पहले पंजाब के गरीब और छोटे किसानों ने पश्चिमी देशों का रुख किया और फिर काम के बेहतर माहौल की तलाश में भारतीय प्रफेशनल्स ने देश छोड़ा। फिलहाल एक बार फिर विदेशो में भारतीयों के बसने की चाहत बढ़ गयी है। लेकिन इस बार यह पलायन अमीरो में ज्यादा दिख रहा है। यह पलायन कोरोनाकाल में ज्यादा हुआ है। इसे अर्थशास्त्री भारत से पलायन के तीसरे दौर के रूप में देख रहे हैं।
ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू रिपोर्ट के मुताबिक भारत के कुल करोड़पतियों में से 2 प्रतिशत ने 2020 में देश छोड़ दिया है। रिपोर्ट के अनुसार 2020 में 2019 की तुलना में 63 प्रतिशत ज्यादा भारतीयों ने देश छोड़ने के लिए पूछताछ की। हालांकि हवाई उड़ान बंद होने और लॉकडाउन के चलते कई दस्तावेजी संबंधित काम धीमा पड़ने के चलते 2020 में पांच से छह हजार अमीरों ने देश छोड़ा। लेकिन जिस तरह से पूछताछ बढ़ रही है उससे लगता है कि अब 2021 में यह संख्या तेजी से बढ़ सकती है।
जानकारी के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर के बाद लोगो ने विदेश जाने के लिए पूछताछ पहले से ज्यादा की है। इसके मद्देनजर कयास लगाए जा रहे है कि 2021 में पिछले साल से ज्यादा अमीर देश छोड़ सकते हैं। यहां यह बताना जरुरी है कि इससे पहले 2015 से 2019 के बीच 29 हजार से ज्यादा करोड़पतियों ने भारत की नागरिकता छोड़ी थी। रिपोर्ट के अनुसार भारत के लोगों ने कनाडा, पुर्तगाल, ऑस्ट्रिया, माल्टा, तुर्की, यूएस और यूके में बसने की सबसे ज्यादा जानकारी जुटाई। बताया जा रहा है कि इसके लिए अमीर लोग भारत की नागरिकता छोड़ने को तैयार हैं।
तीन साल पहले बन चुकी है कमेटी
देश के अमीरों के देश छोड़ने पर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने साल 2018 में एक पाँच सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। सीबीडीटी ने इस पलायन की मुख्य वजह स्पष्ट करते हुए कहा था, ‘हाल के दौर में एक अलग ही चलन देखने को मिला है। अमीर भारतीय अब पलायन कर दूसरे देश की नागरिकता ले रहे हैं। इस तरह का पलायन बहुत बड़ा जोख़िम है क्योंकि टैक्स संबंधी कार्यों के लिए वे ख़ुद को ग़ैर-निवासी के तौर पर पेश कर सकते हैं, फिर चाहे भारत के साथ उनके कितने ही मज़बूत व्यक्तिगत और आर्थिक संबंध क्यों न हों।’ इसमें यह भी कहा गया था कि टैक्स बचाने के उद्देश्य से देश के अमीर पलायन कर दूसरे देशों की नागरिकता हासिल कर रहे हैं। लेकिन क्या सिर्फ़ टैक्स बचाने के लिए इतने बड़े स्तर पर पलायन हो रहा है, या कारण कुछ और भी है?
अमीरो को लुभाने के लिए बदल रहे कई देश नियम
दुनियाभर से अमीर लोगों के पलायन को देखते हुए कई देश इन्हें लुभाने के लिए अपने नागरिकता नियमों में बदलाव कर रहे हैं। अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देश संपत्ति के आकार को आधार बनाकर पर्मानेंट वीजा दे रहे हैं जो कुछ देश सीधे नागरिकता खरीदने का प्रावधान कर रहे हैं। उदाहरण के लिए साइप्रस और माल्टा जैसे देश महज संपत्ति देखकर सीधे नागरिकता प्रदान कर रहे हैं। इन देशों ने अपना यहा नागरिकता के लिए रेजिडेंस और प्रवास की न्यूनतम सीमा के प्रावधान को हटा दिया है। वहीं पुर्तगाल और हंगरी जैसे देश संपत्ति के साथ-साथ बाहर से आ रहे अमीर लोगों से अपने देश में निवेश करने की शर्त रख रहे हैं जिसे पूरा करने पर वह सीधे नागरिकता प्रदान कर रहे हैं। इसके अलावा, एंटिगुआ, बारबूडा और ग्रेनाडा जैसे देश मात्र 6 महीने के प्रवास पर सीधे नागरिकता दे रहे हैं।
21 वी सदी का चलन बना पलायन
विश्व निवास और नागरिकता संस्था एलआईओ ग्लोबल के मुताबिक बड़ी संख्या में अमीर नागरिकों का अपने मूल देश से किसी अन्य देश में पलायन 21वीं सदी का चलन है। संस्था के मुताबिक, दुनियाभर में धनाढ़्य लोगों का पलायन या दूसरे देश की नागरिकता लेने के पीछे दुनियाभर में कहीं भी निवास करने का अधिकार लेने के लिए हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर के ज्यादातर अमीर नागरिक यह पलायन अपनी और अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए कर रहे हैं। रिपोर्ट का कहना है कि ज्यादातर लोग अपने परिवार के बेहतर भविष्य और बच्चों की क्वालिटी शिक्षा के लिए पलायन कर रहे हैं।
गरीब और अमीर का बढ़ता अंतर
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक रिपोर्ट से पता चला है कि निकट अतीत में आर्थिक गैरबराबरी काफी भयावह रूप ले चुकी है। स्विटजरलैंड की ज्यूरिख स्थित संस्था क्रेडिट सुईस तो बता रही है कि भारत में 53 फीसदी दौलत एक फीसदी धनकुबेरों के पास इकट्ठी हो चुकी है। देश की सबसे गरीब आबादी सिर्फ 4.1 फीसदी संपत्ति की हिस्सेदार बची है। बताया गया है कि मौजूदा दशक में वर्ष 2010 से 2015 के बीच देश की गरीब आबादी के हिस्से के संसाधन 5.3 फीसदी से घटकर 4.1 फीसदी रह गए, जबकि इसी दौरान देश की दौलत में लगभग 2.28 खरब डॉलर का इजाफा हुआ है।