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अविवाहित रहना पसंद कर रहीं हैं महिलाएं

भारतीय समाज का ताना-बाना इस कदर बुना हुआ है कि लड़कियों को जन्म से ही शिक्षा दी जाने लगती है कि आगे चलकर वह एक अच्छी बीवी, मां बन सकें। लेकिन धीरे-धीरे अब बदलाव की बयार बहने लगी है। बड़ी संख्या में लड़कियां अब अविवाहित रहने का विकल्प चुनकर अपने अकेले रहने और  आजादी की राह चुन रही हैं। ‘बंबल डेटिंग एप’ के अनुसार भारत में वर्ष 2018 से लगातार डेटिंग ऐप में हैशटैग ‘कॉन्शियसली सिंगल’ का चलन अधिक लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि लोग विशेष रूप से महिलाएं अविवाहित रहना पसंद कर रही हैं

हमारे समाज में अक्सर लड़कियों को लेकर कहा सुना जाता है कि ‘इसे ज्यादा पढ़ाकर क्या करेंगे? कल को शादी कर दूसरे के घर जाएगी।’ इस तरह के बोल कभी न कभी एक लड़की और औरत होने के नाते आपके कानों में भी पड़े ही होंगे। भारतीय समाज का ताना-बाना ही इस कदर बुना हुआ है कि पारंपरिक तौर पर एक लड़की को पाला-पोसा ही ऐसे जाता है कि आगे चलकर वह एक अच्छी बीवी, मां बन सकें। बस उनकी जिंदगी का एक अहम मकसद जैसे शादी ही हो लेकिन धीरे-धीरे अब बदलाव की बयार बहने लगी है। बड़ी संख्या में लड़कियां अब अविवाहित रहने का विकल्प चुनकर अपने अकेले रहने और आजादी की राह चुन रही हैं।

सोशल मीडिया पर भी सिंगल रहने का क्रेज सिर चढ़कर बोल रहा है। बकायदा पूरे देश की अकेली महिलाओं को एकजुट करने के लिए फेसबुक, डेटिंग ऐपों पर हैशटैग ‘कॉन्शियसली सिंगल’ का चलन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। दरअसल पिछले कुछ वर्षों से अविवाहित महिलाएं शादी से खुद को दूर करना चाहने लगी हैं और अकेले रहने की इच्छा जाहिर कर रही हैं। ‘बंबल डेटिंग एप’ के अनुसार वर्ष 2018 से लगातार भारत में डेटिंग ऐप में हैशटैग ‘कॉन्शियसली सिंगल’ चलन अधिक लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि अविवाहित लोग विशेष रूप से महिलाएं अकेला रहना पसंद कर रही हैं।

प्रसिद्ध डेटिंग ऐप ‘बंबल’ ने एक सर्वे किया है जिसके अनुसार, 5 में से लगभग 2 यानी 39 प्रतिशत, भारतीय डेटिंग ऐप इस्तेमाल कर रहे युवक-युवतियों का मानना है कि उनके परिवार वाले उनसे शादी के लिए पारंपरिक जोड़े बनाने का आग्रह करते हैं और जल्द से जल्द शादी करने का दबाव डालते हैं। इस ऐप के द्वारा किए गए सर्वे में जब लोगों से यह पूछा गया कि उनकी शादी करने की इच्छा कब होती है? तब उनके द्वारा बताया गया कि उनकी स्वयं की इच्छा नहीं है कि वह शादी के बंधन में बंधें, बल्कि उनकी इच्छा होती है कि वह अपनी जिंदगी के इस महत्वपूर्ण समय में भविष्य की ओर ध्यान दें। अल्हड़पन से निकल कर जवानी में जाने का मतलब शादी करना नहीं बल्कि, अपने भविष्य को सुधारने के मार्ग ढूंढना है लेकिन समाज में चल रही रूढ़िवादी प्रथाओं ने इस महत्वपूर्ण विषय को दरकिनार कर दिया है और शादी को महत्वपूर्ण स्थान दे दिया है।

सर्वे के आंकड़ों के अनुसार इसके लिए परिवार के सदस्यों का प्रेशर झेलने और शादी करने के आंकड़े हर साल बढ़ते जा रहे हैं। इस वर्ष इसका आंकड़ा 39 प्रतिशत दर्ज किया गया है। इन आंकड़ों में दी गई राय के मुताबिक अविवाहित भारतीय एक दीर्घकालीन संबंध के लिए खुद को तैयार महसूस नहीं करते हैं। उनके अनुसार यह उनके ऊपर थोपा गया निर्णय होता है। इस सर्वे के दौरान की गई पूछताछ में भारत में 81 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे अविवाहित होने और अकेले रहने में अधिक सहज महसूस करती हैं। किसी के साथ डेटिंग करते समय, 63 प्रतिशत उत्तरदाताओं का कहना है कि वे अपनी जरूरतों, प्राथमिकताओं या आवश्यकताओं को आग में झोंकना पसंद नहीं करती हैं। वास्तव में, 81 से 83 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि ऐसा नहीं है कि वे विवाहित जीवन नहीं जीना चाहती बल्कि वह तब तक प्रतीक्षा करने के लिए तैयार हैं जब तक उन्हें सही व्यक्ति नहीं मिल जाता और ऐसे व्यक्ति की तलाश में वह आजीवन इंतजार करने को तैयार हैं।

