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शांति बहाली में महिलाएं निभा सकती हैं अहम भूमिका

मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही। बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास विफल भी होते नजर आ रहे हैं। 28 लाख जनसंख्या वाले मणिपुर में करीब 40 हजार सैनिकों को हिंसा को रोकने के लिए तैनात किया गया है। लेकिन उसके बावजूद भी हमले व मौत की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। अबतक 125 से ज्यादा लोग अपनी जान गवां चुके हैं। हाल ही में थौबल जिले में 4 जुलाई को एक भीड़ ने कथित तौर पर भारतीय आरक्षित बटालियन के एक शिविर से हथियार चुराने का प्रयास किया जिसके बाद सुरक्षा बलों के साथ झड़प हुई जिसमें 27 वर्षीय एक व्यक्ति की मौत हो गई। बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए पूर्वोत्तर की महिलायें अब आगे आयी हैं। मीरा पैबीस ,इमा कैथल जैसे महिला संगठन इन दिनों मणिपुर में शांति बहाली करने की मुहिम चला रहे हैं।

भारतीय राष्ट्रीय महिला फेडरेशन ( एनएफआईडब्लु ) के अनुसार हिंसा में सबसे ज़्यादा असर बच्चों और महिलाओं पर पड़ता है। दरअसल (एनएफआईडब्लु ) की एक तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम मणिपुर से लौटी है। इस टीम ने मणिपुर दौरे के दौरान पाया कि मणिपुर में सांप्रदायिक हिंसा नहीं हो रही है, न ही वहां दो समुदायों के बीच कोई फसाद है। बल्कि ये ज़मीन, संसाधनों की बात है, साथ ही वहां चरमपंथियों की मौजूदगी है। इन सबके पीछे सरकार का प्रो-कॉरपोरेट एजेंडा लगता है। इस टीम ने हिंसा ग्रस्त लोगों से बातचीत करने के अलावा महिला संगठन मीरा पैबीस से भी बातचीत की। NFIW के कहने अनुसार यहां की महिलाएं काफी मुखर है। मीरा पैबीस महिला संगठन इन दिनों काफी चर्चित हैं। मौजूदा समय में ये महिला संगठन रात में मशालें लेकर गांवों की रक्षा करता है।

 

सरकार की चुप्पी से परेशान महिलाएं

 

राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह बढ़ती हिंसात्मक स्थिति को संभाल नहीं पा रहे। जिस वजह से मुख्यमंत्री पर विपक्षियों द्वारा लगातार इस्तीफ़ा दिए जाने का दबाव बनाया जा रहा था। विपक्षियों के मुताबिक मुख्यमंत्री राज्य नहीं संभाल पा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ राज्य के नौ विधायकों ने भी बीते दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय में पीएम मोदी के नाम ज्ञापन सौंपकर प्रदेश नेतृत्व पर सवाल उठाए थे। जिससे उन पर इस्तीफे का दबाव बढ़ रहा था। लेकिन जब 30 जून को बीरेन सिंह राजभवन के लिए निकले थे। लेकिन इससे पहले महिला समर्थकों ने जाम लगा कर उन्हें आगे नहीं जाने दिया। इसके साथ ही कुछ महिला समर्थकों ने मुख्यमंत्री के इस्तीफे को फाड़कर उनसे इस्तीफे को न देने का अनुरोध किया। फटे त्यागपत्र की तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई । इस घटना के बाद बीरेन सिंह द्वारा यह निर्णय लिया गया कि फिलहाल वो अपने पद से इस्तीफ़ा नहीं देंगे। ‘ इससे पहले अटकलें थीं कि वे राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाकात करेंगे और अपना इस्तीफा सौंपेंगे। लेकिन सीएम के एलान के साथ ही उनके इस्तीफे की अटकलों पर विराम लग गया है।

