ जी ये जीरो हमारे पूर्वज आर्यभट्ट की ही देन है। शताब्दियों पूर्व पाटलीपुत्र (वर्तमान पटना) के एक सुपुत्र ने इतनी बड़ी वैज्ञानिक खोज कर डाली थी। इसी आर्यभट्ट के देश में सदियों बाद भी यदि वर्ण व्यवस्था जैसी घटिया, संकीर्ण सोच वाली गैरमानवीय वर्ण व्यवस्था को समाज मान्यता देता हो तब कम से कम मुझे तो शर्म महसूस होती है स्वयं को हिंदू कहने में। शर्म इसलिए क्योंकि हिंदुत्व की जिस अवधारणा को आज विस्तार देने का काम चल रहा है उस हिंदुत्व से मेरा कोई वास्ता, कोई सरोकार नहीं। मैं गर्व करता हूं कि मैं ऐसी संस्कøति वाले देश में पैदा हुआ जो ‘सर्वधर्म सम्भाव’ की बात करती है। लेकिन मैं हर उस कुरीति के खिलाफ अंतिम सांस तक संघर्ष करूंगा जो मनुष्य को धर्म अथवा जाति के नाम पर विभक्त करती हो। इस दृष्टि से मैं साक्षी मिश्रा के साथ हूं। उसने अपने विवाह पश्चात जिस प्रकार से सोशल मीडिया का सहारा ले अपने परिजनों की पोल खोली, मैं उसका भी पूरा समर्थन करता हूं। कितनी त्रासद स्थिति है, जब कोई लड़की ऐसे ही किसी मामले में मौत के घाट उतार दी जाती है तो उसके लिए घड़ियाली आंसू बहाते हुए कैंडल लाइट मार्च निकाले जाते हैं लेकिन यदि कोई साक्षी साहस कर इस व्यवस्था का विरोध करती है तो उसे ही कटघरे में खड़ा करने का प्रयास शुरू हो जाता है। साक्षी मामले में हमारे मुख्यधारा के मीडिया की भूमिका बेहद घटिया रही इससे मुझे इंकार नहीं। जिस प्रकार चिल्ला- चिल्लाकर बोलने वाले हमारे टीवी एंकरों ने व्यर्थ के डिबेट शो इस मामले में किए उससे उनकी नीयत साफ झलक रही है। उनके लिए साक्षी मात्र एक टूल है अपने चैनल के व्यापार को बढ़ाने का। किंतु यह आज की पत्रकारिता का क्रूर पक्ष है जिसकी आड़ में हम साक्षी मिश्रा को निशाने पर नहीं ले सकते। सोशल मीडिया में ऐसे कमेंट्स की भरमार है जो माता-पिता को अपमानित करने के लिए साक्षी पर प्रहार कर रहे हैं। उसके पति के चरित्र पर उंगली उठाने वालों की भी कमी नहीं है। बजाय इसके कि एथलीट हिमा दास के अद्भुत प्रदर्शन को मीडिया द्वारा सहारा जाना, विषम परिस्थितियों में भी देश का नाम रोशन करने वाली इस बालिका पर खबरों का फोकस होता, अजितेश के चरसी होने, उसके कई लड़कियों संग संबंध होने को ब्रेकिंग न्यूज बना परोसा जाना बेहद दुखद है। यह पत्रकारिता में आ चुके गहरे विचलन का प्रतिबिम्ब है। प्रश्न लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह कि क्या साक्षी मिश्रा ने जिस प्रकार अपने परिजनों के सच को खुलकर मीडिया के जरिए सबके सामने रखा, वह गलत है? क्या एक बेटी द्वारा अपने मां-बाप, वह मां-बाप जिन्होंने उसे पैदा किया, पढ़ाया-लिखाया, उस पर पैसा खर्च किया, उन मां-बाप की बेटा-बेटी में भेदभाव करने की प्रवृत्ति को, दलित प्रसंग प्रेम करने के ‘गुनाह’ पर प्रताड़ित करने, यहां तक कि जान से मारने तक की हद तक जाने की मंशा पर साक्षी द्वारा उठाया गया कदम, ‘या देवी र्स्वभूतेषु मातृ रुपेण, शक्ति रुपेण, स्त्री रुपेण’ आदि का जाप करने वाले देश में क्या निंदनीय और अपराध है? यदि समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसा समझता है तो मुझे उन पर क्रोध कम तरस ज्यादा आ रहा है।
