यकायक नाटकीय घटनाक्रम घटित हुआ और त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पद से मुक्ति दे दी गई। उतने ही नाटकीय अंदाज में नए सीएम तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी कराई गई है। रेस में शामिल सभी नामों को पछाड़ शिखर पुरुष बने तीरथ की ताजपोशी में सबसे महत्वपूर्ण किरदार महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी रहे जिनकी सलाह मान भाजपा आलाकमान ने तीरथ रावत का चुनाव किया
उत्तराखण्ड में नए मुख्यमंत्री की ताजपोशी के साथ ही सवाल उठने लगे हैं कि क्या नए सीएम तीरथ सिंह रावत अपने पूर्ववर्ती के चार बरस की सत्ता के दौरान फैल चुके रायते को समेट पाएंगे? सवाल यह भी फिजा में तैर रहे हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को आनन-फानन में आखिर क्यों हटाया गया? यह भी पूछा जा रहा है कि प्रचंड बहुमत वाली पार्टी ने अपने सत्तावन विधायकों की अनदेखी कर आखिर एक सांसद को सत्ता शिखर में क्यों ला बैठाया? सवाल अनगिनत हैं, उत्तर हाल फिलहाल किसी के पास नजर नहीं आ रहा है। नाना प्रकार की थ्योरियां देहरादून के सत्ता गलियारों में इन दिनों सुनी जा सकती हैं।
त्रिवेंद्र की असम्मानजनक विदाई क्यों?
चार बरस पहले जब त्रिवेंद्र सिंह रावत को भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया था तब उनके पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण कारण तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की उनको पसंद बताया गया था। अपने मुख्यमंत्रित्व काल के चार बरस दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर लगातार प्रदेश भाजपा और पार्टी विधायकों का आक्रोश बढ़ता गया लेकिन न तो त्रिवेेंद्र रावत इससे कभी विचलित नजर आए, न ही भाजपा आलाकमान ने इस असंतोष को गंभीरता से लिया। यहां तक कि भ्रष्टाचार पर अपनी ‘जीरो टाॅलरेंस’ नीति से भी पार्टी समझौता करती नजर आई। मुख्यमंत्री बनने से पूर्व 2007 में निशंक सरकार के दौरान कृषि मंत्री रहते त्रिवेंद्र रावत पर बीज खरीद में भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। ‘ढैंचा बीज घोटाला’ नाम से चर्चित इस प्रसंग की जांच एक आयोग से कराई गई थी जिसने त्रिवेंद्र रावत को दोषी करार दिया था। इसके बावजूद 2017 में उन्हें पार्टी आलाकमान ने सीएम बनाने से गुरेज नहीं किया। मुख्यमंत्री रहते भी उन पर अनेक बार भ्रष्टाचार के आरोप लगे। सबसे गंभीर आरोप उन पर झारखण्ड में भाजपा का केंद्रीय प्रभारी रहते एक भाजपा कार्यकर्ता को राज्य गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाने के लिए रिश्वत लेने का रहा। इस मामले को सामने लाने वाले पत्रकारों पर राज्य सरकार ने मुकदमे दर्ज करा डाले। मामला उत्तराखण्ड हाईकोर्ट तक पहुंचा तो कोर्ट ने सीएम के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच सीबीआई से कराने के आदेश दे डाले। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने रावत को तात्कालिक तौर पर राहत देते हुए इस आदेश पर रोक लगा दी लेकिन कभी भी इस मामले में कोर्ट का अंतिम आदेश आ सकता है। बताया जा रहा है कि प्रतिकूल आदेश की आशंका से भयभीत हो भाजपा आलाकमान ने उनकी असमय, असम्मानजनक विदाई कर डाली है। गौरतलब है कि त्रिवेेंद्र सिंह रावत 18 मार्च को अपने चार बरस का शासनकाल पूरे होने के अवसर पर पूरे प्रदेश में भव्य कार्यक्रम आयोजित करवाने जा रहे थे। उन्हें इसका भी अवसर नहीं दिया गया। एक अन्य बड़ा कारण उनकी नौकरशाही पर अति आत्मनिर्भरता और पार्टी संगठन के साथ तालमेल