नव वर्ष 2023 अपने साथ नव उत्साह तो नए आशंकाएं भी लेकर आ रहा है। उत्साह उन उम्मीदों के चलते हैं जिनका सहारा न हो तो चौतरफा व्याप्त अंधकार हमारे हौसलों को पस्त करने में सफल हो जाएं। कठिन समय में उम्मीदें ही हमारे भीतर साहस को जीवित रखने और संघर्ष करते रहने के लिए प्रेरणा का काम करती हैं। तो कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के जरिए सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं। कवि ने लिखा है-
‘खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पांव को/कुहरे में लिपटे उस छोटे से गांव को/नए साल की शुभकामनाएं/जांते के गीतों को, बैलों की चाल को/करघे को, कोल्हू को, मछुओं के जाल को/नए साल की शुभकामनाएं। इस पकती रोटी को, बच्चे के शोर को/चौंके की गुनगुन को, चूल्हे की भोर को/नए साल की शुभकामनाएं/वीराने जंगल को, तारों को, रात को/ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को/नए साल की शुभकामनाएं/इस चलती आंधी में हर बिखरे बाल को/सिगरेट की लाशों पर फूलों के ख्याल को/नए बरस की शुभकामनाएं/कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को/हर नन्ही याद को, हर छोटी भूल को/नए बरस की शुभकामनाएं। उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे/उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे/नए साल की शुभकामनाएं।
नया साल वैश्विक स्तर पर भारी आर्थिक मंदी की आशंका लिए आ रहा है। विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका में इस मंदी के लक्षण नजर आने लगे हैं। इस मंदी का असर केवल अमेरिका तक ही सीमित नहीं रहेगा। यदि अपने देश पर इसके असर की बात करें तो अमेरिका में तेजी से बढ़ रही ब्याज दर के चलते अमेरिकी डॉलर भारतीय रुपए की बनिस्पत ज्यादा मजबूत होगा जिसका सीधा प्रभाव हमारे आयात पर पड़ेगा। बढ़ी कीमतों पर आयात भारतीय बाजार में मुद्रा स्फीर्ति को पैदा करेगा। रुपए की क्रय क्षमता में गिरावट और महंगाई के आसमान छूने की शुरुआत हो भी चुकी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के जारी रहने और उसके तेज होने की आशंका भी लिए 2023 आ रहा है। यदि इस युद्ध ने विकराल रूप लिया तो विश्व का कोई भी देश इसके प्रतिकूल प्रभावों से बच नहीं पाएगा। चीन में फिर से कोविड-19 के तेजी से महामारी में बदलने से भी नव वर्ष का आगमन सहमा- सहमा-सा है। 2022 भारत के लिए बगैर कोई उपलब्धि हासिल किए, यूं ही व्यर्थ-सा बीत गया वर्ष रहा। 2023 लेकिन राजनीतिक रूप से खासा महत्व लिए आ रहा है। इस वर्ष देश के नौ राज्यों में चुनाव होने हैं। ये चुनाव पक्ष एवं विपक्ष, दोनों के लिए अग्निपरीक्षा समान हैं जिनका सीधा असर 2024 के आम चुनाव में पड़ना तय है। 2022 सामाजिक और धार्मिक विद्वेष के नाम रहा। 2023 में यह ज्यादा गहराएगा, ऐसा मेरा मानना है। भाजपा हालांकि 2022 में भी राजनीतिक तौर पर मजबूत हो कर उभरी और प्रधानमंत्री की छवि, उनकी आम आदमी के मध्य लोकप्रियता बरकरार रही, साल के अंत में हिमाचल में मिली हार ने भाजपा के समक्ष ऐसे सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं जिनका जवाब केवल और केवल मोदी के चेहरे पर निर्भर हो तलाशना 2023 में भाजपा के लिए बड़े संकट का कारण बन सकता है। बतौर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के लिए 2022 कोई विशेष उपलब्धि का वर्ष नहीं रहा लेकिन राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और साल के अंत में हिमाचल का नतीजा कुछ हद तक पंजाब में मिली भारी हार के जख्मों पर मरहम लगाने में कामयाब रहा। अब 2023 कांग्रेस और भाजपा के लिए मुख्य रूप से और तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बीजू जनता दल और भारतीय राष्ट्र समिति सरीखे विपक्षी दलों के लिए बड़ी चुनौती लिए प्रकट हो चुका है। भाजपा और कांग्रेस इस पूरे साल चुनावी गतिविधियों में पूरी तरह उलझे रहेंगे। फरवरी- मार्च में त्रिपुरा, मेद्यालय और नागालैंड में विधानसभा चुनाव होने हैं। मई में कर्नाटक तो नवंबर-दिसंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में चुनाव होंगे जिनके नतीजे 2024 के आम चुनाव पर अपना बड़ा असर डालेंगे। 