कोरोना महामारी के चलते देश में लॉकडाउन शुरू हुए दो माह होने को आए है। अब जाकर विपक्ष जागा है। फिलहाल विपक्ष ने आज एकजुटता दिखाते हुए कोरोना संकट पर वीडियो कॉन्फ्रेंस दिखाने का करने का दम दिखाया है। जिसका नेतृत्व कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी करेंगी।
आज दोपहर तीन बजे होने वाली इस वीडियो कांफ्रेंस में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पहली बार शामिल हो रहे हैं। इसी के साथ ही 18 दलों के नेता मुख्य रूप से इसमें शामिल होंगे। जबकि उत्तर प्रदेश से बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने विपक्ष की इस वीडियो कांफ्रेंस के जरिए होने वाली बैठक में शामिल होने से इंकार कर दिया है।
लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि विपक्ष की महत्वपूर्ण बैठक में दिल्ली की गद्दी पर आसीन आम आदमी पार्टी (आप ) शामिल नहीं होगी। आप को विपक्ष ने ही शामिल नहीं किया। बताया जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इस महत्वपूर्ण बैठक में शामिल होने का न्योता ही नहीं भेजा गया। यह अपने आप में सोचनीय सवाल है कि जब पूरे देश का विपक्ष कोरोना महामारी पर एकजुट हो रहा है तो ऐसे में आम आदमी पार्टी को विपक्ष ने साइड क्यों कर दिया?
आम आदमी पार्टी को विपक्ष ने आज वीडियो कांफ्रेंस में शामिल होने का न्योता नहीं देकर यह साबित कर दिया है कि वह केंद्र सरकार को मौन सहमति देने वालों के साथ ना खड़ी है ना उनका साथ चाहती है । जिस तरह से आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार के प्रति कुछ दिनों से ‘डिफेंसिव मोड’ में चल रहे हैं उससे लगता है कि भाजपा सरकार के लिए उनके मन में कहीं न कहीं सॉफ्ट कॉर्नर बन गया है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की जिस तरह से अरविंद केजरीवाल पूर्व में घेराबंदी करते थे वह अब कहीं दूर दूर तक भी नजर नहीं आता है। शायद यही वजह है कि विपक्ष ने भी अब आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल से दूरी बनाने में ही भलाई समझी है। बताया जा रहा है कि आज प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर विपक्ष केंद्र सरकार की घेराबंदी कर सकता है।
हालांकि, अब से पहले देश के कई मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस कर चुके हैं। लेकिन सिर्फ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को छोड़कर किसी ने भी पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयान देना तक मुनासिब नहीं समझा है। हो सकता है आज विपक्ष की इस महत्वपूर्ण वीडियो कांफ्रेंस में केंद्र सरकार की प्रवासी मजदूरों की बाबत की जा रही लापरवाहियों पर विपक्ष हमलावर हो जाए। ऐसे में केंद्र सरकार के प्रीति सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से दूरी बनाकर विपक्ष ने यह संदेश देने का काम किया है।
सभी जानते हैं कि 2020 में सत्ता में एक बार फिर वापस लौटे केजरीवाल के बागी तेवर इस समय हवा हो चुके हैं। बात-बात में मोदी और भाजपा को कोसने वाले केजरीवाल ने अब मानो हथियार डाल दिए हैं। न तो दिल्ली के उपराज्यपाल को लेकर इन दिनों वे मुखर हो रहे हैं, न ही पीएम मोदी पर कोई टिप्पणी वे इन दिनों कर रहे हैं।
पार्टी सूत्रों की मानें तो ‘आप’ के कई वरिष्ठ नेता केजरीवाल के इस रूप पर खासे चिंतित हैं। इन नेताओं का मानना है कि केजरीवाल धीरे-धीरे सत्ता परस्त होते जा रहे हैं। 18 मई को पार्टी के सांसद सांसद संजय सिंह पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के साथ राजघाट पर लॉकडाउन के दौरान परेशान मजदूरों के मुद्दे को लेकर धरने पर बैठे।
इन नेताओं के साथ तिमारपुर से पार्टी के विधायक दिलीप पाण्डे भी शामिल थे। केंद्र सरकार को इन नेताओं ने मजदूरों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार मानते हुए जमकर कोसा। केजरीवाल को अपने साथियों का यह रवैया इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने मीडिया संग बातचीत करते हुए कह डाला कि कोरोना महामारी के समय इस प्रकार की राजनीति करना ठीक नहीं।
इतना ही नहीं पार्टी प्रवक्ता राघव चड्डा के उस बयान से भी केजरीवाल ने दूरी बना डाली जिसमें चड्डा ने मजदूरों के पलायन की तुलना 1947 में हुए बंटवारे की परिस्थितियों से करते हुए केंद्र सरकार के मिसमैनेजमेंट पर निशाना साधा था। केजरीवाल ने एक तरह से केंद्र सरकार का बचाव करते हुए कहा कि इस प्रकार के बयान नहीं दिए जाने चाहिए। कोई भी सरकार कितना भी काम करे, कुछ न कुछ छूट जाता है। अगर 100 काम करेंगे तब भी लोग 10-20 उन कामों को लेकर आलोचना करेगी ही जो सही तरीके से नहीं हो पाए।