[gtranslate]
Country

शरद का साथ छोड़ेंगे अजित?

महाराष्ट्र के सियासी हलकों में एनसीपी के नए पदों की घोषणा को अजित पवार की अनदेखी के तौर पर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के बाद पार्टी में बगावत की बू आने लगी है। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि अजित पवार कभी भी शरद का साथ छोड़ सकते हैं

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के सुप्रीमो शरद पवार ने पिछले दिनों अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की घोषणा की है। उनकी इस घोषणा के साफ संकेत हैं कि पवार ने सीधे-सीधे अपनी
विरासत बेटी को सौंप दी है। यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब अजीत पवार के नेतृत्व वाले एक असंतुष्ट गुट के भाजपा से हाथ मिलाने की अटकलें लग रही हैं। महाराष्ट्र के सियासी हलकों में नए पदों की घोषणा को उनके भतीजे अजित पवार की अनदेखी के तौर पर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की घोषणा के साथ ही शरद पवार की पार्टी में बगावत की बू आने लगी है। दरअसल जिस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के गन्ना बेल्ट में पार्टी के ‘नट-एंड-बोल्ट्स’ मैन के रूप में जाने जाने वाले अजीत को दरकिनार कर दिया गया, उससे वह जल्द ही बाहर निकल गए। हालांकि एनसीपी ने किसी भी बगावत से साफ इनकार कर दिया है। एनसीपी ने कहा ‘अजीत पवार के पास पहले से ही महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में जिम्मेदारियां हैं। जयंत पाटिल पर भी पार्टी की जिम्मेदारी थी। प्रफुल्ल पटेल और सुप्रिया सुले की पार्टी में कोई भूमिका नहीं थी, इसलिए अब उन्हें ये जिम्मेदरियां दी गई है। इस बात में एक फीसदी भी सच्चाई नहीं है कि अजीत पवार नाराज हैं। लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि जिस प्रकार 2019 में अजित पवार ने देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ले सनसनी पैदा कर दी थी,उसी तरफ वे फिर से चाचा से बगावत कर सकते हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि एनसीपी में कई विधायक ऐसे भी हैं, जो अजीत पवार में आस्था रखते हैं। इन विधायकों ने अजीत के समर्थन में एनसीपी प्रमुख के समक्ष बंद कमरे में शक्ति प्रदर्शन भी किया था। इसके बाद शरद पवार ने नाटकीय रूप से अपनी रिटायरमेंट की घोषणा कर दी थी। गौरतलब है कि शरद पवार ने पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ मिलकर उस समय एनसीपी की स्थापना की थी, जब उन्होंने सोनिया गांधी के खिलाफ उनके इटालवी मूल के आधार पर विद्रोह कर दिया था। उस समय अजीत पवार ही थे जिन्होंने महाराष्ट्र में पार्टी की जिम्मेदारी संभाली थी। ऐसा कहा जाता है कि वह खुद को अपने चाचा का स्वाभाविक और वैध उत्तराधिकारी मानते थे। अब जब उनके दावे को खारिज कर दिया गया है, सभी की निगाहें उनके अगले कदम पर टिकी हैं।

शरद पवार की घोषणा के मायने
बीते मई में एनसीपी प्रमुख द्वारा अपने पद से इस्तीफा देने के बाद सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी थी। शरद पवार ने स्पष्ट किया कि वह जल्द ही पार्टी की दैनिक दिनचर्या से दूरी बनाने के लिए नए लोगों को जिम्मेदारी सौंपेंगे। शरद पवार ने पार्टी कैडर को स्पष्ट संदेश दिया है कि उनकी बेटी पार्टी की अगली उत्तराधिकारी होंगी। सुप्रिया अब कार्यकारी अध्यक्ष के अलावा केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब के साथ- साथ पार्टी की महिला युवा और छात्र इकाई की प्रभारी भी होंगी। इसका मतलब है कि महाराष्ट्र में एनसीपी सुप्रिया के नेतृत्व में काम करेगी, वहीं प्रफुल्ल पटेल और अनिल तटकरे को नई जिम्मेदारी देकर अजीत पवार के नेतृत्व वाले असंतुष्ट गुट के साथ संतुलन बनाने की भी कोशिश की है। हालांकि पहली बार प्रफुल्ल पटेल को मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, गोवा और झारखंड जैसे राज्यों का प्रभारी बनाकर महाराष्ट्र से दूर रखा गया है। कहा जा रहा है कि प्रफुल्ल पटेल के अन्य राजनीतिक दलों से व्यक्तिगत संबंध अच्छे हैं। इसलिए उनको यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। एक तरह से कहा जाए तो शरद ने अपनी चाणक्य नीति का परिचय देते हुए प्रफुल्ल को महाराष्ट्र की बजाए बाहरी राज्यों की जिम्मेदारी देकर अपनी पुत्री सुप्रिया के लिए महाराष्ट्र के दरवाजे खोल दिए हैं।
खास बात यह है कि सुप्रिया सुले को पार्टी के राष्ट्रीय चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है। नियुक्तियों के संबंध में निर्णय लेने और चुनाव के दौरान पार्टी की रणनीति की योजना बनाने की शक्ति उनके पास ही होगी।
घोषणा से अजित पवार पर असर
महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ भाजपा से अजीत पवार की नजदीकी की अटकलें लगाई जाती रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि एनसीपी नेता महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री और प्रदेश का नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं। वर्ष 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले अजीत पवार ने सभी को चौंका दिया था। इसके बाद से ही उनका अपने चाचा से अलग होकर भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं। एनसीपी सूत्रों के मुताबिक शरद पवार द्वारा सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी में दूसरे नंबर पर नियुक्त करने का फैसला एक मजबूत संदेश देता है कि वह अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं।

