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बाबूजी की कविता पोस्ट करने पर अमिताभ बच्चन क्यों हुए ट्रोलर्स के शिकार ?

यूँ तो सोशल मीडिया अकॉउंट पर कोई किसी भाषा के व्याकरण को लेकर कोई  सवाल नहीं पूछता।  आप कुछ भी लिख कर पोस्ट कीजिये, अँग्रेज़ी में या हिन्दी में या हिंग्लिश (हिन्दी और इंग्लिश) में, कोई भी शब्दों की शुद्धता को लेकर सवाल नहीं उठाता , तो व्याकरण और भाषा शैली दूर की बात है। यहां आप बेफ़िक्र होकर थैंक्यू यू को सॉर्ट फॉर्म में सिर्फ़ टी और एक्स लिख कर भी काम चला सकते हैं। ग़लत वर्तनी के लिए भी कोई आपसे कुछ नहीं कहने वाला, न ही आपके नम्बर कटेंगे किसी तरह के।
सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से विभिन्न भाषाओं की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। कुछ लोग तो शब्दों और वाक्यों के सॉर्ट फॉर्म को लेकर इतने हैबिचुअल हो गए हैं कि उन्हें असल में वह शब्द या वाक्य कैसे लिखा जाता है ,यह पता ही नहीं होता। ख़ैर, कुछ जागरूक लोगों ने इसके विपरीत अपनी ख़ुद की पहल शुरू की है कि उन्हें सोशल मीडिया पर भी सही वर्तनी और व्याकरण  का प्रयोग करना है, इसी पंक्ति में कुछ साहित्यकारों ने  भी यह बीड़ा उठाया हुआ है।

वर्तनी को लेकर ग़लती किसी और ने नहीं  बल्कि अमिताभ बच्चन ने की !

लेकिन इसी क्रम में इसी विषय पर एक ऐसा पोस्ट आया है जिसको लेकर सोशल मीडिया पर हिन्दी भाषा को लेकर गर्म बहस शुरू हो गयी है। ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि इस बार वर्तनी को लेकर ग़लती किसी और ने नहीं बल्कि महान साहित्यकार के बेटे और सिनेमा में सदी के नायक के नाम से मशहूर अमिताभ बच्चन ने की है।
दरअसल आज यानी कि 10 जून 2021 को अमिताभ बच्चन ने अपने फ़ेसबुक एकाउंट से एक पोस्ट किया।
और अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की प्रसिद्ध कविता ‘अँधेरे का दीपक’ से एक पंक्ति को कोट करते हुए उन्हें याद किया।
उन्होंने जो पंक्ति लिखी है वह है,
‘हैं अँधेरी रात पर दीवा चलाना कब माना है”
असल में यहां अमिताभ बच्चन से एक छोटी सी टाइपिंग मिस्टेक हो गयी। लेकिन क्योंकि सेलेब्रिटी वो भी बच्चन साहब से ऐसा हुआ है तो विवाद तो होना ही था। कई सोशल मीडिया यूजर्स को बैठे-बिठाए अपना ज्ञान उड़ेलने का मौका मिल गया।
पहले आप पढ़िए हरिवंश राय बच्चन की यह अद्भुत, आशावादिता से लबरेज़ कविता ‘अँधेरे का दीपक’ , फिर करते हैं आगे की बात।

अँधेरे का दीपक

है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था ,
भावना के हाथ से जिसमें वितानों को तना था,
        स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा,
        स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था,
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है?
        है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
बादलों के अश्रु से धोया गया नभनील नीलम
का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम,
        प्रथम उशा की किरण की लालिमासी लाल मदिरा
        थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम,
वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनो हथेली,
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है?
        है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
क्या घड़ी थी एक भी चिंता नहीं थी पास आई,
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई,
        आँख से मस्ती झपकती, बातसे मस्ती टपकती,
        थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई,
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार माना,
पर अथिरता पर समय की मुसकुराना कब मना है?
        है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिसमें राग जागा,
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा,
        एक अंतर से ध्वनित हो दूसरे में जो निरन्तर,
        भर दिया अंबरअवनि को मत्तता के गीत गागा,
अन्त उनका हो गया तो मन बहलने के लिये ही,
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है?
        है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
हाय वे साथी कि चुम्बक लौहसे जो पास आए,
पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए,
        दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
        एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए,
वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे,
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है?
        है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना,
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना,
        नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका,
        किन्तु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना,
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से,
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है?
        है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
– हरिवंशराय बच्चन
यह कविता जीवन में कभी भी हारकर न बैठने के लिये प्रेरित करती है। इस कविता को लेकर अनेकों लेख,आलेख, समीक्षाएं यहाँ तक कि निबंध भी लिखे गए।
इस कविता की प्रासंगिकता की बात करें तो आज भी कई मंचों की यह कविता शोभा बढ़ा देती है। वीर रस के कवि इस कविता को बड़े ही निराले ढंग से पढ़ते हैं।

