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Editorial

मणिपुर में कुछ भी ठीक नहीं-2

मेरी बात

बहुसंख्यक मैती समुदाय द्वारा मणिपुर में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बनाए जाने की मांग और राज्य सरकार द्वारा संरक्षित वन क्षेत्र से आदिवासी जन जातियों को बेदखल करने का निर्णय राज्य में हिंसा पैदा करने के दो मुख्य कारण रहे। कंगपोकपी जिले में संरक्षित वन क्षेत्र से आदिवासियों को हटाए जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा की शुरुआत हुई जिसने शीघ्र ही पूरे मणिपुर को अपनी गिरफ्त में ले लिया। राज्य सरकार इस वन क्षेत्र में बसी कुकी जनजाति को हटाने पर अड़ी है। यह इलाका अफीम की अवैध खेती का गढ़ माना जाता है। इस खेती के पीछे कुकी जनजाति के साथ-साथ धनी मैती समुदाय है जबकि खेती का काम आदिवासी करते हैं। मैती धनाढ्य वर्ग उन्हें इस अवैध खेती को करने के लिए धन उपलब्ध कराता है और फसल को खरीदता भी है। इस दृष्टि से मणिपुर की वर्तमान स्थिति के पीछे इस अवैध अफीम की खेती भी एक मुख्य कारण बन उभरती है। ऐसा बताया जा रहा है कि पहले इस अवैध धंधे की कमान और लगाम मैती समुदाय के हाथों में थी। अब लेकिन कुकी समुदाय के धनाढ्य वर्ग ने इस काले धंधे के असल खरीददारों से सीधे संपर्क कर मैती के आर्थिक हितों को चोट पहुंचाना शुरू कर दिया है। दोनों समुदायों के मध्य तनाव 11 अप्रैल के दिन इंफाल की आदिवासी कॉलोनी में तीन चर्चों को राज्य सरकार द्वारा अवैध निर्माण कह ढहाए जाने से ज्यादा गहरा गया। 20 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने राज्य सरकार को मैती समुदाय की अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने वाली मांग पर विचार करने की सलाह दे कुकी एवं अन्य आदिवासी जनजातियों के मध्य डर पैदा कर डाला कि यदि मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो मैती आने वाले समय में आदिवासियों के जंगल और जमीन का मालिक बन बैठेंगे। 3 मई को कुकी, नागा और अन्य जनजातियों के संगठन ‘ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन ऑफ मणिपुर’ ने मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति घोषित किए जाने की आशंका चलते एक ‘एकता जुलूस’ राज्य के आदिवासी बाहुल्य जिलों में निकाला जिसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए। इस जुलूस का समापन एक विशाल जनसभा के जरिए चुराचांदपुर शहर में किया गया। इस जनसभा के बाद मैती और कुकी के मध्य भारी हिसा शुरू हुई जिसकी चपेट में दोनों पक्षों के लोग आ गए। मैती बाहुल्य इलाकों में कुकी समाज के लोगों और चर्चो को निशाने पर लिया गया तो कुकी बाहुल्य पहाड़ी क्षेत्रों में मैती समाज को हिंसा का शिकार होना पड़ा। बड़ी तादात में कुकी और मैती जनसमूह इस हिंसा के बाद पलायन करने को मजबूर हुए। हिंसा को थामने की नियत से राज्य सरकार ने राज्य के आठ जिलों में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगाने और दंगाईयों को देखते ही गोली मारने सरीखे कदम उठाए जरूर लेकिन हिंसा थमी नहीं। इस दौरान अर्धसैनिक बल असम राइफल्स और सेना की मदद से पचास हजार के करीब दंगा पीड़ितों को सुरक्षित स्थानों में पहुंचाया गया। 4 मई को केंद्र सरकार के हवाले से खबर आई कि राज्य की खराब कानून व्यवस्था को पटरी में लाने के लिए केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 355 को लागू कर राज्य की कानून व्यवस्था अपने हाथों में ले ली है। हालांकि इस बात को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है कि यह अनुच्छेद वाकई लागू किया गया है या नहीं। केंद्र सरकार ने मुख्यमंत्री की मदद के लिए एक सुरक्षा सलाहकार जरूर नियुक्ति किया जिसकी भूमिका कानून-व्यवस्था के प्रश्न पर राज्य सरकार की मदद करना भर है। हालात लेकिन इस नियुक्ति के बाद भी संभले नहीं और राज्यभर में हिंसा का तांडव जारी है। अब तक इस हिंसा की चपेट में आकर (गैर अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार मरने वालों की संख्या 100 से अधिक है) कई सौ घायल हुए हैं और हजारों की संख्या में विस्थापित हुए हैं।