पूर्वोत्तर की महिलाएं परिवार की मुखिया होती हैं। एक मुखियां की तरह ही इन दिनों ये महिलाएं मणिपुर में सक्रिय है। दो महीने से चल रहे जातीय हिंसा और आगजनी की चपेट में जल रहे मणिपुर की स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। राजनीतिक दलों ने महिलाओं को राजनीति में समुचित भागीदारी भले ही नहीं दी हो लेकिन इन महिलाओं के आंदोलन के आगे ब्रिटिश शासन से लेकर तमाम सरकारें झुकती आई हैं। राज्य में शराबबंदी समेत कई फैसलों के पीछे महिलाओं के आंदोलन की अहम भूमिका रही है। सम्भवतः इस वजह से मणिपुर में महिलाएं हमेशा से ही केंद्र में रही हैं।

मणिपुर में दो समुदायों के बीच हो रही हिंसा ने बच्चों और बुजुर्गों समेत महिलाओं को भी नहीं छोड़ रहे हैं। मणिपुर हाल का मुआयना करने के लिए दिल्ली से मणिपुर भारतीय महिला फेडरेशन क टीम 28 जून से 1 जुलाई तक का मुआयना करने के लिए मणिपुर पहुंची थी। इसी संदर्भ में तीन जुलाई को इस संगठन ने प्रैस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि उन्होंने मणिपुर के रिलीफ कैंप को खुद उन्होंने देखा सुना है ,आखिर ये सरकार चुप क्यों हैं। गौरतलब कि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 125 से ज्यादा लोगों की जान चुकी हैं। भारतीय महिला फेडरेशन के मुताबिक मणिपुर की महिलाएं मुखर हैं। वे राज्य में शांति व सुरक्षा को बनाए रखना चाहती हैं।

 

सेना और महिलाएं

 

24 जून को एक ऐसी घटना घटी जिससे मणिपुर की महिलायें चर्चित हो गई। दरअसल इस दौरान डेढ़ हजार महिलाओं ने 12 उग्रवादियों को सेना की कैद से मुक्त कराया था। इसके अलावा महिलाएं सेना गतिविधियों में अवरोध भी उतपन्न कर रही हैं। इसी संदर्भ में बीबीसी की एक रिपोर्ट अनुसार भारतीय सेना ने एक बयान जारी कर कहा कि स्थानीय महिला एक्टिविस्ट जानबूझकर उनका रास्ता रोकती हैं और सुरक्षाबलों के काम में हस्तक्षेप कर रही हैं। सेना ने महिलाओं के इस कदम को गैरकानूनी और राज्य की कानून व्यवस्था के लिए नुकसानदायक बताया था। सेना ने महिलाओं पर उग्रवादियों को मदद पहुँचाने का गंभीर आरोप लगाया है। मणिपुर घाटी में मीरा पैबी से जुड़ी महिलाएं विरोध प्रदर्शनों और नाकेबंदी का नेतृत्व कर रही हैं और वह कई बार सुरक्षाबलों को ऑपरेशन करने से रोकती हैं। जिससे मालूम होता है कि मणिपुर की क्रन्तिकारी महिलाओं को सेना पर विश्वास नहीं हैं। इसी वजह से मणिपुर की महिलाओ ने वहां का मोर्चा संभाला हैं।

गौरतलब है कि मणिपुर की महिलाओं ने शांति बहाली की मांग करते हुए जुलूस निकाला था। दिन में महिलाएं अलग -अलग गुट बनाकर उग्रवादियों से अपने गावों की सुरक्षा कर रही हैं। महिला आंदोलन की बागडोर संभाल रही मीरा पैबी ( महिला मशाल वाहक ) से लेकर इमा कैथल यानी मदर्स मार्केट से जुडे महिला संगठन उग्रवादियों से अब खुद अपने इलाके को सुरक्षित रख रही हैं। महिलाएं रात -रात भर जाग कर घरों की पहरेदारी करती हैं।

महिलाएं निभा सकती है शांति बहाली में भूमिका

 

 

 

