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बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती एक समय में अपनी फायर ब्रांड राजनीति के लिए जानी जाती थी। उनके तेवर इतने उग्र हुआ करते थे कि देश का, विशेषकर उत्तर भारत का मीडिया भी उनसे दबकर रहता था। अब लेकिन मायावती के सुर पूरी तरह बदल चुके हैं। 2012 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सपा के हाथों परास्त होने के बाद मायावती धीरे-धीरे बैकफुट पर जाती नजर आने लगी थी। 2017 के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद तो वे पूरी तरह से निष्क्रिय हो गईं। उन पर आरोप लगने लगे कि आय से अधिक संपत्ति के मामलों में वे बुरी तरह फंसने के चलते केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के समक्ष अघोषित समर्पण कर चुकी हैं। उनके सबसे करीबी रिश्तेदार उनके सगे भाई आनंद पर कुछ समय केंद्रीय जांच एजेंसियों की निगाहें टेड़ी रही थी फिर सब कुछ मानों सामान्य हो गया। मीडिया ने उनकी अकूत संपत्ति की बाबत बोलना-लिखना छोड़ दिया और आनंद के जीवन में फिर से ‘आनंद’ लौट आया। लेकिन इसकी बड़ी कीमत बसपा को चुकानी पड़ी है। मायावती भले ही लाख इंकार करें, वे अप्रत्यक्ष तौर पर 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी मददगार बन उभरी हैं। सबसे बड़ी राहत तो उन्होंने योगीराज के दौरान निष्क्रिय बैठकर की है। इसका एक बड़ा साइड इफैक्ट दलित, विशेषकर जाटव वोट बैंक का भाजपा की तरफ शिफ्ट होना रहा। इतना ही नहीं मुस्लिम मतदाता को बांटने की नियत चलते उन्होंने इन चुनावों में भारी तादात में मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे। उद्देश्य था सपा के कोर वोट बैंक में विभाजन पैदा करना। सोचिए ‘बहन जी’ किस कदर भयभीत हैं और उन पर कितना भारी दबाव है कि उन्होंने अपनी राजनीति की बलि चढ़ा डाली है। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में उनका केवल एक विधायक इस बार चुना गया है। इतना ही ‘समर्पण’ मानो काफी न था कि चुनाव बाद पार्टी की लज्जाजनक हार की समीक्षा करने के लिए बुलाई गई बैठक के दौरान उन्होंने एक और ऐसी घोषणा कर डाली जिसका सीधा फायदा भाजपा को जाता साफ नजर आ रहा है। मायावती ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव के इस्तीफे से खाली हुई आजमगढ़ लोकसभा सीट पर अपना प्रत्याशी अभी से घोषित कर डाला है। बसपा ने अपनी पार्टी से निकाले जा चुके नेता शाह आलम उर्फ गुड्डु जमाली को उम्मीदवार घोषित कर दिया है। शाह आलम दो बार के विधायक रह चुके हैं और आजमगढ़ क्षेत्र में उनका ठीकठाक जनाधार बताया जाता है। उन्हें उम्मीदवार बना मायावती एक बार फिर से मुस्लिम वोट बैंक को बांटने का प्रयास कर रही हैं जिसका लाभ भाजपा को और नुकसान सपा को हो सकता है। लखनऊ की राजनीतिक गलियारों में मायावती के इस एक्शन को लेकर तरह-तरह की अटकलों का बाजार गर्म है। ज्यादातर इसे बहन जी के ‘माया प्रेम’ से पैदा हुई कानूनी दिक्कतों से जोड़ कर देख रहे हैं।

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