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक सबसे दुखद और शर्मनाक बात मुख्यधारा के मीडिया का मणिपुर को लेकर उदासीन रवैया रहा है। जब राज्य जल रहा था तब हमारे लोकतंत्र का कथित चौथा स्तंभ खामोश रह भारत के विश्वगुरु बनने के कसीदे पढ़ने में लगा हुआ था। इतना ही नहीं, कुकी सशस्त्र आतंकियों द्वारा राज्य में हिंसा फैलाने की खबरें तो दिखाई-पढ़ाई जा रही थी लेकिन मैती (हिंदू) समुदाय द्वारा कुकी (ईसाई) समुदाय पर की जा रही हिंसा को बताने से परहेज इस दौरान किया गया। केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी जो मणिपुर की सत्ता में काबिज है, इस हिंसा को लेकर अजीबो-गरीब और भयावह चुप्पी साधे रही। विपक्षी दलों के द्वारा हो-हल्ला किए जाने का इतना भर असर रहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक सर्वदलीय बैठक इस मुद्दे पर बुलाई और वे खुद भी मई के अंतिम सप्ताह में राज्य के दौरे पर गए लेकिन उनका दौरा भी राज्य में शांति बहाल कर पाने में विफल रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री मैती और कुकी समुदाय के प्रतिनिधियों से अपनी इस यात्रा के दौरान मिले थे। उन्होंने कुकी समुदाय से इस यात्रा के दौरान तीन महत्वपूर्ण वायदे किए लेकिन इन तीनों पर पूरी तरह अमल नहीं किया गया है। उन्होंने पहला वायदा दोनों समुदायों के मध्य चल रही हिंसा को तत्काल रोकने का किया था। गृह मंत्री 29 मई से 2 जून तक मणिपुर में थे। उनके वायदे बाद भी राज्य में हिंसा जारी रही है। दूसरा वायदा दोनों समुदायों के ऊपर लगे यात्रा प्रतिबंध को लेकर किया गया। राज्य में हिंसा भड़कने के बाद दोनों ही समुदायों के लोगों पर एक-दूसरे के बाहुल्य वाले इलाकों में आने-जाने से रोक लगा दी गई थी। यह रोक भी अभी तक पूरी तरह से हटाई नहीं जा सकी है क्योंकि अभी भी तनाव कम नहीं हुआ है। गृह मंत्री का तीसरा वायदा कुकी बाहुल्य इलाकों में आवागमन के लिए तत्काल हैलीकॉप्टर सेवाएं शुरू करने का था। यह भी आंशिक तौर पर ही लागू किया जा सका है। मैती समुदाय के प्रतिनिधि भी गृह मंत्री के इस तीन दिवसीय दौरे से संतुष्ट नहीं हैं। गृह मंत्री ने दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया था कि वे पंद्रह दिन बाद फिर से मणिपुर आएंगे और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों का सर्वमान्य हल तलाशने का रास्ता बनाऐंगे। ऐसा लेकिन हुआ नहीं गृहमंत्री ने अभी तक दोबारा मणिपुर जाने के अपने वायदे को नहीं निभाया है। संभवतः इसके पीछे एक बड़ा कारण कुकी समुदाय की राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने की मांग है जिससे पीछे हटने को वह तैयार नहीं हैं। मणिपुर का मुद्दा शायद कभी इतना बड़ा बन ही नहीं पाता यदि 19 जुलाई को एक वीडियो वायरल नहीं हुआ होता। इस वीडियो में दो कुकी महिलाओं के साथ क्रूरता की पराकाष्ठा का सच सामने लाने का काम कर दिखाया। ऐसा सच जिससे पूरा देश शर्मसार हो उठा। हैरानी की बात लेकिन यह कि इस घटना के बाद भी भाजपा नेतृत्व ने राज्य सरकार के खिलाफ कठोर कदम उठाने की पहल नहीं की। हां इतना अवश्य हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी ने अगले दिन 20 जुलाई को मणिपुर पर अपनी गहन चुप्पी को तोड़ा और इस घटना को बेहद शर्मसार करार दिया। बस केवल इतना भर ही हुआ। न तो मुख्यमंत्री एन.बिरेन सिंह को हटाया गया, न ही केंद्रीय गृह मंत्री दोबारा से अपने वायदे अनुसार वापस मणिपुर गए। मुख्यधारा के मीडिया की नंगई जारी रही। 21 जुलाई को न्यूज एजेंसी एएनआई ने एक भ्रामक समाचार फैलाने का काम किया। बकौल एएनआई इन दो महिलाओं के साथ यौन अत्याचार के पीछे एक मुसलमान नवयुवक का हाथ था जिसे मणिपुर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। यह समाचार पूरी तरह झूठा निकला और एएनआई को इसके लिए माफी मांगनी पड़ी। जाहिर है वह ताकतें जो देश की हर समस्या के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार देखने-ठहराने की आदि हैं, इस प्रकार झूठ का व्यापार कर मणिपुर के मसले को भी धार्मिक रंग देना चाहती हैं ताकि देश का बहुसंख्यक उनके भ्रमजाल में जकड़ा रहे। 31 जुलाई को अंततः सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर सक्रिय होना पड़ा। अब उसकी निगरानी में मणिपुर हिंसा की जांच शुरू हो चुकी है। इस जांच से कितना सच बाहर आ पाएगा, यह कह पाना खासा कठिन है। इतना भर लेकिन कहा जा सकता है कि मणिपुर में हालात बिल्कुल भी ठीक नहीं हैं। भले ही ऊपरी तौर पर अब मणिपुर में हालात सामान्य होते नजर आने लगे हों, जातीय हिंसा का खतरा टला नहीं है। 2 सितंबर की रात इंफाल के एक रिहायसी इलाके में रह रहे कुकी-जोमी समुदाय के लोगों को सुरक्षा बलों द्वारा जबरन वहां से हटाया जाना यह साबित करता है कि मैती बाहुल्य इलाकों में कुकी व अन्य पहाड़ी आदिवासियों की सुरक्षा को लेकर खतरा बरकरार है। हालात इस कदर विकट हैं कि इन रिहायशी इलाकों में रह रहे लोगों को बगैर कोई नोटिस दिए, राज्य प्रशासन ने जबरन उन्हें, उनके घरों से बेदखल कर डाला है। इन जबरन विस्थापित किए गए लोगों का केंद्र और राज्य की सरकार से एक सीधा प्रश्न है कि ‘क्या राज्य का नागरिक होने के नाते उन्हें यह हक नहीं कि वे इंफाल में अपना घर बसा सकें? इस प्रश्न का उत्तर देने को राज्य सत्ता तैयार नहीं है। इससे यह स्पष्ट होता है कि मणिपुर में कुछ भी ठीक नहीं है।

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