[gtranslate]
मेरी बात
 


बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ में छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

-अटल बिहारी वाजपेयी

पूर्व प्रधानमंत्री स्व .अटल बिहारी वाजपेयी की उपरोक्त कविता मुझे इन दिनों कुछ ज्यादा ही याद आने लगी है। यूं तो यह मुझे हमेशा से अपने हृदय के खासा करीब लगती रही है, वर्तमान राजनीति और सामाजिक परिदृश्य के बरअक्स मैं अक्सर ही इसे गुनगुनाने लगता हूं। कभी किसी मित्र की कोई बात सुनकर, उसके आचरण को देखकर तो कभी किसी समाचार को पढ़ कर मुझे यह कविता याद हो आती है। 28 नवंबर, 2022 की सुबह एक समाचार पढ़ने को मिला। शीर्षक था ‘आप के सबसे ज्यादा आपराधिक उम्मीदवार’। समाचार पोर्टल नया इंडिया  (www.nayaindia.com) में प्रकाशित इस समाचार के अनुसार गुजरात विधानसभा चुनाव को पूरे दम-खम के साथ लड़ रही आम आदमी पार्टी ने पहले चरण की 82 सीटों पर जिन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, उनमें से 32 आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। इन 32 में से 26 उम्मीदवारों के ऊपर गंभीर आपराधिक मामले हैं। समाचार के अनुसार दिल्ली नगर निगम के लिए होने जा रहे चुनाव में भी आपके 45 उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड है। इन 45 में से 20 उम्मीदवारों पर गंभीर प्रकृति के मुकदमें दर्ज हैं। 27 नवंबर, 2022 के ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ दैनिक में एक खबर पढ़ने को मिली जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल के एक बयान का जिक्र है। केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा है-‘प्रधानमंत्री जी आप कहते हैं कि आप 18 घंटे काम करते हैं, 18 के 18 घंटे आप बस यही सोचते हैं की मैं किस तरह से केजरीवाल को रोकूं, काम करने से? किस तरह से केजरीवाल के मंत्रियों को गिरफ्तार करूं, किस तरह से कीचड़ फेंकू। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इन 18 घंटों में से केवल दो घंटे देश को दे दीजिए, देश तरक्की करेगा और बेरोजगारी भी समाप्त हो जाएगी। इतना निगेटिव मत बनिए, पॉजिटिव कहिए और थोड़ा-सा पॉजिटिव जनता के लिए सोचिए।’
इन दो समाचारों ने मुझे अटल जी की उपरोक्त कविता को गुनगुनाने के लिए प्रेरित किया। केजरीवाल और उनकी पार्टी संग मेरा करीबी रिश्ता रहा है। यह रिश्ता अन्ना हजारे के आंदोलन दौरान शुरू हुआ और प्रगाढ़ भी हुआ। जिस अरविंद केजरीवाल से मैं पहली बार मिला था, वह और वर्तमान के राजनेता केजरीवाल में धरती-आसमान का अंतर है। या यह भी संभव है कि दोनों में कोई अंतर कभी रहा ही नहीं, मैं ही ‘केजरीवाल-पार्ट वन’ को ठीक से पहचान न पाने की भूल कर बैठा। ‘केजरीवाल-पार्ट वन’ से मेरा तात्पर्य उस सामाजिक कार्यकर्ता और आंदोलनकारी अरविंद से है जिससे मैं अन्ना आंदोलन के दौरान पहली बार मिला था। यह वह अरविंद था जिसके भीतर ‘मेरे सीने में न सही-तेरे सीने में सही’ सरीखी दुष्यंत कुमार मार्का आग मौजूद थी जो देश और समाज के लिए कुछ करने की चाह रखती थी। लंबी बातचीतों के दौर में कभी भी ऐसा मैंने महसूसा नहीं कि यह आग दरअसल, निज महत्वाकांक्षा की आग है। ऐसी आग जो एक आंदोलनकारी का भेष लिए ऐसे व्यक्ति के सीने में धधक रही है जिसका अंतिम लक्ष्य किसी भी कीमत पर, किसी भी हद को पार कर, कुछ ऐसा हासिल करने का है जिससे उसकी निज महत्वाकांक्षा की पूर्ति हो सके। अन्ना आंदोलन का हश्र इसको प्रमाणित करता है। लंबे अंतराल बाद ऐसा आंदोलन जन्मा था जिसने भ्रष्ट व्यवस्था को बैकफुट पर लाने और मृत समाज को जगाने का काम मात्र कुछ ही समय में कर दिखाया था। ऐसा