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इतिहास खुद को दोहराता है। इसे प्रकृति के उस नियम  संग जोड़ समझा जा सकता है जिसके अनुसार प्रत्येक वर्ष ऋतुओं का आगमन निश्चित समय पर होता है, धरती निश्चित गति से सूर्य की परिक्रमा करती है, वगैरह-वगैरह। 1924 में लाहौर के एक पुस्तक प्रकाशन संस्थान राजपाल एंड संस ने एक विवादित पुस्तक का प्रकाशन किया था। पुस्तक का शीर्षक था ‘रंगीला रसूल’। इस किताब में पैंगबर मोहम्मद के निजी जीवन और उनके चरित्र को लेकर कुछ ऐसी बातों का जिक्र किया गया था जिसके कारण ब्रिटिश भारत में कौमी दंगे भड़क गए थे। प्रकाशन संस्थान के मालिक महाशय राजपाल पर मुकदमा चला। लाहौर हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। 1929 में महाशय राजपाल की हत्या एक 19 बरस के बढ़ई इल्मउद्दीन ने लौहार में उन्हें चाकू मारकर कर दी। इल्मउद्दीन को सजा से बचाने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना सामने आए लेकिन उनकी तमाम दलीलों को खारिज करते हुए अदालत ने इल्मउद्दीन को फांसी की सजा सुनाई थी। इतिहासकार इस मुकदमें में जिन्ना के किरदार को उनकी उन भूलों में पहली भूल करार देते हैं जिनके चलते कट्टर राष्ट्रवादी जिन्ना एक कट्टर मुस्लिम परस्त नेता में बदले थे। बहरहाल एक बार फिर इतिहास ने खुद को दोहराया है। इस बार पैगंबर मोहम्मद साहब की बाबत अनावश्यक और आपत्तिजनक टिप्पणी करने का काम भाजपा की एक राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा (अब पूर्व प्रवक्ता) ने 26 मई, 2022 के दिन किया जिसके चलते पहले ही विषाक्त धार्मिक सौहार्द का माहौल और ज्यादा विषैला और समाज के लिए घातक हो उठा है। नुपूर शर्मा के विवादित बयान चलते उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में सांप्रदायिक हिंसा हुई, विश्वभर में भारत का सिर नीचा हुआ, दोनों धर्मों के अंधे अनुयायियों ने एक-दूसरे के खिलाफ जहर उगला जिसमें सोशल मीडिया ने अपना विशेष योगदान दिया। और फिर 28 जून, 2022 को दो धर्मांध मुस्लिमों ने राजस्थान के उदयपुर शहर में दिनदहाड़े एक दर्जी का काम करने वाले कन्हैया कुमार की नृशंस हत्या कर डाली। कन्हैया का कसूर मात्र इतना भर था कि उसने नुपूर शर्मा के बयान को अपना समर्थन सोशल मीडिया में दिया था। नुपूर शर्मा के बयान को बोलने की स्वतंत्रता के संविधान प्रदत्त अधिकार से जोड़कर उसे सही बताने का प्रयास कर रहे अंधभक्त हिंदुओं और पैंगबर के नाम पर आम मुसलमान को जेहादी बनाने वाले मुस्लिम कौम के कथित ठेकेदारों की घृणित सोच और षड्यंत्र का नतीजा सामने है। अपने परिवार का एकमात्र सहारा कन्हैया कुमार इन धर्मांध लोगों, प्रवृत्तियों के विनाशकारी खेल की बलि चढ़ गया है। कन्हैया की हत्या जरूर दो धर्मांध मुसलमानां ने की है लेकिन इसके असली गुनहगार क्या वाकई ये दो मुसलमान ही हैं? क्या कन्हैया कुमार इन हत्यारों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का असल दोषी है? या फिर असल गुनहगार वे हैं जो आम आदमी चाहे वह हिंदू हो या फिर मुस्लिम, की धार्मिक भावनाओं को उकसा कर अपनी राजनीति चमकाते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने नुपूर शर्मा द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए जिन तल्ख शब्दों में अपना फैसला सुनाया है उससे स्पष्ट है कि देश की सर्वोच्च न्यायपीठ इस बात से इत्तेफाक रखती है कि इस घृणित खेल के असल गुनहगार कोई और ही हैं। नुपूर शर्मा ने एक छद्म नाम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाई कि उनके खिलाफ देश भर में कई एफआईआर दर्ज की गईं हैं और उन्हें लगातार जान से मारे जाने की धमकियां दी जा रही हैं इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से सारी एफआईआर दिल्ली में ट्रांसफर कर दी जाएं ताकि वे जांच एजेंसी के समक्ष दिल्ली में ही पेश होकर अपना पक्ष रख सकें। कोर्ट ने इस पर सुनवाई के दौरान छद्म नाम से याचिका दायर करने की बाबत पूछा तो शर्मा के वकील ने कहा कि उन्हें भारी खतरा है इसलिए ऐसा करना पड़ा। इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा She has threat or she has become a security threat? (उन्हें खतरा है या फिर वे सुरक्षा के लिए खतरा बन चुकी हैं?) कोर्ट इतने पर नहीं रुकी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कह डाला ‘The Way she ignited emotions across country. This lady is single handely responsible for what is happening in the country’ (जिस प्रकार इस महिला ने भावनाओं को भड़काया है, जो कुछ भी देश में हो रहा है यह महिला उसके लिए अकेले जिम्मेवार है) सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों ने स्पष्ट कर दिया है कि बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार का यह कतई अर्थ नहीं कि कोई भी अनर्गल बयानबाजी कर किसी अन्य की भावनाओं को आहत कर सकता है। नुपूर शर्मा के आपत्तिजनक बयान के बाद उन पर दिल्ली पुलिस ने आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धाराओं 153, 295, 505 के तहत एफआईआर दर्ज की है। धारा 153ए में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, जाति, भाषा इत्यादि के आधार पर नफरत का माहौल बनाने के अंतर्गत 3 से 5 साल की सजा का प्रावधान है और यह गैर जमानती अपराध है। धारा 295 भी धर्म के आधार पर अपराध की श्रेणी में आती है। इसमें दो वर्ष तक की सजा और जमानत का प्रावधान है। धारा 505 विभिन्न समुदायों के मध्य शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की  भावनाओं को पैदा करने के आशय से असत्य कथन को लेकर है जिसमें अधिकतम तीन वर्ष की सजा का प्रावधान है और यह भी गैर जमानती है। इतनी सख्त धाराओं में मुकदमा दर्ज करने के बाद भी नुपूर शर्मा आजाद हैं। उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से सुरक्षा भी दी जा चुकी है। दूसरी तरफ इन्हीं धाराओं का इस्तेमाल कर दिल्ली पुलिस ने ‘अल्ट न्यूज’ के संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ 20 जून को एक मुकदमा दर्ज कर उन्हें तत्काल गिरफ्तार कर डाला है।
 
