- प्रियंका यादव
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर जारी हुई विश्व बैंक की रिपोर्ट ‘वूमेन बिजनेस एंड द लॉ 2023’ के मुताबिक पुरुषों के मुकाबले अट्टिकारों में महिलाएं आज भी मीलों दूर हैं
भले ही आज हम यह कहकर अपनी पीठ थपथपा लें कि महिलाएं चांद पर पहुंच गई हैं, फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं, ओलंपिक में पदक जीत रही हैं, बड़ी-बड़ी कंपनियां चला रही हैं या राष्ट्रपति बनकर देश की बागडोर संभाल रही हैं, लेकिन दुनियाभर में आज भी पुरुषों के समान अधिकारों से 77 प्रतिशत महिलाएं वंचित हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर विश्व बैंक द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्तर पर समान अधिकारों से 240 करोड़ महिलाये वंचित हो रही हैं जो कि लैंगिक असामनता को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका निभा रहा है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट ‘वूमेन बिजनेस एंड द लॉ 2023’ के मुताबिक पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों का मुश्किल से 77 फीसदी ही लाभ ले पाती हैं। वहीं इस दिशा में होती प्रगति की बात करें तो कानून के तहत महिलाओं को भी समान उपचार मिले इस दिशा में हो रहे सुधार की गति पिछले 20 वर्षों के सबसे निचले स्तर पर आ गई है। रिपोर्ट की मानें तो दुनिया भर में कामकाजी उम्र की, करीब 240 करोड़ महिलाओं को अभी भी पुरूषों के समान अधिकार नहीं मिले हैं। रोजगार में मौजूद लिंग संबंधी भेदभाव के इस अंर्त को यदि भर दिया जाता है तो हर देश में प्रति व्यक्ति दीर्घकालिक सकल घरेलू उत्पाद 20 फीसदी बढ़ सकता है। अगर महिलाएं पुरुषों की बराबर नए व्यवसाय शुरू और उनका विस्तार करती है तो इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 495.4 लाख करोड़ रुपए का फायदा हो सकता है।
वर्ष 2022 के लिए विश्व बैंक द्वारा महिलाओं के लिए जारी किए गए व्यवसाय और कानून सूचकांक में औसत स्कोर केवल आधा अंक बढ़कर 77.1 पर पहुंचा है। सुधार की दिशा में यह गिरावट विश्व स्तर पर ऐसे महत्वपूर्ण समय में आर्थिक विकास के लिए एक बड़ी बाधा बन गई है। इसी संदर्भ में विश्व बैंक समूह के मुख्य अर्थशास्त्री और डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स के वाइस प्रेसिडेंट इंदरमित गिल का कहना है कि, ‘ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की गति धीमी हो रही है, ऐसे में सभी देशों को इस संकट का सामना करने के लिए अपनी पूरी उत्पादक क्षमता को संगठित करने की जरूरत है विश्व भर की महिलाओं को समान अधिकारों से वंचित कर देना न सिर्फ महिलाओं के लिए ठीक नहीं, बल्कि यह पर्यावरण अनुकूल समावेशी विकास को बढ़ावा देने की देशों की क्षमता के लिए भी बड़ी बाधा है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि रोजगार में प्रवेश करने वाली लगभग एक औसत महिलाएं पुरुषों के बराबर अधिकार पाने से पहले ही रिटायर हो जाएगी। रिपोर्ट में पिछले वर्ष 2022 के अक्टूबर तक के आकड़े शामिल किए गए हैं। जो कि लैंगिक समानता के वैश्विक प्रगति को मापने के उदेश्य से दिए गए हैं। रिपोर्ट में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी से संबंधित आठ क्षेत्रों में 190 देशों के कानूनों और नियमों का आकलन किया गया है। इन क्षेत्रों में गतिशीलता, कार्यस्थल, वेतन, विवाह, मातृत्व, उद्यमिता, संपत्ति और पेंशन जैसे मुद्दे शामिल किए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हर जगह पर्याप्त कानूनी लैंगिक समानता तक पहुंचने के लिए 1 हजार 549 सुधार करने होंगे।
वर्ष 1970 के बाद से, वैश्विक औसत महिला व्यवसाय और कानून स्कोर में करीब दो-तिहाई का सुधार हुआ है,जो 45.8 से बढ़कर 2022 में 77.1 पर पहुंच गया। इस सदी के पहले दशक में कानूनी लैंगिक समानता की दिशा में अच्छा-खासा फायदा दर्ज किया गया था। साल 2000 से 2009 के बीच, जहां 600 से ज्यादा सुधार किए गए थे। वहीं 2002 से 2008 में 73 वार्षिक सुधारों को किया गया। इसके बाद से लैंगिक समानता की सुधार की रफ्तार में कमी दिखाई देने लगी। विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जिनमें लंबे समय से मानदंड स्थापित है। रिपोर्ट के मुताबिक संपत्ति में महिलाओं का अधिकार और संपत्ति का मालिकाना हक की दिशा में विकास काफी धीमा है। लेकिन उप-सहारा अफ्रीका में पिछले साल इस मामले में काफी विकास किया गया है। अफ्रीका ने पिछले साल विश्व स्तर पर हुए सभी सुधारों में करीब आधे से ज्यादा का योगदान दिया है। बेनिन, कांगो रिपब्लिक, कोटे डी आइवर, गैबान, मलावी, सेनेगल और युगांडा ने 18 सकारात्मक कानूनी परिवर्तन दर्ज किए हैं। हालांकि अभी भी महिलाओं को कानून के तहत समान अवसर दिलाने की दिशा में काफी कुछ करने की जरूरत है, जिससे अच्छे इरादों के साथ ठोस परिणाम प्राप्त हो सकें।
पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा गरीबी
कार्यक्षेत्र में शीर्ष पदों पर महिलाओं का न होना लैंगिक असमानता की एक मुख्य वजह बनी है। विश्वभर में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा गरीबी देखी गई है। वैश्विक स्तर पर 380 मिलियन महिलाएं और लड़कियां गरीबी के निचले स्तर पर जीवन यापन करने के लिए मजबूर है। अगर यही ट्रेंड चलता रहा तो 2030 तक महिलाओं में और गरीबी बढ़ जाएगी। पिछले साल जारी की गई रिपोर्ट में महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर कहा गया है कि असुरक्षित अबॉर्शन, मातृत्व मृत्यु दर की अधिकता का सबसे बड़ा कारण है। वर्तमान में 1 .2 बिलियन प्रजनन आयु वाली महिलाएं और लड़कियां ऐसे देशों और क्षेत्रों में रहती हैं जहां सुरक्षित अबॉर्शन पर रोक है। 102 मिलियन महिलाएं ऐसे क्षेत्र में रहती है जहां अबॉर्शन पर प्रतिबंध लगा है। ऐसी स्थिति महिलाएं के यौन प्रजनन अधिकारों की वास्तविकता को दिखाती है। वर्ष 2015 संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया के बेहतर भविष्य के लिए 17 सतत विकास लक्ष्य और 169 उद्देश्य सतत विकास 2030 तक हासिल करने का लक्ष्य बनाया था। जिसे सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने विकास के 17 लक्ष्यों को आम सहमति से
स्वीकार किया था। लैंगिक समानता इन लक्ष्यों में से एक है। इन लक्ष्यों को हासिल करने में भारत 2030 के तय सीमा से बहुत दूर है। लगातार दो साल से देश की सतत विकास लक्ष्य सूचकांक में गिरावट देखी गई है।
गौरतलब है कि महिलाएं परिवार बनाती हैं। परिवार घर बनाता है। घर समाज बनाता है और समाज ही देश बनाता है। इसका सीधा अर्थ यही है कि महिलाओं का योगदान हर जगह है।
महिलाओं की क्षमता को नजरअंदाज करके सभ्य, शिक्षित और विकसित समाज की कल्पना व्यर्थ है। शिक्षा और महिला सशक्तीकरण के बिना परिवार, समाज और देश का विकास नहीं हो सकता है। दुनिया की सभी महिलाओं को सम्मानित करने और नारी सशक्तीकरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस भी मनाया जाता है। वैश्विक स्तर पर यह दिवस मनाए जाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 8 मार्च 1975 को हुई थी। भारत समेत विश्व के सभी देशों में महिलाओं को समर्पित यह दिन उन्हें सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। इस वर्ष भी बड़े पैमाने पर महिला दिवस मनाया गया। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या हम इसके उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल हो पा रहे हैं?
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के पीछे सबसे बड़ा उद्देश्य महिलाओं को सम्मान के साथ समान अधिकार देना तथा उन पर होने वाले अत्याचारों और अधिकारों के प्रति उनमें जागरूकता फैलाना है। हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के संदर्भ में कोई ना कोई थीम दी जाती है। वर्ष 2022 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम ’जेंडर इक्वलिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टूमारो’ था, वहीं इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम ‘डिजिटल लैंगिक समानता के लिए नवाचार और प्रौद्योगिकी’ दी गई थी। इस थीम के पीछे यह विचार था कि लैंगिक समानता प्राप्त करने और सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्तिकरण के लिए डिजिटल युग में नवाचार और तकनीकी परिवर्तन उच्च शिक्षा प्राप्त हो।
लेकिन हकीकत यह है कि पिछले कुछ दशकों में महिलाओं की स्थिति में धीरे-धीरे ही सही सुधार हो रहा है। पहले की तुलना में उन्हें उनके अधिकार भी मिल रहे हैं और वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी हो रही हैं। लेकिन 21वी सदी में महिलाएं पुरुषों के बराबर नहीं हैं। बात करें विश्व या राष्ट्रीय स्तर पर तो महिलाओं की संख्या लगभग आधी है, अर्थात महिलाओं और पुरुषों की जनसंख्या बराबर मानी जाती है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि अगर महिलाओं और पुरुषों की संख्या बराबर है तो हर एक क्षेत्र में महिलाओं और पुरुषों की भागीदारी भी बराबर होनी चाहिए। लेकिन आंकड़ों के हिसाब से अभी भी महिलाएं पुरुषों के मुकाबले काफी पीछे नजर आती हैं।