2022 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा, मणिपुर और गुजरात में भाजपा की जीत ने विपक्षी दल कांग्रेस की खस्ताहाल स्थिति और उसके तेजी से घटते जनाधार का आम आदमी पार्टी की तरफ खिसकने से भाजपा के सामने एक नई चुनौती ‘आप’ के बतौर सामने लाने का काम किया। दिल्ली नगर पालिका चुनाव में पूरी ताकत झोंकने के बावजूद भाजपा का राष्ट्रीय राजधानी के मतदाताओं को लुभा न पाना और केजरीवाल का जलवा बरकरार रहना भाजपा और कांग्रेस की चिंताओं में भारी इजाफा कर चुका है। पंजाब में ‘आप’ की सरकार का गठन, गोवा और गुजरात विधानसभाओं में उसकी एन्ट्री, 2023 में ‘आप’ के राष्ट्रीय दल बतौर उभरने का स्पष्ट संकेत है। जिन नौ राज्यों में आते साल चुनाव होने हैं, वहां से कुल 116 लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं। लोकसभा सदस्यों की संख्या केंद्र में भाजपा की सत्ता का आधार है। ऐसे में इन नौ राज्यों की विधानसभाओं के नतीजे सभी राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। भाजपा का सबसे बड़ा संकट कर्नाटक है जहां अगले चार माह में चुनाव होने हैं। 224 विधानसभा सीटों वाले राज्य में 2018 के चुनाव नतीजे किसी भी दल के लिए स्पष्ट जनादेश लेकर नहीं आए थे। भाजपा तब 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बतौर उभरी लेकिन सरकार बनाने में विफल रही थी। कांग्रेस ने तब 80 सीटों पर विजय हासिल कर 37 सीटें जीतने वाली जनता दल (सेक्युलर) संग गठबंधन बना सत्ता भाजपा के हाथों से छीन ली थी। मई, 2019 में दलबदल के जरिए भाजपा ने यहां सरकार तो दोबारा बना ली लेकिन इस जोड़-तोड़ की सरकार से जनता संतुष्ट नजर नहीं आ रही है। जनाक्रोश को थामने की नियत से जुलाई, 2021 में भाजपा ने बी.एस. येदियुरप्पा को हटा बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया जरूर लेकिन इससे उसे कुछ विशेष लाभ मिलता दिखाई नहीं दे रहा है। यहां कुल 28 लोकसभा सीट हैं जिनमें से 2019 में 25 भाजपा तो दो भाजपा समर्थित घटक दलों के नाम रही थीं। कांग्रेस मात्र एक सीट जीत पाई थी। भाजपा के सामने इस शानदार प्रदर्शन को दोहरा पाना सबसे बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को पार करने के लिए उसे पहले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करनी होगी। कर्नाटक के साथ-साथ भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला 2023 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी होने जा रहा है। इनमें से दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। मध्य प्रदेश में 2018 का जनादेश कांग्रेस के नाम रहा था लेकिन दलबदल के जरिए भाजपा ने वहां भी 2020 में अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी। छत्तीसगढ़ से लोकसभा के 11 सदस्य हैं। 2019 में यहां से भाजपा ने 9 सीटें जीती और सत्तारूढ़ कांग्रेस ने मात्र 21। मध्य प्रदेश से 29 सांसद लोकसभा के लिए चुने जाते हैं। 2019 में यहां भी सरकार कांग्रेस की थी लेकिन 29 में से 28 सीटें भाजपा जीत ले गई। कांग्रेस के नाम केवल 1 सीट रही। अब इन दोनों की राज्यों में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती 2019 की जीत को दोहराने की है जिसके लिए 2023 के विधानसभा चुनावों का परिणाम हवा का रुख बताने वाला साबित होगा। तेलंगाना में भाजपा पहले से ही पूरा जोर लगा रही है। उसका उद्देश्य दक्षिण भारत में अपनी पैठ को मजबूत करना है। 