उत्तर प्रदेश में मतदान प्रक्रिया अंतिम दौर में है। सिर्फ दो चरण शेष हैं। ऐसे में यदि सत्ताधारी दल भाजपा में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर विवाद की स्थिति उत्पन्न होने लगे तो मान लेना चाहिए कि पार्टी की सेहत नासाज है। कुछ ऐसी ही तस्वीर हाल-फिलहाल नजर आ रही है। ये स्थिति उत्पन्न हुई है भाजपा के पूर्व सांसद हरि नारायण राजभर के बयान से। गौरतलब है कि भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने काफी पहले योगी आदित्यनाथ को दोबारा मुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावना पर मुहर लगा दी थी। इसके बाद यूपी भाजपा के बडे़ नेताओं ने भी यह मान लिया था कि यदि भाजपा दोबारा सरकार बनाने की स्थिति में हुई तो निश्चित तौर पर योगी आदित्यनाथ को ही यूपी की कमान दोबारा सौंपी जायेगी। केन्द्रीय नेतृत्व के दबाव का ही कमाल था कि योगी आदित्यनाथ के धुर विरोधी केशव प्रसाद मौर्या को न सिर्फ योगी के समर्थन में खुलकर बयान देना पड़ा बल्कि योगी आदित्यनाथ एक पारिवारिक फोटो में योगी आदित्यनाथ को शामिल करते हुए फोटो भी खूब वायरल की गयी ताकि पार्टी कार्यकर्ताओं में इस संदेश को आसानी से पहुंचाया जा सके कि योगी आदित्यनाथ को लेकर पार्टी में किसी प्रकार की फूट नहीं है।
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अब जबकि मतदान प्रक्रिया अंतिम दौर में है ऐसे में भाजपाई खेमें में विद्रोह के स्वर एक बार फिर से सुनाई देने लगे हैं। सभी जानते हैं यूपी भाजपा में योगी आदित्यनाथ के विरोधियों की संख्या भारी तादाद में है। ऐसे में विरोधियों के हौसले तब परवान चढे़ जब भाजपा के एक पूर्व सांसद हरि नारायण राजभर यह कहकर सनसनी फैला दी कि पूर्व आईएएस अरविन्द कुमार शर्मा को यूपी की कमान सौंपी जा सकती है। हालांकि पूर्व सांसद का यह बयान मतदान प्रक्रिया शुरु होने से पहले का है लेकिन इस बयान को हवा-पानी तब दिया जा रहा है जब भाजपा के भाग्य का फैसला ईवीएम कैद हो चुका है।
इसी के साथ सूबे के राजनीतिक गलियारे में इस बात को लेकर चर्चा तेज हो चली है कि ‘किसकी बनेगी सरकार और कौन बनेगा मुख्यमंत्री’। यदि सपा सरकार बनाने की स्थिति में हुई तो अखिलेश यादव की दावेदारी पर शक नहीं किया जा सकता लेकिन भाजपा रिपीट करती है तो मुख्यमंत्री पद को लेकर घमासान की स्थिति पैदा हो सकती है। राजनीति पर अपनी कलम घिसने वाले वरिष्ठ पत्रकारों को भी यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि भाजपा में योगी आदित्यनाथ की दावेदारी को लेकर उठापटक काफी समय से चल रही है। मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर यूपी भाजपा में अब तक कई गुट बन चुके हैं। एक गुट केशव प्रसाद मौर्या को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहता है तो दूसरा गुट सतीश महाना के पक्ष में नजर आ रहा है।
यह स्थिति वर्ष 2017 चुनाव परिणाम के समय भी देखने को मिली थी। इस बार एक नया नाम और जुड़ गया है। वह नाम है पूर्व आईएएस अरविन्द कुमार शर्मा का। नौकरशाही से राजनीति तक का सफर तय करने वाले अरविन्द शर्मा को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बेहद करीबी माना जाता है। कहा जा रहा है कि यदि राजभर ने अरविन्द कुमार शर्मा का नाम लिया है तो निश्चित तौर पर हाई कमान से हरी झण्डी मिल चुकी होगी। यदि अरविन्द कुमार शर्मा को यूपी की कमान सौंपी जाती है तो ऐसी स्थिति में अल्प नुकसान के विपरीत बड़ा फायदा यूपी भाजपा को मिलता दिख रहा है। योगी आदित्यनाथ के विरोध में जो गुट अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग गाते चले आ रहे हैं उस पर विराम लग सकता है। ऐसे में कक्षा तीन की एक कहानी बरबस याद हो आयी कि किस प्रकार से दो बिल्लियों के झगड़े में एक बन्दर फायदा उठा ले जाता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या योगी आदित्यनाथ के स्थान पर अरविन्द कुमार शर्मा को यूपी की कमान आसानी से सौंपी जा सकती है। शायद नहीं, जाहिर है योगी आदित्यनाथ के स्थान पर यदि अरविन्द कुमार शर्मा को यूपी की कमान सौंपी गयी तो निश्चित तौर पर यूपी भाजपा में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। योगी आदित्यनाथ ने पिछले पांच वर्षों के दौरान भले ही यूपी भाजपा के बडे़ नेताओं में अपनी पैठ न बनायी हो लेकिन यूपी भाजपा में ऐसे नेताओं, कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की कमी नहीं है जो योगी आदित्यनाथ का पत्ता कटने की स्थिति में यूपी भाजपा की आबोहवा बदल सकते हैं। जाहिर है हाई कमान भी यह बात अच्छी तरह से जानता होगा, शायद यही वजह है कि हाल ही के दिनों के केन्द्रीय भाजपा के कुछ बड़े नेताओं ने योगी आदित्यनाथ के साथ गुप्त मंत्रणा की है।
योगी आदित्यनाथ के भाग्य का फैसला सिर्फ हाई कमान के हाथों में ही नहीं है बल्कि गोरखपुर सदर की जनता के हाथों में भी है। गौरतलब है कि योगी आदित्यनाथ पहली बार विधायकी का चुनाव लड़ने जा रहे हैं और वह भी बतौर मुख्यमंत्री की हैसियत से। यही वजह है कि गोरखपुर सदर की सीट अति विशिष्ट मानी जा रही है। जहां एक और भाजपा ने योगी आदित्यनाथ की जीत को ऐतिहासिक बनाने के लिए पूरा जो लगा दिया है वहीं दूसरी ओर सपा-बसपा ने योगी आदित्यनाथ को उन्हीं के गढ़ में मात देने की तैयारी कर ली है लेकिन योगी आदित्यनाथ का कद विरोधियों की मंशा पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। ज्ञात हो छठे चरण के मतदान (03 मार्च 2022) में योगी आदित्यनाथ के भाग्य का फैसला गोरखपुर सदर की जनता करेगी।
फिलहाल बात यदि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की करें तो उनकी स्थिति बत्तीस दांतों के बीच फंसी जीभ सरीखी है। जरा सी चूक नुकसान पहुंचा सकती है।