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यूपी में जारी है योगी की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति, अब IAS निधि सस्पेंड

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा दोबारा पदभार संभालने के बाद उनका बुलडोजर जमकर गरजा है । अवैध कब्जों को जमींदोज किया जा रहा है । जबकि प्रदेश में ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति के तहत बड़े अधिकारियों पर भी कार्रवाई जारी है।
सीएम के निर्देश पर जौनपुर जिला अस्पताल के दो डॉक्टरों को ड्यूटी में घोर लापरवाही करने पर निलंबित कर दिया गया है। इससे पहले सीएम योगी ने यूपी में अनुशासनहीनता के मामले में 2008 बैच की आईपीएस अलंकृता सिंह को निलंबित किया ।  महिला और बाल सुरक्षा, एसपी के रूप में सेवारत अलंकृता सिंह  20 अक्टूबर 2021 से काम से अनुपस्थित पायी गईं थी।
19 अक्टूबर 2021 को एक व्हाट्सएप कॉल के माध्यम से उन्होंने एडीजी को सूचित किया था कि वह लंदन में हैं। जबकि उन्होंने यात्रा के पूर्व अनुमति नहीं ली थी। जिसके चलते उनके खिलाफ कार्रवाई की गई।
 बीते महीने की ही बात है जब औरैया के जिलाधिकारी सुनील वर्मा को लापरवाही और भ्रष्टाचार की शिकायत पर और गाजियाबाद के एसएसपी पवन कुमार को कर्तव्यों का पालन ना करने के आरोप में सस्पेंड किया गया।
फिलहाल योगी सरकार की 2004 बैच की आईएएस अधिकारी निधि केसरवानी पर गाज गिरी है । उन्हें योगी सरकार ने दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस वे जमीन घोटाले में सस्पेंड करने की सिफारिश केंद्र सरकार से की है। केंद्र सरकार से सिफारिश की गई है कि वह इस समय वहां प्रतिनियुक्ति पर तैनात है। जबकि दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे हाईवे घोटाला के समय में है गाजियाबाद में जिला अधिकारी पद पर तैनात थी।
मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी ट्वीट में कहा गया कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति के अनुरूप यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने तत्कालीन जिलाधिकारी गाजियाबाद को निलंबित करते हुए विभागीय कार्यवाही शुरू करने हेतु प्रकरण भारत सरकार को संदर्भित करने के आदेश दिए हैं। वर्तमान में निधि केसरवानी केंद्र सरकार के दिल्ली स्थित राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण विभाग में कार्यरत है।
यह जमीन घोटाला 2016 से 2017 के बीच हुआ । तब निधि केसरवानी गाजियाबाद की जिलाधिकारी हुआ करती थी। घोटाला 20 करोड़ से अधिक का है। जिसमें तय किए गए अवार्ड राशि से 6 से 10 गुना अधिक मुआवजा दिया गया।
 हालांकि इस घोटाले में निधि केसरवानी से पहले गाजियाबाद के जिलाधिकारी रहे विमल कुमार शर्मा का भी नाम आ रहा है। लेकिन फिलहाल वह रिटायर हो चुके हैं। जिन जमीनों पर यह घोटाला हुआ वह नाहर, कुशलिया, डासना और रसूलपुर आदि गांव की है।
 बताया जाता है कि मेरठ दिल्ली एक्सप्रेसवे और पेरीफेरल एक्सप्रेसवे के लिए जमीन अधिग्रहण की जाने की कार्रवाई चल रही थी । जिसके तहत अधिकरण की धारा 3डी हो चुकी थी। अधिग्रहण की धारा 3 डी के बाद जमीन नहीं बेची जा सकती है। लेकिन इसके बाद भी किसानों को गुमराह करते हुए वहां की जमीनों को अधिकारियों के रिश्तेदार और परिजनों ने खरीद लिया।
 इसके बाद यह आर्बिट्रेशन के तहत निधि केसरवानी की कोर्ट में मामले चले। ऐसे कुल 8 मामले केसरवानी की कोर्ट में आए थे। जिनमें केसरवानी द्वारा मुआवजा निरस्त करने की बजाय उल्टे उन्हें 6 से 10 गुना अधिक राशि मुआवजा देने की सिफारिश कर दी।
जिन अधिकारियों के रिश्तेदारों और परिजनों ने किसानों को गुमराह कर उनकी जमीनें खरीदी उनमें गाजियाबाद के तत्कालीन एडीएम के बेटे और तत्कालीन अमीन संतोष कुमार की पत्नी, पुत्र और पुत्रवधू ने जमीन खरीदी।
इस मामले की जांच तत्कालीन मंडलायुक्त प्रभात कुमार ने की थी। प्रभात कुमार ने इस मामले की जांच करके जांच रिपोर्ट 2017 में ही सौंप दी थी। लेकिन इसके बावजूद भी इस घोटाले की फाइलें दबा दी गई। करीब 5 साल तक यह मामला फाइलों में ही दबा रहा। फिलहाल योगी सरकार ने इस पर एक्शन लेकर जीरो टॉलरेंस नीति को आगे बढ़ाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं जिन्होंने 5 साल तक घोटाले की फाइल दबाए रखी। इस मामले में ,दि संडे पोस्ट ने गाजियाबाद के पूर्व जिलाधिकारी रहे प्रभात कुमार शर्मा से बात की। उन्होंने कहा कि उन पर भी इस मामले से संबंधित जांच हुई है। फिलहाल वह इस मामले में कुछ नहीं कह सकते हैं।

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