आम चुनाव 2024 के नतीजे आ चुके हैं। पिछले दो चुनावों में भारतीय जनता पार्टी अकेले बहुमत तक पहुंची लेकिन इस बार वो महज 240 सीटों पर सिमट गई है। हालांकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनती दिख रही है। खुद मोदी सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त दिख रहे हैं लेकिन राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहे हैं कि क्या मोदी अपने तीसरे टर्म का कार्यकाल पूरा कर पाएंगे? क्या गठबंधन की सरकार में बंध पाएगी मोदी सरकार या फिर गठबंधन टूट जाएगा? ऐसे कई सवाल देश की राजनीति में अभी से तैरने लगे हैं।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि फिलहाल तो नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बनकर इतिहास रचने जा रहे हैं। उनसे पहले ऐसा सिर्फ एक बार हुआ है जब आजादी हासिल करने के बाद जवाहरलाल नेहरू 16 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे थे। लेकिन मोदी की जीत में उनकी पार्टी की पिछली बार से इस बार 63 सीटों पर हुई हार भी शामिल है। अपने बल पर सरकार न बना पाने की सूरत में वो अपने सहयोगी दलों पर पूरी तरह आश्रित हैं। अपने लंबे राजनीतिक करियर में नरेंद्र मोदी ने कभी गठबंधन सरकार का नेतृत्व नहीं किया है न बतौर मुख्यमंत्री और न ही पिछले दो कार्यकाल में केंद्र सरकार में।
दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिली हैं। मजबूत विपक्ष के सामने बीजेपी की कमजोर स्थिति के मद्देनजर मोदी के लिए पार्टी के भीतर और सरकार चलाने में स्थायित्व बनाए रखना एक चुनौती होगी। विपक्षी नेता राहुल गांधी ने चुनावी नतीजों को प्रधानमंत्री की नैतिक हार बताया और पत्रकारों से बातचीत में कहा कि देश ने मोदी जी को कहा है कि हमें आप नहीं चाहिए। साल 2014 और 2019 के आम चुनावों की ही तरह भारतीय जनता पार्टी ने 2024 का चुनाव भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही लड़ा। इलाके के प्रत्याशी का जिक्र चाहे हो या ना हो, मोदी का चेहरा हर पोस्टर पर था।
चुनाव प्रचार के दौरान हर रैली में उन्होंने ‘मोदी की गारंटी’ का नारा दोहराया। वायदा किया कि वो खुद सुनिश्चित करेंगे कि पिछले दशक के दौरान उनकी सरकार की ओर से लाई गई नीतियां लागू हों। इसलिए ये नतीजे उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा को कम करने वाले माने जा रहे हैं। जानकार कहते हैं कि मोदी की छवि को धक्का तो लगा है। अब तक लोगों का बहुमत वोट मिलने की वजह से बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे को एक वैधता मिल रही थी। इसलिए अब जब पार्टी अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई तो ये एक बहुत बड़ा बदलाव है। बीजेपी के पांच साल के कार्यकाल में मीडिया को दबाने और विपक्ष को निशाना बनाने के लिए केंद्रीय जांच एजंसियों का गलत इस्तेमाल करने के आरोप लगे। मोदी सरकार पर मुसलमान-विरोधी माने जाने वाले नागरिकता कानून सीएए-एनआरसी के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हुए और किसानों के आंदोलन के बाद सरकार को कृषि कानून तक वापस लेने पड़े। ऐसे में बीजेपी को अब अपने कई एजेंडों को संसद से पास कराने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।