कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में पहुंच चुकी है। इस तीन दिन के यात्रा के जरिए राहुल गांधी 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश की सियासत में कांग्रेस की स्थिति को मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे है,लेकिन जिस तरह दक्षिण भारत राज्यों में कांग्रेस को विपक्षी दलों का समर्थन मिला था,उस तरह से उत्तर भारत में नहीं मिल रहा है। यहां तक कि सहयोगी दल भी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने से कन्नी काट रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में किसी भी बड़े विपक्षी नेता ने अभी तक शिरकत नहीं की है,न ही बिहार के सहयोगी उनकी यात्रा में शामिल होने को तैयार हैं। हालांकि कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा में शिरकत करने के लिए समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव,शिवपाल यादव, बहुजन समाज पार्टी के अध्यक्ष मायावती, सतीष चंद्र मिश्रा और आरएलडी के प्रमुख जयंत चौधरी सहित तमाम विपक्षी दलों के नेताओं को न्योता भेजा गया था। इसी तरह बिहार में आरजेडी और जेडीयू सहित तमाम सहयोगी के नेताओं को शामिल होने का निमंत्रण दिया गया था,लेकिन अभी तक किसी नेता का साथ नहीं मिला है,सहयोगी दल भी शामिल होने से लगभग इंकार ही कर रहे है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राहुल गांधी की अगुवाई वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को पूरी तरह से कांग्रेस का आंतरिक मामला बताते हुए 3 जनवरी को कहा कि उनकी पार्टी जेडीयू ‘पदयात्रा’ में शामिल नहीं होगी। इस तरह से बिहार में महागठबंधन के सबसे बड़े घटक आरजेडी ने भी कहा कि पार्टी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल होने को लेकर अभी कोई फैसला नहीं किया है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि उत्तर भारत कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में न तो विपक्षी दल खड़े होना चाहते हैं और न ही सहयोगी दल उनके साथ कदमताल कर रहे हैं। वहीं दक्षिण भारत के राज्य में डीएमके से लेकर तमाम दलों के नेता राहुल गांधी के साथ पदयात्रा करते नजर आए थे। महाराष्ट्र में राहुल गांधी की पदयात्रा एंट्री की थी तो शिवसेना के आदित्य ठाकरे और एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने यात्रा में शिरकत किया था।
इतना ही नहीं शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने दिल्ली में राहुल के साथ पैदल चलती नजर आईं है तो जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने भी शिरकत की थी। इसलिए सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है,जिसके चलते हिंदी भाषी राज्य में विपक्षी और सहयोगी दल के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से दूरी बनाए हुए हैं। हालांकि ‘भारत जोड़ो यात्रा’के जरिए राहुल गांधी की छवि एक मजबूत नेता के तौर पर उभर रही है,जो भजपा के साथ -साथ उन तमाम राजनितिक दलों के नेता बेचैनी पैदा कर रही है, जो पिछले कुछ सालों में कांग्रेस के कोर वोटबैंक पर काबिज हुए है। यही वजह है कि वे कांग्रेस को दोबारा से उभरने का मौका नहीं देना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी , बसपा, आरएलडी उसी वोटबैंक के सहारे सियासत में अहम भूमिका है, जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था। बिहार की स्थिति भी कुछ ऐसे ही है।
भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को सियासी संजीवनी मिली है,कांग्रेस नेता उत्साह से भरे हुए हैं। ऐसे में राहुल गांधी के साथ खड़े होकर कांग्रेस को दोबारा से सियासी पैर पसारने का मौका नहीं देना चाहते हैं। कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी सियासी दल है जो पूरे देश में हर जगह अपनी उपस्थिति रखती है। भाजपा केंद्र की सत्ता में दो बार आने के बावजूद भी अभी तक देश कई हिस्सों में पहुंच नहीं पाई है। कांग्रेस को इस हालत में भी पूरे देश में वोट मिलते हैं,कई जगह से तो विधायक सांसद भी चुने जाते है
कांग्रेस अपने इस राजनीति महत्व के सहारे अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता की अगुवाई अपने हाथों में रखना चाहती है, लेकिन विपक्ष के कई दल इसी वजह उसके साथ खड़े होने से बच रहे हैं। ममता बनर्जी से लेकर नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, केसीआर तक 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा बनने की कवायद में हैं। देश की सियासत में तेजी से आम आदमी पार्टी भी अपनी जगह बनाती जा रही है। दिल्ली के बाद पंजाब में उसकी सरकार है। गुजरात,गोवा में भी उसके कुछ विधायक हैं। दिल्ली नगर निगम में भी पिछले डेढ़ दशक से काबिज भाजपा को हराकर प्रचंड बहुमत हासिल कर केजरीवाल खुद अपने चेहरे को आगे बढ़ा रहे हैं। मायावती भले ही इस सारी कवायद से दूर हों, लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के अरमान खत्म नहीं हुए हैं। ऐसे में देखना यह होगा आने वाले समय में कौन – कौन राहुल गांधी के साथ खड़े हो सकते हैं।