जैन हवाला डायरी कांड यूं तो अब पूरी जांच प्रक्रिया और न्यायिक प्रणाली से गुजर इतिहास के पन्नों में दफन हो चुका है, इस कांड का सच न तो इस जांच प्रक्रिया और न ही न्यायिक फैसले से सामने आ पाया है। यह एक ऐसा प्रकरण है जो ‘अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा’ की कहावत को चरितार्थ करता है। 25 मार्च 1991 में दिल्ली पुलिस ने कश्मीरी आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़े एक व्यक्ति अशफाक हुसैन को गिरफ्तार किया था। इस शख्स ने पूछताछ के दौरान यह राज उगला कि इस संगठन को हवाला के जरिए पैसा उपलब्ध कराया जाता है। तब केंद्र में चंद्रशेखर की कार्यवाहक सरकार थी जिसने यह मामला सीबीआई को सौंप दिया था। सीबीआई ने इस मामले में हवाला कारोबारी जे.के. जैन के यहां छापेमारी की तो तलाशी के दौरान उसे एक डायरी मिली जिसमें देश के कई नामी- गिरामी राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों को करोड़ों रुपयों के भुगतान का विवरण दर्ज था। यहीं से इस मामले को रफा-दफा किए जाने की कहानी शुरू हो गई। मामला शायद कभी प्रकाश में आता भी नहीं यदि टीवी पत्रकार विनीत नारायण जो नब्बे के दशक में एक चर्चित वीडियो पत्रिका ‘कालचक्र’ के निर्माता-सम्पादक थे, इस पूरे प्रकरण की तह में जाने का प्रयास नहीं करते। विनीत नारायण के अलावा हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ और अंग्रेजी पत्रिका ‘मेन स्ट्रीट’ ने भी इस कांड पर लगातार समाचार प्रकाशित उन दिनों किए थे। 12 नवम्बर, 1994 में समाजवादी नेता मधुलियमे का एक आलेख ‘मेन स्ट्रीट’ पत्रिका ने प्रकाशित किया था जिसने भारतीय राजनीति में भारी बवंडर पैदा करने का काम किया। इस आलेख में मधुलियमे ने 55 राजनेताओं का नाम और उन्हें जैन डायरी के अनुसार दी गई धनराशि का पूरा ब्यौरा प्रकाशित कर डाला था।
क्र.सं. राजनेता का नाम राजनीतिक दल राशि (लाखों में)1. कल्पनाथ राय कांग्रेस (ई) 71.00
2. बलराम जाखड़ केंद्रीय मंत्री 83.24
3. पी. शिवशंकर कांग्रेस (ई) 26.94
4. सी.के. जाफर शरीफ कांग्रेस (इं) 15.00
5. एनडी तिवारी कांग्रेस (ई) 25.88
6. अजित पांजा कांग्रेस (ई) 5.00
7. बूटा सिंह केंद्रीय मंत्री 7.50
8. एल.पी. शाही कांग्रेस (ई) 5.50
9. ललित सूरी उद्यमी (कांग्रेस ई के लिए) 1050.00
10. अरुण नेहरू पूर्व मंत्री 35.00
11. आरिफ मोहम्मद खान पूर्व मंत्री 749.86
12. वी.सी. शुक्ल केंद्रीय मंत्री 80.85
13. नटवर सिंह कांग्रेस (ई) 23.00
14. चिमनभाई पटेल पूर्व मुख्यमंत्री, गुजरात 200.00
15. माधव राव सिंधिया केंद्रीय मंत्री 100.00
16. कमलनाथ केंद्रीय मंत्री 22.00
17. यशवंत सिन्हा भाजपा नेता 21.18
18. देवी लाल पूर्व उप-प्रधानमंत्री 50.00
19. मदनलाल खुराना भाजपा, पूर्व मुख्यमंत्री दिल्ली 3.00
20. एल.के. आडवाणी …. 60.00
21. कृष्ण शाही पूर्व केंद्रीय मंत्री 2.00
22. चंद्रजीत यादव समता पार्टी 3.00
23. शरद यादव जनता दल 5.00
24. आर.के. धवन केंद्रीय मंत्री 50.00
25. वी.के. मल्होत्रा भाजपा 1.00
26. ताजदार बाबर कांग्रेस (ई) 1.00
27. मोती लाल वोरा कांग्रेस (ई) 11.00
28. अर्जुन सिंह कांग्रेस (ई) 10.50
29. एस.सी. शुक्ल कांग्रेस (ई) (म.प्र.) 5.00
30. कैलाश जोशी भाजपा 10.00
31. पुरुषोत्तम कौशिक जनता पार्टी (म.प्र.) 1.00
32. अरविंद नेताम केंद्रीय मंत्री 0.00
33. जगदीप धनकड़ पूर्व मंत्री 5.25
34. रवि आर्य 0.25
35. प्रेम प्रकाश पाण्डेय भाजपा, भिलाई 0.25
36. सत्यन चंद गुडिय़ा कांग्रेस (ई) (उ.प्र.) 2.00
37. रणजीत सिंह देवीलाल के बेटे 15.00
38. प्रदीप सिंह देवीलाल का पोता 14.63
39. एस.आर. बोम्मई जनता दल 52.00