विश्लेषकों की माने तो जातीय हिंसा के चलते लगातार उलझती परिस्थिति को सुलझाने में राज्य की महिलाएं अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं। इतिहास में पूर्वोत्तर की महिलाओं ने कई सामजिक समस्याओं के खिलाफ बड़े आंदोलन कर जीत हासिल की है।

महिला आंदोलन के चलते ही असम राइफल्स को इंफाल में कांग्ला फोर्ट से अपना मुख्यालय हटाना पड़ा था। सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) के खिलाफ इरोम शर्मिला के सोलह साल लंबे आंदोलन से तो पूरी दुनिया परिचित है। सेना को हटाने के उदेश्य से उन्होंने लम्बी भूंख हड़ताल की थी।

इसके अलावा अफस्पा के कथित अत्याचारों के खिलाफ वर्ष 2004 में महिलाएं के निर्वस्त्र प्रदर्शन की तस्वीरों ने भी पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थी। असम राइफल्स के खिलाफ राजधानी इंफाल में जिन 12 महिलाओं ने नग्न प्रदर्शन किया था उनमें नांगबाई लोयरेबम भी शामिल थीं। 72 साल की हो चुकीं नांगबाई आज भी मणिपुर में जारी हिंसा को रोकने की दिशा में मीरा पैबी संगठन की कमान संभाले हुए हैं। बीबीसी की रिपोर्ट मुताबिक कुछ महिलाएं धरना दे रही हैं तो कुछ महिलाएं हिंसा पीड़ित लोगों की मदद करने के लिए अलग-अलग इलाकों में जाती हैं।

चुकीं नांगबाई के कहने अनुसार प्रदेश में जब से हिंसा शुरू हुई है वहां की महिलाओं ने चैन से नींद तक नहीं ली है। सुरक्षाबलों पर हमें भरोसा नहीं है और सरकार हमारी बात सुन नहीं रही है। हमें बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि अगर केंद्र और राज्य सरकार हमारी मदद करती है तो सभी माताएं और मीरा पैबी युद्ध रोकने के लिए संघर्षपूर्ण मोर्चे पर जाने के लिए तैयार हैं। मौजूदा परिस्थिति में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर घर-परिवार और समाज की सुरक्षा के लिए सड़कों पर उतर आई हैं।

डी डब्लू की एक रिपोर्ट अनुसार राजधानी इंफाल का इमा मार्केट जिसे मदर्स मार्केट भी कहा जाता है। यह अकेला एक ऐसा बाजार है जहां सभी दुकानदार महिलाएं ही हैं। यानी इस बाजार को महिलाएं चला रही हैं। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि यहां सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की भूमिका कितनी अहम है। इमा कैथल या मदर्स मार्केट की महिला दुकानदार राज्य में शांति और सामान्य स्थिति की बहाली की मांग को लेकर तीन दिवसीय धरना-प्रदर्शन भी कर चुकी हैं। ईमा कैथल संगठन की प्रचार सचिव पुइनाबती कोंसम जिनकी उम्र 58 वर्ष की है। उनका कहना है कि मैतेई लोगों पर जिस समय हमला हुआ था उस समय असम राइफल्स चुप चाप हुए देख रहे थे, उस दौरान हमारे लोग बड़ी बेरहमी से मारे गए। जिससे लोगों का भरोसा उनपर से कम हुआ है। पहाड़ियों से हम पर बहुत गोलियां बरसाई गईं लेकिन किसी ने हमारी हिफ़ाजत नहीं की. हम अब ख़ुद को बचाने के लिए गांव की रखवाली करते हैं. शायद इसलिए सेना को गांव में घुसने से लोगों ने रोका होगा।

