राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के बाद थिएटर प्रशिक्षण के लिए सबसे प्रतिष्ठित सरकारी संस्थान उत्तर प्रदेश शहर में भारतेंदु नाट्य अकादमी है। यह लखनऊ और लखनऊ के लोगों के लिए गर्व की बात हो सकती है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। कम से कम अकादमी के मौजूदा हालात तो बिल्कुल भी गर्व करने का अवसर नहीं दे रहे हैं। इस समय भारतेंदु नाट्य अकादमी काफी चर्चा में है और चर्चा में होने का कारण उसका विवादास्पद होना है। जी हाँ, जहां रंगकर्मी कुछ सपने संजोकर अपने भविष्य को बनाने आते हैं उसी अकादमी को लेकर अब रंगकर्मी बेहद चिंतित है। जिसके कारण कई रंगकर्मी आंदोलनरत भी है।
जानिए क्या है SAVE BNA मुहिम ?
इसी मामले को लेकर देशभर के कई रंगकर्मी कोरोना काल में निरन्तर प्रयासरत है। इसके तहत उन्होंने Save BNA नाम से एक मुहिम शुरू की है। जिसमें उन्होंने सभी से अपील की है कि सभी एक पोस्टकार्ड मा.मुख्यमंत्री (उ. प्र.) महोदय को #savebna लिख कर भेजने का महत्वपूर्ण सहयोग करे। उनका कहना है कि आपके नाम का एक पोस्ट कार्ड देश के इस नामचीन प्रतिष्ठान को बचा पायेगा। ऐसा हमारा विश्वास है। मुहिम के समर्थन के लिए ऑनलाइन पिटीशन पर साइन करने के लिए भी आग्रह किया गया है। इस मुहिम में सर्यमोहन कुलश्रेष्ठ, आतमजीत सिंह, अनिल रस्तोगी, ललित सिंह पोखरियाल, राकेश वेदा,देवाशीष,भारतेंदु । प्रवीर गुहा, अभिषेक पंडित, अतुल तिवारी,,अनामिका हक्सर मनोज मिश्रा आदि जुड़े है।
कोरोना काल में भी रंगकर्मियों के जोश और जज्बे में कोई कमी नहीं आई है। वह लगातार मुहिम से अभियान को सशक्त बना रहे है। इसी कड़ी में 2 अक्टूबर गांधी जयंती पर हिंदी रंगमंच के तमाम साथियों द्वारा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थापित भारतेंदु नाट्य अकादमी ( BNA) में वर्षों से चली आ रही अव्यवस्था को दूर करके सुचारु रूप से बेहतर प्रशिक्षण देने की माँग के साथ ‘सत्य का आग्रह’ किया गया।
भारत में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के बाद दूसरा महत्त्वपूर्ण संस्थान
भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ उत्त्तर भारत में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के बाद दूसरा महत्त्वपूर्ण संस्थान रहा है। विद्यार्थी बड़े मनायोग से तैयारी करने के बाद वहाँ दाख़िल होते हैं। इस उम्मीद में कि उन्हें अभिनय के गुर समर्थ गुरुओं से सीखने को मिलेंगे। उचित संसाधनों के साथ बेहतर प्रशिक्षण मिलेगा, जिसका वो आगे रंगमंच या सिनेमा में उपयोग कर पाएंगे। लेकिन अब इसके विपरीत ही हो रहा है क्योंकि यहाँ पिछले कई वर्षों से कोई स्थायी निदेशक नहीं है ऊपर से जिनके पास कार्यकारी निदेशक का पद है उनका इस क्षेत्र से दूर-दूर तक कोई लेना-देना ही नहीं है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी सिफारिश के चलते वह अब तक टिके हुए है। बात इतनी भर नहीं है बल्कि यहाँ युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षक भी न के बराबर है। कभी अपनी कलाओं से तारीफे बटोरने वाला अकादमी अब संकट में नजर आने लगा है। अब यहाँ केवल खानापूर्ति की जा रही है।
हालाँकि हाल ही में उत्तर प्रदेश के मंत्री द्वारा वाराणसी में घोषणा की गई कि वहां भारतेन्दु नाट्य अकादमी की एक शाखा खोली जाएगी। जो बेहद हर्ष की बात है। केवल वाराणसी में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों जैसे आगरा गाजियाबाद और कानपुर में भी इसकी शाखाएं खुलनी चाहिए। जिससे यहाँ के लोगों को भी फायदा हो सके।
नाट्य अकादमी में इससे बड़ा नाटक क्या हो सकता है!
मौजूदा हालात को देखते हुए भारतेंदु नाट्य अकादमी के वर्तमान प्रशासन पर यह सवाल खड़ा होता है कि क्या वह विद्यार्थियों की उम्मीदों के साथ खरा उतर रहा है? एक प्रशिक्षण संस्थान के रूप में क्या वो अपनी भूमिका निभा पा रहा है ? छात्र और रंगकर्मी इन सभी प्रश्नों का उत्तर प्रशासन से लगातार आंदोलन करके मांग रहे है। अब भारतेंदु नाट्य अकादमी के प्रशासन का यह फर्ज है की वह इन सभी सवालों के जवाब दे।
इस कोरोना काल की भयावह स्तब्धता में अनेक रंगकर्मी अपने अकेले प्रयासों से अपना समय अपने भविष्य को बेहतर बनाने और आने वाली पीढ़ी के लिए दे रहे है। अब सवाल यह है कि जब अकादमी में कोई पूर्णकालिक प्रशिक्षक नहीं है, तो रंगकर्मा के छात्रों को कौन प्रशिक्षित करेगा? अब आप ही बताइए, नाट्य अकादमी में इससे बड़ा नाटक क्या हो सकता है!