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दिल्ली से अमित शाह की होगी सम्मानजनक विदाई या मिलेगी निराशा?

दिल्ली से अमित शाह की होगी सम्मानजनक विदाई या मिलेगी निराशा?

देश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पर पूरा ध्यान केंद्रित किए हुए है। कल मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा चुनावों की घोषणा किए जाने के साथ ही भाजपा ने दिल्ली में पूरी ताकत झोंक दी है।

फिलहाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। क्योंकि अमित शाह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से विदाई लेने वाले हैं तो ऐसे समय में पार्टी उनकी सम्मानजनक विदाई चाहती है।

इसी लिए दिल्ली के विधानसभा चुनाव अहम माने जा रहे हैं। दिल्ली जीतने के लिए भाजपा ने अपने तमाम दिग्गजों को अभी से ही मैदान में उतार दिया है। इस बार वह फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं।

पूर्व की भांति जिस तरह भाजपा मुख्यमंत्री चेहरा पहले घोषित करके चुनाव हार चुकी है तो इस बार वह ऐसा करने के मूड में नहीं है। हालांकि, जिस तरह से अमित शाह ने पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा का बार-बार नाम लिया और उनकी केजरीवाल से तुलना की।

इससे एकबारगी यह लग रहा था कि भाजपा वर्मा को दिल्ली में चुनावी चेहरा बनाएगी लेकिन जिस तरह से अब सूचना मिल रही है उसके तहत दिल्ली का चुनाव पीएम मोदी और अमित शाह के नाम पर लड़ा जा सकता है।

गौरतलब है कि 2015 के चुनाव में भाजपा ने पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया था और तीन सीटों पर सिमट गई थी। उससे पहले दिसंबर 2013 में डॉक्टर हर्षवर्धन का चेहरा भी भाजपा को जीत नहीं दिला सका था।

फिर भी उनकी कमान में भाजपा 32 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। पर भाजपा ने भरपूर प्रयास करके उनके नेतृत्व को खत्म कर दिया है। वैसे अब भी भाजपा के पास ले देकर हर्षवर्धन ही हैं, जो असल में अरविंद केजरीवाल को चुनौती दे सकते हैं।

बहरहाल, भाजपा ने किसी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति पर लड़ने का फैसला किया है। अमित शाह अपने मौजूदा कार्यकाल का आखिरी चुनाव लड़ा रहे हैं और वे चाह रहे हैं कि जीत के साथ उनकी विदाई हो।

पर सवाल है कि मोदी के चेहरे को अरविंद केजरीवाल के सामने दांव पर लगा कर वे बड़ा जोखिम नहीं ले रहे हैं?

ध्यान रहे केजरीवाल हमेशा अपने को मोदी का विकल्प मान कर पेश करते रहे हैं। तभी वे 2014 में मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाराणसी गए थे और कांग्रेस व तमाम प्रादेशिक पार्टियों की मौजूदगी के बावजूद दूसरे स्थान पर रहे थे।

बहरहाल, अगर मोदी के चेहरे के बावजूद वे दिल्ली में जीतती हैं तो क्या वे अखिल भारतीय स्तर पर चुनौती नहीं बनेंगे? और इससे क्या मोदी की अपराजेय छवि नहीं खराब होगी?

ध्यान रहे कि भाजपा पिछले एक साल से थोड़े ज्यादा समय में राज्यों में जितने चुनाव हारी है उन सबमें पार्टी प्रादेशिक क्षत्रपों के चेहरे पर ही लड़ी थी।

शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे, रमन सिंह, मनोहर लाल खट्टर, देवेंद्र फड़नवीस और रघुवर दास के चेहरे पर पार्टी ने इन राज्यों में चुनाव लड़ा था। तभी नतीजों की जिम्मेदारी मोदी के सर नहीं आई।  पर अगर दिल्ली में मोदी के नाम पर पार्टी लड़ेगी तो नतीजों की पूरी जिम्मेदारी अमित शाह के ऊपर आएगी।

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