पछले कुछ दिनों से “महिला आरक्षण बिल” चर्चा में है। इस दौरान संसद के विशेष सत्र भी जारी है। जिसमें सरकार द्वारा जारी किये गए एजेंडे के अनुसार मुख्य रूप से चार विधेयक पेश किये जाने थे। लेकिन अब इसके अलावा केंद्र सरकार पिछले कई दशकों से संसद में लटके “महिला आरक्षण बिल” को एक बार फिर लोकसभा में पेश कर सकती है। इस विधेयक के तहत संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव रखा जायेगा।
मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार महिला आरक्षण बिल को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। साथ ही केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट करके बिल को मंजूरी मिलने की बात कही। हालांकि, कुछ देर बाद उन्होंने ट्वीट डिलीट कर दिया। अगर यह बिल पास होता है तो केंद्र सरकार लोकसभा में 180 सीटें बढ़ा सकती है। फिलहाल लोकसभा में 543 सीटें हैं। अब अगर सरकार सीटें बढाती है तो यह आंकड़ा बढ़कर 743 हो जाएगा।
क्या है महिला आरक्षण विधेयक
महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है और यह पहली बार नहीं है कि महिला आरक्षण बिल संसद में पेश किया जायेगा इससे पहले भी कई बार इस बिल को संसद में पेश किया जा चुका है। सबसे पहले यह बिल साल 1996 में एचडी देवगौड़ा द्वारा संसद में पेश किया गया था।
आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में लोकसभा में 78 महिला सांसद हैं, जो कुल सांसदों का मात्र 14 प्रतिशत है। वहीं राज्यसभा में मात्र 32 महिला सांसद हैं, जो कुल राज्यसभा सांसदों का 11 प्रतिशत है। विधेयक के तहत लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था। संशोधन यह नियम भी है कि इस अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण समाप्त हो जाएगा।
कब कब पेश किया गया बिल?
यह बिल इससे पहले साल 2008 में संसद में पेश किया गया था। वहीं इससे पहले इस बिल को वर्ष 1996, 1998 और 1999 में भी पेश किया गया जा चूका है। गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति ने 1996 के विधेयक की जांच की थी और 7 सिफारिशें की थीं। जिसमें से पांच को 2008 के विधेयक में शामिल किया गया था, जिसमें एंग्लो इंडियंस के लिए 15 साल की आरक्षण अवधि और उप-आरक्षण शामिल था।
इसमें अंतर ये था कि पहला विधेयक राज्यसभा और विधान परिषदों में सीटें आरक्षित करने के लिए था तो वहीं दूसरा विधेयक (2008) संविधान द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण का विस्तार करने के बाद ओबीसी महिलाओं के लिए उप-आरक्षण के लिए था।
कांग्रेस का भी समर्थन मिला
केंद्र द्वारा लाये गए इस बिल का कांग्रेस भी समर्थन कर रही है। मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार साल 2014 और 2019 के चुनाव घोषणा पत्र में बीजेपी सरकार ने 33 प्रतिशत महिला आरक्षण का वादा किया था। जो अभिओ तक नहीं मिल सका है। हालांकि अब इस मुद्दे कांग्रेस भी बीजेपी का समर्थन कर रही है। गौरतलब है कि इससे कुछ वर्षों पहले कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी ने खुद प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर इस बिल पर सरकार का साथ देने का आश्वासन दिया था।
इसके बाद साल 2018 में राहुल गाँधी ने एक बार और पत्र लिखकर महिला आरक्षण बिल पर सरकार को अपनी पार्टी के समर्थन की बात दोहराई थी। इस बार भी कैबिनेट की बैठक में कांग्रेस पार्टी ने विशेष सत्र में इस बिल को पारित कराने की मांग पर जोर डाला था ।
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