महसूस होने लगा था कि दशकों की ‘ठंडी-बुझी राख’ सुगबुगा उठी है। ऐसी सुगबुगाहट जिसके धधकरने से भ्रष्ट व्यवस्था खाक हो उठेगी और अंततः राजा का नहीं जनता के अभिषेक का समय आ पहुंचेगा। ऐसा लेकिन हुआ नहीं। आंदोलन उल्टा खाक में मिल गया। अभिषेक एक बार फिर राजा का ही हुआ। एक ऐसे राजा का जो खुद को आम आदमी कहता है, खुद के संगठन को आम आदमी की पार्टी का नाम देता है लेकिन आचरण के तल पर ठीक वैसा ही है जैसा पिचहत्तर बरस पूर्व मिली आजादी के पश्चात् मिले अन्य ‘राजाओं’ का रहा है। अन्ना हजारे को वापस उनके गांव रालेगांव सिद्धि भेज केजरीवाल एंड टीम ने आम आदमी पार्टी का गठन कर अपने उन तमाम घोषित आदर्शों संग समझौता दर समझौता कर खुद को उन्हीं की श्रेणी में डालने का काम किया जिनके खिलाफ अलख जगाने का पाखंड उन्होंने सफलतापूर्वक अन्ना आंदोलन के नाम पर किया था। मैं इस बात को स्वीकारता हूं कि भाजपा और कांग्रेस सरकारों की बनिस्पत कुछ क्षेत्रों में दिल्ली की आम आदमी सरकार ने बेहतर प्रदर्शन बीते आठ सालों में किया है। सरकारी शिक्षण संस्थाओं की दशा और दिशा में बड़ा सुधार इन आठ सालों के भीतर होते हम सभी ने देखा है। सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार भी काफी कम होने की बात दिल्ली वासी स्वीकारते हैं। आम आदमी को सीधे प्रभावित करने वाले बिजली, पानी और रोटी जैसे बुनियादी मुद्दों को दुरस्त करने की तरफ भी केजरीवाल सरकार ने ठोस कदम उठाने का प्रयास किया है। जो सच है उसे स्वीकारने में मुझे कोई संकोच नहीं। लेकिन यह सब सतही सुधार हैं। सतही प्रयास हैं। तेलंगाना में चन्द्र शेखर राव की सरकार ने भी बहुत कुछ ऐसा कर दिखाया है जिससे आमजन को झूठी ही सही, क्षणिक ही सही, लेकिन राहत तो पहुंची है। प्रश्न लेकिन यह उठता है कि क्या ऐसी सतही राहतों के लिए केजरीवाल ने राजनीति का मार्ग पकड़ा था? यदि ऐसा है तो उन्हें बधाई कि वे भारतीय राजनीति परिदृश्य में पहले से ही मौजूद उस ‘भीड़’ का हिस्सा बन पाने में काफी हद तक सफल हो चुके हैं जिसके खिलाफ अन्ना आंदोलन जन्मा था। अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ‘आप’ अपने गठन के तुरंत बाद ही भारी विचलन का शिकार होती हर उसने देखी है, महसूसी है जो भारतीय राजनीति में एक घूमकेतू की भांति उदित हुए इस राजनीतिक संगठन से कुछ उम्मीदें पाले बैठा था। मेरी उम्मीदों पर केजरीवाल उस वक्त खरे उतरे थे जब उन्होंने कांग्रेस के दबावों आगे झुकने के बजाए अपनी पहली सरकार की ‘बलि देना उचित समझा था। सत्ता में आने बाद, सरकार बन जाने बाद, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने बाद, उठाया गया यह कदम किसी भी दृष्टि से एक बड़ा और शहीदाना कदम था। शायद तब तक केजरीवाल के भीतर की आग सही अर्थो में एक आंदोलनकारी की भीतर उठने वाली आग समान रही होगी। बहुत संभव है कि उनके भीतर का आंदोलनकारी तब तक मरा नहीं होगा। मैं ‘आप’ के पहले और दूसरे चुनाव के दौरान अरविंद एंड टीम के साथ सक्रिय था। पहला चुनाव बहुत सीमित संसाधनों के साथ लड़ा गया था। केजरीवाल ने किसी भी समर्थक से नकदी के रूप में बड़ा चंदा लेने से स्पष्ट इंकार तब कर दिया था। देश और विदेश से मिले छोटे-छोटे चंदों के दम पर चुनाव लड़ा गया था। दूसरे चुनाव के दौरान लेकिन हालात बदल चुके थे। तब तक भारतीय राजनीति के दलदल में आम आदमी पार्टी के धंसने की शुरुआत हो चली थी। चूंकि मेरा इस संगठन के शीर्ष नेतृत्व संग करीबियत का रिश्ता रहा है इस चलते मुझे बहुत-सी ऐसी जानकारियां मिलने लगी थीं कि अब हर प्रकार के श्रोत से, हर प्रकार के फॉर्म में चंदा लिया जाने लगा है। जब 2017 में पार्टी द्वारा