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Editorial

असीमित संभावनाओं-आशंकाओं का वर्ष 2024

मेरी बात

2024 कोई सामान्य वर्ष नहीं है। यह वर्ष नाना प्रकार की संभावनाओं और आशंकाओं का वर्ष है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस वर्ष विश्व के कई महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक देशों में चुनाव होने तय हैं। इन देशों में भारत, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, इंडोनेशिया और ताइवान शामिल हैं। हमारे पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी इस वर्ष की शुरुआत में ही चुनाव होने जा रहे हैं। अमेरिकी चुनावों के नतीजे न केवल उसके लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए खास मायने रखते हैं। वर्तमान समय में अमेरिकी राजनीति दो विपरित धुव्रों के बीच पेन्डुलम की भांति झूल रही है। एक तरफ अराजक दक्षिणपंथी नेता डोनाल्ड ट्रंप हैं तो दूसरी तरफ वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन जिनका बतौर राष्ट्रध्यक्ष कार्यकाल खास उत्साहजनक नहीं रहा है। टंªप को चुनाव लड़ने से रोकने के कानूनी प्रयास भी अमेरिकी राजनीति में भारी धुव्रीकरण पैदा कर चुके हैं। राष्ट्रपति जो बाइडन का कार्यकाल हालांकि टंªप के कार्यकाल की बनिस्पत किसी बड़े विवाद का कारण नहीं बना, बाइडन लेकिन आम अमेरिकियों की मूलभूत समस्याओं का समाधान निकाल पाने में खास सफल नहीं हो पाए। खराब स्वास्थ सेवाओं और सामाजिक, असमानता जैसे मुद्दों से अमेरिकी समाज लगातार दो-चार हो रहा है। बाइडन ऐसे संवेदनशील मुद्दों के मकड़जाल में तो फंसे ही रहे हैं, विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के राष्ट्रपति की छवि को यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास युद्ध ने भी नुकसान पहुंचाने का काम किया है। अमेरिका और उसके साथ चलने वाले पश्चिमी देशों के हितों को बीते 3 वर्षों से लगातार आघात पहुंच रहा है। 2024 इस दृष्टि से खासा महत्वपूर्ण वर्ष होने जा रहा है। यूक्रेन का खुलकर समर्थन कर रहे नाटो से जुड़े देशों का अनुमान था कि उनके द्वारा भेजी जा रही सैन्य मदद और यूक्रेन सेना को दी गई युद्ध ट्रेनिंग के नतीजे सुखद रहेंगे और रूस द्वारा कब्जाए गए अपने इलाकों को यूक्रेन वापस कब्जा लेगा। ऐसा लेकिन हुआ नहीं। अमेरिका यूक्रेन के समर्थक देशों की अगुवाई कर रहा है। उसने अरबों डॉलर इस युद्ध में झौंके लेकिन नतीजे उसकी सोच अनुसार नहीं रहे हैं। अब इस युद्ध को लेकर बाइडन की नीति का विरोध होने लगा है और यूक्रेन को 60 अरब डॉलर की सैन्य सहायता के उनके प्रस्ताव को अमेरिकी संसद ने रोक दिया है। यूरोपीय संघ भीतर भी इस युद्ध चलते मतभेद उभरने लगे हैं। इस संघ के कुछ देशों द्वारा यूक्रेन को 50 अरब यूरो बतौर सहायता दिए जाने का प्रस्ताव हंगरी ने अपनी आपत्ति दर्ज करा रोक दिया है। इस बीच रूस लगातार अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने में सफल होता नजर आ रहा है उसने अपने वार्षिक बजट का एक तिहाई हिस्सा रक्षा के लिए समर्पित कर यह स्पष्ट करने का काम किया है कि निकट भविष्य में इस युद्ध को समाप्त होना नहीं है। अमेरिका और उसके समर्थक देशों के लिए यह खासी निराशा का कारण बन चुका है। मार्च 2023 में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने पुतिन को युद्ध अपराधों के लिए दोषी करार दे उनकी गिरफ्तारी का आदेश जारी किया था। अमेरिका और यूरोपीय संघ को तब लगा था कि अब पुतिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर अछूत बन जाएंगे, ऐसा भी लेकिन हुआ नहीं। राष्ट्रपति पुतिन अंतरराष्ट्रीय अपराधी घोषित किए जाने के बाद भी चीन, सऊदी अरब और यूएई की यात्रा पर गए और उन्होंने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी वर्चुअली अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इजराइल-गाजा युद्ध भी अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के लिए बड़ी समस्या बन चुका है। अरब देश सवाल कर रहे हैं कि यूक्रेन में नागरिकों की हत्या के लिए रूस की निंदा करने वाले देश गाजा में इजराइल द्वारा किए जा रहे युद्ध अपराध पर खामोश क्यों हैं? इस सबके बीच ईरान का परमाणु कार्यक्रम एक बड़ी आशंका बन उभरा है। रूस संग उसकी गहराती दोस्ती 2024 में कुछ बड़ा गुल खिलाए जाने की तरफ इशारा कर रही है। उत्तर कोरिया भी रूस के नजदीक हो चला है। अफ्रीकी महाद्वीप में भी राजनीति तेजी से बदल रही है। 2023 में कई अफ्रीकी राष्ट्रों में यूरोप के प्रति असंतोष चरम पर पहुंचा जो 2024 में गति पकड़ सकता है। यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका भी पश्चिमी देशों पर अपनी निर्भरता को कम करता नजर आने लगा है। रूस और चीन के साथ उसके संयुक्त सैन्य अभ्यास इसकी पुष्टि कर रहे हैं। ताइवान और इंडोनेशिया में भी चुनावों के नतीजे इन देशों में लोकतंत्र का भविष्य तय करने वाले साबित होंगे।

