आज एक ओर जहाँ विश्व का हर देश तेजी से विकास की ओर बढ़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर मनुष्य की मानसिकता का विकास उतनी ही धीमी गति से हो रहा है। यही कारण है की आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी महिलाओं की स्थिति में अधिक सुधार नहीं आया है और जितना आया है उसे भी लोग स्वीकार नहीं करना चाहते। एक परिवार को गढ़ने में महिला और पुरुष दोनों की बराबर भागीदारी होती है। लेकिन इसके बावजूद हमेशा ही महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमतर आंका गया है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी किये गए ‘लैंगिक सामाजिक मानदंड सूचकांक’ इसी असमानता को जाहिर करते हैं । रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर के लोगों की महिलाओं के प्रति मानसिकता व महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रहों में पिछले एक दशक के भीतर कोई सुधार नहीं आया है। आज भी दुनिया के 10 में से लगभग 9 लोगों (मतलब 90 फीसदी) जिनमें महिलाएं भी शामिल है, यह मानते हैं कि महिलाओं की तुलना में पुरुष ज्यादा बेहतर हैं। यूएनडीपी के मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय के प्रमुख पेड्रो कॉन्सेइकाओ का भी यही कहना है कि, महिलाओं के अधिकारों को ध्वस्त करते ये सामाजिक मानदंड, व्यापक तौर पर समाज के लिए हानिकारक हैं, और मानव विकास का विस्तार होने से रोकते हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े
रिपोर्ट के मुताबिक आज भी दुनिया के 40 प्रतिशत से अधिक लोगों का यही मानना है कि पुरुष महिलाओं की तुलना में बेहतर व्यावसायिक अधिकारी बनते हैं। अर्थात व्यावसायिक प्रबन्धन में पुरुषों को महिलाओं से अधिक सक्षम समझा जाता है।आँकड़े यह भी दर्शाते हैं कि 25 प्रतिशत लोग, पुरुषों द्वारा अपनी पत्नी को पीटना जायज ठहराते हैं। उनके अनुसार अगर पति अपनी पत्नी को मरता है तो यह बिकुल सही है। जबकि 75 प्रतिशत लोग इसके सख्त खिलाफ है। रिपोर्ट में यह तर्क दिया गया है कि महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह ही महिलाओं के सामने आने वाली बाधाओं को बढ़ाते हैं, जो दुनिया के कई हिस्सों में, महिला अधिकारों के हनन का कारण बनता है। रिपोर्ट के अनुसार केवल 27 फीसदी लगों का मानना है कि लोकतंत्र में पुरुषों और महिलाओं का सामान अधिकार अनिवार्य होता है। आज विश्व की अधिकतर महिलाएं शिक्षित है, लेकिन आंकड़े दर्शाते हैं कि 28 प्रतिशत लोगों का मानना है कि महिलाओं की तुलना में, पुरुषों के लिए, विश्वविद्यालय कहीं अधिक अहम है। जबकि 72 प्रतिशत लोग इस बात का समर्थन करते हैं कि विश्विद्यालय में महिलाओं और पुरुषों की भागीदारी सामान होनी चाहिए। रोजगार की आवश्यकता महिला और पुरुष दोनों को ही है, लेकिन 46 प्रतिशत लोगों का मत है की महिलाओं की तुलना में पुरुषों को रोजगार की अधिक आवश्यकता होती है। गर्भपात गैरकानूनी है, कई मामलों में देखा गया है की महिलाओं का गर्भपात केवल इसलिए करा दिया जाता है क्यूंकि उनके गर्भ में लड़की होती है। लेकिन इसके बाद भी करीब 50 फीसदी लोगों के अनुसार गर्भपात न्यायसंगत नहीं है।
सरकार की भागीदारी