शरद पवार ने जब अपने इस्तीफे की बात की थी,वह भी एक प्रैक्टिस थी। उनको कई दिन से लग रहा था कि उनके भतीजे अजित पवार महत्वाकांक्षी हैं। जिस तरह उन्होंने 2019 में भाजपा से हाथ मिला लिया था। अचानक जाकर उपमुख्यमंत्री की शपथ ले ली थी। हालांकि समझाने के बाद वह वापस आ गए थे। यह एक पारिवारिक कलह ही थी। अजित का शुरू से ही झुकाव बीजेपी की तरफ रहा है। चाहे वह पारिवारिक कारण ही रहा हो, शरद पवार इस बात को जानते थे। बस वह एक ऐसा मौका ढूंढ रहे थे। वह पार्टी को अपना शक्ति प्रदर्शन दिखा सके और बता सके कि एनसीपी का मतलब शरद पवार है। चूंकि अजित उनके भतीजे हैं वे नहीं चाहते थे कि वह किसी और पार्टी में चले जाए। वे उनको अपनी पार्टी में रखना चाहते थे लेकिन उनको आभास भी कराना चाहते थे कि एनसीपी का मतलब शरद पवार ही है। यह एक मैसेज था अजित पवार के लिए। इसके बाद उन्होंने सुप्रिया और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। लेकिन अगर सुप्रिया और अजित पवार कार्यकारी अध्यक्ष होते तो एक पारिवारिक शक्ति का मैसेज जाता।
रामकृपाल सिंह, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विशेषज्ञ

सबसे पहले आप यह समझिए कि शरद पवार ने अपनी ताकत बचाए और बनाए रखने के लिए कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई। यह दूसरा मौका था जब पहली बार महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल को गच्चा देकर मुख्यमंत्री बने थे। उस समय अपने भतीजे अजित को आगे रखकर राजनीति को चमकाया। शरद पवार के साथ तारिक अनवर और पीएस संगमा, देवेंद्र दिवेदी, डीपी त्रिपाठी कांग्रेस से निकले थे। इन लोगों का कोई बुनियादी आधार नहीं जिसको जनाधार कहा जा सकता है। लेकिन संगमा को देखिए मेघालय में उनके बेटे सरकार चला रहे हैं या फिर तारिक अनवर जनाधार नेता थे। उस समय अपने पुराने सहयोगियों का साथ छोड़ा शरद पवार ने ठीक वही स्थिति अजित पावर के साथ हुई है। बस अंतर यही है कि अजित पवार उनके परिवार के हैं। एक जमाने में अजित के साथ मिलकर यूथ में अपनी ताकत बढ़ाई थी। शरद पवार ने उनको भी गच्चा दे दिया। अजित पवार की तुलना में सुप्रिया सुले की पॉलिटिकल योग्यता कुछ नहीं है। हां वह शॉफ्ट स्पोकन हैं। बढ़िया बोलती हैं, पढ़ी-लिखी हैं। लेकिन पॉलिटिकल योग्यता अलग है। अब अजित पवार के सामने एक ही रास्ता बचता है कि या तो वह सिर झुकाकर इस फैसले को स्वीकार करें नहीं तो अलग राह चुनें।
उमेश चतुर्वेदी, राजनीतिक विश्लेषक

राजनीति में परंपरा रही है कि वह अपनी विरासत को अपने बेटे या बेटी को सौंपे। ऐसा ही शरद पवार ने किया है। लेकिन इससे एक बात साफ हो गई कि अजित पवार की स्थिति क्या होगी। हालांकि वह महाराष्ट्र विधानसभा में नेता विपक्ष हैं। लेकिन पार्टी के भीतर उनके पास सिर्फ महाराष्ट्र का ही प्रभार है। यानी कि उनको शरद पवार ने सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सीमित कर दिया है। ऐसा उन्होंने इसलिए किया है कि अजित पवार की निष्ठा के प्रति हमेशा सवाल खड़े होते रहे हैं। आप याद कीजिए जब महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव के बाद शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूटा और शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बीच बातचीत चल रही थी तब अचानक अजित पवार देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर राजभवन में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे होते हैं। ऐसा लग रहा था यह मास्टर स्ट्रोक है अजित पवार का। लेकिन शरद पवार ताल ठोककर बैठ गए। उन्होंने तय किया कि यह जो सरकार बनी है रात के अंधेरे में इसको सफल नहीं होने देना है। अजित पवार अपनी पार्टी का एक भी विधायक नहीं तोड़ पाए और बाद में खुद वापस आ गए पार्टी में। इससे यह बात तो साफ हो गई कि अजित पवार की पकड़ एनसीपी में नहीं है। अगर एनसीपी पर पकड़ है तो वह सिर्फ शरद पवार की। अभी पिछले दिनों कहा जा रहा था कि अजित पवार पर बीजेपी डोरे डाल रही है। जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया और शिंदे को जाना पड़ा तो अजित पवार बड़ी संख्या में विधायकों को लेकर भाजपा में आ सकते हैं। उसके बाद सरकार में कोई पद ले सकते हैं। इस बात को शरद पवार ने भांप लिया था। इसलिए उन्होंने एक बड़ा दांव खेला अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर। इस्तीफा देने के बाद पूरी पार्टी शरद के साथ खड़ी हो गई। जिसके बाद उन्होंने बेटी को यह जिम्मेदारी दी है। एक तरह से उन्होंने अजित पवार को पार्टी के अंदर ही सीमित कर दिया है। अब देखना यह होगा कि अजित पवार आने वाले दिनों में क्या नया खेल करते हैं।
विनोद अग्निहोत्री, सलाहकार संपादक, ‘अमर उजाला’

You may also like

MERA DDDD DDD DD