रविवार के दिन जब देश के दिग्गज किसान नेता रहे बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के मुजफ्फरनगर स्थित गांव सिसौली में उनकी 11 वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही थी तब लखनऊ से एक खबर आई, जिसने सबको चौंका दिया। खासकर टिकैत बंधुओं नरेश टिकैत और राकेश टिकैत को। यह खबर थी भारतीय किसान यूनियन के दो फाड़ होने की। लखनऊ में किसान यूनियन के ही नेताओं ने भारतीय किसान यूनियन से अलग एक संगठन का गठन कर लिया। जिसका नाम रखा गया भारतीय किसान यूनियन अराजनीतिक।
तब मीडिया को जैसे टिकैत बंधुओं के खिलाफ मौका मिल गया। तरह तरह की खबरें आने लगी। कोई लिखता कि भारतीय किसान यूनियन में हुआ बिखराव तो किसी ने टूट लिखा। किसी ने लिखा कि टिकैत बंधुओं को बाहर का दिखाया गया रास्ता। यही नहीं बल्कि कईयों ने लिखा कि टिकैत के उतार दिए गए बक्कल।
यह पहला मौका नहीं है जब भारतीय किसान यूनियन के अलग गुट ना बने हो । इससे पहले भी 10-12 बार लोगों ने भारतीय किसान यूनियन से अलग गुट बनाए हैं। लेकिन कहा जाता है कि आज तक भारतीय किसान यूनियन टिकैत जितना टिकाऊ और मजबूत संगठन कोई सा भी नहीं रहा।
अधिकतर संगठन या तो धरना प्रदर्शन करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहें या फिर कागजों में ही सिमट कर रह गए। भारतीय किसान यूनियन की सेहत पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा। बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व वाला भारतीय किसान यूनियन संगठन आज भी किसानों का मजबूत संगठन बना हुआ है। जबकि दूसरे संगठनों का अधिकतर अस्तित्व ही समाप्त हो गया है ।
किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने अराजनीतिक रहते हुए कभी देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को किसानों के पक्ष में घोषणा कराने के लिए मंच पर आने को मजबूर कर दिया था। मंच से प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, प्रधानमंत्री देवगौड़ा, मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, मुलायम सिंह यादव, राजनाथ सिंह आदि ने किसानों को कई बार संबोधित किया। लेकिन उन पर कभी भी राजनीतिक होने का ठप्पा नहीं लगा। उनके दोनों पुत्र नरेश टिकैत और राकेश टिकैत संगठन के इस स्वरूप को बरकरार बनाए हुए थे।
बहरहाल, पिछले 6 महीने पहले से ही भारतीय किसान यूनियन में अलगाव की खबरें आने लगी थी। एक गुट ऐसा था जो बराबर भाजपा से संपर्क बनाए हुए था। जिस दिन से तीन कृषि कानून वापिस हुए उसी दिन से यह चर्चा चल रही थी कि भारतीय किसान यूनियन का एक गुट अलग हो सकता है। इसमें सबसे पहला नाम चौधरी राजेंद्र सिंह का आ रहा था। आरोप है कि गठवाला खाप के चौधरी राजेंद्र सिंह पहले से ही भाजपा के साथ मिलकर चल रहे थे। इसी के साथ ही भारतीय किसान यूनियन से अलग होने वाले दूसरे नेता धर्मेंद्र मलिक का नाम भी चर्चाओं में था।
धर्मेंद्र मलिक किसान आंदोलन के दौरान राकेश टिकैत का मीडिया मैनेजमेंट देखते थे। मलिक को भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय प्रवक्ता भी बनाया हुआ था। तब कहा जाता था कि राकेश टिकैत के लिए मीडिया मैनेजमेंट में धर्मेंद्र मलिक प्रमुखता से भूमिका निभाते थे । लेकिन वही धर्मेंद्र मलिक अब टिकैत से अलग हो गए हैं।
