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बृजभूषण पर क्यों मेहरबान है भाजपा

देश का नाम विदेशों में रोशन करने वाली महिला पहलवान भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगा बीते 23 अप्रैल से दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर धरनारत हैं। बृजभूषण पर एक नाबालिग खिलाड़ी द्वारा भी पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कराया गया है। खास बात यह है कि इस मुकदमे को दर्ज हुए हफ्ते भर से ज्यादा समय हो गया है। वह भी तब जब पॉक्सो एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी अनिवार्य है। बावजूद इसके दिल्ली पुलिस ने उन्हें अभी तक गिरफ्तार नहीं किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि बृजभूषण सिंह के प्रति इतनी मेहरबानी क्यों दिखाई जा रही है? अब किसान संगठनों द्वारा महिला पहलवानों के समर्थन में ताल ठोंकने से मामला राजनीतिक रंग ले चुका है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी को लेकर विपक्षी दल भी मैदान में उतर चुके हैं

देश के दिग्गज पहलवान दिल्ली के जंतर-मंतर पर कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। उन पर दो मुकदमे दर्ज किए गए हैं। पहला महिला की लज्जा भंग करने के आरोप में आईपीसी की धारा 354, 354(ए), 354(डी) के तहत केस दर्ज किया गया है। इस मामले में अगर वे दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें अधिकतम 3 साल तक की सजा हो सकती है। एक केस पॉक्सो एक्ट में भी दर्ज किया गया है। खास बात यह की इस मुकदमे को दर्ज हुए हफ्ते भर से ज्यादा समय हो गया है। वे भी तब जब पॉक्सो एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी अनिवार्य है। बावजूद इसके दिल्ली पुलिस ने उन्हें अभी तक गिरफ्तार नहीं किया है। ऐसे में सवाल है कि इनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। जबकि पॉक्सो एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी की जाती है। पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज होने के बाद पुलिस पहले गिरफ्तार करती है फिर मामले की जांच करती है। यहां तक कि इसमें पहले बेल भी नहीं मिलती है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ‘अरनेश कुमार बनाम बिहार सरकार’ मामले में गाइड लाइन बनाई थी। इस गाइड लाइन का भी बृजभूषण सिंह के मामले में पालन नहीं किया गया है। आखिर कौन-सा कानून है जिसके तहत बृजभूषण सिंह का बचाव किया जा रहा है? या फिर दिल्ली पुलिस गिरफ्तार क्यों नहीं कर रही है? कानून में ऐसा क्या प्रावधान है कि पॉक्सो एक्ट के बाद भी पहले या तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जा रही है? आखिर पुलिस के सामने क्या मजबूरी है। कहीं उसका रसूख चेहरा तो नहीं। बृजभूषण सिंह 6 बार से सांसद हैं। साथ ही कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष भी हैं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गंभीर मामले में भी गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं है। जब तक जांच कर रहे अधिकारी को यह न लगे कि गिरफ्तारी जरूरी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ‘सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई’ के मामले में ऐसा कहा था। इससे कहा जा सकता है कि दिल्ली पुलिस को भी बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं लगती है। जिसके चलते वे गिरफ्तार नहीं कर रहे हैं।

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उधर बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी के लिए पहलवानों का दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना बीते 23 अप्रैल से जारी है। पहलवानों को अब देशभर की खापों की महापंचायत और विपक्षी दलों का भी समर्थन मिलने लगा है। महापंचायत में बृजभूषण की गिरफ्तारी के लिए सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया गया है। महापंचायत के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि हम सरकार को 15 दिन और देते हैं। सरकार इस मसले का समाधान निकाले। यह समय 20 मई तक का है। हल न निकलने पर 21 मई को फिर महापंचायत होगी, जिसमें बड़े से बड़ा निर्णय लेने से पीछे नहीं हटेंगे। जरूरत पड़ी तो 20 मई के बाद यह आंदोलन देशभर में खड़ा किया जाएगा। दूसरी ओर बृजभूषण अपनी बात पर अड़े हुए हैं कि इस्तीफा नहीं देंगे। पहलवानों और बृजभूषण शरण सिंह के बीच अब आर-पार की लड़ाई है। इसमें खाप पंचायतों से लेकर सम्मानित फोगाट फैमिली भी पहलवानों के पक्ष में उतर आए हैं। फिलहाल, इस पूरे मामले में बीजेपी चुप्पी साधे हुए है। कहा जा रहा है कि इस चुप्पी के पीछे बीजेपी के कई मायने हैं। आने वाले समय में बीजेपी और बृजभूषण दोनों के लिए जरूरत का सौदा नजर आ रहा है। बृजभूषण न सिर्फ गोंडा बल्कि अयोध्या, श्रावस्ती, बाराबंकी समेत, आस-पास की लोकसभा सीटों में अपना दबदबा रखते हैं। क्षेत्रीय दबदबे के चलते बृजभूषण राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत नजर आते हैं।

भाजपा नेताओं की चुप्पी
बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ अभी तक किसी भी बड़े भाजपा नेता ने कोई बयान नहीं दिया है। मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब जाकर बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। योगी आदित्यनाथ को सख्त सीएम के तौर पर जाना जाता है लेकिन बावजूद इसके बृजभूषण शरण सिंह को लेकर योगी आदित्यनाथ ने चुप्पी साध रखी है। बृजभूषण सिंह की कई ऐसी गतिविधियां हैं जिसके चलते उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है लेकिन योगी सरकार इसे नजरअंदाज कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है निःसंदेह किसी बड़े नेता का उनपर हाथ है। इसका एक कारण यह भी माना जा रहा है कि प्रदेश में निकाय चुनाव चल रहे हैं, ऐसे में भाजपा बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई का जोखिम नहीं लेना चाहती है। वहीं ठाकुरों की राजनीति में भी बृजभूषण शरण सिंह प्रदेश के बड़े नेता हैं।

