खस्ताहाल परिवहन निगम
दिनेश पंत
उत्तराखण्ड परिवहन निगम की सेवाओं का लाभ दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों को नहीं मिल पा रहा है। राज्य गठन से पहले जिन क्षेत्रों में रोडवेज की बसें थी वे अब बंद हो चुकी हैं
उत्तराखण्ड परिवहन निगम जनता से सीधे जुड़ा हुआ विभाग है, लेकिन आज यह चौतरफा मार झेल रहा है। चालकों, परिचालकों, टायरों सहित महत्वपूर्ण पार्ट्स की कमी से जहां निगम को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है वहीं यात्रियों को भी भारी फजीहत झेलनी पड़ रही है। नया राज्य बनने के बाद वर्ष २००३ में जब निगम अस्तित्व में आया तो लगा कि यह प्रदेश की परिवहन व्यवस्था को मजबूत करने का आधर स्तंभ बनेगा व राज्य की आर्थिकी में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा। प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्रों में जहां परिवहन सुविधा का लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा था, वहां यह अपनी बेहतर सुविधा देने में सफल होगा। लेकिन हुआ इसका उल्टा। पहले से दर्जनों दूरस्थ क्षेत्रों में दी जा रही सेवाएं भी अब बंद हो चुकी हैं। पहाड़ी मार्गों में जहां पहले ही रोडवेज की बसों का टोटा है, अब यहां की सड़कों में दौड़ने वाली बसों को चारधम यात्रा में लगा देने से पर्वतीय क्षेत्रों की परिवहन व्यवस्था पूरी तरह लड़खड़ा गई है। जिस निगम का गठन राज्य की आर्थिकी में योगदान देने के लक्ष्य के साथ किया गया था वह आज ७०० करोड़ रुपए के द्घाटे में चल रहा है। निगम के हालात यह हैं कि मरम्मत एवं फिटनेस के लिए पर्याप्त बजट न होने से बसें सड़कों पर नहीं दौड़ पा रही हैं। रोडवेज कर्मियों को भी समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है। हालांकि द्घाटे से उबरने के लिए प्रदेश के परिवहन मंत्री ने राजस्व लाओ, वेतन पाओ जैसा फॉर्मूला भी अपनाया, लेकिन यह भी कारगर नहीं हो पा रहा है। निगम द्घाटे की वजह डग्गेमारी को मानता है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि चालक, परिचालकों की कमी के साथ टायरों एवं अन्य पार्ट्स की कमी भी द्घाटे की एक बड़ी वजह बन रही है। नए पार्ट्स की कमी के चलते अब तक निगम करोड़ों रुपयों का नुकसान उठा चुका है। हालात यह हो गई है कि निगम अपनी स्थापना के बाद सेवाओं के लिए कम हेराफरी के लिए अधिक जाना जाने लगा। स्थापना काल से ही करोड़ों रुपए के द्घोटाले चर्चा में रहे हैं। अभी हाल में रोड़वेज में नौ लाख से ज्यादा लोगों ने विशेष श्रेणी की फ्री यात्रा कर रोडवेज को साढ़े पांच करोड़ का चूना लगा डाला। हालांकि रोडवेज कर्मचारी यूनियन इसे द्घोटाला मानने को तैयार नहीं है। यूनियन के सदस्यों का कहना है कि यह सॉफ्टवेयर में आई गड़बड़ी की वजह से हुआ। माना कि सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी इसका कारण रहा हो, लेकिन इससे पूर्व में हुए द्घोटाले