साक्षी प्रसंग के दौरान गुजरात के अहमदाबाद की उर्मिला के पति को उसके मां-बाप ने गला रेतकर मार डाला। उर्मिला का पति हरेश कुमार का अपराध मात्र इतना था कि उसने दलित होते हुए भी सवर्ण जाति की लड़की से प्रेम विवाह कर लिया था। उर्मिला इस वक्त दो माह के गर्भ से है। गत् वर्ष सितंबर में हैदराबाद के प्रणय का भी यही हश्र हुआ था। उसकी पत्नी अमृता भी पांच माह के गर्भ से थी जब दलित होने के ‘जुर्म में उसके ससुर ने निर्ममतापूर्वक उसकी हत्या कर डाली थी। ऐसे एक नहीं सैकड़ों उदाहरण मैं आपको दे सकता हूं जहां दलित युवकों को मात्र इसलिए मार डाला गया, क्योंकि उन्होंने सवर्ण जाति की लड़की संग विवाह रचाने का ‘दुस्साहस’ किया था। दरअसल, हमारे सड़े-गले समाज का यह क्रूर सत्य है जो 21वीं सदी में भी अपना असली रूप दिखा देता है। वह सत्य है स्त्री को दोयम स्तर का मानना। सब बकवास, व्यर्थ का प्रयास, छद्म है कि यहां स्त्री को पूजा जाता है, यहां हर पुरुष में राम और नारी में सीता है। स्त्री भला पूजने योग्य क्यों? इसलिए क्योंकि ऐसे लॉलीपॉप बचपन से उसके मस्तिष्क को खिलाकर उसे बंधन में जकड़ा जा सके। मनुस्मृति हमारे समाज के इस घिनौने रूप को सामने लाती है। इसका एक श्लोक ही मेरे कथन की पुष्टि करने के लिए काफी है। ‘मनुमहाराज’ कहते हैं :
‘‘पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने।
रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्रय अर्हति।।’’
यानी स्त्री अपने जीवनकाल के किसी भी समय स्वतंत्र नहीं है। पिता शादी होने तक उसकी रक्षा करता है, पति यौवनकाल में और पुत्र वृद्धावस्था में। रामचरित्र मानस में गोस्वामी तुलसीदास ज्ञान बघारते हैं ‘जिमि स्वतंत्रत होइ, बिगरहि नारी’ अर्थात जैसे ही स्त्री को स्वतंत्रता मिलती है, वह बिगड़ जाती है। जब हमारे कथित धर्मग्रंथ, पौराणिक कहानियां ऐसी विद्रूप मानसिकता से भरे हों तब भला कैसी संस्कøति? किस बात पर ऐसी संस्कøति पर गर्व? सब मिथ्या है, जनमानस को धर्म के नाम पर बरगलाए रखने का षड्यंत्र है। आंकड़े बताते हैं ‘ऑनरकिलिंग’ के ज्यादातर मामलों में दलित युवकों का ‘शिकार’ सवर्णों ने किया। जाहिर है इसके पीछे वही क्रूर मानसिकता है जो स्त्री को निजी संपत्ति मानती है और दलितों को घृणा की दृष्टि से देखती है। अरे जागो हिंदुत्व के नाम पर बरगलाए जा रहे गौरक्षकों, मुस्लिम विरोधियों जागो, अब भी नहीं जागे तो इसी जाति-धर्म के फेर में पड़े रह जाओगे और भारत का हश्र भी पाकिस्तान, सीरिया जैसा हो जाएगा। जानना चाहते हो हमारे धर्मग्रंथ, हमारे पौराणिक ग्रंथ स्त्री को कितना ‘ऊंचा दर्जा’ देते हैं तो पढ़ो मनुस्मृति को जो स्पष्ट कहती है :
