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देशभर में इस समय ‘मी टू’ अभियान का जोर है। एक से एक ‘विभूतियां’ इसकी चपेट में आती जा रही है। ऐसे-ऐसे नामों पर आरोप लगाए जा रहे हैं जिन्हें हम अपना आदर्श मानते आए हैं। फिल्मी दुनिया के किरदारों से शुरू हुई इस मुहिम ने मानो पूरे समाज को अपनी जकड़ में ले लिया हो। जहां एक तरफ कई दिग्गज इस अभियान को अपना समर्थन देने की बात कह रहे हैं तो बहुत ऐसे भी हैं जो इसकी विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे हैं। सोशल मीडिया, जो इस कैम्पेन की कर्मस्थली है, में उन महिलाओं के चरित्र पर, उनकी इन्टीग्रिटी पर नाना प्रकार की टिप्पणियां कर रहे हैं जिन्होंने बरसों, दशकों बाद ही सही लेकिन अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का साहस तो किया। वह भी ऐसे समाज में जहां महिलाओं को भोग की वस्तु समझा जाता रहा हो। ऐसा समाज जो भले ही नारी को पूजने, उसे देवी का दर्जा देने का स्वांग रचता आया है, असल में पूरी तरह से विकøत मानसिकता से लबरेज है। यहां स्त्री चाहे कितनी भी सक्षम, विदुषी, कर्मठ क्यों न हो, कभी न कभी किसी की हवस का शिकार अवश्य ही बनती है। तो चलिए इस ‘मी टू’ अभियान पर कुछ विचार किया जाए ताकि हमारी-आपकी भूमिका, कायरता, कुंठित यौनिकता पर कुछ साहस कर आत्मलोकन कर सकें।
सबसे पहले मैं खुद की स्थिति स्पष्ट कर दूं। मैं पूरी तरह इस अभियान के पक्ष में खड़ा हूं। उन तमाम आशंकाओं के बावजूद कि जिन पर आरोप लगे हैं अथवा भविष्य में लगने की संभावना है, उसमें से बहुत बेबुनियाद हो सकते हैं, किसी कुंठा के चलते अथवा किसी राग-द्वेष के चलते लगाए गए हो सकते हैं, ‘मी टू’ के साथ हूं। इसका एक बड़ा कारण मेरा स्वयं इस कुंठित घृणित लिलिप्सा का शिकार होना रहा है। पर उस पर चर्चा बाद में। पहले इस अभियान के इतिहास पर कुछ बात।
‘मी टू’ यानी ‘मैं भी’ की शुरुआत वर्ष 2006 में अमेरिका से हुई। इस अभियान की बुनियाद में यौन शोषण है जिससे समय-समय पर महिलाओं को, युवतियों को, यहां तक कि अबोध बालक-बालिकाओं को गुजरना पड़ता है। अमेरिका की एक सामाजिक कार्यकर्ता तराना बुर्के ने इसकी शुरुआत नब्बे के दशक में एक संस्था ‘JUST BE INC’ बनाकर की जहां वे युवाओं को खुद के भीतर आत्मविश्वास पैदा करने और उन पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ बोलने का हौसला देती थीं। उन्होंने अपने साथ हुए यौन शोषण की बातें साझा करने से इसकी शुरुआत की। 2006 में उन्होंने ही ‘मी टू’ की बुनियाद रखी जिसके चलते उन्हें ‘मी टू’ यानी मैं भी का जन्मदाता कहा जाता है। हालांकि यह अभियान ट्वीटर के जरिए तब दुनियाभर में फैला जब अमेरिका के प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक हार्वे वीनस्टीन के खिलाफ 2017 में एक के बाद एक हॉलीवुड की नायिकाओं ने यौन शोषण के आरोप लगाने शुरू किए। अमेरिकी फिल्म एक्ट्रेस एलाइसा मिलानो ने इस प्रकार के ताकतवर लोगों की असलियत सामने लाने के लिए ट्वीटर पर ‘मी टू’ नाम से एक कैम्पेन की शुरुआत कर डाली। नतीजा यह कि हार्वे वीनस्टीन पर अस्सी मुकदमे दर्ज हुए, उसे यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया और यह अभियान अमेरिका से निकल पूरे