दिल्ली से चुने जाने वाले तीन राज्यसभा प्रत्याशियों की सूची जारी की तब मुझे पूरा यंकी हो गया कि केजरीवाल ‘खांटी वाले’ राजनेता में तब्दील हो चुके हैं। संजय सिंह को छोड़ बाकी दो चेहरे जो पार्टी ने राज्यसभा भेजे, उन तमाम को स्तब्ध कर गए जिन्हें अन्ना के इन चेलों से बेहतर और सार्थक की उम्मीद थी। संजय सिंह भी शायद राज्यसभा नहीं भेजे जाते यदि पार्टी विधायकों की बगावत का खतरा न होता। राज्यसभा सांसदों का चयन भी यदि हम एक बार के लिए दरकिनार कर दें, ‘आप’ में, उसके शीर्ष नेतृत्व की कार्यशैली में आए विचलन को अनदेखा नहीं किया जा सकता। जब पूरे देश में एनआरसी और सीएए को लेकर अल्पसंख्यक समाज  विरोध-प्रदर्शन कर रहा था, केजरीवाल और उनकी पार्टी ने इन दोनों मुद्दों पर चुप्पी साधे रखी ताकि बहुसंख्यक हिंदू वोटर की नाराजगी से बचा जा सके। यह सिद्धांतों की राजनीति कतई नहीं कही जा सकती। केजरीवाल लेकिन धर्म और राजनीति के रिश्तों की अहमियत को समझ इस हद तक समझौता और मौका परस्त राजनीतिज्ञ बन चुके हैं कि उन्होंने इन बेहद अहम मुद्दों पर खामोश रहने का मार्ग चुना। यह कमजोर हड्डी की राजनीति कहलाती है। केजरीवाल इस प्रकार की राजनीति के सहारे प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए हैं। बहुत संभव है कि उनका यह सपना सच भी हो जाए। नायकवाद की अभ्यस्त जनता का मोह जब मोदी से भंग होगा तब उसे किसी अन्य नायक की तलाश होगी ताकि उसकी पूजा करने की परंपरा बनी रहे। केजरीवाल को इसी दिन का इंतजार है। भारतीय मुद्रा में लक्ष्मी और गणेश भगवान की फोटो लगाने का उनका सुझाव इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है। रही बात अन्ना आंदोलन के दौरान उनके द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई गई मुहिम की अथवा राजनीति में स्वच्छता और नैतिकता की, तो समझ लीजिए वह सब एक छलावा था जिसके सहारे केजरीवाल ने खुद को स्थापित करने का काम कर डाला है। अब वे केवल और केवल खुद को और अपनी पार्टी को मजबूत बनाने का काम कर रहे हैं, करते रहेंगे। और यह जो मजबूती उन्हें मिली है, आगे और मिलेगी सिस्टम में बदलाव लाकर नहीं, बल्कि सिस्टम के साथ तालमेल, सुरताल बैठा कर। अटल जी का कहा इसलिए मुझे केजरीवाल के बयानों को पढ़ याद हो आया। अन्ना आंदोलन से पैदा हुआ तिलिस्म टूट चुका है। जिन्हें समझ आ रहा है वह हताश-निराश हैं, बाकी जिन्हें न तो समझ आता है, न समझने की कोई चाह है, उनके लिए सब कुछ ठीक है। ऑल इज वेल, इंडिया इज शायनिंग।

You may also like

MERA DDDD DDD DD
bacan4d toto
bacan4d
bacan4d
bacan4d toto
bacan4d toto
slot gacor
Toto Slot
Bacan4d Login
bacan4drtp
bacan4drtp
situs bacan4d
Bacan4d
slot dana
slot bacan4d
bacan4d togel
bacan4d game
bacan4d login
bacan4d login
bacantoto 4d
slot gacor
slot toto
bacan4d
bacansport
bacansport
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
slot77 gacor
JAVHD
Bacan4d Login
Bacan4d toto
Bacan4d
Bacansports
bacansports
Slot Dana
situs toto
bacansports
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
slot gacor
bacan4d
bacan4d
bacansport
bacansport
gacor slot
slot gacor777
slot gacor bacan4d
toto gacor
bacan4d
toto slot
bacansports login
Slot Gacor
slot gacor
slot maxwin
toto togel
slot dana
toto gacor
slot gacor
slot777
slot dana
slot gacor
bacansports
bacansport
slot gacor
100 pasaran slot
bacansport
bacansport
bawan4d
bacansports
bacansport
slot gacor
slot gacor
toto slot
bacan4d slot toto casino slot slot gacor