40. एजाज इल्मी 3.00
41. अशोक कुमार सेन पूर्व मंत्री 20.00
42. कल्याण सिंह कालवी पूर्व केंद्रीय मंत्री, सजपा 95.00
43. बी.डी. ढकने शिवसेना 10.00
44. राजीव गांधी पूर्व प्रधानमंत्री 200.00
45. चांद राम कांग्रेस (ई) 0.60
46. हरमोहन धवन सजपा 110.00
47. प्रणब मुखर्जी केंद्रीय मंत्री 10.00
48. ए.आर. अंतुले केंद्रीय मंत्री 10.00
49. दिनेश सिंह कांग्रेस (ई) 10.00
50. आर. गुंडू राव कांग्रेस (ई) 15.00
51. एम.डी. बैरागी कांग्रेस (ई) 2.00
52. एम.जे. अकबर कांग्रेस (ई) 5.00
53. जगन्नाथ पहाडिय़ा कांग्रेस (ई) 5.00
54. चंदूलाल चंद्राकर कांग्रेस (ई) 5.00
55. राजेश पायलट केंद्रीय मंत्री 10.00
विनीत नारायण ने अपनी खोजी पत्रकारिता के जरिए इस हवाला कांड के सच को सामने लाने के लिए कड़ी मेहनत कर -‘कालचक्र’ का वीडियो तैयार किया था जिसे सेंसर बोर्ड ने जारी नहीं होने दिया। विनीत नारायण ने तब इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने का फैसला लिया था। 4 अक्टूबर 1993 में यह याचिका दायर की गई थी। बकौल नारायण ‘एक जागरूक नागरिक व पत्रकार के रूप में मेरे लिए जैन- भ्रष्टाचार-आतंकवाद-हवाला घोटाले की पोल खोलना ही पर्याप्त नहीं था। इस मामले को देश की शीर्ष अदालत में ले जाना मैंने अपना नैतिक कर्तव्य समझा। उद्देश्य यह स्थापित करना था कि कानून से ऊपर कोई नहीं है-‘वह चाहे जितना शक्तिशाली और चाहे जितना बड़ा हो। एक तरफ हजारों वोटर छोटे अपराधों के लिए जेलों में सड़ते रहते हैं। पेट की आग बुझाने के लिए रोटी की चोरी करने वाली एक बेवा को पुलिस डंडे मार-मारकर अधमरा कर देती है। दूसरी ओर हुक्मरान सैकड़ों करोड़ के घोटाले करते हैं। आतंकवादियों को पनपाते हैं। देशद्रोही ताकतों के साथ मिलकर हुकूमत करते हैं।’
उच्चतम न्यायालय में सुनवाई अभी चल ही रही थी कि मीडिया के दबाव में आए कई राजनेताओं ने जैन से पैसा लिए जाने की बात सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कर मामले को और पेचीदा बना डाला। उच्चतम न्यायालय में यह मामला कानूनी पेचीदगियों में लंबे समय तक फंसा रहा था। विनीत नारायण के अनुसार तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एम. वेंकटचलैया उनकी याचिका की विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा करने का लगातार प्रयास करते रहे थे। अंतत: दिसम्बर 1993 में उन्होंने इस याचिका पर सीबीआई को नोटिस जारी करा था। इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान 16 जनवरी, 1996 को उच्चतम न्यायालय में भारत के महान्यायवादी ने यह कह सबको चौंका दिया था कि सीबीआई इस मामले में सभी राजनेताओं पर आरोप पत्र दाखिल करने जा रही है। राव सरकार के इस निर्णय ने सत्तारूढ़ कांग्रेस समेत लगभग सभी राजनीतिक दलों को भारी संकट में डालने का काम कर दिखाया था। भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सार्वजनिक जीवन में नैतिकता की बात करते हुए लोकसभा की सदस्यता से तब त्यागपत्र दे डाला था।
सीबीआई के आरोप पत्र में आडवाणी के साथ-साथ वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अर्जुन सिंह का नाम भी शामिल था। नरसिम्हा राव ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यह कदम उठा भ्रष्टाचार के खिलाफ एक योद्धा बतौर अपनी छवि स्थापित करने का प्रयास किया था जो असफल रहा। तात्कालिक तौर पर भले ही भारतीय राजनीति के कई सितारों को इस जैन डायरी कांड चलते भारी शमिंज़्दगी का शिकार होना पड़ा, अंतत: ऐसे सभी राजनेता न्यायालय से राहत पा बरी हो गए थे। 18 दिसम्बर, 1997 को उच्चतम न्यायालय ने विनीत नारायण की याचिका पर अपना फैसला सुनाया था। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा के इस फैसले को ऐतिहासिक निर्णय करार दिया जाता है क्योंकि इस निर्णय के जरिए सीबीआई को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने और निष्पक्ष तरीके से जांच करने के लिए कई निर्देश दिए गए थे। उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय सतर्कता आयोग को सीबीआई के कार्यों पर नजर रखने के भी अधिकार अपने इस निर्णय के जरिए दिए थे। सीबीआई निदेशक के कार्यकाल को न्यूनतम दो वर्ष का किए जाने का आदेश भी न्यायालय ने दिया था ताकि निदेशक को राजनीतिक दबाव से मुक्त रखा जा सके। उच्चतम न्यायालय ने लेकिन अपने इस ‘ऐतिहासिक’ निर्णय में जैन हवाला कांड को लेकर याचिकाकर्ता विनीत नारायण द्वारा उठाए गए मुद्दों पर स्पष्ट निर्णय नहीं दिया। विनीत नारायण के अनुसार ‘लोग हैरान हैं कि जब जनवरी 1996 में जैन-भ्रष्टाचार आतंकवाद-हवाला कांड में बड़े-बड़े राजनेता जोर-शोर से पकड़े गए थे तो यह मामला इतनी आसानी से खत्म कैसे हो गया? न्यायिक सक्रियता को क्या हुआ? क्या वाकई जैन-भ्रष्टाचार-आतंकवाद-हवाला कांड में कोई सबूत नहीं हैं या कुछ और बात है? हवाला मामले में, नवम्बर 1994 में, सर्वोच्च न्यायालय की अभूतपूर्व तत्परता देखकर लगा था कि अब न्याय व्यवस्था ने सही दिशा में करवट ली है। न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा ने हवाला केस की सुनवाई के दौरान तब टिप्पणी की थी, ‘यह बड़ा असाधारण मामला है और ऐसा रोज-रोज नहीं होता है। हम काफी चिंतित हैं और इस मामले को यूं ही नहीं छोड़ सकते। इसका तर्कपूर्ण अंत होना ही चाहिए। हम परिणाम चाहते हैं।’ इस मामले की सुनवाई करते-करते न्यायाधीश जे.एस. वर्मा 1996 आने तक राष्ट्रीय हीरो बन गए थे। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय की परम्परा के विरुद्ध, इंडिया टुडे ने उन पर कवर स्टोरी की। पर बाद में ऐसा क्या हुआ जो जैन-भ्रष्टाचार-आतंकवाद-हवाला कांड के आरोपी नेता और जैन बंधु एक के बाद एक छूटते गए?
जिस जैन डायरी को देखकर ही सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री वर्मा वाली बेंच ने उसकी सुरक्षा के कड़े और अभूतपूर्व इंतजाम किए थे, जिस जैन डायरी को देखते ही न्यायमूर्ति श्री वर्मा ने कहा था कि अगर इस मामले में बड़े अभियुक्तों को सजा नहीं मिल सकी, तो ‘अदालतें चलाने का औचित्य’ ही समाप्त हो जाएगा, वही जैन डायरी फिर सबूत क्यों नहीं रह गई? जिस न्यायमूर्ति श्री वर्मा वाली बेंच ने इस केस को हाथ में लेते ही जांच एजेंसियों को जांच के लिए हर तरह के निर्देश देने शुरू कर दिए थे, वही बेंच अक्टूबर 1996 के बाद ठंडी क्यों पड़ गई? यह बात ज्यादातर देशवासियों को मालूम नहीं है, क्योंकि अदालत की ‘अवमानना’ के डर से इस मामले को मीडिया ने भी या तो छुआ ही नहीं या बहुत संकोच के साथ उठाया। 18 दिसम्बर 1997 को सर्वोच्च न्यायालय ने जब चार वर्ष तक अपनी देख-रेख के बावजूद, बिना जांच हुए ही, इसी केस को बंद करते हुए सीबीआई को स्वायत्तता देने की घोषणा की, तो कुछ अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं ने इसका बढ़-चढ़कर स्वागत किया। कुछ ने तो सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को ‘ऐतिहासिक’ बताया। बहुत कम लोगों ने यह सवाल उठाया कि स्वायत्तता तो ठीक है, पर आतंकवाद को मदद पहुंचाने वाले जैन-आतंकवाद-हवाला कांड के दोषियों को सजा क्यों नहीं दी गई? सीबीआई के जिन अधिकारियों ने अपराधियों के साथ सांठगांठ कर सात वर्ष तक देशद्रोह के इस कांड को दबाए रखा था, उन्हें सजा के बदले तरक्कियां क्यों दे दी गईं?