इतिहासकार रोमिला थापर से जेएनयू प्रशासन के बायोडेटा मांगने पर विवाद शुरू हो गया है। यूनिवर्सिटी से लंबे समय से प्रोफेसर इमेरिटस के तौर पर जुड़ी थापर से बायोडाटा मांगने का छात्रों, शिक्षकों और इतिहासकारों के एक वर्ग ने विरोध किया है। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी प्रशासन के इस फैसले को अपमानित करने वाला बताया है, जबकि यूनिवर्सिटी का कहना है कि उसने तय नियमों के तहत ही थापर से सीवी मांगने वाला पत्र लिखा है।

क्या है यूनिवर्सिटी प्रशासन का तर्क
यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि नियमों के मुताबिक यह जरूरी है वह उन सभी को पत्र लिखे जो 75 साल की उम्र पार कर चुके हैं ताकि उनकी उपलब्धता और विश्वविद्यालय के साथ उनके संबंध को जारी रखने की उनकी इच्छा का पता चल सके। यह पत्र सिर्फ उन प्रोफेसर इमेरिटस को लिखे गए हैं जो इस श्रेणी में आते हैं। बायोडेटा के जरिए यूनिवर्सिटी की ओर से गठित एक कमिटी संबंधित प्रोफेसर इमेरिटस के कार्यकाल में किए गए कार्यों का आकलन करती है। इसके बाद वह अपने सिफारिशें एग्जिक्युटिव काउंसिल को भेजती है, जो प्रोफेसर के सेवा विस्तार को लेकर फैसला लेती है।
रोमिला थापर से बायोडेटा मांगने का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि यूजीसी का नियम हाल ही में आया है, जबकि प्रोफेसर रोमिला थापर का इमेरिटस स्टेटस पूरी लाइफ के लिए है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर और अब जेएनयू से प्रोफेसर इमेरिट्स के तौर पर जुड़े दीपक नैय्यर ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि मुझे इस तरह का पत्र नहीं मिला है, लेकिन मेरी आयु अभी 75 साल नहीं हुई है। उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी इस तरह का मामला नहीं सुना, जैसा अभी हो रहा है। प्रोफेसर इमेरिट्स का दर्जा आजीवन रहता है।’
क्या है वह नियम जिसके तहत मांगा बायोडेटा
जेएनयू के अकैडमिक रूल्स ऐंड रेगुलेशंस के नियम संख्या 32 (G) के मुताबिक, ‘इमेरिट्स प्रोफेसर की 75 वर्ष की आयु पूर्ण होने के बाद उनकी नियुक्ति करने वाली अथॉरिटी एग्जिक्युटिव काउंसिल यह रिव्यू करेगी कि क्या उन्हें आगे सेवा विस्तार देना चाहिए या नहीं। यह संबंधित प्रोफेसर के स्वास्थ्य, इच्छा, उपलब्धता और यूनिवर्सिटी की जरूरतों के आधार पर तय होगा।’ इसके आगे नियम कहता है, ‘एग्जिक्युटिव काउंसिल को एक एक सब-कमिटी का गठन करना होगा, जो हर प्रोफेसर इमेरिट्स से बात करेगी। हर केस का वह बातचीत, नया सीवी मंगाकर और समकक्षों की राय आदि से परीक्षण करेगी। यह कमिटी अपनी सिफारिशें काउंसिल को भेजेगी जो प्रोफेसर के सेवा विस्तार पर फैसला लेगी।’