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क्या राजस्थान BJP को तोड़ नई पार्टी बनाएगी वसुंधरा 

राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा समर्थकों ने हर जिले में अपना जिलाध्यक्ष बनाना शुरू कर दिया है। इसके अलावा युवा संगठन और महिला संगठन भी तैयार किए जा रहे हैं। भाजपा में यह पहली बार हो रहा है कि पार्टी के संगठन से अलग होकर किसी नेता के समर्थन में अलग संगठन तैयार किया जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को दरकिनार किए जाने से नाराज उनके समर्थकों ने अब राजस्थान में भाजपा से अलग अपना नया राजनीतिक मंच बना लिया है, जिसका नाम दिया गया है वसुंधरा राजे समर्थक राजस्थान मंच। इसके अलावा, टीम वसुंधरा के नाम से भी सोशल मीडिया में इसी मंच का एक अलग संगठन बनाया गया है।

इसे राजनीतिक गलियारों में चर्चा विषय बना दिया है। लोग यहां तक कहने लगे है कि वसुंधरा राजे अब राजस्थान भाजपा को तोड़ कर नई पार्टी बनाने की रणनीति बना रही है। वही दूसरी तरफ भाजपा आलाकमान भी शायद वसुंधरा की इस रणनीति को आक गए है।  शायद यही वजह है कि राज्य विधानसभा मे प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया सहित कई नेताओ को आगे किया जा रहा है।

वसुंधरा राजे के लिए 2020 के आखिरी महीना बड़ा झटका देने वाला साबित हुआ। दिंसबर में प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां ने आलाकमान के बात कर वसुंधरा राजे के धुर विरोधी माने जाने वाले धनश्याम तिवाड़ी की एंट्री पार्टी में करवा दी। बताया जा रहा है कि इससे राजे काफी नाराज थी। राजनीतिक लोगो का कहना है कि राजे को कमजोर करने के लिए पूनियां सहित एक तबका लगातार प्रयास कर रहा है। धनश्याम तिवाड़ी की एंट्री के साथ अब ऐसे कई नेताओं के रास्ते भी खुल गए हैं, जो कहीं ना कहीं राजे के विरोध के कारण पार्टी से अलग हुए थे।
जिनमे से एक हनुमान बेनीवाल भी है। किसान आंदोलन के बाद से हनुमान बेनीवाल ने एनडीए गठबंधन से नाता तोड़ दिया है। सियासी संकट के दौरान सीएम गहलोत और वसुंधरा राजे के खिलाफ आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल काफी कुछ बोल चुके हैं। पार्टी में उनकी परेशानियां बढ़ने का एक फैक्टर उनका भी माना जाता है। अभी हनुमान बेनीवाल राजे पर कटाक्ष करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। हनुमान बेनीवाल ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे पर आरोप लगाते हुए कहा कि जिस तरह उन्होंने संगठन की समानान्तर सूची निकाली है। इससे जाहिर हो रहा है कि राजे ने प्रत्यक्ष रूप से सीधा प्रधानमंत्री को चैलेन्ज किया है।
राजे को भाजपा आलाकमान द्वारा दो साल पहले ही उपेक्षा करनी शुरू कर दी थी।  भाजपा के सत्ता से हटने के बाद से ही वसुंधरा राजे और उनके समर्थक खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं । संगठन के महत्वूपर्ण निर्णयों में उनकी राय तक नहीं ली जा रही है। प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने प्रदेश से लेकर जिला व मंडल स्तर तक वसुंधरा राजे के विरोधियों को पार्टी मेें प्राथमिकता दी है। इनमें से अधिकाशं संघ पृष्ठभूमि से जुड़े लोग शामिल है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राज्य विधानसभा मे प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया,उप नेता राजेंद्र राठौड़ व संगठन महासचिव चंद्रशेखर का पूनिया को समर्थन हासिल है।
पूनिया, कटारिया व राठौड़ ने दिल्ली जाकर वसुंधरा राजे  की मौन स्वीकृति से उनके समर्थकों  द्वारा पार्टी के समानान्तर की जा रही गतिविधियों की जानकारी दी और कहा कि इससे संगठन को नुकसान हो सकता है। तीनों नेताओं ने वसुंधरा राजे और उनके समर्थकोंं पर लगाम लगाने का आग्रह किया। सर्वविदित है कि गत वर्ष सचिन पायलट द्वारा प्रदेश में गहलोत सरकार के लिए पैदा किए गए सियासी संकट के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चुप्पी भी उनके लिए सही नहीं रही। इस दौरान भी सतीश पूनियां और उप नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ को पार्टी ने अकेले दिल्ली बुलाया। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि वसुंधरा राजे के अंदरूनी समर्थन के कारण ही गहलोत सरकार प्रदेश में बची रही।

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