आखिर क्या वजह रही कि धर्मेंद्र मलिक टिकैत का साथ छोड़ गए । इसके पीछे विधानसभा चुनाव की एक कहानी बताई जा रही है। जिसके अनुसार धर्मेंद्र मलिक ने विधानसभा चुनाव के दौरान बुढाना से राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी। तब बताया गया कि धर्मेंद्र मलिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से अपने टिकट की घोषणा भी करा लाए थे।
लेकिन ऐन वक्त पर राष्ट्रीय लोक दल ने बुढाणा सीट से राजपाल बलियान का टिकट का ऐलान कर दिया। बाद में राजपाल बलियान यहां से चुनाव जीत गए। इससे धर्मेंद्र मलिक नाराज बताए जाते थे।
हालांकि, उनकी नाराजगी राष्ट्रीय लोकदल से होनी चाहिए थी । लेकिन वह अप्रत्यक्ष रूप से राकेश टिकैत पर इसका आरोप लगाते देखे गए। उन्होंने तब कहा था कि उनके ही एक वरिष्ठ नेता ने उनका राष्ट्रीय लोक दल से टिकट नहीं होने दिया। उनका सीधा संकेत राकेश टिकैत की ओर था।
कहा गया कि विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने की यही टीस धर्मेंद्र मलिक को विरोधी गुट के साथ ले गई। यही वजह है कि अब जब भारतीय किसान यूनियन अराजनीतिक बना तो उनमें सात प्रमुख नेताओं में धर्मेंद्र मलिक का नाम भी शुमार है। इस अराजनीतिक दल के अध्यक्ष राजेश सिंह चौहान को बनाया गया है ।
भारतीय किसान यूनियन से अलग होने के बाद असंतुष्ट नेताओं ने राकेश टिकैत पर आरोप लगाया है कि वह उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में एक राजनीतिक दल के कठपुतली बन गए थे। उन्होंने स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के आदर्शों से समझौता किया। इनका सीधा इशारा रालोद की तरफ था। बताया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के दौरान भी भारतीय किसान यूनियन पर रालोद के प्रति झुकाव होने के आरोप लगे थे।
हालांकि, इस मामले पर राकेश टिकैत ने ट्वीट किया है और कहा है कि वह पूरी तरह गैर राजनीतिक व्यक्ति है । उन्होंने चुनाव में किसी का भी समर्थन नहीं किया। यही नहीं बल्कि उन्होंने कहा कि किसान हितों पर कुठाराघात करते हुए कुछ लोगों ने भारतीय किसान यूनियन से अलग कथित संगठन बनाने की घोषणा की है।
किसान हितों के विरोध में ऐसे तत्वों को तत्काल प्रभाव से भारतीय किसान यूनियन से बर्खास्त किया गया है। इनमें राजेश सिंह चौहान, हरिनाम वर्मा, धर्मेंद्र मलिक सहित कुल 7 नेताओं के नाम शामिल है। यह सब सरकार के इशारे पर काम कर रहे थे।
दूसरी तरफ भारतीय किसान यूनियन से अलग हुए गुट भारतीय किसान यूनियन अराजनीतिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश सिंह चौहान ने कहा है कि देश में एक ऐसे किसान संगठन की जरूरत है जो देश और विश्वव्यापी किसान समस्याओं को लेकर चिंतन मंथन और आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर सके।
साथ ही किसानों की समस्याओं को हल करने में अपनी सकारात्मक भूमिका भी सुनिश्चित कर सकें। किसानों की बढ़ती उत्पादन लागत और इसके एवज में उन्हें अपनी मिलने वाले मूल्य को काफी कम करार देते हुए उन्होंने कहा कि इसके समाधान के लिए किसानों का संगठन होना चाहिए जो तथ्यों के साथ सरकार से संवाद कर सके। साथ ही चौहान ने कहा है कि एक वैश्विक मंच भी होना चाहिए जो बगैर किसी पूर्वाग्रह के दुनिया के किसानों के कल्याण की चिंता कर सकें।