सवाल ये है कि जब शिवसेना-एनसीपी सरकार बनाने को तैयार हैं तो कांग्रेस क्यों कदम पीछे खींच रही है? सूत्र बताते हैं कि महाराष्ट्र के कांग्रेस नेता तो तैयार हैं लेकिन आलाकमान मन नहीं बना पा रही है ।
कांग्रेस को ये भी देखना है कि बाकी देश में अगर कोई नुकसान हो रहा है तो महाराष्ट्र में क्या फायदा होगा? शिवसेना – एनसीपी को समर्थन देने से महाराष्ट्र में कांग्रेस को कितना फायदा होगा, इस पर भी अभी कुछ स्पष्ट नहीं है । साथ ही सबसे बड़ी बात ये कि तीन पहियों की ये गाड़ी कितने दिन चलेगी इसकी भी कोई गारंटी नहीं है ।
एनसीपी को सरकार बनाने का न्योता देने से पहले राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शिवसेना को समर्थन जुटाने के लिए 24 घंटे का वक्त दिया था। लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाई । आदित्य ठाकरे और एकनाथ शिंदे जाकर राज्यपाल से मिले थे। उन्होने सरकार बनाने की इच्छी भी जताई । लेकिन वे समर्थन पत्र पेश नहीं कर पाए ।
शिवसेना ने राज्यपाल से दो दिन का और समय मांगा था। लेकिन राज्यपाल ने इंकार कर दिया । शिवसेना नंबर क्यों नहीं जुटाई पाई । इसकी खबर आई कांग्रेस की एक चिट्ठी से. कांग्रेस की चिट्ठी में लिखा था- हमने महाराष्ट्र के अपने नेताओं से बात की….शरद पवार से भी बात हुई…अभी एनसीपी से और बात होगी ।
इतना ही नहीं, राज्यपाल ने जिस अंदाज में शिवसेना को और समय देने से इंकार किया है, उससे ताज्जुब नहीं होगा, अगर उन्होंने एनसीपी को भी तलवार की धार पर सरकार बनाने को कहा । कांग्रेस तब तक भी मन नहीं बना पाई तो फिर महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन तय लग रहा है । ऐसे में फिलहाल मामला यहीं अटका है कि चुनाव पूर्व विरोधियों के समर्थन से शिवसेना सरकार बना पाएगी या नहीं? एक सवाल ये भी ये है कि जब सरकार बनाने से पहले इतनी मुश्किलें हैं तो सरकार बन भी जाए तो कितनी दिक्कतें होंगी?