भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ देश के हर नागरिक को वोट डालने का अधिकार है, जिसकी उम्र 18 साल या उससे अधिक हो। लेकिन ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ को मान्यता देने वाले इस लोकतांत्रिक देश में जेल में बंद व्यक्ति को मतदान के अधिकार से वंचित रखा गया है।
इस कानून के विषय में एक छात्र द्वारा डाली गई जनहित याचिका की सुनवाई के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से इस विषय में जवाब माँगा है। चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने गृह मंत्रालय (एमएचए) व इलेक्शन कमीशन को नोटिस जारी किया है ।
याचिका किसके द्वारा दायर की गई
यह जनहित याचिका साल 2019 में विधि विश्वविद्यालय के एक छात्र आदित्य प्रसन्नता भट्टाचार्य ने दायर की थी, जिसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62 (5) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी , यह धारा जेल में बंद किसी भी व्यक्ति को चुनाव में वोट डालने से रोकती है। इस याचिका पर अगली सुनवाई 29 दिसम्बर को तय की गई है।
क्या है धारा 62 (5)
जन प्रतिनिधित्व कानून,1951 की धारा 62 (5) के अनुसार,कोई भी व्यक्ति जो जेल में बंद है वह किसी भी चुनाव में मतदान नहीं करेगा, चाहे वह कारावास या परिवहन की सजा के तहत या अन्यथा, या पुलिस की कानूनी हिरासत में है: बशर्ते कि इस उप-धारा में कुछ भी लागू नहीं होगा एक व्यक्ति जो उस समय लागू किसी भी कानून के तहत निवारक निरोध के अधीन है।