हर देश की सरकार निरंतर लैंगिक असमानताओं को खत्म करने करने का प्रयास कर रहीं हैं। इसी का परिणाम है की भारत जैसे कई देशों में महिलाओं को पढ़ने और आगे बढ़ने के लिए कई छूट और आरक्षण प्रदान किया गया है। यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार सरकार द्वारा महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के प्रयासों में कानूनों और नीतिगत उपायों में निवेश करना शामिल है जो राजनीतिक भागीदारी में महिलाओं की समानता को बढ़ावा देते हैं, बीमा तंत्र को बढ़ाते हैं। साथ ही सरकार सामाजिक सुरक्षा और देखभाल प्रणालियों को मजबूत कर रही है। सरकार उन चीजों का पूर्ण विरोध करती है जो महिलाओं को पितृसत्तात्मक सोंच के भीतर बाँधने का प्रयास करते हैं और उन्हें आगे बढ़ने से रोकती हैं। अनुमान के अनुसार महिलाओं के ख़िलाफ़ उच्च स्तर के लैंगिक पूर्वाग्रहों से ग्रस्त देशों में, अवैतनिक देखभाल कार्यों में पुरुषों की तुलना में महिलाएँ, छह गुना अधिक समय व्यतीत करती हैं।
यूएनडीपी की लैंगिक टीम के निदेशक, रैक्विल लगुनास कहते हैं कि अवैतनिक देखभाल कार्यों के आर्थिक मूल्य को मान्यता देना, महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने का पहला अहम क़दम हो सकता है। क्यूंकि अधिकतर महिलाएं अपने ही घरों में रहकर काम करती हैं। फिर चाहे उन्हें यह काम करना अच्छा लगे या बुरा लेकिन इस पितृसत्तात्मक समाज में एक लड़की होने के कारण खुद ही उनपर घर के कामों की जिम्मेदारी आ जाती है। यही कारण है कि कई देशों में महिला श्रम भागीदारी कम है। ऐसे में सरकार ने उनके अवैतनिक कार्यों को मान्यता देते हुए इन कार्यों के महिलाओं पर पड़ने वाले बोझ को कम करने के सुझाव भी दिए हैं। क्यूंकि महिलाओं के अवैतनिक कार्यों के बोझ को कम करना और आर्थिक विकास में उनकी क्षमताओं का यथासंभव प्रयोग करना, न केवल लैंगिक समानता के लिये बल्कि अर्थव्यवस्था के वास्तविक लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु भी काफी महत्त्वपूर्ण है। रिपोर्ट के इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि आज जब समाज की अधिकतर महिलायें पुराने मानदंडों को तोड़कर आगे बढ़ने का प्रयास कर रही हैं। लेकिन पुरुष प्रधान समाज के लोग इस बात को स्वीकारना नहीं चाहते और वे महिलाओं को पुरुषों से कम और निचले दर्जे का ही मानते हैं।
क्या है यूएनडीपी
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) एक संयुक्त राष्ट्र संघ का वैश्विक विकास कार्यक्रम है। यह गरीबी कम करने, आधारभूत ढाँचे के विकास और प्रजातांत्रिक को प्रोत्साहित करने का काम करता है संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक विकास नेटवर्क है न्यूयॉर्क शहर में मुख्यालय, ‘यूएनडीपी’ परिवर्तन के लिए अधिवक्ताओं और लोगों को बेहतर जीवन बनाने में सहायता करने के लिए ज्ञान, अनुभव और संसाधनों को जोड़ता है। यूएनडीपी द्वारा जारी किया गया लैंगिक सामाजिक मानदंड सूचकांक यह दर्शाता है कि कैसे सामाजिक विश्वास कई आयामों-राजनीतिक, शैक्षिक, आर्थिक और भौतिक अखं में लैंगिक समानता को बाधित कर सकते हैं। इसका निर्माण विश्व मूल्य सर्वेक्षण के सात सवालों के जवाबों के आधार पर किया गया है, जिनका उपयोग 80 देशों और क्षेत्रों के डेटा का उपयोग करके सात संकेतक बनाने के लिए किया जाता है, जिसमें वैश्विक आबादी का 85 प्रतिशत शामिल है। इसकी गणना पहली बार साल 2019 में की गई थी जिसमें 2010से 2014 तक के डेटा के साथ शामिल था। हालही में इसकी दूसरी गणना की गई जिसमे साल 2017 से 2022 तक का डेटा शामिल है।