का भारी अभाव भी बताया जा रहा है। पार्टी उनके द्वारा चार धाम देवस्थानम् ट्रस्ट बनाए जाने से खासी नाराज थी। इस ट्रस्ट के अंतर्गत बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमनोत्री, गंगोत्री समेत प्रदेश के 51 मुख्य मंदिरों को कर दिया गया है। इससे इन मंदिरों के पुजारी समाज के हित प्रभावित हुए हैं। विश्व हिन्दू परिषद ने तो अप्रैल माह में इस मुद्दे पर प्रदेशव्यापी आंदोलन की धमकी दे डाली है। इसी प्रकार वर्तमान बजट सत्र में मुख्यमंत्री ने बगैर पार्टी को काॅन्फीडेंस में लिये गैरसैंण कमिशनरी का गठन कर डाला। इस कमीश्नरी में कुमाऊं की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को शामिल किए जाने से भारी जनाक्रोश फूटा। जनाक्रोश ने नैनीताल सांसद अजय भट्ट और अल्मोड़ा सांसद अजय टम्टा को असहज करने का काम किया। इससे पहले बजट सत्र के दौरान विधानसभा का घेराव कर रहे ग्रामीणों पर पुलिस लाठीचार्ज ने भी भाजपा नेताओं को विचलित कर डाला था। इन सब कारणों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण कारण जो त्रिवेेंद्र की विदाई का रहा, वह है उनके औद्योगिक सलाहकार के ़एस ़पंवार से जुड़ी एक कंपनी पर लगे मनी लाॅड्ररिंग के आरोप, जिनकी आंच और ताप त्रिवेंद्र तक पहुंचने लगी है। यही कारण है उन्हें आनन-फानन में रुखसत कर दिया गया।
रेस में क्यों पिछड़े?
यह दूसरा बड़ा सवाल है जो पूछा जा रहा है। दरअसल त्रिवेंद्र रावत का स्थान लेने को लालायित नेताओं में अजय भट्ट, सतपाल महाराज, धन सिंह रावत और अजय बलूनी का नाम सबसे आगे था। तीरथ सिंह रावत दूर-दूर तक कहीं रेस में नहीं नजर आ रहे थे। पार्टी आलाकमान के करीबी सूत्रों का दावा है कि राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का नाम पहले से ही तय कर लिया गया था लेकिन राज्य की राजनीति में उनका जनाधार शून्य होना और उनके स्वास्थ्य का हवाला देकर प्रदेश भजापा के एक दिग्गज ने बलूनी की राह रोकने का काम कर दिया। इस बीच अपनी विदाई तय देख त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगी धन सिंह रावत का नाम आगे किया। लगभग सहमती बन चुकी थी कि 8 मार्च की रात से ही धन सिंह का प्रबल विरोध शुरू हो गया। इस बार कुमाऊं के तीन दिग्गजों ने मोर्चा संभाला। कहा गया धन सिंह बेहद जूनियर हैं, यह भी प्रश्न उठाया गया कि हर बार पार्टी आलाकमान गढ़वाल के नेताओं को ही क्यों तरजीह देती है? रातभर नैनीताल सांसद अजय भट्ट और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के नाम को आगे बढ़ाने का काम चलता रहा। मुंबई राजभवन से भी लगातार संपर्क साधा गया। लेकिन इन नामों पर त्रिवेंद्र सहमत नहीं हुए। फिर डाॅ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के नाम पर सहमती बनाने का प्रयास किया गया। सूत्रों की माने तो निशंक ने प्रदेश की राजनीति में वापसी के लिए अपनी अनिच्छा जताई तब एक बार फिर से महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से पार्टी आलाकमान ने सलाह मांगी। भगत सिंह कोश्यारी ने बेदाग छवि के तीरथ सिंह रावत को कुर्सी सौंपने का मार्ग सुझाया जिसे सभी धड़ों ने मन मार कर ही सही स्वीकार कर लिया।
तीरथ के सामने पांच बड़े चैलेंज
खतरे की लटक रही तलवार
