पिछले एक हफ्ते से श्रीलंका सरकार पर मानवाधिकारों के हनन के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा है। इन सबके बीच मुस्लिम अल्पसंख्यकों के दमन के आरोप से घिरी हुई श्रीलंकाई सरकार अब अचानक ही मुस्लिम जनमत की हितेषी बनती नजर आ रही है।
गौरतलब है कि श्रीलंका में वर्ष 2019 में एक साथ कई चर्च, होटल, और पर्यटन स्थलों पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद से देश में मुस्लिम गुटों पर सख्त कार्रवाई हुई। इन आतंकवादी हमलों का आरोप एक मुस्लिम चरमपंथ गुट पर लगाया गया था। मामले पर कार्रवाई हुई और उस दौरान असर आम मुसलमानों पर पड़ा। उनकी मुश्किलें बढ़ती हैं। जिसके चलते मुस्लिम समुदाय धीरे-धीरे दूरी बनाना लगा है।
पर्यवेक्षकों के अनुसार स्थिति को भांपते हुए अब श्रीलंका सरकार ने मुस्लिम जनमत की नाराजगी से पार पाने के लिए उन्हें संतुष्ट करने के लिए काम करना शुरू कर दिया है। श्री लंका सरकार के इन कदमों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खास ध्यान आकर्षित किया है।
इस हफ्ते श्रीलंका के विदेश मंत्री जीएल पेइरिस द्वारा इस्लामिक देशों के राजदूतों के लिए रात्रिभोज का आयोजन किया गया था । इसमें प्रधानमंत्री महिंद राजपक्षे भी शामिल हुए। श्रीलंकाई मीडिया में 30 नवंबर को हुई डिनर की खबरें आने लगी हैं। उनके अनुसार, विदेश मंत्री ने उस दौरान कहा था कि श्रीलंका के मुस्लिम समुदाय ने ऐतिहासिक रूप से श्रीलंका के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि दुनिया भर के इस्लामी देशों के साथ श्रीलंका के संबंध बेहद सौहार्दपूर्ण हैं।
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श्रीलंकाई सरकारी अधिकारियों के अनुसार, डिनर पार्टी में शामिल होने वाले इस्लामिक देशों के राजदूतों ने इस बात पर जोर दिया कि धार्मिक और सांस्कृतिक बहुलवाद श्रीलंका की ताकत है। कहा जाता है कि राजदूतों ने देश में “चरमपंथी तत्वों” के खिलाफ श्रीलंका सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने मौजूदा आर्थिक संकट से उबरने में श्रीलंका के साथ सहयोग करने का भी वादा किया।
लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि श्रीलंका के विदेश मंत्री द्वारा दिया गया भाषण एक तरह से उनकी सरकार की ओर से एक स्पष्टीकरण था। उन्होंने इस बात पर जोर देने की आवश्यकता समझी कि श्रीलंका अपनी “समृद्ध” लोकतांत्रिक परंपरा को जारी रखेगा और धर्म, जाति या जातीयता की परवाह किए बिना वहां हर व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि श्रीलंका में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता पूरी तरह से सुरक्षित है। पीयर्स ने राजदूतों को यह भी बताया कि श्रीलंकाई सरकार जल्द ही अभद्र भाषा पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक कानून बनाएगी।