खेल की दुनिया को हमेशा से मर्दों की दुनिया माना गया है। मर्दाना इसलिए क्योंकि कई सालों तक खेलों में स्त्रियां प्रतिभाग करती ही नहीं थीं या यूं कहें कि उन्हें शामिल ही नहीं किया जाता था। महिलाओं को कोमल समझी जाने वाली प्रवृति से अलग, शारीरिक दम-खम बढ़ाने के लिए पसीने में भीगी, कठोर दिनचर्या वाली ज़िंदगी लेकिन विडंबना ये कि उसमें भी औरत से सुंदरता और शारीरिक आकर्षण बनाए रखने की उम्मीद कायम रहती है। और हद तो ये है कि अगर वो आकर्षक बनी रहे तो खेल से ध्यान हटने का आरोप भी सबसे पहले उसी पर लगता है।
विनेश की बड़ी बहन गीता(Geeta Phogat) ने कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके करियर के शुरुआती समय में लोग घात लगाए रहते थे कि लड़की से कोई चूक हो जाए या कोई लड़का दोस्त बन जाए तो कैसे इनके मां-बाप को शर्मिंदा करके ये जता दिया जाए कि इन्हें छूट देना ग़लत था यानी लड़की खेल खेले, और आकर्षक हो तो बदचलन भी हो सकती है।

टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) में भारत के लिए पदक की दावेदार पहलवान विनेश फोगाट का सबसे पहला ‘दंगल’ (Dangal) अपनी सहूलियत के कपड़े पहनने का था। टी-शर्ट और ट्रैक-पैंट में कुश्ती करना बेहतर था, लेकिन ऐसे कपड़ों में उनके शरीर के उभार दिखने से लोगों को परेशानी थी।
हरियाणा में पली-बढ़ी विनेश (Vinesh Phogat)जब सलवार-कुर्ते की जगह चुस्त पोशाक पहनकर अभ्यास करती तो कई उंगलियां उठतीं कि लड़की को ऐसे कपड़े पहनकर घर से निकलने कैसे दिया गया। यानी लड़की अगर खेल खेले, तो तन ढका रहे और वो दंगल के अखाड़े में पारंपरिक लड़की बनी रहे, अगर कुछ लोगों का बस चलता तो वे कुश्ती(wrestling) के मुकाबले में भी घूँघट की माँग करते।
विनेश की बात हरियाणा(Haryana) के गाँव की है और पंद्रह साल पुरानी है, लेकिन दुनिया के हर कोने में, हर दौर में महिला खिलाड़ियों की पोशाक पर चर्चा कई बार उनकी मेहनत और लगन पर हावी हो जाती है। टोक्यो ओलंपिक में भी अपनी सहूलियत के कपड़े पहनने का एक दंगल चल रहा है।जर्मनी(Germany) की महिला जिमनास्टिक टीम ने जांघों से पहले खत्म होने वाली पोशाक ‘लियोटार्ड’ की जगह पूरा बदन ढँकने वाली ‘यूनीटार्ड’ पहनने का फ़ैसला किया।
उनका तर्क ये है कि ढँके बदन में उन्हें ज़्यादा सहूलियत है और मर्दों की तरह उन्हें भी इसकी आज़ादी मिलनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों(INTERNATIONAL COMPETITION) में महिला खिलाड़ियों की पोशाक अक्सर ऊंची, छोटी और तंग रहती है।

वहीं मर्दों की पोशाक के नियमों में शरीर को आकर्षक दिखाने वाले कोई कायदे नहीं हैं, सारा ध्यान खेलने की सहूलियत पर होता है।अभी तक ऐसा विवाद शायद नहीं हुआ, लेकिन अगर कोई महिला खिलाड़ी स्कर्ट की जगह, पुरुषों की तरह लंबे शॉर्ट्स में टेनिस खेलने आएगी तो न जाने क्या प्रतिक्रिया होगी? खेल(game) के नियम बनानेवालों और बाज़ार ने महिलाओं के शरीर को उनके खेल जितनी ही अहमियत जो दे रखी है यानी लड़की खेल खेले, तो चाहे जितनी दौड़-भाग हो पर वो आकर्षक बनी रहे।