निगम की नकारात्मक छवि ही प्रदर्शित करते हैं। साढ़े दस लाख रुपए का बिल द्घोटाला भी काफी चर्चा में रहा था, जिसमें तीन ट्रांसपोर्टरों को एक ही समय की संचालन अवधि में दो-दो बार भुगतान कर दिया गया। इसी तरह २०१५ में हुआ पेनाल्टी द्घोटाला भी चर्चा में रहा जिसमें परिवहन निगम के एक लेखाकार ने अपनी मर्जी से फिटनेस टैक्स के तकरीबन १२२ मामलों में ४५ हजार का जुर्माना लगाया जबकि यह जुर्माना राशि १४ लाख के पार थी। वर्ष २०१६ में १०० करोड़ रुपए की मद से बस खरीद पर भी सवाल उठे थे। इसके अलावा कई चालाकों और परिचालकों पर तेल बेचने जैसे आरोप भी लगते रहे हैं। निगम की कमजोर निगरानी व्यवस्था भी सवालों के द्घेरे में रही है। इसके अलावा प्रदेश में हर दूसरे दिन एक बस कंडम हो रही है, लेकिन इसके बाद भी यह बस बेड़ों में शामिल है। उत्तराखण्ड के १६०० के आस-पास के बस बेडे में ३०० बसें कंडम हो चुकी हैं। लेकिन इसके बाद भी यह सड़कों में दौड़ रही है। जबकि नियमानुसार एक बस अधिकतम ६ वर्ष और ८ लाख किमी. की दूरी ही तय कर सकती है। दुर्भाग्य यह है कि पहाड़ की बसें मैदानी रूटों में दौड़ रही हैं। परिवहन निगम को जो ४८० बसें मिली थी उसमें से अकेले १८० बसें कुमाऊं मंडल के हिस्से आई, लेकिन इनमें से अधिकांश यहां सेवाएं नहीं दे पा रही हैं। जिसके चलते कुमाऊं क्षेत्र के ७० से अधिक रूट ऐसे हैं जहां रोडवेज सेवाएं बंद हैं। कहने को तो निगम का राजधानी देहरादून में कॉरपोरेट कार्यालय है तो वहीं नैनीताल, टनकपुर और देहरादून में तीन डिवीजन कार्यालय हैं। प्रत्येक डिवीजन में बसों की फिटनेस के लिए एक क्षेत्रीय कार्यशाला भी बनाई गई है। १८ डिपो इस समय प्रदेश में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रदेश से हिमालय प्रदेश, चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तक सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। २००३ में स्थापित निगम की बसें हर दिन ३,५०,००० किमी की दूरी तय कर रही हैं। एक लाख से अधिक यात्री इस निगम की सेवाओं का लाभ ले रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी यह निगम दिनों-दिन कमजोर हो रहा है। परिवहन निगम से उम्मीद थी कि यह उत्तराखण्ड की आर्थिकी में बड़ा योगदान करेगा और ग्रामीण क्षेत्रों तक परिवहन सेवाएं मजबूत होंगी। लेकिन इसके उलट यह अपने गठन के साथ ही इस तरह द्घाटे में जाता रहा कि अब तक उबर नहीं पाया। इसका बेड़ा बढ़ने के बजाय लगातार द्घटता जा रहा है। बोल्वो जैसी बसों में किराया अधिक होने के कारण इसमें आम आदमी सफर नहीं कर पाता और साधारण बसें तो सफर करने लायक ही नहीं रह गई हैं। पहाड़ों में रोडवेज का सफर मुसीबतों का सफर बन चुका है। खराब बसों को न तो बदला जा रहा है, न ही ठीक कराया जा रहा है। कई बसें तो आधे रास्ते में खड़ी हो जाती हैं तो कई दुर्द्घटनाग्रस्त हो चुकी हैं। ४०० नई बसें आने का ढिंढोरा कब से पीटा जा रहा