ग्यारह सितम्बर के दिन देश की विधायिका के शीर्ष व्यक्ति देश की न्यायपालिका के शीर्ष व्यक्ति के घर क्या गए कि हंगामा बरप गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के घर में आयोजित गणपति पूजन कार्यक्रम में शामिल हुए थे। उन्होंने इस बाबत एक तस्वीर सोशल मीडिया में जारी की जिसके बाद खासा विवाद खड़ा हो गया। विपक्षी दलों ने खुलकर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को निशाने पर लेने में तत्काल देरी नहीं करते हुए न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर बड़े सवाल खड़े कर दिए। कई प्रतिष्ठित वकीलों ने भी इसे लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराने में देरी नहीं लगाई। यकायक ही 27 बरस पहले बनी न्यायाधीशों की एक ‘आचार संहिता’ का जिक्र किया जाने लगा और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को निशाने पर लेकर कहा जाने लगा कि उन्होंने इस आचार संहिता का पालन नहीं किया है।
गौरतलब है कि 1997 में उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एमएन वेंकट चलैया ने 16 बिंदुओं वाली एक आचार संहिता ‘न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन तैयार की थी जिसे बकायदा सुप्रीम कोर्ट की एक बैठक में स्वीकृत किया गया था। अब इसी आचार संहिता को आगे कर कहा जा रहा है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने प्रधानमंत्री को अपने आवास में नहीं बुलाना चाहिए था। यह सारा विवाद महाराष्ट्र चुनावों से भी जा जुड़ा है। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने 11 सितम्बर की रात 10ः11 मिनट पर अंग्रेजी में एक ट्विट कर देशवासियों को जानकारी दी कि आज उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के घर गणेश पूजन कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इसके लगभग पौने घंटे बाद प्रधानमंत्री ने एक दूसरी ट्विट मराठी में पोस्ट कर डाला जिसमें उन्होंने लिखा कि ‘सरन्यायाधीश, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ जी याांच्या निवास्थानी गणेश पूजेत सामीलल झालो।’
यहीं से यह बात उठी कि पीएम मोदी का महाराष्ट्र चुनाव से ठीक पहले मराठी मूल के मुख्य न्यायाधीश के घर जाना राजनीति से प्रेरित है। अति उत्साही सोशल मीडिया यूजर्स यह भी कयास लगाने से नहीं चूक रहे हैं कि जल्द सेवानिवृत्त होने जा रहे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ सेवानिवृत्ति बाद न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की तरह ही सक्रिय रहना चाहते हैं और इस कारण वे सत्तापक्ष के निकट होने लगे हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने भले ही शिष्टाचार वश प्रधानमंत्री मोदी को अपने घर में गणेश पूजा कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण दिया हो, इस प्रकरण ने उनकी छवि को खासा प्रभावित करने का काम कर दिखाया है। विपक्षी दल जब लगातार मोदी सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा कम करने का आरोप लगा रहे हों, देश की सर्वोच्च न्यायालय के मुखिया को समझना चाहिए था कि उनके ऐसे किसी भी कदम का क्या परिणाम हो सकता है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की छवि एक बेहद निष्पक्ष और ईमानदार न्यायाधीश की रही है। उन्होंने मोदी सरकार की विवादित इलेक्ट्रॉरल बॉन्ड योजना को गैरसंवैधानिक बताते हुए बंद करने का ऐतिहासिक निर्णय दे आमजन का भरोसा जीता था कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान की रक्षा करने के लिए कटिबद्ध है। लेकिन अपने सेवाकाल के अंतिम चरण में वे गलती कर बैठे और व्यर्थ ही विवादों में घिर गए हैं।