अपने देश की बात करूं तो 2024 में ही हमारे यहां भी आम चुनाव होना तय है। इस चुनाव का नतीजा हमारे लोकतंत्र का भविष्य तय करने वाला साबित हो सकता हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक बड़े वर्ग को आशंका है कि मोदी यदि तीसरी बार प्रधानमंत्री बन पाने में सफल रहे तो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगी। इस वर्ग की आशंका के पीछे बीते पौने दस वर्षों के दौरान लोकतंत्र का स्तंभ कहलाए जाने वाले न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायकी और प्रेस की कार्यशैली में आई गंभीर गिरावट का होना है। भाजपा विरोधी राजनीतिक दल एक सुर में आलाप रहे हैं कि केंद्र सरकार अपनी जांच एजेंसियों-सीबीआई, ईडी और इंकमटैक्स, के जरिए प्रतिरोध की हर आवाज को कुचलने पर आमदा है। एक संघीय व्यवस्था वाले देश में केंद्र और राज्यों के मध्य बढ़ रहा तनाव भी निश्चित ही स्वास्थ लोकतंत्र का परिचायक नहीं है। केंद्र द्वारा नामित राज्यपालों का विभिन्न विपक्ष शासित राज्यों की सरकारों संग टकराव इस हद तक जा पहुंचा है कि उच्चतम न्यायालय को बार-बार हस्तक्षेप कर राज्यपालों को सीमा भीतर रहकर काम करने की सलाह देनी पड़ रही है। कई राज्य सरकारों ने सीबीआई के अपने राज्य में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी है। तमिलनाडु में, जहां ईडी बीते कुछ वर्षों के दौरान खासी सक्रिय रही है, हालात इस स्तर तक जा पहुंचे हैं कि ईडी के राज्य में तैनात सहायक निदेशक को तमिलनाडु पुलिस ने रिश्वतखोरी के एक मामले में रंगे हाथ पकड़ जेल भेज दिया है। संसद के शीतकालीन सत्र में लगभग समूचे विपक्षी सांसदो को निलंबित किया जाना सत्तारूढ़ दल के अहंकार और लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति उसकी असहिष्णु प्रवृत्ति को सामने लाता है। यदि प्रधानमंत्री मोदी 2024 के आम चुनाव जीत तीसरी बार केंद्र सरकार का गठन कर पाने में सफल रहते हैं तो देश में लोकतंत्र के भविष्य को लेकर पहले से ही आशंकित वर्ग की चिंताओं में इजाफा होना तय है। ऐसों को भय है कि अयोध्या स्थित राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद पूरे देश में धर्म आधारित धुव्रीकरण के प्रयास तेज होंगे जिसका सीधा प्रभाव सामाजिक सौहार्द पर पड़ेगा। रही बात विपक्षी दलों की तो वे केंद्र सरकार पर अलोकतांत्रिक और तानाशाह होने के आरोप तो लगातार लगा रहे हैं, संसद के भीतर और बाहर प्रदर्शन इत्यादि भी कर रहे हैं, लेकिन संगठित हो भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प तैयार कर पाने में सफल होते हाल-फिलहाल तक नजर नहीं आ पाए हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की करिश्माई छवि, भाजपा की सांगठनिक क्षमता और उसकी चुनाव मैनेजमेंट रणनीति के आगे पस्त विपक्ष 2024 के आम चुनाव, जो अब मात्र तीन माह दूर है, तक खुद को एकजुट कर भाजपा को कड़ी चुनौती देने में सक्षम होता नहीं प्रतीत होता है। वर्तमान हालातों में भाजपा तीसरी बार केंद्र की सत्ता में काबिज होती दिखाई दे रही है। यदि­ ऐसा हुआ तो निश्चित ही पूरे आत्मविश्वास के साथ भाजपा सीएए, एनआरसी, कृषि कानूनों में व्यापक संशोधन, समान नागरिक आचार संहिता समेत उन सभी मुद्दों को प्रभावी तौर पर लागू करने की दिशा में आगे बढ़ेगी जिन मुद्दों को लेकर आमजन का एक वर्ग और विपक्षी दल खिलाफत करते रहे हैं। यदि चुनाव नतीजे भाजपा के मनोकूल नहीं आते हैं और इंडिया गठबंधन सरकार बना पाने में सफल होता है तो राजनीतिक अस्थिरता के दौर की शुरुआत 2024 में होनी तय है। एक बार फिर से 1996-1998 का वक्त वापस लौट सकता है जब किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत न होने का खामियाजा बार-बार अल्पकाल की सरकारों का गठन और मध्यावधि चुनावों को कराए जाने बतौर देश ने भुगता था।

2024 में बहुत कुछ ऐसा होगा जो भविष्य में, जब यह वर्ष इतिहास बन चुका होगा, इसे याद रखने के लिए, इसकी अलग-अलग कारणों से मीमांसा किए जाने का कारण बनेगा। यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है कि 2024 लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवीय सरोकारों की रक्षा करने वाला वर्ष साबित होने जा रहा है या फिर विश्व भर में कट्टर राष्ट्रवाद के नाम पर तानाशाही और मानवीयता के क्षरण के नए कीर्तिमान स्थापित करने वाला वर्ष। जैसा भी होगा, यह तय है कि यह एक सामान्य वर्ष नहीं होगा।

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