मोहम्मद जुबैर एक स्थापित न्यूज पोर्टल के पत्रकार हैं। उन्हें ‘अद्भुत’, ‘अनोखे’ तरीके से दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर पूरी प्रशासनिक व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है। जुबैर ही वे पत्रकार हैं जिन्हेंने नुपूर शर्मा के आपत्तिजनक बयान की तरफ देश और दुनिया का ध्यान खींचा था। जुबैर मोहम्मद को एक अन्य मामले में जांच में शिमल होने के लिए दिल्ली पुलिस ने हाजिर होने को कहा था। इस मामले में उनकी गिरफ्तारी पर कोर्ट का स्टे ऑर्डर था इसलिए उन्हें एक नया मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया है। कमाल की बात यह कि जिस व्यक्ति के ट्वीट को आधार बना मोहम्मद जुबैर पर मामला दर्ज किया गया उस व्यक्ति ने अपना ट्वीट हैंडल अब डिलीट कर दिया हैं इससे भी बड़ी कमाल की बात यह कि इस ट्वीटर हैंडल जिसे ‘हनुमान भक्त’ नामक यूजर नेम से चलाया जा रहा था, से केवल एक ही ट्वीट किया गया जिस पर ‘त्वरित कार्यवाही’ कर जुबैर को दिल्ली पुलिस ने धार्मिक विद्वेष फैलाने के आरोप में धर लिया।वहीं दूसरी तरफ नुपूर शर्मा, जिन्हें देश की सुप्रीम कोर्ट ने नफरत का माहौल बनाने का दोषी कहा है, उन्हें गिरफ्तारी तो दूर, अभी तक केवल एक बार पूछताछ के लिए बुलाया है और केंद्र सरकार ने उन्हें राजकीय सुरक्षा भी दे डाली है। जुबैर की गिरफ्तारी कई प्रकार के संदेश देती है। पहला और स्पष्ट संदेश यह कि एक समान के अपराध के लिए अपराधियों संग एक समान कानूनी बर्ताव इस मुल्क में अब नहीं होगा। यदि एक कथित अपराधी सत्ता पक्ष से ताल्लुक रखता है तो उसके संग अलग बर्ताव होगा और दूसरे के संग अलग। यह भी स्पष्ट संदेश इस प्रकरण के जरिए दिया गया है कि जो भी सत्तापक्ष के खिलाफ है या सत्ता पक्ष की विचारधारा का समर्थक नहीं है, उसके संग लोकतांत्रिक व्यवस्था से बाहर जाकर हिसाब-किताब किया जाएगा। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी 2020 के दंगों का जरा जायजा तो लीजिए। इस संदेश के मायने ज्यादा स्पष्ट हो जाएंगे। इन दंगों की शुरुआत भाजपा नेता कपिल मिश्रा के एक उत्तेजक सार्वजनिक बयान से हुई थी जिसमें उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के खिलाफ मुस्लिमों द्वारा दिल्ली में सार्वजनिक स्थालों पर धरने को तुरंत समाप्त कराए जाने की बात कहते हुए दिल्ली पुलिस को, उनके एक वरिष्ठ अधिकारी की उपस्थिति में अल्टीमेटल दिया था कि यदि पुलिस ऐसे आंदोलनकारियों को सार्वजनिक स्थानों से नहीं हटाएगी तो वे और उनके समर्थक खुद ऐसा कर डालेंगे। इस धमकी के बाद ही दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाकों में भारी हिंसा भड़की जिसमें 53 लोग मारे गए जो दोनों धर्मों के थे। कपिल मिश्रा पर लेकिन किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई।