विश्व में छा गया। हमारे मुल्क में बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने 2008 में हिम्मत कर नामचीन अभिनेता नाना पाटेकर के खिलाफ आवाज उठाने का साहस किया लेकिन उनकी एक न सुनी गई। नाना पाटेकर के संग पूरी फिल्म इंडस्ट्री खड़ी हो गई। कहावत है दिन तो घुरे के भी पलटते हैं। पाटेकर तब तो बच निकले लेकिन ‘मी टू’ कैम्पेन से साहस पा इस बार जब तनुश्री ने मोर्चा संभाला तो पाटेकर छोड़िए एक के बाद एक कई बड़े चेहरे बेनकाब होते चले गए हैं। पत्रकार और लेखिका शोभा डे की एक पुस्तक तीन दशक पहले, 1991 में प्रकाशित हुई थी। नाम है ‘STARRY NIGHTS’। उसमें उन्होंने फिल्मी दुनिया के इस भयावह सच का उल्लेख किया था। वे इस किताब में लिखती हैं- ‘Very few women spared… and that has not changed. The only women who escaped were those belonging to powerful bollywood families.’ फिल्मी दुनिया हमारे ही समाज का हिस्सा है। वहां लगी आग ने अब राजनीति, पत्रकारिता, उद्योग जगत को चपेट में लेना शुरू कर दिया है। एमजे अकबर जो पत्रकारों के आदर्श हुआ करते थे, आज हमाम में नाना पाटेकर, विकास बहल, आलोकनाथ, कैलाश खेर, रजत कपूर, सुभाष घई आदि के साथ नंगे खड़े हैं।
देश के यशस्वी प्रधानमंत्री खामोश हैं। उनकी खामोशी ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के उनके संकल्प को कमजोर कर रही है। संकट यह है एमजे अकबर ने भले ही इस्तीफा दे दिया पर न मालूम कितने अन्य स्वनाम धन्य राजपुरुषों का कालाचिट्ठा सामने आना बाकी है। हमारी सामाजिक संरचना कुछ ऐसी है कि इस प्रकार के शोषण को सहने के सिवा इस ‘मी टू’ से पहले कोई रास्ता था नहीं। 2008 में जब तनुश्री ने साहस किया तो उनका फिल्मी करियर बर्बाद हो गया। कल्पना कीजिए उन लाखों का जो देश के कोने- कोने में रोज इस प्रकार के शोषण का शिकार होती हैं। उनकी आवाज कौन सुनेगा? इसलिए मैं इस मुहिम के साथ हूं। और गरीब-गुरबा की बात छोड़िए, छोड़िए घरों में काम करने वाली बालिकाओं की जिन्हें रोज इस प्रकार के शोषण से दो-चार होना पड़ता है। उद्योग जगत में काम कर रही, बड़े कॉरपोरेट घरानों में काम कर रही महिलाओं को हर रोज अपने आत्म सम्मान के साथ समझौता करना पड़ता है। चारों तरफ एमजे अकबर हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत महिलाओं तक को इससे हर रोज जूझना पड़ता है। मैं निजी तौर पर वाकिफ हूं ऐसे कुछेक वाक्यों से जहां आईएएस, आईपीएस महिलाओं को उनके सीनियर प्रताड़ित करते हैं। यदि वे दबाव में आ जाएं और समर्पण कर दें तो ठीक, नहीं तो उनके ही चरित्र पर उंगली उठाने का षड्यंत्र शुरू हो जाता है। किस पर यकीन करें, किसे मर्यादा पुरुषोत्तम कहें यह तय कर पाना लगभग असंभव है।
मैं बहुत संत्रास के साथ यह लिख रहा हूं। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का मैं बड़ा प्रशंसक था। सरकारी तंत्र में फिट (Fit) न बैठने के चलते वह हमेशा हाशिए पर रहा है। मेरा निजी परिचय नहीं लेकिन खबरों की दुनिया का हिस्सा होने के चलते मैं इन महाशय का बड़ा समर्थक रहा हूं। यह मेरे चरित्र की कमजोरी है कि जिसके साथ खड़ा हूं, उसके लिए जो बन पड़ता है करता हूं। मैंने बगैर इन महाशय की जानकारी के इन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया। हालांकि मैं सफल नहीं हुआ लेकिन अपनी बात मैंने पुरजोर तरीके से रखी। अर्सा बाद पता चला कि ये महाशय पूरी तरह से पथ भ्रष्ट हैं। आपसी सहमति से कोई किसी संग संबंध बनाए इसका चरित्र से, नैतिकता से कुछ वास्ता नहीं लेकिन यदि जोर-जबर्दस्ती का प्रयास करें तो ऐसों को न केवल सेवा से बर्खास्त करना चाहिए, बल्कि कठोर सजा भी मिलनी चाहिए। समस्या लेकिन यह कि हमारे सामाजिक बंधन इन जैसे राक्षसों के हाथों छली गई महिलाओं की जुबां सिल देते हैं। ‘मी टू’ ऐसे सभी के लिए बड़ा हथियार है, सामने आएं, अपनी बात रखें ताकि इन जैसे दुर्जनों को बेनकाब किया जा सके। यहां एक बात और कहना चाहूंगा। इस प्रकार की यौन विकृति का शिकार केवल महिलाएं ही नहीं होती। मैं स्वयं इसका शिकार हुआ हूं इसलिए पूरे दमखम के साथ कह सकता हूं। तब मैं केंद्रीय विद्यालय रानीखेत में ग्यारहवीं कक्षा का छात्र था। हमारे प्यारे, ‘प्रदूषण रहित’ शहर में एक ‘सज्जन पुरुष’ रहा करते थे। छोटे शहर के बड़े आदमी थे। मैं उनके चंगुल में फंस गया। पूरा विवरण नहीं दे रहा हूं। क्योंकि शहर अपना बहुत प्यारा है। नहीं चाहता अब तीन दशक बाद किसी का चीर हरण करूं। उन्होंने मेरे साथ कुछ ऐसा करने का प्रयास किया कि मैं हत्प्रभ रह गया। मैंने यह बात अपने सबसे घनिष्ठ मित्र से साझा की तो पता चला वह महाशय इन मित्र पर भी हाथ-सफाई करने का प्रयास कर चुके हैं। शायद तब ‘मीट टू’ होता तो मैं भी अपनी बात तभी कह डालता। अब कोई फायदा नहीं। एक विकृत सोच के व्यक्ति को अब जलील करना उचित नहीं। लेकिन उन महिलाओं को, युवतियों को हर हाल में सामने आना चाहिए जिनकी मजबूरी का फायादा उठा शोषण किया जाता है। ताउम्र वे अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं। यहां इस बात के खतरे से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस कैम्पेन की जद में बहुत ऐसे भी शिकार बन जाएं जो पाक साफ हैं। इनदिनों रोज एक भ्रष्ट अधिकारी जिसकी बेनामी संपत्ति इस समाचार पत्र के चलते खतरे में हैं, मुझ पर यौन शोषण के, सामूहिक बलात्कार के आरोप लगाने में जुटा है। रोज कहीं न कहीं की पुलिस मेरे चरित्र की जांच करने पहुंच जाती है। अपन भी मौज में हैं। यह कुंठित सोच का अधिकारी मेरे धैर्य की परीक्षा ले रहा है, मैं इसकी नीचता का पैमाना आंक रहा हूं। महाभारत में संदर्भ आता है। भगवान कृष्ण को उनकी सगी बुआ का बेटा शिशुपाल हर समय, हर सभा में गाली देता था। कृष्ण से उनके अनुयायियों ने पूछा कि भगवन आप इस शिशुपाल का कुछ इलाज क्यों नहीं करते। कृष्ण का उत्तर था ‘मैंने अपनी बुआ को वचन दिया था कि अपने भाई की सौ गलतियों को माफ करूंगा, एक सौ एक वीं गलती पर शीश साफ कर दूंगा।’ महाभारत में उल्लेख है कि यही हुआ। भरे दरबार में शिशुपाल का वध भगवान के सुदर्शन चक्र से हुआ। हम न तो कृष्ण हैं, न ही किसी वचन से बंधे। बस देख रहा हूं किस हद तक ये पापी जा सकते हैं। इनके कथित वकील मित्र, फेस बुकिया मित्र, कथित महिला सहकर्मी कितने नीचे गिर सकते हैं। बहरहाल ‘मी टू’ को अपना पूरा समर्थन है। इस खतरे को समझते हुए भी कि कई निर्दोष भी इसकी चपेट में आ सकते हैं।

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