मणिपुर में शुरू हुई हिंसा के बाद से इमा कैथल की महिलाओं ने ख़्वैरमबंद इमा कैथल जॉइंट कोऑर्डिनेटिंग कमेटी फ़ॉर पीस का गठन किया है। इस समिति के ज़रिए ये महिलाएं अपने समुदाय की मदद के लिए आवाज़ उठा रही हैं। पुइनाबती कोंसम के कहने अनुसार जबसे प्रदेश में हिंसा भड़की है तब से प्रदेश के लोगों का जीवन ख़तरे में पड़ गया है। इसलिए इमा मार्केट की हम क़रीब 7,000 महिलाएं शांति के लिए एक कमेटी बनाकर हरसंभव प्रयास कर रही हैं ताकि हमारे प्रदेश में हिंसा बंद हो सके। उन्होंने केंद्र सरकार के कई मंत्रियों और मानवाधिकार संस्थाओं के समक्ष अपनी बात रखी है।

 

महिलाओं ने बंद कराई शराब

 

गौरतलब है कि राज्य की महिलाओं के कड़े विरोध के कारण ही वर्ष 1991 में मणिपुर में आर.के. रणबीर सिंह के नेतृत्व वाली पीपुल्स पार्टी सरकार को मणिपुर शराब निषेध अधिनियम पारित करना पड़ा था। सालाना छह सौ करोड़ के राजस्व घाटे को पाटने के लिए मौजूदा मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने बीते दिनों शराबबंदी को आंतरिक रूप से हटाने का फैसला किया था। लेकिन महिला संगठनों के विरोध के कारण वह फैसला परवान नहीं चढ़ सका। सत्तर के दशक में महिलाओं ने तमाम गांवों की गश्त करते हुए हजारों शराबियों और शराब तस्करों को पकड़ा और सजा भी दी थी। ‘नशा बंद’ नामक इस अभियान ने उस समय काफी सुर्खियां बटोरी थी।

 

सुरक्षा केंद्रीय बलों के खिलाफ महिलाओं की नराजगी

 

राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधियों और केंद्रीय सुरक्षा बलों के खिलाफ भी महिलाओं में नाराजगी बढ़ रही है। महिला संगठन रास्ता रोक कर सुरक्षा बल के जवानों को गांवों में नहीं घुसने दे रही हैं। इसका एक कारण यह भी है कि वर्ष 1980 में सुरक्षा बलों के कथित अत्याचारों से युवा पीढ़ी की सुरक्षा के लिए तमाम महिलाओं ने मिल कर ‘मीरा पैबीस’ नामक आंदोलन शुरू किया था। इसके तहत महिलाएं अलग-अलग गुटों में अपने-अपने इलाके पर निगाह रखती थी ताकि सुरक्षा बल उग्रवाद के बहाने बिना वजह युवाओं की गिरफ्तारी या हत्या न कर सकें। वर्ष 1992 से 1996 के चार साल के दौरान नागा और कुकी समुदाय में जारी जातीय हिंसा में भी मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर अंकुश लगाने में स्थानीय महिलाओं की भूमिका काफी अहम रही थी।

बीबीसी अनुसार मौजूदा समय में अफस्पा के खिलाफ लंबे समय तक भूख हड़ताल करने वाली इरोम शर्मिला ने हाल में राज्य की तमाम महिलाओं से अपनी जातीय पहचान से ऊपर उठ कर संकट की इस घड़ी में राज्य के लोगों के हित में एकजुट होकर काम करने की अपील की है। मणिपुर में जारी हिंसा और सरकार की भूमिका पर मीरा पैबी की वरिष्ठ कार्यकर्ता नांगबाई लोयरेबम ने बीबीसी से कहा, “मणिपुर में संघर्ष विराम के दौरान मैतेई लोगों पर हमला हुआ. सैकड़ों लोगों की जान गई , केंद्र और मणिपुर की सरकार को बुनियादी नियमों को तोड़ने वाले इन समूहों के ख़िलाफ़ ठोस कार्रवाई करनी चाहिए थी लेकिन कुछ नहीं किया गया,इसलिए हम महिलाएं अब ख़ुद अपनी ज़मीन और समुदाय की सुरक्षा कर रहे हैं। हम शांति और मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता बचाने के लिए रक्षा की मुद्रा में हैं।

 

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