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कांग्रेस ने क्यों ठुकराया आमंत्रण?

आगामी आम चुनाव 2024 में अब कुछ ही महीने शेष हैं। इसके मध्य नजर सभी राजनीतिक पार्टियां तेजी से सक्रिय होने लगे हैं। देश की सत्तारूढ़ दल भाजपा एक ओर जहां एक फिर राम मंदिर के मुद्दे को भुनाने की भरपूर कोशिशों में रातदिन जुटी है वहीं दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने करीब तीन सप्ताह तक सियासी नफा-नुकसान का आकलन करने के बाद राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को राजनीतिक करार देकर निमंत्रण को ससम्मान अस्वीकार कर दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जो पार्टी राम मंदिर के ताले खुलवाने का श्रेय लेती है आखिर उसने क्यों ठुकराया आमंत्रण? क्या कांग्रेस ने इस निर्णय से साफ कर दिया है कि राजनीतिक लाभ-हानि के मुकाबले उसके लिए विचारधारा ज्यादा अहम है? क्या इस निर्णय से पार्टी ने अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को धार देने की कोशिश की है? पार्टी सूत्रों की मानें तो राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर कांग्रेस के भीतर काफी विचार-विमर्श हुआ। इस मुद्दे पर पार्टी में दो राय थी। एक तबका चाहता था कि पार्टी के प्रतिनिधि के तौर पर कोई नेता कार्यक्रम में शामिल हों, जबकि दूसरा पक्ष चाहता था कि यह राजनीतिक कार्यक्रम है, इसलिए पार्टी को इससे दूर रहना चाहिए। आखिरकार पार्टी ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण को ससम्मान अस्वीकार करने का सार्वजनिक ऐलान कर दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस निमंत्रण स्वीकार कर भाजपा के एजेंडे में नहीं फंसना चाहती थी, क्योंकि कार्यक्रम में शामिल होने के बावजूद भाजपा से सीधा मुकाबले वाले राज्यों में उसे कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलता।

दूसरा कांग्रेस को डर था कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में जाने से दक्षिण भारत में गलत संदेश जा सकता है। दक्षिण के नेता पहले ही पार्टी पर कार्यक्रम में न जाने का दबाव बना रहे थे। कर्नाटक और तेलंगाना में पार्टी को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। पिछले चुनाव में पार्टी को दक्षिण से 28 सीट मिली थी। केरल में पार्टी ने 20 में 15 सीट पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में पार्टी ने दक्षिण को ध्यान में रखते हुए निमंत्रण में नहीं जाने का फैसला लिया है। कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के घटक दलों के साथ एकजुटता दिखाने का भी प्रयास किया है। क्योंकि गठबंधन के कई दलों के नेताओं को न्योता नहीं मिला है। कई दल अयोध्या जाने से इनकार कर चुके हैं।

इन पार्टियों का कहना है कि वे प्राण प्रतिष्ठा को एक राजनीतिक कार्यक्रम मानती हैं, यही वजह है कि रणनीतिकार काफी सोच-विचार के बाद इस निर्णय पर पहुंचे कि भाजपा के एजेंडे में फंसने के बजाय विचारधारा को मजबूती देना ज्यादा अहम और आने वाले समय में फायदेमंद साबित होगा। दूसरा कारण यह कि कांग्रेस ने इसके जरिए भाजपा की कट्टर हिंदुत्व की राजनीति से खुद को अलग रखने का भी संकेत दिया है।
गौरतलब है कि हाल ही में हुए हिंदी पट्टी के तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने की कोशिश की थी। यहां तक कि कमलनाथ ने बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री की कथा भी कराई थी लेकिन विधानसभा में मतदाताओं ने कांग्रेस की इस कोशिश को ठुकरा दिया। इसलिए धर्म को व्यक्तिगत विषय बताते हुए पार्टी ने राजनीतिक दल के तौर पर खुद को अलग कर लिया है।

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