25 मार्च को जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन शुरू किया तो कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक दिन ऐसा आएगा कि लोग भूखो मरने लगेंगे। खासकर वह जो हैंड टू माउथ है। यानी कि रोज कमाने और रोज खाने वाले मजदूर तबके का व्यक्ति। वह व्यक्ति सुबह जब काम को जाता था तो शाम को मजदूरी लेकर सीधा परचून की दुकान पर जाता था और वहां से आटा, दाल, चावल आदि लेकर घर आता था। जब वह घर आ जाता था तो उसका चूल्हा जलता था और परिवार का पेट पलता था।
लेकिन लॉकडाउन ने उस मजदूर के पेट पर लात मारने का काम किया है। मजदूर दर-बदर है। बेघर है। बेसहारा है। और सबसे बड़ी बात कि वह बेरोजगार है। ऐसे में उसके सामने रोजी-रोटी बहुत बड़ा संकट बन कर सामने आई है। एक तरफ कोरोना महामारी है तो दूसरी तरफ पापी पेट का सवाल है। बीमारी को तो जैसे तैसे देख ले लेकिन पेट में लगी आग को वह कैसे शांत कर पाएगा?
इसी जद्दोजहद में जब मजदूर के बच्चे भूखों मरने लगते हैं तो यह एक लाचार, बेबस बाप से देखा नहीं जाता और वह फांसी के फंदे पर लटक जाता है। उत्तर प्रदेश के कानपुर में यह दिल दहलाने वाली घटना घटी है। लॉकडाउन में काम न मिलने से पाई-पाई को मोहताज काकादेव थाना क्षेत्र के राजापुरवा निवासी मजदूर से जब बच्चों की भूख नहीं देखी गई तो उसने फांसी लगाकर जान दे दी। भूखे परिवार का पेट भरने का मजदूर ने प्रयास तो भरसक किया, दर-दर भटका पर कहीं काम नहीं मिला।
कही काम न मिलने की वजह से बच्चों को 15 दिन से भरपेट भोजन भी नहीं मिल पाया। बच्चे कभी सूखी रोटी खाकर सो जाते तो कभी पानी पीकर। बच्चों की यह पीड़ा उससे देखी नहीं गई और हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर लीं। कानपुरा के राजापुरवा निवासी विजय बहादुर (40) दिहाड़ी मजदूर था। मजदूरी करके ही पत्नी रंभा, बेटों शिवम, शुभम, रवि और बेटी अनुष्का का पेट भरता था।
डेढ़ महीने से जारी लॉकडाउन की वजह से उसे कहीं काम नहीं मिला। इसके चलते जो पैसा जोड़ा भी था, वह भी खत्म हो गया। परिजनों और आसपास के लोगों ने बताया कि परिवार को कई दिन से भरपेट भोजन नहीं मिला था। इसी से परेशान होकर बुधवार शाम को विजय ने साड़ी के फंदे से फांसी लगा ली। इसी बीच पत्नी घर पहुंच गई और पड़ोसियों की मदद से विजय को उतारकर हैलट में भर्ती कराया। हालांकि, देर रात उसकी मौत हो गई।
पड़ोसियों के अनुसार मृतक की पत्नी ने भी लोगों के घरों में काम करने की कोशिश की लेकिन कोरोना की दहशत के कारण बहुत कम काम मिलता। कहीं से कुछ व्यवस्था कर थोड़ा बहुत लाती भी तो छह लोगों के परिवार में कम पड़ा जाता।
इसके चलते विजय ने रंभा के पास जो थोड़ा बहुत जेवर है, उसे बेचने का भी प्रयास किया। हालांकि, दुकानें बंद होने की वजह से यह भी संभव न हो पाया। आर्थिक तंगी के चलते पति-पत्नी में नोकझोंक होने लगी। भूख की वजह से मासूम बेटी की तबीयत भी खराब होने लगी। घटना के समय रंभा बच्चों के साथ रोटी की तलाश में ही घर से निकली थी। बच्चे भूखे थे रोटी के लिए तडप रहे थे। विजय से बच्चों को भूख से बिलबिलाते नही देखा गया तभी उसने घर में यह आत्मघाती कदम उठा लिया।