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क्यों जरूरी हैं येदियुरप्पा?

बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल के खांचे में फिट होने के बाद 26 जुलाई 2021 को बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया, लेकिन फिर अचानक 80 साल की उम्र में वे पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए हैं।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि विधानसभा चुनाव के लिए येदियुरप्पा के पुत्र विजेंद्र को अब पिता के निर्वाचन क्षेत्र शिकारीपुरा से नामित किया गया है, जो बीजेपी की उस मौलिक नीति के खिलाफ है जिसके बारे में पार्टी की नेतृत्व बात करती रही है कि किसी नेता के बेटे- बेटियों को किसी पद के लिए नामांकित नहीं किया जाएगा।

इससे पता चलता है कि येदियुरप्पा पार्टी के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। लगभग डेढ़ महीने पहले 27 फरवरी को येदियुरप्पा के जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व मुख्यमंत्री के गृह जिले शिवमोगा में हवाई अड्डे का उद्घाटन किया था। वहां उन्होंने सार्वजनिक जीवन में येदियुरप्पा के योगदान को प्रेरणादायक बताते हुए उनकी तारीफ की थी। सभी ने तब इसे सामान्य टिप्पणी माना जो नरेंद्र मोदी येदियुरप्पा सरीखे वरिष्ठ नेता के लिए करते हैं। लेकिन यह प्रशंसा सामान्य नहीं थी। तब तक समझ चुका था कि कर्नाटक में बगैर येदियुरप्पा उसे चुनावी सफलता नहीं मिल सकती है। बीजेपी के लिए येदियुरप्पा के इतना खास होने की कई वजहें हैं। 2008 में पार्टी को सत्ता में लाने के लिए उन्होंने अकेले अपने दम पर महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई थी। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि पार्टी को इस बात का अहसास है कि उनके पास कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो समूहों में प्रचार कर सके, जो येदियुरप्पा कर सकते हैं।

इसका मतलब यह है कि वह न केवल लिंगायतों के अलग-अलग संप्रदायों के लिए प्रचार कर सकते हैं, बल्कि बाकी समुदायों के बीच भी उनकी अच्छी पकड़ है। पार्टी सूत्रों की मानें तो केंद्रीय नेतृत्व के पास उन्हें खुश रखने की और भी वजहें हैं। इनमें एक अहम वजह है पारंपरिक लिंगायत वोट येदियुरप्पा के नेतृत्व के बगैर कांग्रेस का रुख कर सकते हैं। जिस तरीके से बीजेपी ने उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट बांटे हैं उससे सीधा संकेत मिलता है कि येदियुरप्पा जो चाहते थे, उसे मान लिया गया। जिसमें सबसे अहम उनके बेटे का शिकारीपुरा से नामांकन है। येदियुरप्पा के बड़े बेटे बीवाई राघवेंद्र पहले से ही शिवमोगा से सांसद हैं। भाजपा की घोषित नीति वंशवादी शासन में विश्वास नहीं करने की है। येदियुरप्पा और उनके परिजनों को दी गई रियायत काफी कुछ बयां करती है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा में बीजेपी ने 212 उम्मीदवारों में परिवारवाद से जुड़े 23 सदस्यों को टिकट दिया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी के लिए येदियुरप्पा को खुश करने और अपने पक्ष में रखने की कितनी जरूरत है। गौरतलब है कि येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद संसदीय बोर्ड और पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति दोनों का सदस्य बनाया गया। पार्टी के सदस्यों का कहना है कि उनसे उम्मीदवारों की तीन सूचियां ली गई थीं। कहा जाता है कि पहली लिस्ट जारी होने के बाद येदियुरप्पा ने बीजेपी नेतृत्व को अपनी लिस्ट सौंपी और दिल्ली से बेंगलुरु लौट गए। इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व को यह अहसास हुआ कि उनकी लिस्ट और एक सर्वे पर आधारित केंद्रीय कार्यालय की लिस्ट भी लगभग एक जैसी थी।

येदियुरप्पा ने केंद्रीय नेताओं से कहा था कि बैठक में पेश की गई लिस्ट के साथ प्रचार करना मुश्किल होगा। इस तरह, पार्टी ने ‘पहले से आजमाए सदस्यों’ के साथ चुनाव में आगे बढ़ने का फैसला कर 189 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में पार्टी ने 51 लिंगायत, 41 वोक्कालिगा, 32 ओबीसी, 30 एससी और 16 एसटी उम्मीदवारों को चुना था।

 

 

 

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