शशिकला को कौन नहीं जानता। शशिकला को कभी तमिलनाडु का ‘किंग मेकर’ कहा जाता था। 27 जनवरी को चार साल बाद शशिकला जेल से रिहा हो गई है। वर्ष 2017 में जब वह तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने जा रही थी, ऐन वक्त पर आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश पर शशिकला को चार साल की सज़ा हुई थी। कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें 15 फ़रवरी 2017 को पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। फिलहाल , सवाल यह है कि पारापन्ना अग्रहारा जेल से रिहा होने के बाद शशिकला क्या करेंगी ? वह पूर्व की भाति तमिलनाडु की राजनीति में किंग मेकर की भूमिका में वापसी करेगी या न्यूट्रल हो जाएगी ? उधर, भाजपा ने भी शशिकला पर डोरे डालने शुरू कर दिए है। हालांकि शशिकला अभी घर नहीं जा पाएगी। 21 जनवरी को जेल से रिहाई होने के बाद उन्हें कोरोना पॉजिटिव होने के कारण विक्टोरिया अस्पताल में भेजा गया है। अगर वह कोरोना नेगेटिव होगी तो तभी प्रोटोकॉल के तहत उन्हें 10 दिन बाद अस्पताल से छुट्टी दी जाएगी।
शशिकला पिछले तीन दशकों से तमिलनाडु की राजनीति में सक्रिय रही हैं। राजनितिक पंडित मानते हैं कि शशिकला को राजनीति करने से रोकना इतना आसान भी नहीं है, जितना भाजपा और अन्ना डीएमके को लग रहा है। देखा जाए तो सजायाफ्ता होने की वजह से शशिकला चुनाव लड़ने की हकदार नहीं हैं। लेकिन चुनाव के परिणामों को प्रभावित करने का माद्दा उनमें है। सूत्रों के अनुसार भाजपा ने गत दिनों जेल में अपने दूत भिजवाकर शशिकला को अन्ना डीएमके के मामले में दखल न देने और नुक़सान पहुँचाने की कोई कोशिश न करने का संदेश भिजवाया है। इसके पीछे भाजपा की आगामी विधानसभा चुनावो की रणनीति है। हालाँकि कहा यह जा रहा है कि भाजपा शशिकला से नजदीकी बनाना चाहती है। इस नजदीकी का फायदा भाजपा तमिलनाडु के मई में होने वाले विधानसभा चुनावों में लेना चाहती है। उधर , दूसरी तरफ राज्य में चुनावी माहौल है और मुख्यमंत्री पलानीसामी ने शशिकला के जेल से छूटने के दिन ही जयललिता के नाम पर बनाए गए मेमोरियल का उद्घाटन कर अपनी राजनीतिक मंशा साफ कर दी है कि वह शशिकला को पार्टी से दूर रखना चाहते है। इस समय शशिकला का जेल से बाहर आना सूबे में सियासत का नया समीकरण बनता दिखाई दे रहा है।
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तमिलनाडु की राजनीति में एक समय ऐसा था जब शशिकला की तूती बोलती थी। वह मुख्यमंत्री जयललिता की सबसे क़रीबी रहीं। तब अन्ना डीएमके पार्टी और सरकार के सभी बड़े फ़ैसलों में शशिकला की काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी।पार्टी काडर एवं नेता उन्हें ‘चिनम्मा’ यानी छोटी मां पुकारते तथा उनकी बात का मान रखते थे . वैसे शशिकला कभी सीधे सत्ता में नहीं रहीं, लेकिन जब भी जयललिता मुख्यमंत्री रहीं, सत्ता शशिकला के हाथ में रही। इसके चलते ही शशिकला और उनके परिवारवालों पर सत्ता का दुरुपयोग कर करोड़ों की संपत्ति बनाने के आरोप लगे। भ्रष्टाचार के एक मामले में उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट ने बरी कर दिया था। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने फ़ैसला पलट दिया और शशिकला को दोषी क़रार दिया। 2017 में जयललिता की मौत के बाद शशिकला ने मुख्यमंत्री बनने की पूरी योजना बना ली थी। तब शशिकला जयललिता की जगह अन्ना डीएमके यानी एआईएडीएमके पार्टी की महासचिव भी बन गई थीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की वजह से तब उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया था, और वह तमिलनाडु की सीएम बनते – बनते रह गई थी।
तमिलनाडु में चार साल में काफी कुछ बदल गया है। फिलहाल तमिलनाडु में मुख्यमंत्री पलानीसामी और उपमुख्यमंत्री पन्नीरसेलवम है। दोनों ही शशिकला की अन्ना डीएमके में वापसी के सख़्त ख़िलाफ़ हैं। एक समय शशिकला के वफ़ादार रहे मुख्यमंत्री पलानीसामी को शशिकला के वफादारों में गिना जाता रहा है। लेकिन फिलहाल मुख्यमंत्री पलानीसामी को एक डर सता रहा है। वह यह कि अगर शशिकला को पार्टी में शामिल किया जाता है, तब वह दुबारा सत्ता अपने हाथ में ले लेंगी और अपनी जयललिता कार्यकाल की तरह मनमानी करेंगी। उन्हें इस बात का भी भय सता रहा है कि इस तरह पार्टी पर एक बार फिर शशिकला और उनके परिवारवालों का कब्जा हो सकता है। दूसरी तरफ तमिलनाडु के डिप्टी सीएम पन्नीरसेलवम की शशिकला से दुश्मनी भी चार साल पहले सामने आ चुकी है। तब जयललिता की मौत के बाद पन्नीरसेलवम मुख्यमंत्री बने थे लेकिन कुछ दिनों बाद शशिकला ने मुख्यमंत्री बनने की कोशिश की जिसके चलते उन्होंने पन्नीरसेलवम को हटवा दिया था। लेकिन इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले की वजह से शशिकला को जेल जाना पड़ा और उनके मुख्यमंत्री बनने का सपना अधूरा ही रह गया।