वर्ष 1991 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए बृजभूषण स्वयं अथवा अपनी पत्नी के जरिए उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण बने हुए हैं। 1996 में बृजभूषण का टिकट काट दिया गया था। उन पर दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों को कथित रूप से शरण देने का आरोप लगा था। तब उनकी पत्नी को गोंडा से भाजपा ने मैदान में उतारा और जीत हासिल की। 1998 में गोंडा से समाजवादी पार्टी के कीर्तिवर्धन सिंह से चुनाव हार गए थे। बृजभूषण शरण सिंह विश्व हिंदू परिषद् के प्रमुख अशोक सिंघल के करीबी रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी संघ से भी नजदीकियां रही हैं। उन्होंने अयोध्या से पढ़ाई की और उसके बाद छात्र राजनीति से करियर की शुरुआत की। उनको राम मंदिर आंदोलन से जुड़ने का मौका मिला। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद मामले में बृजभूषण समेत कई लोगों पर जनभावनाएं भड़काने का आरोप लगा और उन पर मुकदमा दर्ज हुआ, तब बृजभूषण बीजेपी के सांसद के तौर पर चुनाव जीत चुके थे। बृजभूषण लगभग 50 शैक्षणिक संस्थानों के जरिए अपना दबदबा कायम रखते आए हैं। ये शैक्षणिक संस्थान अयोध्या से लेकर श्रावस्ती तक 100 किलोमीटर के दायरे में फैले हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि सिंह की चुनाव मशीनरी लगभग पूरी तरह से पार्टी से स्वतंत्र इस सेटअप के जरिए चलाई जाती है जिससे लगता है कि सिंह को पार्टी और पार्टी भी सिंह की उतनी ही जरूरत है।

विवादों में घिरे, संगठन स्तर पर कार्रवाई नहीं
मौजूदा समय में बृजभूषण और बीजेपी के संबंधों में तनाव बना हुआ है। माना जाता है कि आलाकमान के नेता बृजभूषण के कुश्ती महासंघ के मामले को लेकर खुश नहीं हैं। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ भी बृजभूषण की कोई ज्यादा नजदीकी नहीं दिखाई देती। हालांकि इस पूरे मामले में पार्टी की तरफ से रुख स्पष्ट नहीं किया गया है। लेकिन लगातार विवादों में घिरे होने के बावजूद संगठन स्तर पर कार्रवाई बचे हुए हैं।

इस बार बेदाग निकल पाना मुश्किल

इस मामले में धरना देने वाले पहलवानों को मिल रहा राजनीतिक समर्थन भी बीजेपी के लिए नुकसान की वजह बन सकता है, यही वजह है कि बृजभूषण सिंह अब कड़े संघर्ष की बात कहने लगे हैं। ऐसे में टाडा समेत कई आरोपों को झेलकर बरी होने वाले बृजभूषण के लिए इस बार पहलवान महिलाओं द्वारा गंभीर आरोपों से बेदाग निकल पाना आसान नहीं है। जानकारों का मानना है कि 2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए अहम है और बीजेपी विपक्ष के हाथ इस मुद्दे को भुनाने का मौका नहीं देगी, जिसका भारी चुनावी खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है। बीजेपी सांसद के खिलाफ यह दूसरी बार आंदोलन हो रहा है, लेकिन उनका विवादों से नाता कोई नया नहीं है। दबंग छवि के नेता माने जाने वाले बृजभूषण शरण सिंह मंच पर एक पहलवान को थप्पड़ भी जड़ चुके हैं तो टीवी पर सरेआम हत्या की बात भी कबूल कर चुके हैं। यही नहीं, कई बार तो वह अपने बयानों से बीजेपी के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर चुके हैं। हाल के दिनों की बात करें तो अवध क्षेत्र में बृजभूषण शरण सिंह ने अपने प्रभाव का काफी विस्तार किया है। यहां पर उन्होंने कई कॉलेज और स्कूल बनाए हैं। शिक्षा का बड़ा साम्राज्य खड़ा किया है। उन पर कई जमीनों पर कब्जे का आरोप लगा है।

आरोप साबित हुए तो आत्महत्या कर लूंगा

पहलवानों के आरोपों पर भी खुले तौर पर बृजभूषण शरण सिंह कहते हैं कि आरोप अगर साबित हुए तो आत्महत्या कर लूंगा। भाजपा-आरएसएस की विचारधारा से जुड़े बृजभूषण शरण सिंह जिस तरह से भाजपा और आरएसएस से लंबे समय से जुड़े रहे हैं, पार्टी की विचारधारा से जुड़े हैं, उसकी वजह से भाजपा उनके खिलाफ कार्रवाई करने से पीछे हट रही है। बृजभूषण शरण सिंह बड़े भाजपा नेताओं का नाम लेकर कहते भी हैं कि उनका उनसे संबंध काफी अच्छा है। पूर्व पीएम अटल जी का भी नाम वे लेते हैं और कहते हैं उनका उनसे करीबी रिश्ता था।

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