शूद्रैव भार्या शूद्रस्य सा च स्वा च विशःस्मृते।
ते च स्वा चैव राजश्र ताश्रस्वा चाग्रजन्मन।।
शूद्र केवल शूद्र स्त्री से ही विवाह कर सकता है, वैश्य यानी बनिया दोनों से यानी शूद्र स्त्री अथवा वैश्य स्त्री संग विवाह कर सकता है, श्रत्रिय अपनी जाति अथवा अपने से नीची जाति की स्त्री संग विवाह कर सकता है और ब्राह्मण किसी भी जाति की स्त्री से।
वाह! क्या वर्ण व्यवस्था है। कथित तौर पर श्रेष्ठ ब्राह्मण किसी नीच कन्या से भी विवाह कर उसे पवित्र कर सकता है, लेकिन शूद्र केवल शूद्र से ही विवाह कर सकता है। यौन संबंध यानी सेक्स पर भी ये ‘महान विचारक’ मनु अपना ज्ञान रखते हैं। कहते हैं :
कन्या मजन्ती मुत्कøष्टं न किचदपि दापयेत्।
जघन्ये सेवामानां तुंबयतो वावसचेदगृहे।।
अर्थात् यदि कोई स्त्री किसी बड़ी जाति वाले व्यक्ति संग यौन संबंध बना लेती है तो उसे दंड नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन यदि वह किसी नीच जाति वाले संग यौन
संबंध बनाती है तो वह कठोर दंड की अपराधी है।
तो भाइयों यही वह कुंठित, कलुषित सोच है जिसके चलते ‘उच्च’, ‘श्रेष्ठ’ जाति के विधायक राजेश मिश्रा अपनी पुत्री साक्षी मिश्रा के एक ‘नीच’ जाति के युवक संग विवाह पर क्रोधित हो उसकी हत्या तक कराने की सोच रखते हैं। यह स्वयं साक्षी मिश्रा का कथन है। चूंकि हमारे महान सांस्कøतिक-धार्मिक मूल्यों वाले देश में ऐसा होता आया है इसलिए मैं साक्षी मिश्रा के समर्थन में खुलकर हूं। उसने मीडिया का सहारा ले न केवल अपनी और अपने पति की रक्षा की है, बल्कि मनु महाराज के अनुयायियों की सच्चाई भी बाहर लाने का साहस किया है। हो सकता है अजितेश का चरित्र ठीक न हो, बहुत संभव है यह शादी आपसी मतभेद के चलते भविष्य में टूट जाए। लेकिन यह उनका आपसी मसला है जिसकी चिंता करने वाले हम कोई नहीं। चिंता करनी है समाज में बढ़ रहे धर्म और जाति आधारित वैमनस्य की, बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति की, मानवीय मूल्यों और सरोकारों के क्षरण की। इस साक्षी प्रसंग ने मुझे प्रेरित किया है मनु महाराज और उन सरीखे सभी धर्मों के ‘महापुरुषों’ पर एक जनहित याचिका दायर करने के लिए। इन सभी महापुरुषों पर चाहे मनु महाराज हों, तुलसीदास हों या फिर तीन तलाक, बुर्का प्रथा, बहुपत्नी व्यवस्था को मान्यता देने वाले मुल्ला-मौलवी, ये सब अदालत में हाजिर हो अपना पक्ष रखें और हमारी अदालत संविधानपरक निर्णय से ऐसे सभी को दंडित कर इनकी सभी ऐसी रचनाओं को प्रतिबंधित कर डाले। पता नहीं ऐसा करना संभव है कि नहीं, प्रयास करते हैं कि आवाज लगे ‘मनु महाराज, मौलाना साहब और पादरी महोदय हाजिर हों . . .।’