विशेषज्ञ कहते हैं कि श्शादी से जुड़े फंक्शन्स और इवेंट्स में खुशियों के सेलिब्रेशन की रौनक तो होती है, लेकिन क्या कभी किसी ने गौर किया है कि शादियों में शामिल होने वाले लोगों के साथ-साथ वह लोग भी खुश हैं जिनकी शादी हो रही है? बहरहाल, हम भारतीय समाज के उस पहलू की बात कर रहे हैं जहां शादी में शामिल होने वाले लोगों की खुशी का तो पूरा ध्यान रखा जाता है लेकिन जिनकी शादी हो रही होती है उनको परिवार वालों द्वारा प्रेशराइज्ड कर जबरदस्ती शादी जैसे बंधन में बांध दिया जाता है। जिनमें पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अधिक है।

अफसोस कि इस आधुनिककाल में भी हमारे यहां शादी एक राष्ट्रीय मुद्दा है। शादी करना, न करना, सही समय पर करना, शादी के बाद ही बच्चा पैदा करना, बिना शादी के हुए बच्चों को नाजायज और न जाने क्या-क्या सब समाज के भीतर जमी गहरी जड़ की तरह शादी नामक संस्थान लोगों के बिस्तर तक घुस कर तय करता है। शादी नामक संस्थान में मेरा रत्ती भर विश्वास नहीं है। मेरा मानना है कि बरसों से चला आ रहा लिव इन रिलेशनशिप का कॉन्सेप्ट एक दिन इस संस्थान की धज्जियां उड़ा देगा। इन सबके इतर मुझे वो प्रेमी जोड़े बहुत भाते हैं जिनमें किसी प्रकार का आडंबर नहीं। भले ही वो जोड़े शादी करके क्यों न बने हों।
शोभा अक्षरा, लेखिका एवं सोशल एक्टिविस्ट

 

समाज में चल रही इस प्रथा को देखा जाए तो यह एक जुए की तरह है, परिवार वाले अपने बच्चों को जिस तरह अनचाही शादी के लिए दबाव बनाते हैं यह बिलकुल जुए की उस बाजी की तरह है जिसमें आपकी जीत और हार आने वाले नंबर पर निर्भर करती है। क्योंकि यह एक ऐसा रिश्ता होता है जिसमें दोनों ही लोग जिनकी शादी होनी है एक-दूसरे के बारे में केवल अनुमान लगा सकते हैं लेकिन वह असल में उनके साथ जीवन व्यतीत कर पाएंगे या नहीं ये केवल आने वाले समय पर निर्भर करता है और ऐसी स्थितियों में सबसे ज्यादा महिलाएं पीड़ा सहती हैं। वह अपना घर छोड़ एक ऐसे व्यक्ति के साथ जाकर रहने के लिए विवश कर दी जाती हैं, जिनके बारे में वह कुछ जानती तक नहीं हैं।
आशी, पत्रकार



ऐसा नहीं है कि हम लड़कियां शादी ही नहीं करना चाहती। मेरे मन में हमेशा एक ऐसा सवाल उत्पन्न होता है जो शादी को लेकर मेरे भय का कारण बनता है कि शादी के पहले जिस तरह की आजादी हमें मिलती है उसकी गारंटी कि शादी के बाद होना बेहद कम है। पढ़ाई हमारे लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन ऐसा देखा गया है शादी के बाद पढ़ाई का हमारे जीवन में अस्तित्व कई कारणों से खत्म हो जाता है। इसलिए शादी से पहले अपने सपनों में किसी और को शामिल करने से पहले उसको जान लेना बेहतर समझती हूं।’
प्रियंका यादव, छात्रा

 



शादी करना गलत नहीं है लेकिन इसको लेकर जो डर है वो हमें विवश करता है कि हम इससे बचें। आस-पास के कई विवाहित जोड़ों को देखने के बाद लगता है कि शादी न करो तो ही बढ़िया है। क्योंकि बहुत-सी लड़कियों को मैंने शादी के बाद परेशान ही पाया है। मेरी कई विवाहित महिला मित्र कहती हैं कि अब वो पति और ससुराल की मर्जी के बिना कुछ नहीं कर सकती हैं। मुझे लगता है लड़कियां अकेले भी रह सकती हैं। उसके लिए शादी ही एकमात्र उपाय नहीं है।
नीतू टीटान, पत्रकार

 

 

प्रेशराइज्ड मैरिज
इस समय जहां बराबरी और आधुनिक समाज की गणना की जा रही है वहीं समाज के बड़े तबके ने अभी तक पुरानी प्रथाओं को जकड कर रखा हुआ है। आज के आधुनिक समय में भी लोगों का सिंगल रहकर अपना जीवन व्यतीत करना ऐसा माना जाता है जैसे वह शापित किए गए हों। इस सर्वे में यह भी पाया गया कि इस मुद्दे पर गौर दिया जाना बेहद अनिवार्य है। ‘प्रेशर मैरिज’ का इफेक्ट न केवल दो जिंदगियों अपितु उसके आस-पास के लोगों पर भी पड़ता है। इससे व्यक्ति अवसाद के साथ-साथ कई तरह की मानसिक बीमारियों से भी जूझते रहते हैं जिससे समाज में खतरनाक विवादों और घटनाओं का जन्म होता है। हालांकि यह मुद्दा सदियों से नजरअंदाज कर लोगों पर उनकी मर्जी के खिलाफ थोपा जाता रहा है, लेकिन अब युवा पढ़ी इसके लिए कदम उठा रही है और इस मुद्दे को लेकर खुलकर बात भी कर रहे हैं।

 

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