है, लेकिन यह बेड़े में अब तक शामिल नहीं हो पाई हैं। पहाड़ी मार्गों पर ६०० बसें दौड़ रही हैं, लेकिन इसमें से कई बसें कंडम अवस्था में हैं। अकेले जनपद पिथौरागढ़ में डेढ़ दर्जन से अधिक रूटों पर सेवाएं बंद पड़ी हैं। पिथौरागढ़-धारचूला, पिथौरागढ़-गुरना, पिथौरागढ़-मुवानी, धारचूला-अल्मोड़ा, टनकपुर-जौरासी, पिथौरागढ़-मदकोट, पिथौरागढ़-राईआगर, टनकपुर-मड़मानले, टनकपुर-भागीचौरा, पिथौरागढ़-भागीचौरा, पिथौरागढ़-पीपली, पिथौरागढ़-मुनस्यारी, पिथौरागढ़-दूनाकोट, पिथौरागढ़-बांसबगड़, टनकपुर-पीपली आदि सेवाएं लंबे समय से बंद पड़ी हैं। इसके अलावा कई आंतरिक रूटों में बस सेवाओं की शुरूआत की उम्मीद थी, लेकिन जब पुराने रूट ही बस सेवाओं से वंचित हों तो फिर नए को कौन पूछे। विगत सालों के कई सड़कों का निर्माण हुआ, लेकिन बस सेवाएं संचालित नहीं हो पाई। चार दशक पूर्व ओगला में बनने वाला डिपो सिर्फ शिलापट तक सीमित रह गया। जनपद पिथौरागढ़ में चालक मानकों के विपरीत कम हैं। डिपो में टायरों व स्पेयर पार्ट्स का अभाव हमेशा बना रहता है। एक समय था जब जनपद से धारचूला-ग्वालदम, पिथौरागढ़-गुरना, धारचूला-बरेली, पिथौरागढ़ -जाख, पिथौरागढ़-दूनाकोट, पिथौरागढ़-भागीचौरा, पिथौरागढ़- चौड़मन्या, मड़मानले-खटीमा, बांस-बिछुवा, बड़ावे-बरेली, पीपली-टनकपुर, पिथौरागढ़-धारचूला, धारचूला-बरेली मार्गर्ोें पर रोडवेज की बस सेवाएं संचालित थी। लेकिन विगत कई सालों से ये सेवाएं पूरी तरह बंद पड़ी हुई हैं। हालांकि उत्तराखण्ड के परिवहन मंत्री का कहना है कि ड्राइवर एवं कंडक्टरों की कमी नहीं है। चालक और परिचालक संविदा में रखे गए हैं। लेकिन सच कुछ और ही बयां करता है। रोडवेज कर्मचारी यूनियन लंबे समय से मांग करती आ रही है कि पर्वतीय क्षेत्रों के मुताबिक बसों को डिजाइन किया जाए। आय बढ़ाने के लिए बड़े शहरों के लिए एसी बसें चलाई जाएं। सड़कों का निर्माण सही समय पर किया जाए और सड़कों की हालत में सुधार किया जाय। रोडवेज बस अड्डों पर हो रही डग्गामारी को बंद किया जाए। साथ ही ग्रामीण इलाकों में रोडवेज की बसों का संचालन भी किया जाय, लेकिन इस तरफ कोई पहल नहीं हो पा रही है। वर्कशॉप में काम करने वाले सीनियर फोरमैन, जूनियर फोरमैन, मैकनिक मोटर, मैकनिक बाड़ी, सहायक मैकनिक, फिटर, फिटर विद्युत, कारपेंटर जैसे कई पद खाली चल रहे हैं। निगम में कई वर्षों से नियमित मैकनिकों के पद नहीं भरे गए हैं। वर्कशापों की हालत भी बेहतर नहीं है। कहां तो एक बस के लिए पांच मैकेनिकों का मानक है, लेकिन वहीं एक मैकेनिक मिलना भी मुश्किल हो रहा है। ऐसे में बसों की गुणवत्ता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
परिवहन निगम को द्घाटे से उबारने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। यात्रियों को बेहतर सुविधएं मिलें, यह सरकार की प्राथमिकता में है। समय से बसों का संचालन हो, यह व्यवस्था की जा रही है।यशपाल आर्य, परिवहन मंत्री