बेहद सरल स्वभाव और छल कपट की राजनीति से कोसों दूर रहने वाले नए सीएम तीरथ सिंह रावत के समक्ष पांच बड़ी चुनौतियां हैं, जिन्हें सफलतापूर्वक पार पाना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित होगा। मंत्रिमंडल का गठन: राज्य में अधिकतम 12 मंत्री हो सकते हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत मंत्रिमंडल में 10 मंत्री बनाए गए थे। दो पदों को बाद में भरे जाने की बात चार बरस पहले की गई थी जिन्हें भरा नहीं गया। वित्त मंत्री प्रकाश पंत के असमय निधन बाद तीन पद रिक्त हो गए थे। खांटी भाजपाइयों में इस बात पर बड़ा आक्रोश है कि 9 मंत्रियों में से पांच मंत्री पद कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए नेताओं के पास हैं। सूत्रों की मानं तो तीरथ मंत्रिमंडल पूरा 12 सदस्यीय होगा और इसमें ज्यादा तादात खांटी भाजपाइयों की होगी। हरक सिंह रावत और अरविंद पाण्डेय को ड्राॅप किए जाने की चर्चा है तो एकमात्र महिला मंत्री रेखा आर्या पर खतरे की तलवार लटक रही है। तीरथ का संकट यह कि किसी को भी मंत्री बनाएं, असंतोष विधायक दल में कम नहीं होने वाला। नए मंत्रियों में वरिष्ठ विधायक बिशन सिंह चुफाल, पुष्कर धामी, रितू खण्डूड़ी और गणेश जोशी का नाम चर्चा में है।
हाथ लग सकती है बाजी
देवस्थानम् ट्रस्ट पर फैसला: तीरथ सिंह रावत के सामने राज्य के 51 मंदिरों को ट्रस्ट के हवाले किए जाने का त्रिवेंद्र सरकार का फैसला भी एक बड़ी चुनौती होगा। विश्व हिंदू परिषद इस ट्रस्ट निर्माण का खुला विरोध कर रही है। भाजपा विधायकों में भी त्रिवेंद्र के इस फैसले से भारी नाराजगी रही है। यदि तीरथ सिंह इस फैसले को वापस लेते हैं तो उन्हें विधान सदन द्वारा बनाए गए कानून को रद्द करना होगा।
गैरसैंण कमिशनरी पर फैसला: बजट सत्र के दौरान तत्कालीन सीएम की इस औचक घोषणा ने कुमाऊं में भारी खलबली मचाने का काम किया है। नैनीताल एवं अल्मोड़ा सांसद इस फैसले से बेहद नाखुश हैं। तीरथ सिंह को इस मुद्दे पर जल्द ही फैसला लेना होगा।
नौकरशाही पर नकेल: ज्यादातर का मानना है कि राज्य के ब्यूरोक्रेट्स पर त्रिवेंद्र सिंह रावत की डिपेंडेंसी उनकी असमय विदाई का एक बड़ा कारण बना। नए सीएम के सामने बेलगाम नौकरशाही पर नकेल कसना एक बड़ा चैलेंज होगा। खबर है कि त्रिवेंद्र के विश्वस्त मुख्य सचिव ओम प्रकाश को हटाया जा रहा है। उनके स्थान पर या तो केंद्र की प्रतिनियुक्ति से डाॅ. सुखवीर सिंह सिद्दु को वापस बुला नया मुख्य सचिव बनाया जाएगा या फिर वर्तमान में अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी राज्य की नई चीफ सेक्रेटरी बनेंगी। इतना ही नहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत के अति विश्वस्त आईएएस राधिका झा और नितेश झा को तत्काल प्रभाव से केंद्र के लिए रिसीव कर दिया जाएगा। देहरादून, चमोली, ऊधमसिंह नगर और अल्मोड़ा के डीएम भी हटाए जा सकते हैं। इसी प्रकार राज्य पुलिस बल में भी बड़ा बदलाव कर तीरथ सिंह रावत नौकरशाहों को सख्त संदेश देने का प्रयास करेंगे।
बदल सकती है भूमिका
एंटी इन्कमबेंसी फैक्टर: नए सीएम के समक्ष सबसे बड़ा सवाल त्रिवेंद्र सरकार द्वारा फैलाए गए रायते को समेटने का है। पिछले चार बरस के दौरान भाजपा से जनता का भारी मोहभंग हुआ है। डबल इंजन की सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है। इसका सीधा फायदा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को स्पष्ट रूप से मिलता नजर आ रहा है। पूर्व सीएम हरीश रावत राज्य का धुआंधार दौरा इन दिनों कर रहे हैं। उनकी सभाओं में उमड़ रहा जनसमूह भाजपा के लिए बड़ी खतरे की घंटी है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी भी पूरे दमखम के साथ इस बार उत्तराखण्ड में अपनी किस्मत आजमाने जा रही है। ऐसे में तीरथ सिंह रावत कैसे त्रिवेंद्र के फैलाए रायते को समेट पाएंगे, कह पाना कठिन है।