दिल्ली विधानसभा चुनाव में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ताबड़तोड़ चुनावी जनसंपर्क करने के बावजूद भी दिल्ली में भाजपा मतदाताओं के बीच पैठ बनाने में नाकामयाब क्यों रही? आखिर क्या वजह है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो-दो रैलियां होने के बावजूद भी दिल्ली में भाजपा का जादू क्यों नहीं चल पा रहा है?
जिस सर्जिकल स्ट्राइक का गुणगान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2019 में लोकसभा के चुनाव में करते दिख रहे थे, वह इस बार सर्जिकल स्ट्राइक की बजाए शाहीन बाग के मुद्दे को लेकर मुखर रहे। पीएम नरेंद्र मोदी ही नहीं बल्कि भाजपा का हर बड़ा नेता शाहीन बाग के मुद्दे पर भाजपा को विधानसभा चुनाव जिताने का दावा करते दिखे। हालत यह हो गई कि केंद्रीय मंत्री से लेकर सांसद और खुद गृहमंत्री अमित शाह तक शाहीन बाग को लेकर विवादास्पद बयान पर उतारू हो गए। दिल्ली में भाजपा के पिछड़ने की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि इस बार पार्टी के पास कोई दमदार मुद्दा नहीं था। ले-देकर एक शाहिन बाग ही उसके बाद पास बचा था।
जबकि दूसरी तरफ दिल्ली की सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी के पास पिछले 5 साल का विक्टिम कार्ड था। आम आदमी पार्टी के इस विक्टिम कार्ड पर मतदाताओं को उसने अपने पक्ष में कर लिया। जबकि आम आदमी पार्टी के पास केजरीवाल के अलावा कोई स्टार प्रचारक भी मौजूद नहीं था। जबकि दूसरी तरफ भाजपा के पास एक से एक बड़ा स्टार प्रचारक दिल्ली की गली गलियों में डोर-टू-डोर मतदाताओं से कैंपेन कर रहे थे।
हालांकि, गत सोमवार और मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिल्ली में दो रैलियां होने के बाद दावे किए जा रहे थे कि राजधानी की चुनावी बयार में कमल का फूल मजबूती से खिल सकता है। लेकिन कमल का फूल मजबूती से खिलने की बजाय दिल्ली में मुरझाने की ओर अग्रसर है। दिल्ली की जनता आखिर क्यों भाजपा से दूरी बना रही है? इसके पीछे जनता की राय है कि भाजपा राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे खासकर हिंदू- मुस्लिम और भारत- पाकिस्तान को लेकर जनसंपर्क कर रही है।
जबकि आम आदमी पार्टी निचले स्तर के व्यक्ति के जन जीवन से जुड़े मुद्दे जैसे बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए थे। यही नहीं बल्कि अपने घोषणापत्र में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर जन मुद्दों को लेकर जनता के बीच अपनी पैठ बना ली। यही वजह रही कि दिल्ली की जनता भाजपा की बजाय आम आदमी पार्टी की तरफ मुडती हुई दिखाई दे रही है।
यह तो 11 फरवरी को ही पता चलेगा कि इस बार चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है, लेकिन दिल्ली के जनता के मन की माने तो एक बार फिर राजधानी में केजरीवाल की सरकार बन रही है। इसी के साथ ही भाजपा दूसरे नंबर पर दिल्ली में दिखाई दे रही है। जबकि कई विधानसभा क्षेत्र में तो भाजपा तीसरे नंबर पर आ गई है। दिल्ली में करीब एक दर्जन ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां अल्पसंख्यक समुदाय बहुसंख्यक मतदाता के रूप में मौजूद है। इन इलाकों में भाजपा तीसरे नंबर पर दिख रही है। हालांकि, मुकाबले में कांग्रेस कहीं नहीं दिखाई दे रही है। लेकिन 2-4 सीट ऐसी है जहां पर वह मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है।