अब आते हैं विवाद पर

ख़ैर, अब आते हैं विवाद पर , अमिताभ बच्चन ने इस पोस्ट में बस ‘मना’ शब्द को ग़लती से ‘माना’ लिख दिया जिसे साधारण तौर पर टाइपिंग मिस्टेक ही कह सकते हैं। बहुत से लोगों ने तो इसमें एक और ग़लती निकाल दी,जो असल में ग़लती है ही नहीं।
दीवा शब्द को लेकर भी कईयों ने अनायास यह कहकर भड़ास निकाला कि यह शब्द भी ग़लत है,इसकी जगह दीया होना चाहिए और नसीहत दे डाली कि अपने ही पिता की ग़लत कविता नहीं पोस्ट करनी चाहिए।
दीवा शब्द को लेकर इतने कमेंट्स थे कि मुझे भी डिक्शनरी खोलकर यह सुनिश्चित करना पड़ा कि इसका अर्थ दीया ही है,कुछ और नहीं।
बृहद हिन्दी कोश, डिक्शनरी ने इसमें मदद की और बताया कि यह शब्द दीवा सही है ,पुल्लिंग है और इसका दूसरा नाम दीया ही है। जब कन्फर्म हो गया, तो लगा जो कविता विशेषकर पहली पंक्ति हम अक्सर गुनगुनाते रहते हैं उसे दुबारा पढा जाए, फिर पहुंचे इंटरनेट देवता के पास, सही सटीक वर्जन पढ़ने के लिए bharatdiscovery.org के शरण में गए और कविता पढ़ कर और आशावादी बनकर इस ख़बर को लिखने आ गयी।
लेकिन उधर ट्रोलर्स तो ट्रोलर्स हैं,इन्होंने क्या-क्या न कह डाला, हमारे सदी के महानायक को, कुछ कोर कसर नहीं छोड़ी, यह भी कह सकते हैं सेलेब्रिटी होने का यह एक डिसएडवांटेज है। कॉमेंट्स में से कुछ जो पढ़ने में बड़े अजीबोग़रीब भी लग सकते हैं ,प्रस्तुत हैं कुछ विचार :
एक यूजर मुबारक़ खान लिखते हैं कि,
“जैसे इनका हाथ लेखनी में तंग है वैसे ही अभिषेक का एक्टिंग में ।
दोनो ही बाप की वजह से फैमस है ।”
एक यूजर सुधाकर लिखते हैं कि,
“दीवा जलाना,
थाली ताली बजाना,
अपना जमीर गिरवी रख जाना,
कुछ भी मना नहीं है… जारी रखें।।🙏
एक यूजर दिलीप सिंह लिखते हैं कि,
“लगता हैं रात को कुछ ज्यादा तनाव में थे जिसके कारण आपके हाथ काँप रहे होंगे जिससे कि दिया को दीया और मना को माना लिखे हैं, आप तो साहित्यकार और कवि हरिवंशराय बच्चन के सुपुत्र हैं आपसे तो ऐसी आशा नहीं थी, आप इस देश के करोंड़ो लोगों के प्रेरणा स्रोत हैं क्यों साहित्य की ऐसी तैसी करने पर तुले हुए हैं सेलिब्रिटी होने का मतलब ये थोड़े ही होता हैं कि कुछ भी चेप दो..!!”
एक यूजर गौरव को तो शहंशाह फ़िल्म के गीत की याद आ गयी।
लिखते हैं कि,
“अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर, क्या ये हालात हो गए हैं कि खुद के गाने स्वयं के द्वारा सभी को याद दिलाना पड़ रहे हैं। मेरी बात मान लो और बासौदा आ जाओ पैसे की बिल्कुल चिंता मत करो वोह सब हम आप से ले लेंगे, पर आपको अत्यंत आनंद की अनुभूति होगी। आपकी करेयाई नईं पिराएगी।”
ऐसे न जाने कितने लोग हैं जिन्होंने अपने अपने विचार पूरी ईमानदारी से इस पोस्ट पर छापे। लेकिन क्योंकि आशावादिता की बात हो रही है तो इस पोस्ट से दो चीजें बहुत सही हुईं एक ये कि महाकवि हरिवंश राय बच्चन की इस कविता का पुनः पाठ हो गया जो वैसे शायद ही कोई करता। दूसरा दीवा का अर्थ दीया होता है यह कई नए लोगों को मालूम भी पड़ गया। अमिताभ बच्चन इस कविता को कई बार अपने पोस्ट के जरिये पाठकों के समक्ष रख चुके हैं। पिछले साल 2020 में कोरोना वारियर्स के लिए भी उन्होंने यही कविता पोस्ट की थी।

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