ताजा प्रकरण में नुपूर शर्मा का बयान हर दृष्टि से आपत्तिजनक है, बेवजह धार्मिक सौहार्द को खराब करने और पहले से ही धर्म के नाम पर बंटे समाज को और बांटने की विस्तृत साजिश का हिस्सा है। लेकिन उन्हें मुस्लिम धर्मांधों द्वारा दी जा रही धमकियां भी इतनी ही आपत्तिजनक हैं और इस राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए घातक हैं। कन्हैयालाल की हत्या यह साबित करती है कि अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज किस कदर हिंसक होते जा रहा है। पैगंबर के खिलाफ 1924 में प्रकाशित पुस्तक ‘रंगीला रसूल’ के प्रकाशक को मारने की घटना के 95 बरस बाद कन्हैयालाल की हत्या तो कम से कम यही साबित करती है कि मुस्लिम समाज में धर्म आधारित हिंसा इन 95 बरसों में बढ़ी ही है, इस समाज में शिक्षा के जरिए जिस कट्टरता में कमी आने की अपेक्षा थी, वह आती नजर नहीं आ रही है। ठीक इसी प्रकार मोहम्मद जुबैर सरीखे पत्रकार की गिरफ्तारी यह स्पष्ट संदेश दे रही है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था चरमराने लगी है और वर्तमान सत्ता हर कीमत पर अपने विरोधियों का इलाज करने के लिए ‘कृत संकल्प’ हो चुकी है। नुपूर शर्मा को सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद जिस प्रकार न्यायधीशों को निशाने पर लिया जा रहा है, उससे स्पष्ट नजर आ रहा है कि इस देश का बहुसंख्यक हिंदू भी पूरी तरह धर्मांध हो चला है। यदि यही रामराज्य है तो यकीं मानिए आगे गली अंधी तो है ही, उसका दूसरा छोर बंद है, रोशनी की किरण आने का कोई जरिया नजर आ नहीं रहा है।
 
 
 
 
 
 

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