2023 तृणमूल कांग्रेस के लिए भी चुनौती से भरा वर्ष साबित होगा। ममता बनर्जी का जादू अब उतार की तरफ है। 2024 में विपक्षी दलों के नेतृत्व का सपना देख रहीं ममता का पूरा प्रयास त्रिपुरा और मेघालय में तृणमूल की सरकार बनाने का होगा। यदि वे ऐसा कर पाने में सफल होती हैं तो शायद वे कांग्रेस से इतर एक गठबंधन बना भाजपा को 2024 में चुनौती देने का अपना सपना पूरा कर पाएं। हालांकि इससे आसार कमतर हो चले हैं। पश्चिम बंगाल गहरे वित्तीय संकट का सामना कर रहा है और तृणमूल के कई बड़े चेहरों पर भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर केंद्रीय जांच एजेंसियों का दबाव बढ़ता जा रहा है। 2022 के अंतिम कुछ दिनों में ममता के भाजपा विशेषकर मोदी विरोधी सुर में भारी तब्दीली देखने को मिली है। इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि अब ममता का फोकस पहले अपने घर को दुरुस्त करने का बन चुका है। इस दृष्टि से देखा जाए तो 2023 में एक बार फिर से चुनावी घमासान भाजपा और कांग्रेस के आस-पास ही सिमटा रहेगा। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का इस कारण महत्व बढ़ जाता है। यह यात्रा उन सभी के लिए कुछ हद तक आश्वस्तकारी साबित हो रही है जिन्हें दिनोंदिन गहरा रहे सामाजिक वैमनस्य ने चिंतित करने, आशंकित करने और गहरी निराशा के गर्त में डालने का काम बीते कुछ समय से कर दिखाया है। ऐसे में बहुत से कांग्रेस विरोधी भी शामिल हैं जो देश की वर्तमान अधोदशा के लिए कांग्रेस को मूल रूप से दोषी करार देते आए हैं। अब इनकी नजरों में राहुल गांधी की छवि बदलने लगी है। कांग्रेस के लिए लेकिन इतना भर काफी नहीं है। गुजरात में उसका बेहद शर्मनाक प्रदर्शन उसकी सांगठनिक क्षमताओं की कलई खोल चुका हैं 2023 में उसके सामने सबसे बड़ा संकट राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सत्ता बचाने का है। इन दोनों की राज्यों में पार्टी संगठन भारी अंतर्कलह का शिकार है। खासकर राजस्थान में हालात बेहद खराब हैं।
राजनीति से इतर लेकिन राजनीतिक कारणों के चलते समाज में धर्म और जाति के नाम पर 2022 में वैमनस्यता अपने चरम पर रही। इस वैमनस्यता के पीछे चूंकि राजनीति मुख्य कारण हैं इसलिए 2023 में इसका विस्तार होना तय है। सोशल मीडिया समेत संचार के सभी साधनों को इस ‘पुनीत’ कार्य के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। ज्ञानव्यापि मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर का मसला 2023 में उछाल मारेगा ऐसी मेरी आशंका है। फिल्मी अभिनेत्रियों के कपड़ों का रंग भी 2023 में फोकस पर रहेगा ही रहेगा। संविधान प्रदत्त धर्म को मानने न मानने का अधिकार और संकुचित होगा, हर प्रेम विवाह अब धर्म के ठेकेदारों की ‘पारखी’ निगाहों से परखा जाएगा और न्यायपालिका का टकराव कार्यपालिका संग 2023 में ज्यादा तीव्र होगा। प्राकृतिक आपदाओं का संकट ज्यादा गहराएगा। ऐसी आशंका इसलिए क्यांकि मनुष्य का लालच उसे इस कदर अंधा बना चुका है कि वह सब कुछ जानते-समझते हुए भी लगातार अपने विनाश की तरफ कदम बढ़ाता जा रहा है। विकास के नाम पर वनों का अंधाधुंध कटान, खजिन संपदा का दोहन, एटमी एनर्जी के नाम पर एटम बमों का खतरा, न्यूलियर एनर्जी के नाम पर न्यूक्लर बम का खतरा, स्पेस रिसर्च के नाम पर प्रकृति प्रदत्त सुरक्षा कवचां को कमजोर होना, सभी हमें स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि हमारा, हमारी आने वाली संतति का भविष्य सुखद नहीं है।
कुल मिलाकर 2023 आशाओं से कहीं अधिक आकांक्षाओं को अपने साथ लिए आ रहा है। फिर भी हर आने वाले का स्वागत करना हमारी संस्कृति का, हमारे दर्शन का हिस्सा है। इसलिए 2023 का स्वागत है, इस उम्मीद के साथ कि यह वर्ष मानवता का वर्ष हो। वैश्विक स्तर पर 2023 ऐसा वर्ष हो जिसका सीधा वास्ता मनुष्य के मनुष्य बने रहने की समझ को विकसित करने से जुड़ता हो।